
House - 1
प्रथम भाव -शुक्र यदि लग्नकुंडली के प्रथम भाव/लग्न में बैठा हो तो
जातक सुदर्शन, सुदेही, सुखी, दीर्घायु, आकर्षक, प्रसिद्ध, सम्मानित, शिष्ट/सुशील,
मधुरभाषी, कामुक तथा विपरीत लिंगियों में विशेष रुचि रखने वाला होता है। ऐसा
जातक प्रायः उच्च सरकारी पद पर जाता है एवं जन्मस्थान से दूर रहने का भी
इच्छुक होता है। वह रूपवान, विलासी, श्रृंगार व सौंदर्य/फैशन में रुचि रखने वाला
होता है। गायन, वादन या चित्रकला का शौक रखने वाला तथा स्त्रियों को वश
करने की कला का भी ज्ञाता होता है। ऐसा जातक बिना भली प्रकार से सजे-संवरे
घर से बाहर नहीं निकलता।
लाल किताब के अनुसार ऐसा जातक प्रेम में धर्म को न मानने वाला होता है।
उसे सरकार की ओर से कोई झंझट नहीं होते। वह सुन्दर, सुरुचि सम्पन्न तथा
कामप्रिय होता है और धर्महीन आचरण वाला हो सकता है। ऐसा जातक ‘मूडी’
होता है तथा मनमौजी व इकतरफा तबियत वाला होता है। वह किसी से या तो
एकदम घनिष्ठ होता है या एकदम विरुद्ध । बीच के सम्बन्ध वह नहीं रखता। ऐसा
जातक युवावस्था में इश्कबाजी में पड़ता है। वह स्वयं अपने लिए व अपने
सम्बन्धियों के लिए खराब होता है।
यदि मेष, सिंह या धनु लग्न का जातक हो तो प्रथमस्थ शुक्र के कारण
विवाह में विलम्ब होता है किन्तु पत्नी अच्छी मिलती है और दाम्पत्य सुखपूर्ण रहता है (धनु राशि का शुक्र विशेषकर विवाह में विलम्ब कराता है। ऐसे जातक
कभी-कभी प्रौढ़ावस्था में विवाह करते भी देखे गए हैं)। वृष राशि का शुक्र हो तो
पत्नी उत्तम मिलती है, किन्तु जातक रसिया होता है। कन्या राशि का शुक्र हो तो
जातक अपनी ही पत्नी से संतुष्ट रहने वाला होता है। मकर राशि में शुक्र हो तो
जातक एक नम्बर का नखरेबाज होता है। ऐसा जातक बहुत-सी लड़कियों क
नापसंद करके अन्त में सामान्य रंग-रूप की लड़की से ही विवाह करता है। तुल
कुम्भ एवं मिथुन राशि का शुक्र जातक को शौकीन मिजाज और पथभ्रष्ट बनाता
मीन राशि का शुक्र हो तो जातक अस्थिर विचारों वाला होता है। कर्क या वृश्चि
राशि में शुक्र अच्छा पत्नी सुख देता है, किन्तु ऐसा जातक बच्चों के प्रति बहुत
रखने वाला होता है। शास्त्रकारों के अनुसार-सर्धांगचीनमगं समीचीन संग समीचीन बह्वङ्गना भोगयुक्तः ।
समीचीन कर्मा समीनशर्मा समीचीन शुक्रो सदा लग्नवर्ती ॥
अर्थात् यदि लग्न में शुक्र हो तथा षड्बल युक्त हो तो जातक का प्रत्येक अंग
र होता है। वह सत्संगी, सुमुख, सुदेह तथा सुन्दरियों का भोग करने वाला होता.
हैं। यज्ञ-दानादि
शुभ
कर्म भी करता है। सुख भी अच्छा भोगता है। विषयभोग भी.
1
उत्तम प्राप्त होते हैं। विख्यात शास्त्राभ्यासी होता है। प्रिय वाणी बोलता है । समस्त कलाओं का ज्ञाता व नम्र होता है ।
स्त्री जातकों में लग्नस्थ शुक्र जातक को सुन्दर, गोरी, कामवती, कलावती,
श्रृंगारप्रिय, सुगठित शरीर वाली, आकर्षक, विपरीत लिंगियों में आकर्षण रखने
वाली तथा पति की प्यारी बनाता है। शुक्र स्वक्षेत्रीय हो तो स्त्री सौभाग्यवती,
सुशीला एवं खुशमिजाज होती है। परन्तु कुछ नखरे या अदाओं वाली होती है।

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House -2
द्वितीय भाव – यदि शुक्र लग्नकुंडली के दूसरे भाव में बैठा हो तो जातक
वैभवसम्पन्न, प्रेमी, कुलीन, भाग्यवान, अच्छे परिवारवाला, विद्वान,
मधुरभाषी, रत्नादि का व्यापारी या रत्नों में रुचि लेने वाला, खाने-पीने का शौकीन
किन्तु क्वालिटी कांशियस, राजसी रहन-सहन वाला, जेवर तथा वस्त्रों का शौकीन,
बनाव-श्रृंगार में रुचि रखने वाला तथा विलासिता एवं मौजमस्ती में धन का व्यय
करने वाला होता है। फिर भी जातक की सम्पत्ति कम नहीं होती। इस भाव का
शुक्र जातक की अपनी आर्थिक स्थिति तथा ससुराल की स्थिति दोनों के लिए शुभ
होता है। अतः प्रायः ऐसे जातकों की ससुराल भी काफी समृद्ध होती है तथा
ससुराल से जातक के सम्बन्ध भी मधुर व घनिष्ठ रहते हैं (जातक प्रायः क्लीन
शेव्ड होता है) ।
लाल किताब के अनुसार ऐसे जातक में सांसारिक तथा ईश्वरीय दोनों प्रेम
करने की क्षमता होती है। ऐसे जातक का घर कभी बच्चों से खाली नहीं रहता ।
प्राय: 60 वर्ष तक आमदनी का साधन बना रहता है। चन्द्रमा की शुभ दृष्टि भी हो
तो मित्रों के सहयोग से व्यापार में धनसंचय व यश प्राप्ति होती है। परन्तु शुक्र
अशुभ प्रभाव में हो तो जातक को पुत्र प्राप्ति में शंका रहती है।
अग्निराशियों में शुक्र ऊंची महत्वाकांक्षा वाला व अधीर बनाता है। ऐसे जातक को व्यापार की अपेक्षा नौकरी शुभ रहती है। पूर्वार्जित धन-सम्पदा मिलती
है लेकिन खर्चीला होने से जातक उसे जल्दी ही खर्च कर देता है। बिना कुछ करे
शीघ्र अमीर बनने के चक्कर में लॉटरी, जुआ, सट्टे आदि में भी पूर्वार्जित को नष्ट
हुए ऐसे जातक देखे गए हैं।
करते
पृथ्वीराशियों में जातक को पूर्वार्जित धन नहीं मिलता। जातक नौकरी पसंद करता है। स्त्रियों के माध्यम से धन का संचय होता है, परन्तु पत्नी रुग्ण रहती है
और धन उसके इलाज में खर्च होता रहता है। पैसों की स्थिति सुदृढ़ नहीं होने पाती
यद्यपि पैसों का बहुत अभाव भी नहीं हो पाता।
जलतत्त्व राशियों में शुक्र हो तो जातक व्यापार में उन्नति करता है, परन्तु
सन्तान की चिन्ता से दुखी रहता है (या तो संतान का अभाव होता है या वह
अयोग्य होती है)। वायु राशियों में जातक लेखक, पत्रकार आदि हो सकता है
• दाम्पत्य सुख नहीं होता। यदि शुक्र पाप प्रभाव में हो या शनि से युति करे तो जातक
दरिद्र तथा शराबी होता है। भले ही शुक्र धन का नैसर्गिक कारक हो ।
पर
द्वितीयस्थ शुक्र जातक को गायक/गायन में रुचि लेने वाला भी बनाता है।
विशेषकर महिला जातकों में कंठ सुरीला हो जाता है तथा गायन की सम्भावनाएं
विशेष बनती हैं। होंठ भी काफी आकर्षक होते हैं तथा नेत्र भी। द्वितीयस्थ शुक्र के
जातक को शास्त्रकार सज्जनों की संगति प्राप्त करने वाला तथा निरोग रहने वाला भी
बताते हैं ।

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House -3
तृतीय भाव- शुक्र यदि लग्नकुंडली के तीसरे भाव में हो तो जातक
शास्त्रज्ञ, लेखक, सम्मानित, योगी, लोकप्रिय, कामुक, यात्राप्रेमी तथा अधिक
प्रवास में रहने वाला होता है या उसे जन्म स्थान से दूर रहना पड़ता है। ऐसे जातक
की बहनें अधिक होती हैं। वह खुशमिजाज तथा अच्छे पड़ोस वा मित्रों वाला होता
है। जातक की रुचि कलाकार या गायक बनने की होती है ।
मन्त्रेश्वर के अनुसार तीसरा शुक्र जातक को स्त्री सुख से हीन, दुराचारी,
बदनाम बनाता है। (किन्तु ऐसा शुक्र के अशुभ होने पर ही देखने में आता है।)
लाल किताब के अनुसार तीसरे शुक्र वाले जातक के अवैध सम्बन्ध सम्भव होते हैं
तथा स्त्रियों के माध्यम से उसे लाभ मिलने की भी सम्भावनाएं होती हैं। उसकी
अपनी पत्नी दूसरों के प्रति गरम मिजाज वाली होती है। शुभ शुक्र हो तो जातक
अपनी पत्नी को ही प्रेम व मान देने वाला तथा उसी में संतुष्ट रहने वाला होता है।
(इससे जातक के भाग्य में वृद्धि होती है)। अशुभ प्रभाव में शुक्र हो तो जातक
वैवाहिक सुख से हीन होता है, विवाह में बाधाएं आती हैं, पत्नी पूर्व विवाहिता या
पुनर्भू (सेकंड हैंड) होती है अथवा उससे मनमुटाव रहता है। ऐसे जातक को प्रौढ़
स्त्रियां अधिक पसंद आती हैं तथा पत्नी की चिंता बनी रहती है।
पुरुष राशि का शुक्र जातक को अतिकामुक बनाता है। ऐसा जातक दिन या
रात का अंतर SEX के समय नहीं करता। मंगल के साथ शुक्र का अशुभ योग
तीसरे भाव में हो जाए तो जातक बलात्कारी तथा जंगली ढंग से सहवास करने
वाला होता है। ऐसा जातक अनैतिक ढंग से वीर्यनाश करने वाला भी होता है, किन्तु उसकी पत्नी योग्य, सुन्दर, अभिमानिनी होती है । स्त्री राशि का शुक्र हो तो
जातक की पत्नी साधारण नयन-नक्श की एवं व्यवहारकुशलता से शून्य होती है।
पर जातक उसी में संतुष्ट रहता है।
ता है।
तृतीयस्थ शुक्र रोग ज्योतिष की दृष्टि से जातक में बधिरता उत्पन्न करता है।
(यदि पाप प्रभाव में हो तथा तृतीयेश भी निर्बल हो तो बहरा भी हो सकता है)
अन्यथा मध्यायु के बाद जातक ऊंचा सुनने लगता है। चन्द्रमा से अशुभ योग हो तो
कान बहने का रोग हो जाता है, जिसकी परिणिती बहरेपन पर हो सकती है।
वनाएँ
क्रि के
ला भी

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House -4
चतुर्थ भाव -लग्नकुंडली में शुक्र चतुर्थ भाव में हो तो जातक सुन्दर,
शक्तिसम्पन्न, दानी, चतुर, भाग्यवान, दीर्घायु, आरामतलब/विलासी, दूसरों की
मदद करने वाला, सन्तान से सुख पाने वाला तथा वाहनों के सुख व सुविधाओं
बाला होता है। उसे वैभव तथा वाहन सुख विशेष मिलता हैं। पैतृक सम्पत्ति की
प्राप्ति होती है। माता-पिता का सुख दीर्घकाल तक मिलता है। जीवन का उत्तरार्ध
विशेष रूप से सुखमय होता है।
लाल किताब के अनुसार ऐसे जातक को जमीनी यात्राएं बहुत करनी पड़ती
हैं, जो उसके लिए शुभ होती हैं। यदि जातक की पत्नी दुश्चरित्रा हो (जिसकी
सम्भावनाएं होती हैं) तो परिणाम में जातक की संतान को कष्ट भोगना पड़ता है।
शुक्र का ऐसा अशुभ प्रभाव समाप्त करने के लिए जातक को अपनी पत्नी से दो बार
विवाह कर लेना चाहिए। ऐसा जातक प्रायः विवाहोपरांत भाग्योदयी होता है तथा
प्रथम संतान पुत्र प्राप्त करता है। जातक की मैत्री भी बड़े लोगों से रहती है। जातक
पत्नी के वशीभूत रहता है। माता-पिता में से किसी एक से वैमनस्य रह सकता है
अथवा किसी एक की शीघ्र मृत्यु सम्भावित होती है। धन की चिन्ता बनी रहती है।
मंगल से अशुभ योग हो तो उत्तरार्ध के जीवन में जातक का अत्यधिक धन व्यय
होता है।
पुरुष राशि में चौथा शुक्र जातक को अय्याश, खर्चीला व पैतृक धन को नष्ट
कर देने वाला बनाता है। ऐसा जातक स्व उपार्जित धन से सुख भोगता है तथा
स्त्रियों से उसे पूर्ण सहयोग मिलता है। परन्तु माता जीवन भर रुग्ण रहती है। स्त्री
राशियों में शुक्र हो तो जातक को सुन्दर पत्नी नहीं मिलती, पिता का सुख भी थोड़ा
मिलता है। ऐसा जातक कपटी, स्वार्थी, नौकरी के साथ अन्य कार्यों से भी धनोपार्जन
करने वाला होता है। अन्ततः वह नौकरी छोड़कर प्रायः व्यवसायी बन जाता है।
पृथ्वी तत्त्व राशि में या उच्च का शुक्र पुनर्विवाह कराता है। जलराशियों में जातक
का घर बसने नहीं देता। ऐसा देखा गया है
स्त्री जातकों में यदि चतुर्थ शुक्र चन्द्रमा से युति करे और पापदृष्ट हो (लग्न भी मेष या वृश्चिक हो) तो जातक व्यभिचारिणी हो जाती है। पापग्रहों की दृष्टि
जितनी अधिक होगी उतना ही ऐसी जातक के व्यभिचारिणी होने की सम्भावना
बलवान होगी।

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House -5
पंचम भाव – पांचवें भाव में शुक्र
बहुत विद्वान व प्रसिद्ध (अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का) कवि तथा प्रेमी हृदय (रोमांटिक)
होता है। ऐसे जातक सन्तान से सुख पाता है। कलाकार भी हो सकता है। ऐसा
होता है
जातक की सन्तानों में कन्याएं अधिक होती हैं। मित्र वर्ग बढ़ा-चढ़ा
जातक भोगी-विलासी, मौजमस्ती पर अधिक खर्च करने वाला, हंसमुख, विनोदी
तथा धुन का पक्का होता है। शुक्र बलवान स्थिति में हो तो जुआ, लॉटरी, सट्टे
आदि से आकस्मिक लाभ प्राप्त कराता है। या पैसे पड़े हुए मिलते रहते हैं।
(आकस्मिक लाभ)। बुध से शुक्र की युति हो तथा चतुर्थेश पंचमेश का राशि
परिवर्तन हो तो क्लब, सिनेमा, खेल आदि में जातक की अधिक रुचि होती है
पंचम भाव तथा पंचमेश बलवान हो तो इन कार्यों में ख्याति भी मिलती है।
लाल किताब के अनुसार ऐसे जातक की सन्तानें ज्यादा होती हैं (लड़कियां
अधिक) तथा घर बच्चों से भरा रहता है। रोटी-रोजी की कमी नहीं रहती। जातक
कवि या कलाकार होता है। यदि वह सात्विक विचारों के साथ जीवन जीता है तो
उसका भाग्य, यश व सुख सब बढ़ते जाते हैं। परन्तु चरित्रहीन हो तो उसका भाग्य
कटी पतंग की तरह पेड़ पर अटके जैसा होता है। अत: पांचवें शुक्र वाले जातक को
चाहिए कि वह अपनी आशिक मिजाजी पर नियंत्रण रखे और सूफी विचारों का बने ।अग्निराशियों में शुक्र पंचमस्थ हो तो जातक शिक्षा पूर्ण न होने पर भी विद्वान
कहलाता है1 अदाकारी तथा कलाकारी से धनोपार्जन करता है, पर धन संचय नहीं
कर पाता, एक पत्नीव्रती नहीं होता। कामुक होता है। सन्तान हो या न हो इसकी
चिन्ता नहीं करता। पृथ्वी तत्त्व राशियों में शुक्र जातक को विद्वान तथा विज्ञान या
टेक्नोलॉजी की उच्च शिक्षा पाने वाला बनाता है। ऐसे जातक को पुत्रसुख या तो
मिलता नहीं अथवा देर से मिलता है। जलराशियों में शुक्र हो तो जातक कच्ची उम्र
में ही स्त्री सुख पाने वाला अथवा व्यभिचारी बन जाता है। शास्त्रकार के मत से-
सुपुत्रेपि कि यस्य शुक्रो न पुत्रे प्रयासेन कि यत्न संपादितार्थ ।
घ्युदक
विनामन्त्र मिष्टासनाभ्याम धातन कियेत्कवित्वे न शक्ये ॥
अर्थात् पंचमस्थ शुक्र हो तो जातक को पुत्र हो भी जाए तो भी उसे पुत्र जन्म
का फल प्राप्त नहीं होता (पुत्र सुख नहीं होता)। धनसंग्रह के प्रयास न करे तो भी
ऐश्वर्यवान होता है। मन को संतुष्ट करने वाले भोज्य पदार्थ मिलते रहते हैं। मन्त्र,
जप, इष्टदेवाराधन तथा कविता करने में समर्थ होता है। कवि, धनवान तथा उत्तम
भोगों को भोगने वाला होता है। शुक्र आविष्कार का भी कारक होता है।

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House -6
षष्ठ भाव – यदि शुक्र लग्नकुंडली के छठे भाव में हो तो जातक के अनेक
मित्र होते हैं । जातक भाग्यवादी परंतु अनैतिक कार्य करने वाला, संगीतप्रेमी होता.
है। किन्तु उसे मूत्र, वीर्य या गुप्तांग सम्बन्धी रोग हो सकते हैं। उसके पौरुष पर भी
प्रश्नचिह्न होता है (यदि शुक्र अशुभ स्थिति में हो तो जातक नपुंसक या स्त्री को
करने व सन्तानोत्पति में असमर्थ होता है)। मेरे सुयोग्य आचार्य श्री मदनमोहन
कौशिक के अनुसार ऐसे जातक के शुत्र नहीं होते।
लाल किताब के अनुसार ऐसा जातक उल्टे-पुल्टे कार्य करता है परन्तु ईश्वर
उसके कार्यों को सीधा कर देता है। ऐसे जातक को अपना विवाह उससे कराना
जो अपने मां-बाप की इकलौती संतान न हो अन्यथा शुक्र यहां अशुभ प्रभाव देता है। जिससे स्त्री सुख में कमी व सन्तान उत्पत्ति में समस्याएं आती हैं।
ऐसे जातक के शत्रु कभी समाप्त नहीं होते, सदा दुख देते रहते हैं। मानसिक शांति
को भंग करते रहते हैं। षष्ठस्थ शुक्र से जातक की कामेच्छा तीव्र होती है, किन्तु
अतिमैथुन से स्वास्थ्य खराब होता है। मूत्रविकार, उपदंश, प्रमेह, वीर्याल्पता तथा
रोग या जननेन्द्रिय रोग तीव्रता से सम्भव होते हैं।
जलराशि में शुक्र हो तो जातक को व्यभिचारी बना देता है। पृथ्वी राशि में
जातक ऋणग्रस्त रहता है। पत्नी अच्छी मिलती है। झगड़ालू होती है किन्तु प्रेम
जताकर मना लेती है। पुरुष राशि का शुक्र सुन्दर पत्नी दिलाता है किन्तु वह
कर्कशा होती है। स्त्री राशि का शुक्र कोमलांगिनी पत्नी दिलाता है परन्तु वह पुरुष
जैसे विचारों वाली होती है। ऐसे जातक के मामा-मौसी की स्थिति अच्छी नहीं
रहती। पूंजी अधिक लगाए तो व्यवसाय में जातक को हानि होती है। कम पूंजी
लगाए तो लाभ होता है। अतः ऐसे जातक को लघु उद्योग ठीक रहते हैं ।

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House -7
सप्तम भाव – लग्नकुंडली के सातवें भाव में शुक्र हो तो जातक लोकप्रिय,
उदार, धनी, कामुक, विवाहोपरांत उन्नति करने वाला, सुखी विवाहित जीवन
वाला होता है। परन्तु चरित्र उत्तम नहीं होता। अवैध सम्बन्ध सम्भव होते हैं ।
जातक का जीवन प्रायः सफर में गुजरता है। रोजी-रोटी के लिए परदेस में जीवन
काटना पड़ सकता है।
लाल किताब के अनुसार यहां शुभ शुक्र हो तो विवाह तथा गृहस्थी अच्छे
रहते हैं। अशुभ शुक्र हो तो जातक स्त्रियों पर (वैश्याबाजी या उन्हें घुमाने-फिराने
आदि) अधिक धन का व्यय करने वाला होता है। कुछ विद्वानों के अनुसार सातवें
घर में शुक्र जिस ग्रह के साथ बैठता है, तदनुसार फल देता है तथा यदि शुक्र इस
भाव में अकेला बैठा तो कभी अशुभ नहीं होता। परन्तु मैं इस दृष्टिकोण से सहमत
नहीं हूं। मेरी यह मान्यता है कि शुक्र इस भाव में कितने ही शुभ फल क्यों न दे। जातक को स्त्री लोलुप व दुर्बल चरित्र का अवश्य बना देगा। क्योंकि शुक्र सातवें
भाव का कारक है तथा फलादेश का महत्त्वपूर्ण सूत्र – कारको भावः नाशाये के
अनुसार कारक यदि अपने ही भाव में बैठे तो भाव के फलों को नष्ट कर देता है।
अतः जातक की इस चरित्रहीनता का प्रभाव उसके गृहस्थ जीवन पर भी कम
ज्यादा जरूर पड़ता है।
• उच्च का शुक्र सातवें भाव में हो तो जातक को धनाढ्य खानदान की पत्नी दिलाता है। मेष, मिथुन व तुला राशि में शुक्र हो तो पत्नी सुन्दर होती है और
व्यवहारकुशल भी होती है परन्तु पुरुषोचित गुणों से युक्त होती है। ऐसे जातक के
सन्तान कम होती है तथा अतिकामुकता के कारण जातक का स्वास्थ्य क्षीण हो
जाता है। सिंह व कुम्भ राशि का शुक्र हो तो मध्यम कद व स्थूल देह की पत्नी
जातक को मिलती है। मगर वह खुशमिजाज व अक्लमंद होती है। धनु राशि का
शुक्र हो तो जातक की पत्नी लम्बी, सुन्दर व धीर होती है पर बनाव- शृंगार में ही
लगी रहती है। जलराशि का शुक्र हो तो जातक की पत्नी स्वार्थी, कलहप्रिय,
कुटुम्ब से अलग रहने की इच्छुक, खर्चीली तथा सत्ता अपने हाथ में रखने वाली
होती है।
जो भी स्थिति हो सातवां शुक्र जातक को कामुक व कमजोर चरित्र का
बनाता है। शुक्र अशुभ प्रभाव में हो तो ‘विवाह प्रतिबन्धक योग’ बनता है। विवाह हो जाए तो पत्नी से अलगाव, पत्नी को कम आयु में मृत्यु, पुनर्विवाह जैसे परिणाम
होते हैं। मंगल व शनि की राशियों (मेष, वृश्चिक, मकर, कुम्भ) में शुक्र हो
प्रायः विलम्ब से विवाह होता है। कभी-कभी विजातीय विवाह होते भी देखा जाता
है। सप्तमस्थ शुक्र से भाग्य पत्नी के आने पर ही उदित होता है। किन्तु कोर्ट-
कचहरी में जातक को विजय मिलती है तथा यदि साझे का व्यापार करे तो सफल
होता है। संतान से प्रेम अधिक व स्वतंत्र व्यवसाय की प्रवृत्ति रहती है। शास्त्रकारों
के मत से-
कलत्रे कलयात्सुखं नो कलात्रत्कलत्रं तु शुक्रे भवेद्रत्नगर्भम् ।
विलासाखिको गण्यतेचप्रवासी प्रयासाल्पकः केन मुह्यतितस्म् ॥
अर्थात् शुक्र सप्तमस्थ हो तो जातक को स्त्रीसुख तो प्राप्त होता है परन्तु
कुक्षि/कटि स्थान में पीड़ा रहती है। उसकी पत्नी सपुत्र उत्पन्न करने वाली होती
है। जातक अतिकामी व नित्य प्रवासी होता है। आलसी/विशेष श्रम न करने वाला
होता है। उसकी पत्नी अपनी चतुरता से सबको मोहित करने वाली होती है। परन्तु
जातक स्त्री लोलुप होता है।

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House -8
अष्टम भाव -शुक्र यदि लग्नकुंडली के आठवें भाव में हो तो जातक रोगी,कोधी, दुखी, परलिंगी से अवैध सम्बन्ध बनाने वाला तथा विदेश यात्रा करने वाला
होता है। ऐसे जातक को अकस्मात् धन प्राप्ति का योग भी होता है। सट्टा, लाटरा,
विरासत आदि से उसे लाभ हो सकता है। विशेषकर किसी विधवा स्त्री की सम्पत्ति उसकी मृत्यु के
बाद जातक को मिलती है। जातक को नशे की लत सम्भव होती
है। वह दाघायु तथा अर्थ व स्त्री सुख पाने वाला, विद्वान होता है। उसकी पत्नी सुन्दर,
विश्वासपात्र व प्रिय बोलने वाली होती है।
लाल किताब के अनुसार ऐसे व्यक्ति को ज्ञान तो बहुत होता है परन्तु उसकी
समाज में कद्र नहीं होती। ऐसे जातक को धर्मस्थानों पर सिर झुकाने से लाभ
मिलता है। परन्तु दूसरों से दान आदि लेना अशुभ रहता है। ऐसे जातक की पत्नी
अनुशासन पसंद या सख्त स्वभाव की होती है । परन्तु प्रायः सुन्दर व अच्छी
आवाज वाली होती है।
वृष, धनु या कर्क राशि का शुक्र हो तो जातक का दाम्पत्य जीवन अच्छा नहीं
रहता। पत्नी व संतान से वैमनस्य रहता है। जातक अतिकामी तथा व्यभिचारी
प्रवृत्ति का होता है। मधुमेह, शुक्रमेह, उपदंश आदि गुप्त रोग होना सम्भावित होता
है। मिथुन या वृश्चिक राशि में शुक्र स्त्री सुख में न्यूनता लाता है तथा व्यवसाय
नहीं रखता। आर्थिक स्थिति साधारण रहती है। मकर व सिंह राशि का शुक्र
सुचारूसन्तान व स्त्री का सुख अल्प करता है। परस्त्री से सम्बन्ध बनवाता है, जिससे
जातक को अर्थ लाभ होता है। कन्या व मेष राशि में विवाहोपरांत जातक अवनति
को प्राप्त होता है, व्यवसाय में हानि, नौकरी में पदावनति होती है। जातक पर सदा
ऋण रहता है। अन्य राशियों में और तो सब ठीक होता है पर परित्यक्ता या विधवा
से अवैध सम्बन्ध रहते हैं। शुक्र पाप प्रभाव में या दूषित हो तो अनैतिक संसर्ग
निश्चित होते हैं।

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Design should not dominate things, and not dominate people. Should help people. That is important to us.

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Victories aren’t born on the field. We create them during practice. To aim is not enough, we must hit with performance.

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“The future belongs to those who believe in the beauty of their dreams. We are future Ready.

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We don’t want to push our ideas on to the customers, we simply want to make what they want.” We are always standing with our customers.

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House -9
नवम भाव – लग्नकुंडली के नौवें भाव में शुक्र हो तो जातक धार्मिक,
चतुर, बुद्धिमान, अच्छा वैवाहिक जीवन, दयालु, तीर्थयात्राएं करने वाला तथा
सरकार से सम्मान पाने वाला होता है। धार्मिक तथा तपस्वी भी होता है। पैसे की
स्थिति अच्छी होती है। परन्तु परिश्रम अधिक करना पड़ता है। सन्तान का सुख भी
उल्लेखनीय नहीं होता।
‘लाल किताब’ ने नौवें शुक्र को ‘मिट्टी की काली आंधी’ कहा है। यानी
सामान्यतः नौवां शुक्र शुभ नहीं माना है। लाल किताब के अनुसार ऐसा जातक
बुद्धिमान होता है। पैसे वाला भी होता है, किन्तु खुद परिश्रम करने पर ही उसको
भोजन नसीब होता है। सन्तान की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं होती। किन्तु ऐसा
जातक यदि तीर्थयात्राएं करे तो उसके शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। नवमस्थ शुक्र माता-पिता को चिरायु तथा जातक को गायन-वादन, कला-
सिनेमा आदि का प्रेमी बनाता है। ऐसा जातक जन्मजात कुशल अभिनेता होता है
तथा सम्मान पाता है। पुरुष राशि का शुक्र हो तो जातक के बहनें कम, छोटे भाई
अधिक होते हैं। स्त्रीराशि का हो तो भाई कम बहनें अधिक होती हैं। प्राय:
विवाहोपरांत भाग्योदय होता है। स्त्रियों के माध्यम से धन मिलता है। जब तक
पत्नी जीवित रहे, व्यवसाय में उन्नति होती है। पत्नी के मरने के बाद स्थिति बिगड़
जाती है। कन्या व कुम्भ राशि में शुक्र हो तो जातक का भाग्योदय सन्तान के द्वारा
होता है। यदि प्रथम कन्या हो जाए तो स्थिति सुदृढ़ हो जाती है। यदि पहले पुत्र हो
जाए तो प्रारंभ में स्थिति सुधरकर फिर बिगड़ जाती है।
जलराशि का शुक्र हो तो जातक खोजी विचारधारा का होता है। अग्नि एवं वायु
राशियों में हो तो पत्नी लावण्यमयी व यौवन सम्पन्न नहीं होतीं है। शुक्र पाप प्रभाव
में हो तो विजातीय विवाह को प्रेरित करता है तथा पत्नी की आयु जातक से प्रायः
अधिक होती है। माता-पिता से भी जातक का विरोध रहता है। उच्च का शुक्र हो
तो जातक मामी, मौसी तथा मित्र की पत्नी से अवैध सम्बन्ध बनाने वाला होता है।

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House -10
दशम भाव – दसवें भाव में शुक्र हो तो जातक न्यायप्रिय, दयालु, भाग्यवान,
धनाढ्य, शुभकर्मा, ज्योतिष में रुचि लेने वाला, प्रतापी किन्तु धन को विशेष महत्व
देने वाला तथा विपरीतलिंगी के साथ जहनी अय्याशी (काल्पनिक रति) करने
वाला होता है। ऐसे जातक के युवावस्था में अवैध सम्बन्ध सम्भावित होते हैं।
भाइयों से उसके सम्बन्ध प्रायः मधुर नहीं रहते। यदि शुक्र दूषित हो तो जातक
वैश्यागामी होता है ।
लाल किताब के अनुसार दसवां शुक्र यदि स्त्री राशि में हो तो जातक
मृदुभाषी, लोकप्रिय, मिलनसार व विवाहोपरांत भाग्योदयी होता है। ऐसे जातक की
पत्नी भी जातक की धनवृद्धि में सहायक होती है। प्रायः जातक नौकरी नहीं करता
क्योंकि स्वतन्त्र कार्य की इच्छा उसे जन्मजात होती है। यदि नौकरी करता है तो
ऊबकर शीघ्र त्यागपत्र दे देता है और अपना व्यवसाय करता है। सन्तान कम होती
हैं। बुरी आदतें सम्भावित होती हैं।
पुरुष राशि में शुक्र हो तो (या उच्च का हो तब भी) जातक को विवाहेच्छा
नहीं होती। विवाह कर लेता है तो पत्नी के साथ अधिक समय नहीं रहता। पत्नी
के साथ सौमनस्य भी नहीं रहता। कामकाज में ही लगा रहता है अतः पत्नी असंतुष्ट
ही रहती है, जिससे कलह उत्पन्न होती है।
शुक्र यदि राहू व शनि के प्रभाव में हो तो ‘द्विभार्या योग’ बनता है। संतान की
चिंता बनी रहती है। यदि स्त्री-पुत्र का सुख मिल जाए तो व्यवसाय ठीक नहीं चलता, व्यावसायिक सफलता संदिग्ध हो जाती है। पिता का सुख भी अल्प हो।
है। शास्त्रकारों ने दशमस्थ शुक्र को बहुत सन्तान प्रदान करने वाला भी माना
है तथा जातक का आडम्बरप्रिय होना कहा है।

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House -11
एकादश भाव – लग्नकुंडली के ग्यारहवें भाव में शुक्र हो तो जातक
वाहनसुखी, धनपति, रत्नादि का व्यापारी (या शुक्र से सम्बन्धी व्यवसाय वाला),
सन्तान स सुखा, कामुक किन्तु परमार्थी होता है। यदि शुभ प्रभाव में हो तो मित्रवर्ग.
उत्तम एवं धनोपार्जन में सहायक होता है। ऐसे जातक को स्त्रियों के माध्यम से भी
लाभ होता है। किन्तु शुक्र पाप प्रभाव में हो तो अशुभ फल प्राप्त होते हैं।
लाल किताब के अनुसार ऐसा जातक गुप्त कार्य करने वाला, क्षण में रंग
बदलने वाला होता है। यदि कुंडली में बुध व चन्द्रमा स्थिर राशि में हों तो ग्यारहवां
विशेष धनदायक होता है। शुक्र अशुभ हो तो गुप्तरोग, चर्मरोग या शुक्राणु
सम्बन्धी रोग देता है। ऐसा जातक ऊपर से भोला परन्तु भीतर से तेज़ व शातिर होता
है। पत्नी को यदि घर का खजांची बनाए तो अशुभ रहता है।
शुक्र
पुरुष राशि में ग्यारहवां शुक्र कन्याएं अधिक देता है। स्त्री राशि में पुत्र
अधिक देता है। किन्तु अग्निराशि में पुत्र अभाव या पुत्र सुख अल्प कर देता है।
जलराशि का शुक्र सन्तान के लिए अशुभ होता है। ग्यारहवां शुक्र किसी भी राशि
का हो जातक के चरित्र को संदिग्ध बनाता है। ऐसा जातक प्रायः स्वार्थी, कंजूस,
मित्रों की अवहेलना करने वाला होता है तथा उसके विषय में अफवाहें अधिक उड़ती हैं।
।
शास्त्रकारों ने ग्यारहवें शुक्र की कुछ और विशेषताएं भी गिनाई हैं। ऐसे
जातक को सौंदर्य, ऐश्वर्य, भोग व सामर्थ्य गुण व कीर्ति सहित प्राप्त होते हैं और
शुभ प्रभाव का शुक्र हो तो जातक राजा के समान वैभव ऐश्वर्य का भोग करता है।

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House -12
द्वादश भाव – जन्मकुंडली में शुक्र यदि बारहवें भाव में हो तो जातक
न्यायप्रिय, बहुभोजी/पेटू, खर्चीला, पापी, वीर्यरोगी तथा परलिंगियों से सम्बन्ध
बनाने वाला व आलसी होता है। किन्तु पत्नी प्रायः पतिव्रता एवं मुसीबतों में साथ
देने वाली होती है (यह लाल किताब का मत है)। शुक्र अशुभ हो तो भी जातक
की पत्नी रोगिणी भले ही रहे, पति की परेशानियों को स्वयं झेलनी वाली होती है।
पत्नी का भाग्य पति के लिए सहायक रहता है। वैसे बारहवां शुक्र सामान्यतः
पाराशरी ज्योतिष व लाल किताब दोनों ने अशुभ माना है।
लाल किताब के अनुसार बारहवां शुक्र व्यभिचार की प्रवृत्ति देता है। ऐसा
है
जातक गुप्त रूप से जननेन्द्रिय सुख प्राप्त करता है (शुक्र शुभ हो तो गोपनीयता बनी
रहती है। नहीं तो सबको ज्ञात हो जाता है)। वह परस्त्रीगामी व शुक्र सम्बन्धी रोगों से त्रस्त हो सकता है। राहू जैसे पापग्रहों से अशुभ संबंध बनाए या दृष्टि आदि से
पीड़ित हो तो बारहवां शुक्र स्त्रियों की शत्रुता के कारण धनहानि कराता है। पत्नी
की मृत्यु/तलाक/वियोग की सम्भावना तीव्र होती है। अग्निराशि का शुक्र जातक
को झगड़ालू, क्लेशकारिणी व गुस्सैल या कर्कशा पत्नी दिलाता है।
वायु राशि का शुक्र हो तो पत्नी आकर्षक होती है। चित्रकला, कविता,
लेखन आदि में रुचि होती है, नौकरी करते हुए भी व्यवसाय करने की इच्छा बनी
रहती है। ऋण बना रहता है। द्विभार्या योग की सम्भावना भी बनती है। ऐसे जातक
को पशुपालन द्वारा लाभ सम्भावित होता है। यदि मंगल के साथ शुक्र की युति हो
जाए तो जातक SEX के विषय में सैडिस्ट (परपीड़क) बन जाता है। किन्तु शनि
व बुद्ध की युति हो तो काम शीतलता या अर्धनपुंसकता (शीघ्रपतन या अर्ध
उत्तेजना आदि) का भी शिकार हो सकता है। स्त्री जातकों में बारहवां शुक्र यदि
पापदृष्ट हो तथा चन्द्रमा की युति हो तो जातक व्यभिचारिणी होती है।

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