1-अश्विनी

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III अश्विनी नक्षत्र में कुछ विशेष अक्षांशों पर कुछ ग्रहों की उपस्थिति के परिणाम

III अश्विनी नक्षत्र में कुछ विशेष अक्षांशों पर कुछ ग्रहों की उपस्थिति के परिणाम
अश्विनी नक्षत्र में स्थित कुछ ग्रहों के लिए कुछ घातक अंक्षाश पाये गये हैं। ये घातक अंक्षाश विभिन्न ग्रहोनुसार निम्नलिखित हैं :
चन्द्रमा : अश्विनी नक्षत्र तथा परिक्रमा कक्षा की 8.00 डिग्री ।
केतु : अश्विनी नक्षत्र तथा परिक्रमा कक्षा की 8.00 डिग्री ।
शनि : अश्विनी नक्षत्र तथा परिक्रमा कक्षा की 10.00 डिग्री ।
उपरोक्त तालिका से देख सकते है कि चन्द्रमा और केतु का सहीसंयोग जिस समय चन्द्रमा तथा केतू का अश्विनी नक्षत्र में 8.00 डिग्री पर तथा शनि की इसी नक्षत्र में 10.00 डिग्री पर स्थापित जातक के लिए

घातक हैं यदि बृहस्पति या बुद्ध की शक्तिशाली दृष्टि न हो तो, उपरोक्त ग्रहीय आकृति में जातक का जन्म उसकी दीर्घआयु के लिए बाधक है। यदि उपरोक्त तीनों ग्रह घातक अक्षांशों से गुजरें तो कोई भी मंगल

कार्य नहीं करना चाहिए.तथा जातक को सावधानी बरतनी चाहिए ।
IV उपचार-
(क) चन्द्रमा के लिए मन्त्र संख्या 26, केतू के लिए मन्त्र संख्या 38 तथा शनि के लिए मन्त्र संख्या 36 का विधिवत जाप इन तीनों ग्रहों को अनुकूल कर देगा ।
अथवा / तथा
(ख) लहसनिया रत्न (Cats eye) तीन रत्ती सोने की अंगूठी में जड़वाकर बुद्धवार या शुक्रवार को सूर्य्यास्तमय से सायंकाल 8 बजे के बीच के समय में दूसरी (शनि) अंगुल में धारण करें तथा पुखराज, पांच रत्ती का

भी सोने की
अंगूठी में जड़वा कर तीसरी (सूर्य) अंगुल में धारण करें ।
(ग) अपनी दैनिक क्रियाओं के साथ नियमित रूप से मन्त्र संख्या 36 का जाप जातक की विपत्तियों के निदान के लिए यथेष्ठ है। यह जांचा हुआ मन्त्र है जिसके चमत्कारी परिणाम निकले हैं। 

2-भरणी

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भरणी

III भरणी नक्षत्र में कुछ ग्रहों की निम्नलिखित अक्षाशों पर स्थिति के घातक
अथवा भविष्यसूचक परिणाम हो सकते हैं जो इस प्रकार हैं :
सूर्य : भरणी नक्षत्र की 6.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 20 डिग्री)
मंगल : भरणी नक्षत्र की 5.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 19 डिग्री)
बुद्ध : भरणी नक्षत्र की 1.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 15 डिग्री)
बृहस्पति : भरणी नक्षत्र की 5.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 19 डिग्री)
राहू: भरणी नक्षत्र की 0.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 14 डिग्री)
उपरोक्त तालिका में पाया गया है कि सूर्य, मंगल, बुद्ध, बृहस्पति तथा राहू का प्रत्येक ग्रह के सामने दिये गए अंक्षाश में होना जातक के लिए घातक है। यदि शुक्र की दृष्टि न हो तो उपरोक्त ग्रहीय आकृति में जन्म
जातक की दीर्घ आयु के लिए अवरोधक है या ये उसके जीवन को कष्टपूर्ण बना देंगे। जब भी उपरोक्त ग्रह ऐसे घातक अक्षांश से गुजरें तो सावधानी
बरतनी चाहिए ।
जो भरणी नक्षत्र में उत्पन्न हुए है, उन्हें रोहिणी, पौष, अश्लेष, आद्र और ज्येष्ठ नक्षत्रों में मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए। उन्हें ऐसे लोगों से (जो इन नक्षत्रों में उत्पन्न हुए हों) सम्बन्ध और सम्पर्क न रखने की सलाह
दी जाती है।
भरणी नक्षत्र में उत्पन्न जातकों की अधिष्ठाता दशा शुक्र है इसके बाद सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, राहू, बृहस्पति तथा शनि की दशाएं है ।
जब सूर्य और चन्द्रमा भरणी नक्षत्र का परिगमन करते है और मंगल की दशा तथा शुक्र का उपपरिक्रमण काल अथवा शुक्र की दशा और मंगल का उपपरिक्रमण काल प्रभाव डालते अनुकूल परिणाम प्रतीत होते
हैं । भरणी नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्तियों को उनके प्रायः दुर्घटनाग्रस्त होने के योग के कारण; कुछ ग्रहों का भरणी नक्षत्र में विशेष अक्षांश पर स्थित होना घातकता का प्रतीक होने से तथा चिन्ताओं और साधारण दोषों
के निवारण के लिए निम्नलिखित उपचार दिये गये है:
1. प्रतिदिन ग्यारह बार “ओम नमः शिवाय” का जाप ।
2. 9 रत्ती का लाल मूंगा चांदी की अंगूठी में जड़कर मंगलवार को प्रातकाल तीसरी अंगुली (सूर्यांगुल) में धारण करें तथा 5 रत्ती का नीलम सोने की अंगूठी में जड़कर चौथी अंगुली (बुध-अंगुल) में शनिवार को
धारण करें।
3. सभी समस्याएं शनि ग्रह की दशा के कारण होती हैं अतः शनि की साढ़े-साति दूर करने के लिए उपचार वाले अध्याय में से क्रम संख्या 34 के अनुसार करें।
4. इसके अतिरिक्त उक्त अध्याय में दिये गये क्रम संख्या 27 पर मन्त्र जाप मंगल को अनुकूल करने के लिए है।
 

3-कृत्तिका

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कृत्तिका

कार्तिक नक्षत्र में उत्पन्न जातकों का अधिण्ठाता दशा सूर्य है जिसके बाद चन्द्रमा, मंगल, राहू, बृहस्पति, शनि और बुद्ध आते हैं।
उपचार-
(i) शुक्र के लिए क्रम संख्या 30 पर मन्त्र का जाप करें ।
(ii) क्रम संख्या 36 पर मन्त्र का रोजाना 11 (ग्यारक बार) जाप करें अथवा
(iii) क्रम संख्या 18 पर मन्त्र का जाप करें।
(iv) लहसनिया (Cats eye ) 3 रत्ती सोने की अगूंठी में जड़वा कर दूसरी अंगुली (शनि) में बुधवार या शुक्रवार को सूर्यास्त से 8-00 बजे के मध्य धारण करें तथा पुखराज 5 रत्ती सोने की अगूंठी में जड़वाकर
तीसरी (सूर्य) अंगुली
में धारण करें। 

4-रोहिणी

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रोहिणी

(iii) रोहिणी नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को आर्द्रः, पौष, माध, स्वाति, मूल तथा पूर्वफाल्गुनी नक्षत्रों में उत्पन्न व्यक्तियों से सम्बन्ध नहीं बनाना चाहिए। यदि उपरोक्त नक्षत्र प्रभाव में हों तो उस समय में रोहिणी नक्षत्र में
उत्पन्न व्यक्तियों
को कोई मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए।
रोहिणी का अधिण्ठाता दशा चन्द्रमा है, जिसके बाद मंगल, राहू, बृहस्पति, शनि तथा बुध का क्रम है। रोहिणी नक्षत्र में कुछ ग्रहों का घातक अंक्षाश पर होना निम्नलिखित है:
बुध-- रोहिणी नक्षत्र की 4.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 44 डिग्री)
शुक्र - रोहिणी नक्षत्र की 5.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 45 डिग्री)
केतू-रोहिणी नक्षत्र की 8.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 48 डिग्री)
उपरोक्त ग्रहों की स्थिति तथा प्रत्येक के सामने दिये गये अक्षांश, पात, यदि बृहस्पति की तीक्षण दृष्टि न हो तो, जातक की लम्बी आयु के लिए बाधक होते हैं। जब ये ग्रह इन घातक अक्षांशों से गुजरे तो उस समय
कोई मांगालिक कार्य नहीं करना चाहिए। जब बुध, शुक्र, तथा केतू का अपने-अपने
धातक अक्षांशो से गोचर (वार्षिक गमन) होना हो तो जातक को विशेष, सावधानी अपनानी चाहिए।
(iv) विभिन्न ग्रहों के घात को कम करने के लिए निम्न उपाय अपनाने चाहिए :
(1) नित्य ग्यारह बार महामन्त्र “ओम नमः शिवायः” का जाप करना चाहिए।
(2) 4 या 6 रत्ती का मोती चाँदी की अगूंठी में जड़वाकर शुक्लपक्ष में सोमवार के दिन प्रातः 6 से 7 बजे अथवा सांय 7 और 10 बजे के बीच चौथी (बुध) अंगुली में धारण करे तथा नीलम 3 रत्ती का सोने अथवा
पंचधातु की अगूंठी में जड़वाकर शनिवार को सांय 1.30 से 4.30 के मध्य दूसरी (शनि) अंगुली में धारण करें।
(3) नित्य सूर्य मन्त्र का जाप करें। ग्रहों के दुष्प्रभाव को हटाने के लिए गायत्री मन्त्र का भी जाप करना चाहिए। 

5-मृगशिरा

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मृगशिरा

(iii)मार्गशीर्ष नक्षत्र में घातक अंक्षाश निम्न हैं:
मंगल - मार्गशीर्ष नक्षत्र की 4.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 58 डिग्री)
बृहस्पति- मार्गशीर्ष नक्षत्र की 5.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 59 डिग्री)में उपरोक्त तालिका से पाते है कि मंगल ग्रह का परिक्रमा कक्षा में 58 डिग्री पर तथा बृहस्पति ग्रह का परिक्रमा कक्षा में 59 डिग्री पर होना
जातक के लिए घातक है। इस ग्रहस्थिति में जन्म, यदि शुक्र अथवा बुध की दृष्टि या संयोग मंगल अथवा बृहस्पति के साथ न हो तो, जातक की दीर्घ आयु
बाधक होगा। जब मंगल या बृहस्पति इन अंक्षाशों से गुजरें तो जातक को सावधानी बरतनी चाहिए। (iv) उपचार
(1) चार अथवा छः रत्ती का मोती चांदी की अंगूठी में जड़वा कर शुक्ल पक्ष में सोमवार के दिन प्रातः 6 और 7 बजे या सांय 7 से 10 बजे के बीच चौथी (बुध) अंगुली में धारण करें तथा नीलम 3 (तीन) रत्ती का सोने
अथवा पंच धातु की अंगूठी में जड़वा कर शनिवार को सांय 1.30 बजे से 4.30 बजे के
बीच दूसरी (शनि) अंगुली में धारण करें ।
अथवा
(2) मन्त्र संख्या 2 का जाप करें। यह स्वास्थ्य, धन तथा लम्बी आयु के लिए अभिमन्त्रित है।
(3) मंगल के लिए दिये गये मंत्र का नियमित जाप करें। 

6-आर्द्रा

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आर्द्रा

(iii) आर्द्र नक्षत्र में विशेष अक्षाशों पर ग्रहों की स्थिति के परिणाम
आर्द्र नक्षत्र में कुछ विशेष घातक अक्षाशों पर कुछ ग्रह स्थित होते है। विभिन्न ग्रहों के लिए घातक अक्षांश निम्न हैं: मंगल-आर्द्र नक्षत्र की 5.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 72 वीं डिग्री)
बुध - आर्द्र नक्षत्र की 6.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 73 वीं डिग्री)
बृहस्पति-आर्द्र नक्षत्र की 5.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 72 वीं डिग्री)
शुक्र- आर्द्र नक्षत्र की 4.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 71 वीं डिग्री)
शनि-आर्द्र नक्षत्र की 0.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 67 वीं डिग्री)
राहू -आर्द्र नक्षत्र की 5.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 72 वीं डिग्री)
उपरोक्त तालिका से पता चलता है कि सूर्य, बृहस्पति तथा राहू का सही योग जातक के लिए पूरी तरह शुभ या घातक नहीं होता। उसी प्रकार बुध का 6.20 डिग्री पर, शुक्र का 4.20 डिग्री पर और शनि का 0.20
डिग्री पर आर्द्र नक्षत्र में होना शुभ नहीं होता। यदि मंगल की दृष्टि अथवा संयोग और
चन्द्रमा का बुध के साथ सही संयोग न हो तो, ये सब उपरोक्त ग्रहीय आकृति में जन्म लेने वाले जातकों की लम्बी आयु के लिए बाधक होंगे। जब ग्रह उपरोक्त घातक अक्षाशों से गुजरें तो उस समय कोई मांगलिक
कार्य नहीं करना चाहिए और जातक को सावधानी बरतनी चाहिए ।
(iv) उपचार
(1) घातक अक्षाशों में स्थित ग्रहों को शान्त करन के लिए सम्बन्धित मन्त्रों का जाप करना चाहिए।
           अथवा
(2) मोती चार या छः रत्ती का चादी की अगूंठी में जड़वा कर, शुक्ल पक्ष में सोमवार के दिन, सुबह 6 से 7 बजे या शाम को 7 से 10 बजे के बीच, चौथी (बुध) अंगुली में धारण करें तथा नीलम तीन रत्ती का सोने
अथवा पंच धातु की अंगूठी में जड़वा कर, शनिवार को दूसरी (शनि) अंगूली में 1.30 बजे से
4.30 बजे (सांय) के बीच धारण करे ।
(3) प्रत्येक व्यक्ति को अपने दैनिक जीवन में विभिन्न अनिष्टकारक अथवा दुष्ट आपदाओं से सामना करना पड़ता है, इन्हें दूर करने के लिए मन्त्र नं० 36 “श्री रूद्रम" का नियमित जाप करना चाहिए। यह एक जांचा
हुआ मंत्र है और इसके चमत्कारी परिणाम निकले हैं ।
 

7-पुनर्वसु

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पुनर्वसु

(iii) पुर्नवसु नक्षत्र में विशेष अक्षाशों पर ग्रहों की स्थिति के परिणाम
पुर्नवसु नक्षत्र में कुछ विशेष घातक अक्षाशों पर कुछ ग्रह स्थित होते है। विभिन्न ग्रहों के लिए घातक अक्षांश निम्नलिखित है: मंगल - पुर्नवसु नक्षत्र की 5.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 85.00 डिग्री)
केतू -  पुर्नवसु नक्षत्र की 0.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 80.00 डिग्री) चन्द्रमा-पुर्नवसु नक्षत्र की 2.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 82.00 डिग्री) यदि बुध या बृहस्पति की तीक्षण दृष्टि न हो तो, उपरोक्त ग्रहीय
आकृति में जन्म लेने वाले जातक जातक की दीर्घायु में अवरोध उत्पन्न हो
सकता है। जब भी ये तीनों ग्रह घातक अक्षाशों से गुजरें तो कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए। जब भी चन्द्रमा, मंगल और केतू राशिचक्र की घातक अक्षाशों से गुजरे तो पूरी सावधानी बरतनी चाहिए ।
(iv) उपचार
(1) पुखराज पाँच रत्ती का, सोने की अंगूठी में जड़वाकर, बृहस्पतिवार को दोपहर 12.00 बजे से अपराह्न् 3-00 बजे तक तीसरी (सूर्य) अंगुल में धारण करे ।
(2) बुध को शान्त करने के लिए मन्त्र संख्या 28 का जाप करें
( 3 ) सूर्य को शान्त करने के लिए मन्त्र संख्या 24 का जाप करें। 

8-पुष्य

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पुष्य

(iii) पुष्य नक्षत्र में कुछ विशेष अक्षाशों पर ग्रहों की उपस्थिति के परिणाम
इस नक्षत्र में कुछ ग्रहों के लिए कुछ घातक अक्षांश हैं। विभिन्न ग्रहों के लिए ऐसे अक्षांश निम्नलिखित हैं:
सूर्य-पुष्य नक्षत्र की 2.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 96.00 डिग्री)
बुध - पुष्य नक्षत्र की 8.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 102.00 डिग्री )
शनि-पुष्य नक्षत्र की 5.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 99.00 डिग्री ) राहू - पुष्य नक्षत्र की 7.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 101.00 डिग्री)
केतू-पुष्य नक्षत्र की 6.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 100.00 डिग्री)
यदि मंगल की तीव्र दृष्टि न हो तो, उपरोक्त ग्रहीय आकृति में
जातक का जन्म उसकी दीर्घ आयु के लिए बाधक है। जब भी ये ग्रह घातक अक्षाशों से गुजरें तो उस समय कोई मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए।
जातक को ऐसे समय में सावधानी बरतनी चाहिए ।
(iv) उपचार
(1) हीरा तीन रत्ती का सोने या प्लेटीनम की अंगूठी में जड़वाकर शुक्रवार को प्रातः 7.30 के मध्य तीसरी (सूर्य) अंगुल में धारण करें ।
(2) बृहस्पति के लिए दिये गये मन्त्र का नियमित जाप करें।
(3) मन्त्र संख्या 3 का जाप करें। 

9- आश्लेषा

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आश्लेषा

(iii) अश्लेष नक्षत्र में कुछ विशेष अक्षाशों पर ग्रहों की उपस्थिति के परिणाम
इस नक्षत्र में कुछ ग्रहों के लिए कुछ घातक अक्षांश हैं। विभिन्न ग्रहों के लिए ये घातक अक्षांश इस प्रकार हैं:
मंगल - अश्लेष नक्षत्र की 6.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 113.00 डिग्री)
बृहस्पति - अश्लेष नक्षत्र की 10.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 117.00 डिग्री)
शुक्र - अश्लेष नक्षत्र की 0.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 107.00 डिग्री)
चन्द्रमा - अश्लेष नक्षत्र की 5.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 112.00 डिग्री) उपरोक्त तालिका से हम देखते है कि यदि शक्तिशाली शनि की इन ग्रहों पर अनिष्टकारी स्वाभाविक दृष्टि न हो तो, उपरोक्त आकृति में
जातक ग्रा जन्म उसकी दीर्घायु के लिए बाधक होता है। जब भी ये ग्रह इन घातक अक्षांशों से गुजरें तो कोई मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए। जब भी ये ग्रह
इन घातक अक्षांशो से गुजरें तो जातक को सावधानी बरतनी चाहिए।
(iv) उपचार
(1) पन्ना सात रत्ती का सोने की अंगूठी में जड़वाकर बुधवार को प्रातः सूर्योदय से तीन घन्टे तक दूसरी (शनि) अंगुल में धारण करें।
(2) अश्लेष नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्तियों को सर्पपूजा करनी चाहिए और किसी भी हालत में सांपों या नागों को हानि नहीं पहुंचानी चाहिए। उन्हे नियमित रूप से दूध और अण्डे देने चाहिए।
(3) रोजाना अपना कोई मांगलिक कार्य आरम्भ करने से पहले तथा यात्रा करने से पहले “ओम नमों शिवाय” का जाप करना चाहिए।
(4) अपने दैनिक जीवन में बुराइयों को दूर रखने के लिए नित्य मन्त्र संख्या 36 का जाप आवश्यक है । 

10-मघा

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मघा

(iii) माघ नक्षत्र में कुछ विशेष अक्षाशों पर कुछ ग्रहों की उपस्थिति के परिणाम
कुछ ग्रहों के लिए कुछ घातक अक्षांश होते हैं। विभिन्न
माघ नक्षत्र में ग्रहों के लिए ये घातक अंक्षाश इस प्रकार हैं।
सूर्य-माघ नक्षत्र की 8.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 128.00 डिग्री)
बुध - माघ नक्षत्र की 8.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 128.00 डिग्री)
बृहस्पति- माघ नक्षत्र की 6.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 126.00 डिग्री)
शुक्र-माघ नक्षत्र की 10.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 130.00 डिग्री)
शनि - माघ नक्षत्र की 12.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 132.00 डिग्री)
उपरोक्त तालिका से हम पाते हैं कि सूर्य और बुध का सही संयुक्त होना, जैसा कि बृहस्पति, शुक्र तथा शनि की उपरोक्त अक्षांशों में अलग-अलग स्थिति भी जातक के लिए घातक होती है। उपरोक्त ग्रहीय आकृति
में जातक का जन्म, यदि मंगल और चन्द्रमा की शक्तिशाली दृष्टि न पड़ती हो तो,
उसकी दीर्घायु में बाधक है। जब भी ये ग्रह न घातक अंक्षाशों से गुजरें तो कोई मांगलिक कार्य नही करना चाहिए। जातक को, जब भी ये ग्रह इन घातक अक्षांशों से गुजरे तो सावधानी बरतनी चाहिए। 
(iv) उपचार
(1 ) लहसनिया (Cats eye ) तीन रत्ती सोने की अंगूठी में जड़वा कर बृहस्पतिवार को सूर्यास्त के दो घन्टे बाद तक दूसरी (शनि) अथवा तीसरी (सूर्य) अंगुल में धारण करे। तथा पुखराज भी पांच रत्ती का सोने की
अंगूठी में जड़वा कर तीसरी अंगुली में धारण करें ।
(2) नियमित रूप से मन्त्र संख्या 17 का जाप करें।
 

11- पूर्व फाल्गुनी

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पूर्व फाल्गुनी

III. पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र में कुछ विशेष अक्षाशों पर कुछ ग्रहों की उपस्थिति के परिणाम
पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र में कुछ ग्रह कुछ विशेष घातक अक्षांशों पर स्थित होते हैं। विभिन्न ग्रहों के लिए घातक अक्षांश इस प्रकार है :
केतू: पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र में 7.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 141.00 डिग्री)
राहू : पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र में 10.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 144.00 डिग्री)
चन्द्रमा : पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र में 7.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 141.00 डिग्री)
उपरोक्त से हम पाते हैं कि पूर्व-फाल्गुनी नक्षत्र में केतू तथा चन्द्रमा का ठीक रूप में संयुक्त होना जैसा कि इसी नक्षत्र में 10.40 डिग्री पर राहू का भी स्थित होना जातक के लिए घातक हैं उपरोक्त ग्रहीय आकृति
में जातक का जन्म, यदि बृहस्पति की तीक्षण दृष्टि न हो तो, उसकी दीर्घायु के लिए
बाधक है। जब ये तीनों ग्रह इन घातक अक्षाशों से गुजरें तो कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए। जब भी ये ग्रह राशिचक्र में इन घातक अक्षांशो से गुजरें तो जातक को सावधानी बरतनी चाहिए।
IV. उपचार 1. हीरा तीन रत्ती सोने की अंगुठी में जड़वा कर शुक्रवार को प्रातः 7.30 से 10.00 बजे के बीच तीसरी (सूर्य) अंगुल में धारण करें।
2. मन्त्र संख्या 18 तथा 19 का नियमित जाप करें। 

12- उत्तर फाल्गुनी

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उत्तर फाल्गुनी

III. उत्तर-फाल्गुनी नक्षत्र में कुछ विशेष अक्षाशों पर कुछ ग्रहों की उपस्थिति के परिणाम- उत्तर- फाल्गुनी नक्षत्र में 10-40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 154.00 डिग्री) पर बृहस्पति की उपस्थिति तथा इसी नक्षत्र में 7.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 151.00 डिग्री) पर चन्द्रमा की स्थिति जातक के लिए घातक है। उपरोक्त ग्रहीय संस्थिति में जातक का जन्म, यदि शुक्र की दृष्टि न हो, तो जातक की दीर्घायु के लिए अवरोधक हैं जब भी ये दोनों ग्रह इन घातक अक्षाशों से गुजरें तो कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। जब भी चन्द्रमा और बृहस्पति उपरोक्त घातक अक्षाशों में से गुजरें तो जातक को सावधानी बरतनी चाहिए। IV. उपचार 1. पन्ना सात रत्ती का सोने की अंगूठी में जड़वा कर बुद्धवार को सूर्योदय से तीन घन्टे के बीच दूसरी (शनि) अंगुल में धारण करें। 2. मन्त्र संख्या 24 और 28 का नियमित जाप करें। 

13- हस्त

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हस्त

III. हस्त नक्षत्र में कुछ विशेष अक्षांशों पर कुछ ग्रहों की उपस्थिति के परिणाम- हस्त नक्षत्र में कुछ ग्रहों के लिए कुछ घातक अक्षांश होते हैं। विभिन्न ग्रहों के लिए ये घातक अक्षांश इस प्रकार है : शुक्र : हस्त नक्षत्र की 3.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 163.00 डिग्री) शनि : हस्त नक्षत्र की 6.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 166.00 डिग्री) बुध : हस्त नक्षत्र की 8.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 168.00 डिग्री) केतू : हस्त नक्षत्र की 12.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 172.00 डिग्री) राहू : हस्त नक्षत्र की 13.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 173.00 डिग्री) यह देखा गया है कि उपरोक्त ग्रहीय आकृति में जातक का जन्म, यदि शक्तिशाली बृहस्पति तथा सूर्य की दृष्टि न हो, तो जातक के लिए घातक है तथा यह उसकी दीर्घायु के लिए अवरोधक है। जब भी ये ग्रह उपरोक्त घातक अक्षाशों से गुजरे तो कोई मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए। जब भी इन घातक अक्षांशों से सम्बन्धित ग्रह गुजरे तो जातक को सावधानी बरतनी चाहिए। IV. उपचार- 1. पन्ना सात रत्ती का सोने की अंगूठी में जड़वा कर बुधवार को प्रातःकाल में दूसरी अंगुल में धारण करना चाहिए। 2. मन्त्र संख्या 24 का नियमित जाप करना चाहिए। 

14- चित्रा

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चित्रा

III. चित्र नक्षत्र में कुछ विशेष अक्षांशो पर कुछ ग्रहों की उपस्थिति से उत्पन्न परिणाम- चित्र नक्षत्र में कुछ ग्रहों के लिए कुछ घातक अक्षांश होते हैं। विभिन्न ग्रहों के लिए ये घातक अक्षांश इस प्रकार हैं : सूर्य :  चित्र नक्षत्र की 0.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 174.00 डिग्री) मंगल :  चित्र नक्षत्र की 4.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 178.00 डिग्री) शुक्र : चित्र नक्षत्र की 10.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 184.00 डिग्री) शनि : चित्र नक्षत्र की 9.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 183.00 डिग्री) चन्द्रमा - चित्र नक्षत्र की 10.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 184.00 डिग्री) उपरोक्त तालिका से पाया जाता है कि शुक्र और चन्द्रमा का चित्र नक्षत्र के ठीक 10.40 डिग्री पर संयुक्त होना और अन्य ग्रहों की उपरोक्त अपने-अपने अक्षांशों पर उपस्थिति जातक के लिए घातक होती है। उपरोक्त ग्रहीय आकृति में जातक का जन्म उसकी दीर्घायु के लिए अवरोधक होता है। जब भी ये ग्रह इन घातक अक्षांशों से गुजरें तो कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए। इन ग्रहों के राशिचक्र में उपरोक्त घातक अक्षाशों से गुजरने के समय जातक को सावधानी बरतनी चाहिए। IV. उपचार 1. नीलम तीन रत्ती का सोने अथवा पंचधातु की अंगूठी में जड़वा कर शनिवार को सायं 1.30 से 4.30 के मध्य चौथी (बुद्ध) अंगुल में धारण करें; तथा मूंगा नौ रत्ती का चांदी या तांबे की अंगूठी में जड़वा कर मंगलवार को प्रातः 10.30 बजे से पूर्वा 1.30 बजे तक धारण करें। 2. मन्त्र संख्या 28 और 36 का नियमित रूप से जाप करें। 

15- स्वाति

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स्वाति

III. स्वाति नक्षत्र में कुछ विशेष अक्षांशों पर कुछ ग्रहों की उपस्थिति के परिणाम- स्वाति नक्षत्र में कुछ ग्रहों के लिए कुछ घातक अक्षांश निर्धारित हैं। विभिन्न ग्रहों के लिए ये घातक अक्षांश इस प्रकार है। बृहस्पति स्वाति नक्षत्र की 6.30 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 193.00 डिग्री) मंगल स्वाति नक्षत्र की 7.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 194.00 डिग्री) सूर्य स्वाति नक्षत्र की 12.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 199.00 डिग्री) IV. उपचार 1. हीरा तीन रत्ती का सोने की अंगूठी में जड़वा कर शुक्रवार को प्रातः7.30 से 10.30 के बीच तीसरी (सूर्य) अंगुल में धारण करें। 2. मन्त्र संख्या 18 का जाप करें। 

16- विशाखा

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विशाखा

विशाखा नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को पूर्व-आषाढ़, श्रावण, तथा माघ नक्षत्रों में उत्पन्न व्यक्तियों से कोई सम्बन्ध नहीं बनाना चाहिए । विशाखा नक्षत्र का दशा स्वामी बृहस्पति है जिसके बाद शनि, बुध, केतू, शुक्र, सूर्य और चन्द्रमा का क्रम है (iii) विशाखा नक्षत्र में कुछ विशेष अक्षाशों पर कुछ ग्रहों की स्थिति से उत्पन्न परिणाम- विशाखा नक्षत्र में कुछ ग्रहों के लिए कुछ घातक अक्षांश निर्धारित हैं।विभिन्न ग्रहों के लिए ये अक्षांश इस प्रकार हैं: बुध - विशाखा नक्षत्र की 1.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 201.00 डिग्री) राहू-विशाखा नक्षत्र की 2.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 202.00 डिग्री) केतू-विशाखा नक्षत्र की 3.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 203.00 डिग्री) उपरोक्त ग्रहीय आकृति में जातक का जन्म, यदि मंगल और बृहस्पति की तीक्षण दृष्टि न हो, तो उसकी दीर्घायु के लिए बाधक है। जब भी ये ग्रह इन घातक अक्षाशों से गुजरें तो कोई मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए। जब भी ये ग्रह इन घातक अक्षाशों से गुजरें तो जातक को सावधानी बरतनी चाहिए। (iv) उपचार (1) पुखराज पांच रत्ती का सोने की अंगूठी में जड़वा कर बृहस्पतिवार को दोपहर 12-00 बजे से 3-00 बजे के बीच तीसरी (सूर्य) अंगुल में धारण करें। (2) मन्त्र संख्या 17 और 30 का जाप करें।

17- अनुराधा

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अनुराधा

(iii) अनुराधा नक्षत्र में कुछ विशेष अक्षाशों पर कुछ ग्रहों की उपस्थिति से उत्पन्न परिणाम- अनुराधा नक्षत्र में कुछ ग्रहों के लिए कुछ घातक अक्षांश होते हैं।विभिन्न ग्रहों के लिए ये घातक अक्षांश इस प्रकार हैं : शुक्र - अनुराधा नक्षत्र की 2.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 216.00 डिग्री) बुध - अनुराधा नक्षत्र की 6.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 220.00 डिग्री) बृहस्पति - अनुराधा नक्षत्र की 6.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 220.00 डिग्री) उपरोक्त ग्रहीय आकृति में जातक का जन्म, यदि शक्तिशाली चन्द्रमा की दृष्टि न हो, उसकी दीर्घायु के लिए बाधक है। जब भी उपरोक्त ग्रह अपने-अपने घातक अक्षांशों से गुजरे तो कोई मांगलिक कार्य नहीं करना चहिए। इन ग्रहों के उपरोक्त घातक अंक्षाशों से गुजरने के समय जातक को सावधानी बरतनी चाहिए। (iv) उपचार (1) मूंगा ग्यारह रत्ती का चांदी अथवा ताम्बे की अंगूठी में जड़वा कर मंगलवार का प्रातः 10.30 बजे से दोपहर 1.30 बजे के बीच तीसरी (सूर्य) अंगुल में धारण करें; और मोती चार रत्ती का चान्दी की अंगूठी में जड़वा कर सोमवार को प्रातः 6-00 और 7-00 के बीच चौथी (बुध) अंगुल में धारण करें। (2) मन्त्र संख्या 21 और 27 का नियमित जाप करें। 

18- ज्येष्ठा

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ज्येष्ठा

(ii) ज्येष्ट नक्षत्र में विशिष्ट डिग्रीयों पर जातक के जन्म से उत्पन्न परिणाम (क) ज्येष्ट नक्षत्र को 10 बराबर भागों में विभक्त करें अर्थात 13.20 डिग्री को 10 भागों में विभाजित करें। उदाहरणार्थ डिग्री को मिनटों में बदलों- 13 डिग्री × 60 मिनट = 780 मिनट + 20 मिनट = 800 मिनट अतः ज्येष्ट नक्षत्र का प्रत्येक दसवां भाग 80 मिनट या 1.20 डिग्री के बराबर होगा। यदि किसी विशेष भाग में जन्म होता है तो परिणाम इस प्रकार होंगे : विशेष परिणाम भाग डिग्रीयों के बीच जन्म I)  0.00 से 1.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 226.40 से 228.00 डिग्री) खतरा / नानी की मृत्यु का योगा । II) 1.20 से 2.40 डिग्री 228.00 से 229.20 डिग्री)खतरा / नाना की मृत्यु का योग । III) 2.40 से 4.00 डिग्री 229.20 से 230.40 डिग्री)खतरा / मामा की मृत्यु का योग । IV) 4.00 से 5.20 डिग्री 230.40 से 232.00 डिग्री)खतरा / माता की मृत्यु का योग । V) 5.20 से 6.40 डिग्री 232.00 से 233.20 डिग्री)बालक की स्वयं की मृत्यु VI)6.40 से 8.00 डिग्री 233.20 से 234.40 डिग्री)घर के पशु को खतरा / धन की हानि VII) 8.00 से 9.20 डिग्री 234.40 से 236.00 डिग्री)पूरे परिवार को खतरा VIII)9.20 से 10.40 डिग्री 236.00 से 237.20 डिग्री)परिजनों को गम्भीर कष्ट IX) 10.40 से 12.00 डिग्री 237.20 से 238.40 डिग्री)ससुर को खतरा X) 12.00 से 13.20 डिग्री 238.40 से 240.00 डिग्री) बालक से सम्बन्धित सब को खतरा या गम्भीर संकट । ज्येष्ट नक्षत्र में मंगलवार को कन्या का जन्म उसके बड़े भाई की मृत्यु का कारण होगा। ज्येष्ट नक्षत्र के प्रथम भाग (226.40 से 230.00 डिग्री) में जातक का जन्म होते ही उसके बड़े भाई की मृत्यु का कारण होगा। इसी नक्षत्र के दूसरे भाग (230.00 से 233.20 डिग्री) में जातक का जन्म उसके बड़े भाइयों में सब से छोटे भाई की मृत्यु का कारण होगा। अर्थात उसके जन्मते ही उससे बड़े भाई की मृत्यु हो जायेगी । इसी नक्षत्र के तीसरे भाग (233.20 से 236.40 डिग्री) में जातक का जन्म उसके पिता की मृत्यु का कारण होगा। इसी नक्षत्र के चौथे भाग (236.40 से 240.00 डिग्री) में जातक का जन्म उसकी स्वयं की मृत्यु का कारण होगा। (ख) ज्येष्ट नक्षत्र में कुछ ग्रहों के लिए कुछ घातक अक्षांश होते हैं। विभिन्न ग्रहों के लिए ये घातक अक्षांश इस प्रकार हैं : सूर्य- ज्येष्ट नक्षत्र की 0.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 227.00 डिग्री) शनि-ज्येष्ट नक्षत्र की 1.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 228.00 डिग्री) राहू - ज्येष्ट नक्षत्र की 4.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 231.00 डिग्री) केतू - ज्येष्ट नक्षत्र की 7.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 234.00 डिग्री) चन्द्रमा - ज्येष्ट नक्षत्र की 6.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 233.00 डिग्री) उपरोक्त ग्रहीय आकृति में जातक का जन्म उसकी दीर्घायु के लिए अवरोधक है। जब भी ये ग्रह इन घातक अंक्षाशों से गुजरें तो कोई मंगल कार्य नहीं करना चाहिए। जब भी ये ग्रह सम्बन्धित अक्षाशों से गुजरे तो जातक को सावधानी बरतनी चाहिए। ज्येष्ट नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को पूर्व-आषाढ़, श्रावण, शतभिषज, आर्द्रा, पुर्नवसु तथा उत्तर-फाल्गुनी नक्षत्रों में उत्पन्न व्यक्तियों से सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए। इस नक्षत्र का दशा स्वामी बुध है जिसके बाद केतू, शुक्र, सूर्य, चन्द्रमा, मंगल तथा राहू का क्रम है। (iv) उपचार (1) पुखराज सात रत्ती, सोने की अंगूठी में जड़वा कर बृहस्पतिवार को दोपहर 12.00 से 3.00 बजे के बीच तीसरी (सूर्य) अंगुल में धारण करें । (2) मन्त्र संख्या 20 तथा मंगल के लिए दिये गये मन्त्र का नियमित जाप करें। 

19- मूल

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मूल

(iii) मूल नक्षत्र में विशेष/डिग्री पर जन्म से उत्पन्न परिणाम (क)मूल नक्षत्र को 15 भागों में विभक्त करें। एक विशेष भाग में जन्मके परिणाम इस प्रकार होंगे: भाग संख्या मूल नक्षत्र डिग्री विशेष भाग में (बीच में चन्द्रमा की स्थिति)जन्म का परिणाम 1)  0.00.00 से 0.53.20  परिक्रमा कक्ष (डिग्री) (240.00.00 240.53.30)पिता की मृत्यु 2) 0.53.00 से 1.46.40 परिक्रमा कक्ष (डिग्री) (241.53.20 241.46.40)चाचा की मृत्यु 3) 1.46.40 से 2.40.00 परिक्रमा कक्ष (डिग्री) (241.46.40 242.40.00)बहिन का विधवा होना 4) 2.40.00 से 3.33.20 परिक्रमा कक्ष (डिग्री) (242.40.00 243.33.20) दादा की मृत्यु 5) 3.33.20 से 4.26.40 परिक्रमा कक्ष (डिग्री) (243.33.20 244.26.40)माता की मृत्यु 6) 4.26.40 से 5.20.00 परिक्रमा कक्ष (डिग्री) (244.26.40245.20.00)मौसी की मृत्यु 7) 5.20.00 से 6.13.20 परिक्रमा कक्ष (डिग्री) (245.20.00 246.13.20) मामा की मृत्यु 8) 247.06.40)परिक्रमा कक्ष (डिग्री) (246.13.20 से 247.06.40)चाची की मृत्यु 9) 7.06.40 से 8.00.00 परिक्रमा कक्ष (डिग्री) (247.06.40 से 248.00.00) पूरे आस-पड़ोस के लिए अशुभ । 10)8.00.00 से 8.53.20 परिक्रमा कक्ष (डिग्री)(248.00.00 248.53.20)घर के पालतू जानवरोंव मवेशियों के लिए अशुभ. 11)8.53.20 से 9.46.40 परिक्रमा कक्ष (डिग्री) (248.53.20 249.46.40)घर के सेवकों के लिएबरबादी का संकेत । 12) 9.46.40 से 10.40.00 परिक्रमा कक्ष (डिग्री) (249.46.40 250.40.00)स्वयं जातक की मृत्यु  13) 10.40.00 11.33.20 परिक्रमा कक्ष (डिग्री) (250.40.00 251.33.20)सबसे बड़े भाई की मृत्यु 14) 11.33.20 12.26.40 परिक्रमा कक्ष (डिग्री) (251.33.20 से 252.26.40)सबसे बड़े भाई की मृत्यु 15) 12.26.40 से 13.20 00 परिक्रमा कक्ष (डिग्री) (252.26.40253.20.00)नाना की मृत्यु मूल नक्षत्र में रविवार के दिन कन्या के जन्म होने पर ससुर की मृत्यु।यदि मूल नक्षत्र के प्रथम भाग में कन्या का जन्म हो तो भी ससुर को खतरे का संकेत है। मूल नक्षत्र के प्रथम भाग में जन्म जातक पिता की मृत्यु का कारण बनेगा। इसी नक्षत्र के दूसरे भाग में जन्म घातक माता की मृत्यु का कारण होगा। इसी प्रकार तीसरे भाग में जन्म से धन की हानि और चौथे भाग में जातक का जन्म होने पर वह सम्पूर्णता से जीवन जीयेगा अर्थात शुभ हैं पुरानी मान्यताओं के अनुसार “अभुक्त मूल” में उत्पन्न बालक को त्याग देना चाहिए। यदि ऐसा संभव नहीं है तो बालक का पिता उसे 8 वर्ष तक न देखें। कुछ धार्मिक जप और शान्ति पाठ कराने के बाद नौंवे वर्ष में वह बालक को देख सकता है। एक अन्य वृतान्त के अनुसार पिता पर ऐसा अनिष्टकारी प्रभाव 8 वर्ष तक रहता है। हमारे ऋषि आगे कहते है मूल में कन्या का जन्म अपने पिता के परिवार के लिए अनिष्टकारी होता है। यदि मूल में लड़का जन्म लेता है तो वह राजसी वैभव पायेगा तथा जीवन में शीर्ष स्थान पर होगा। किसी युवक का विवाह मूल नक्षत्र में उत्पन्न कन्या से होता है तो युवक की माता एक वर्ष में विधवा हो जायेगी यह भी कहा गया है कि मूल नक्षत्र में उत्पन्न बालक को उसका पिता 28 दिन तक न देखें। 28 दिन के बाद वह बालक का चेहरा सीधे न देख कर पहले तिल के तेल में उसकी परछाई देखे । ज्येष्ट नक्षत्र की आखिरी डिग्री तथा मूल नक्षत्र की प्रथम दो डिग्री मिल कर “अभुक्त-मूल” बनाती है और अभुक्त मूल में उत्पन्न बालक अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करता है तथा जिस वर्ग में वह बालक उत्पन्न हुआ है उसी के विकास या प्रगति के विरुद्ध कार्य करेगा। इसी प्रकार अश्लेष नक्षत्र की अंतिम दो डिग्री तथा माघ नक्षत्र की प्रथम डिग्री में उत्पन्न बालक का भी यही परिणाम होगा। मूल को 62 भागों में विभक्त करें। इसके प्रथम 31 भागों पर निम्नलिखित देवताओं का आधिपत्य होता है। यही चक्र दुबारा चलता है। अर्थात 32 वें भाग पर प्रथम भाग वाले देवता का आधिपत्य होता है। ये आधिपत्य इस प्रकार हैं। भाग - 1 और 32 अधिपति देवता - राक्षस भाग - 2 और 33 अधिपति देवता -येतु (धान) भाग - 3 और 34 अधिपति देवता - भाग - 4 और 35 अधिपति देवता -शुक्र भाग - 5 और 36 अधिपति देवता -वृश्चिक (बिच्छु) भाग - 6 और 37 अधिपति देवता -पित्तर भाग - 7 और 38 अधिपति देवता -मातस भाग - 8 और 39 अधिपति देवता -यम भाग - 9 और 40 अधिपति देवता -काल(यम का सेवक) भाग - 10 और 41 अधिपति देवता -विश्वदेवता भाग - 11 और 42 अधिपति देवता -महेश्वर (शिव) भाग - 16 और 47 अधिपति देवता -दिवाकर सूर्य भाग - 17 और 48 अधिपति देवता -गन्धर्व भाग - 18 और 49 अधिपति देवता -यम भाग - 19 और 50 अधिपति देवता -ब्रह्म भाग - 20 और 51 अधिपति देवता -विष्णु भाग - 21 और 52 अधिपति देवता -यम भाग - 22 और 53 अधिपति देवता -ईश्वर (शिव) भाग - 23 और 54 अधिपति देवता -विष्णु भाग - 24 और 55 अधिपति देवता -ग्यारह रूचस भाग - 25 और 56 अधिपति देवता -पवन भाग - 26 और 57 अधिपति देवता -मुनिगण भाग - 27 और 58 अधिपति देवता -सुब्रमण्य (भगवान शिव का पुत्र)  भाग - 12 और 43 अधीपत देवता - श्रवण भाग - 13 और 44 अधीपत देवता - वैश्रवणन भाग - 14 और 45 अधीपत देवता -शुक्र भाग - 15 और 36 अधीपत देवता -मेघ भाग - 28 और 59 अधीपत देवता -नन्दीकेश्वर भाग - 29 और 60 अधीपत देवता -गौरी गाय भाग - 30 और 61 अधीपत देवता -सरस्वती भाग - 31 और 62 अधीपत देवता -प्रजापति मूल नक्षत्र की सम्बन्धित डिग्री में उत्पन्न जातकों को सुख और शान्ति के लिए तथा बुरे प्रभावों से मुक्ति के लिए सम्बन्धित देवताओं की पूजा अर्चना करनी चाहिए। (ख) मूल नक्षत्र में कुछ ग्रहों के लिए कुछ घातक अक्षांश दिये गये हैं। विभिन्न ग्रहों के लिए ये घातक अक्षांश इस प्रकार हैं : मंगल-मूल नक्षत्र की 2.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 242.00 डिग्री) राहू -मूल नक्षत्र की 10.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 250.00 डिग्री) केतू–मूल नक्षत्र की 11.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 251.00 डिग्री) उपरोक्त ग्रहीय आकृति में जातक का जन्म, यदि शक्तिशाली बृहस्पति या चन्द्रमा की दृष्टि न हो तो, उसकी दीर्घायु के लिए बाधक है।जब ये ग्रह इन घातक अक्षांशो से गुजरे तो कोई मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए। इन ग्रहों के सम्बन्धित घातक अक्षांशों से गुजरने के समय जातक को सावधानी बरतनी चाहिए। (iv) उपचार (1) लहसनिया (Cats eye) तीन रत्ती का सोने की अंगूठी में जड़वा कर बृहस्पतिवार को सूर्यास्त से 8-00 बजे के बीच दूसरी (शनि) अथवा तीसरी (सूर्य) अंगुल में धारण करें। तथा पुखराज पांच रत्ती का सोने की अंगूठी में जड़वा कर दूसरी या तीसरी अंगुली में धारण करें। (2) मन्त्र संख्या 19 में दिये तिलिस्मी यन्त्र को पहनें तथा उसकी अनुसार मन्त्रों का जाप करें। 

20- पूर्व आषाढा

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पूर्व आषाढा

(iii) पूर्व-आषाढ़ नक्षत्र में विशेष अक्षांशो पर कुछ ग्रहों की उपस्थिति से उत्पन्न परिणाम पूर्व-आषाढ़ नक्षत्र में कुछ ग्रहों के लिए कुछ घातक अक्षांश दिये गये हैं। विभिन्न ग्रहों के लिए ये घातक अक्षांश इस प्रकार हैं : बृहस्पति–पूर्व आषाढ़ नक्षत्र की 3.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 257.00 डिग्री) सूर्य-पूर्व आषाढ़ नक्षत्र की 8.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 262.00 डिग्री) बुध-पूर्व आषाढ़ नक्षत्र की 7.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 261.00 डिग्री) चन्द्रमा- पूर्व आषाढ़ नक्षत्र की 2.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 256.00 डिग्री) उपरोक्त ग्रहीय आकृति में जातक का जन्म उसकी दीर्घायु के लिए बाधक हैं। जब भी ये ग्रह इन घातक अक्षांशों से गुजरें तो कोई मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए। इन घातक अक्षांशो से सम्बन्धित ग्रहों के गुजरने के समय जातक को सावधनी बरतीन चाहिए। (iv) उपचार (1) हीरा दो रत्ती का सोने की अंगूठी में जड़वा का शुक्रवार को प्रातः 7.30 से 10.30 बजे के मध्य तीसरी (सूर्य) अंगुल में धारण करें। (2) मन्त्र संख्या 19 पर दिये गये तालिस्मन (यन्त्र) को पहने तथा उसी के अनुसार मन्त्रों का जाप करें। 

21- उत्तर आषाढा

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उत्तर आषाढा

III. उत्तर-आषाढ़ नक्षत्र में विशेष अक्षांशों पर कुछ ग्रहों की स्थिति से उत्पन्न परिणाम- प्रकार है : शुक्र उत्तर-आषाढ़ नक्षत्र में कुछ ग्रहों के लिए ये घातक अक्षांश इस उत्तर-आषाढ़ नक्षत्र की 0.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 267.00 डिग्री) शनि – उत्तर-आषाढ़ नक्षत्र की 1.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 268.00 डिग्री) सूर्य – उत्तर-आषाढ़ नक्षत्र की 5.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 272.00 डिग्री) 1 उपरोक्त ग्रहीय आकृति में जातक का जन्म, यदि शक्तिशाली बृहस्पति की दृष्टि न हो तो, उसकी दीर्घायु में बाधक होगा। जब भी ये ग्रह इन घातक अक्षांशो से गुजरें तो कोई मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए। जुब भी ये ग्रह सम्बन्धित घातक अक्षांशों से होकर गुजरे तो जातक को सावधानी अपनानी चाहिए। IV. उपचार 1. हीरा दो रत्ती का सोने की अंगूठी में जड़वाकर शुक्रवार को प्रातः 7.30 से 10.30 बजे के मध्य तीसरी (सूर्य) अंगुल में धारण करें। 2. बृहस्पति और शुक्र के लिए दिये गये मन्त्रों का जाप करें। मन्त्र संख्या 36 का नियमित जाप सभी बुरे प्रभावों, विशेषकर बृहस्पति, शुक्र तथा शनि के अनिष्ट को दूर कर देगा। 

22- श्रवण

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श्रवण

III. कुछ विशेष अक्षाशों पर कुछ ग्रहों की उपस्थिति के परिणाम- श्रावण नक्षत्र में कुछ ग्रहों के लिए कुछ घातक अक्षांश होते हैं। विभिन्न ग्रहों के लिए ये घातक अक्षांश इस प्रकार हैं : मंगल : श्रावण नक्षत्र की 5.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 285.00 डिग्री) बुद्ध : श्रावण नक्षत्र की 12.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 292.00 डिग्री) राहू : श्रावण नक्षत्र की 10.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 290.00 डिग्री) बृहस्पति ·: श्रावण नक्षत्र की 1.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 281.00 डिग्री) शुक्र : श्रावण नक्षत्र की 2.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 282.00 डिग्री) शनि : श्रावण नक्षत्र की 4.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 284.00 डिग्री) केतू : श्रावण नक्षत्र की 2.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 282.00 डिग्री) चन्द्रमा : श्रावण नक्षत्र की 10.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 290.00 डिग्री) उपरोक्त ग्रहीय आकृति में जातक का जन्म उसकी दीर्घायु के लिए बाधक है। जब भी ये ग्रह इन घातक अक्षांशों से गुजरें तो कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए । जब भी ये ग्रह सम्बन्धित अक्षांशो से गुजरें जो जातक को सावधानी बरतनी चाहिए। IV. उपचार 1. मोती 6 स्ती का चांदी की अंगूठी में जड़वा कर शुक्लपक्ष में सोमवार को प्रातः 6.00 बजे से 7.00 बजे अथवा सायं 7.00 से 10.00 बजे के बीच चौथी (बुद्ध) अंगुल में धारण करें। 2. बृहस्पति के लिए दिये गये मन्त्र तथा मन्त्र संख्या 36 का नियमित जाप करें। 

23- धनिष्ठा

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धनिष्ठा

IV. उपचार 1. मूंगा नौ रत्ती का चांदी या तांबे की अंगूठी में जड़वाकर मंगलवार को पूर्वाह्न 10.30 से 1.30 के बीच तीसरी (सूर्य) अंगुल में धारण करें। तथा मोती चार रत्ती का चांदी की अंगूठी में जड़वा कर अगले सोमवार को प्रातः 6 से 7 बजे के बीच चौथी (बुद्ध) अंगुल में धारण करें। 2. मन्त्र संख्या 36 तथा शनि के लिए दिये गये मन्त्र का नियमित जाप करें। 

24- शतभिषा

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शतभिषा

III. शताभिषज नक्षत्र में कुछ विशेष अक्षांशों पर कुछ ग्रहों की उपस्थिति घातक अक्षांश होते हैं। विभिन्न ग्रहों के लिए ये घातक अक्षांश इस प्रकार है : बुद्ध शताभिषज नक्षत्र की 0.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 307.00 डिग्री) मंगल शताभिषज नक्षत्र की 4.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 311.00 डिग्री) बृहस्पति- शताभिषज नक्षत्र की 8.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 315.00 डिग्री) शनि शताभिषज नक्षत्र की 6.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 313.00 डिग्री) राहू शताभिषज नक्षत्र की 11.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 318.00 डिग्री) केतू शताभिषज नक्षत्र की 6.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 313.00 डिग्री) चन्द्रमा- शताभिषज नक्षत्र की 13.20 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 320.00 डिग्री) उपरोक्त ग्रहीय आकृति में जातक का जन्म उसकी दीर्घायु के लिए बाधक होता है। उपरोक्त घातक अक्षांशों से इन ग्रहों के गुजरने के सयम कोई मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए। जब भी उपरोक्त ग्रह अपने से सम्बन्धित घातक अक्षांशों से गुजरे तो जातक को सावधानी बरतनी चाहिए। IV. उपचार 1. नीलम पांच रत्ती का चांदी की अंगूठी में जड़वा कर शनिवार को दोपहर 1.30 से 4.30 से 4.30 के बीच चौथी (बुध) अंगुल में धारण करें। तथा पन्ना तीन रत्ती का सोने की अंगूठी में जड़वा कर अगले बुद्धवार को सूर्योदय से 3 घन्टे बाद तथा दूसरी (शनि) अंगुल में धारण करें। 2. शनि के लिए दिये गये मन्त्र तथा मन्त्र संख्या 36 का नियमित जाप करें। 

25- पूर्व भाद्रपद

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पूर्व भाद्रपदा

(iii) पूर्व भाद्रपद नक्षत्र में कुछ विशेष अक्षांशो पर कुछ ग्रहों की उपस्थिति के परिणाम इस नक्षत्र में केवल शुक्र ही घातक अक्षांश से प्रभावित है। इस नक्षत्र की 9 वीं डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 329.00 डिग्री) में शुक्र के स्थित होने पर जातक का जन्म हो और यदि शनि की दृष्टि न हो तो, यह उसकी दीर्घायु के लिए अवरोधक होगा। जब भी शुक्र अपने वार्षिक चक्र में इस घातक अक्षांश से गुजरे तो कोई मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए तथा शुक्र के जातक को इस घातक डिग्री से गुजरने के दिनों में सावधानी बरतनी चाहिए। (iv) उपचार (1) लाल मूंगा साढ़े सात रत्ती का ताबें की अगूंठी में जड़वा कर मंगलवार को सूर्योदय से पहले धारण करें। तथा पुखराज पांच रत्ती का सोने की अंगूठी में जड़वा कर बृहस्पतिवार को प्रातःकाल में धारण करें। (2) बृहस्पति तथा शनि के लिए दिये गये मन्त्रों तथा मन्त्र संख्या 36 का नियमित जाप करें। 

26- उत्तर भाद्रपद

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उत्तर भाद्रपद

इस नक्षत्र का दशा स्वामी शनि है, जिसके बाद बुध, केतू, शुक्र, सूर्य, चन्द्रमा, मंगल तथा राहू का क्रम है। जातक की अधिकतम आयु 95 वर्ष होगी । (iii) उत्तर भाद्रपद नक्षत्र में कुछ विशेष अक्षांशो पर कुछ ग्रहों की दृष्टि से उत्पन्न परिणाम उत्तर भाद्रपद नक्षत्र में कुछ ग्रहों के लिए कुछ घातक अक्षांश होते है। विभिनन ग्रहों के लिए ये घातक अक्षांश इस प्रकार हैं: मंगल : उत्तर भाद्रपद नक्षत्र की 2.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 336.00 डिग्री) बुध : उत्तर भाद्रपद नक्षत्र की 1.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 335.00 डिग्री) शनि : उत्तर भाद्रपद नक्षत्र की 11.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 345.00 डिग्री) राहू :  उत्तर भाद्रपद नक्षत्र की 4.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 338.00 डिग्री) केतू : उत्तर भाद्रपद नक्षत्र की 10.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 344.00 डिग्री) चन्द्रमा : उत्तर भाद्रपद नक्षत्र की 6.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 340.00 डिग्री) उपरोक्त ग्रहीय आकृति में जातक का जन्म उसकी दीर्घायु के लिए अवरोधक है। जब भी ये ग्रह उपरोक्त घातक अक्षांशो से गुजरें तो कोई मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए। उपरोक्त ग्रहों के सम्बन्धित घातक अक्षांशो से गुजरने के समय जातक को सावधानी बरतनी चाहिए। (iv) उपचार (1) नीलम 5 रत्ती का चांदी की अंगूठी में जड़वा कर शनिवान को दोपहर 1.30 से 4.30 बजे के बीच चौथी (बुध) अंगुल में धारण करें। तथा पन्ना 3 रत्ती का सोने की अगूंठी में जड़वा कर आगामी बुधवार को सूर्योदय से 3 घन्टे के बीच दूसरी (शनि) अंगुल में धारण करें। (2) क्रम संख्या 19 पर दिये बृहस्पति के मन्त्र का नियमित जाप करें। 

27- रेवती

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रेवती

(iii) रेवती नक्षत्र में कुछ विशेष अक्षांशो पर कुछ ग्रहों की उपस्थिति के परिणाम रेवती नक्षत्र में कुछ ग्रहों के लिए कुछ घातक अक्षांश होते हैं। विभिन्न ग्रहों के लिए ये घातक अक्षांश इस प्रकार हैं : बृहस्पति रेवती नक्षत्र की 11.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 358.00 डिग्री) शुक्र रेवती नक्षत्र की 2.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 349.00 डिग्री) सूर्य – रेवती नक्षत्र की 6.40 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 353.00 डिग्री) — उपरोक्त ग्रहीय आकृति में जातक का जन्म उसकी दीर्घायु के लिए अवरोधक है। जब भी ये ग्रह इन घातक अक्षांशो से गुजरें तो कोई भी मांगलिक कार्य नही करना चाहिए। जब भी उपरोक्त ग्रह सम्बन्धित घातक अक्षांशो से गुजरें तो जातक को सावधानी बरतनी चाहिए। (iv) उपचार (1) पन्ना सात रत्ती का सोने की अंगूठी में जड़वा कर बुधवार को सूर्योदय से 3 घन्टे बाद तक दूसरी (शनि) अगुंल में धारण करें । (2) क्रम संख्या 19 पर दिये तिलिस्मी यन्त्र को पहनें तथा उस में दिये मन्त्रों का जाप करें। इनके अतिरिक्त मन्त्र संख्या 36 का नियमित जाप करें। 

28- अभिजित

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अभिजित

III. उपचार- 1. पुखराज सात रत्ती का सोने की अंगूठी में जड़वा कर रविवार को प्रातः 5.30 से 7.00 बजे के बीच तीसरी (सूर्य) अंगुल में धारण करें। 2. प्रतिदिन नियमित रूप से 'ओम नमो शिवाय' का जाप करें। 3. सूर्य तथा बृहस्पति के लिए दिये गये मन्त्रों का जाप करें। 4. प्रति वर्ष बिना नागा किये 41 दिन तक मन्त्र संख्या 36 का जाप