
1-अश्विनी

जन्म नक्षत्र - अश्विनी नक्षत्र ( केतू )
चिह्न - घोड़े का सिर
अधिष्ठाता देवता - दो अश्विने
जाति - वैश्य
पहचान/प्रतीक -घोड़े के मुख के आकार के तीन सितारें
अश्विनी नक्षत्र
राशि चक्र में 0.00 डिग्री से 13.20 डिग्री तक का विस्तार क्षेत्र अश्विनी नक्षत्र कहलाता है। हिन्दु पौराणिक कथा के अनुसार
“अश्विनी”नाम, दो "अश्विन” से उत्पन्न हुआ है।
अश्विनी नक्षत्र का अधिष्ठाता स्वामी 'दो अश्विन' है। अश्विन के दो भुजाएं होती हैं तथा ये सूर्य तथा सविता के वाहन हैं। एक अन्य मतानुसारं ये देवताओं के चिकित्सक हैं। वेदो के अनुसार सृष्टि के आरम्भ में केवल सृष्टा था, जो प्रजा तथा पालक दोनों का ROLE निभाता था /अर्थात सृष्टा ही प्रजा तथा पालक दोनो रूपों में विद्यमान था और उसे उद्देश्यहीनता का सामना
करना पड़ता था। अपनी इस एकान्तता की स्थिति से बचने के लिए सृष्टा ने विभिन्न रूपों की रचना की जो देवता कहलाये। इन रूपों में प्रथम कृति दो भुजाओं वाले अश्विन थी।
I अश्विनी नक्षत्र में उत्पन्न जातकों के सामान्य परिणाम
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
1. अश्विनी चू, चे, चो, ला
2. भरणी ली, लु, ले, लो
3. कृतिका अ, ई, उ, ए
4. रोहिणी वो, वा, वी,वु
5. मृगशीर्ष वे, वो, का, की
6.आर्द्रा
7. पुनर्वसु के, को, हा,ही
8. पौष हू, हे, हो, डा
9. अश्लेष डी, डू, डे, डो
10. माध मा, मी, मू, मे
11. पूर्व-फाल्गुनी मो, टा, टी, टू
12. उत्तर- फाल्गुनी टे, टो, प, पी
13. हस्ता पु, ष, ण, रा
14. चित्रा पे, पो, रा, री
15. स्वाति रा, रे, रो, का
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय)
तामसिक गुण (निष्क्रिय) – इस समूह के व्यक्तियों में किसी भी बात को चाहे वो सही हो अथवा गलत विरोध करने की आदत होती है। जिसकारण परिवार में तथा समाज में उस व्यक्ति को टकराव का सामना करना पड़ता है। उसकी आन्तरिक शक्ति तो सकारात्मक विचार देती है, जबकि उसकी बाह्य शक्ति में नकारात्मक विचार होते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसे व्यक्ति मन से बुरे नहीं होते, लेकिन उनमें अर्न्तनिहित गुण शक्ति उन्हें तामसिक विचार प्रकट करने को बाध्य करती है। मनन या प्रार्थना के द्वारा इस अंसगति को कम किया जा सकता है। तामसिक गुणों वाली स्त्रियां 45 वर्ष की आयु में तथा पुरुष 40 वर्ष की आयु में अपने में असंगतिपूर्ण रिक्तता को विजित करने में सफल होते हैं ।
# लिंग – पुरुष-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि- (अश्विनी, पुर्नवसु, पौष , हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद )
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
# वर्ग – देव वर्ग
वर्ग – देव वर्ग ,मनुष्य वर्ग, राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
# 1. अशिवनी – ( रक्त-वर्ण )
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
1. ( पांव का ऊपरी भाग ) >> अश्विनी
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
अश्विनी : वायु
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक
1. शारीरिक गठन-अश्विनी नक्षत्र में उत्पन्न जातक सुन्दर मुखाकृति के, चमकदार तथा बड़ी आँखों
वाले, माथा चौड़ा तथा नासिका कुछ बड़ी होती है ।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक शान्त स्वभाव वाले होते हैं। वे अपना कार्य
चुपचाप, बिना किसी को जताये, करते हैं। ये अपने निर्णयों में हट्ठी किस्म के होते हैं। विशेषकर 14 से
28 अप्रैल के बीच उत्पन्न जातकों में यह हठीलापन कुछ अधिक होता है। इस काल में सूर्य अपने
उच्च स्थान में चलता रहता है तथा 14 से 28 अक्टूबर के बीच सूर्य अपने नीच स्थान स्वाति नक्षत्र पर
चलता रहता है।
यह धारणा है कि मृत्यु का देवता 'यम' भी इस प्रभाव से बच्छ नहीं सकता । अन्य
महीनों में अश्विनी नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्तियों में यह हठीलापन कम मात्रा में पाया जाता है।
ये जातक अपने से प्रेम करने वालों पर सब कुछ कुर्बान कर देने वाले होते हैं। ये विपत्तियों में भी
घबराने वाले नहीं होते बल्कि विपत्तियों में घिरे अन्य लोगों की मदद करते हैं। लेकिन ये अपनी
विवेचना सहन नहीं कर पाते और बुरा मानते है ।
ये जातक अपना कार्य अपने ढंग से, सोच विचार कर करता है तथा किसी से भी प्रभावित नहीं होता।
जब वह किसी कार्य को करने की धारणा बना लेता है तो कुछ भी परिणाम निकले, वह करके रहता
है।
वह भगवान में दृढ़ विश्वास रखता है लेकिन धर्मान्ध नहीं होता। वह अपने रूढ़ीवादी विचारों के प्रति
आधुनिक होता है ।
यद्यपि वह बुद्धिमान होता है मगर अक्सर मामलों को तूल देता है,
जिस कारण वह मानसिक परेशानी में पड़ जाता है । वह सदैव अपने वातावरण को अपने अनुकूल
बनाने का इच्छुक होता है।
यदि उसका जन्म अश्विनी नक्षत्र के 2.00 से 3.00 डिग्री के बीच हुआ है तो वह बिना बात के हठीला
होगा और परिणामतय चोरी या तस्करी के कार्य करेगा। यदि अन्य विलय ठीक भी हो तो उसके पास
धन तो होगा लेकिन वह उसका उपभोग नहीं कर सकेगा। वह अपने परिवार के लिए
बदनामी का भी कारण बनेगा।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन- जातक हर काम में उस्ताद होता हैं। वह प्रायः संगीत का शौकीन
तथा साहित्य प्रेमी होता है। 30 वर्ष की आयु तक उसका जीवन संघर्षपूर्ण होता है और उसे छोटी-
छोटी बातो के लिए भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। इसके बाद 55 वर्ष की आयु तक इसके
जीवन में निरन्तर उन्नति होगी ।
उसके स्वाभाव की एक विशेषता यह भी है कि वह कृपण होता है लेकिन अपनी शान दिखाने के लिए
आय से ज्यादा खर्च कर बैठता है। वह अपनी जरूरतों को किसी भी कीमत पर पूरा करने का
निरन्तर प्रयत्न करता रहता है।
4. परिवारिक जीवन- जातक अपने परिजनों से प्यार करता है, मगर
अपने उत्तेजित व्यवहार के कारण वह उनकी घृणा का पात्र बन जाता है। उसे अपने पिता से वह स्नेह
व देखभाल नहीं मिलती जिसका वह अधिकारी है।
अर्थात उसे पिता से उपेक्षा मिलती है। उसे जो भी अवलंबन मिलता है वह मामा से ही मिलता है। अन्य
बाहरी व्यक्ति भी उसकी सहायता करते हैं प्रायः 26 से 30 वर्ष की आयु में विवाह का योग है और
पुत्रों की संख्या पुत्रियों से अधिक होगी।
5. स्वास्थ्य- उसका स्वास्थ्य प्रायः ठीक रहेगा। फिर भी यदि उसका जन्म अश्विनी नक्षत्र के 2.00 से
3.00 डिग्री के मध्य हुआ है तो स्वास्थ्य में कुछ परेशानी हो सकती है। उसे सिरदर्द (मिग्रेन), हृदय
रोग आदि हो सकते हैं (उपचार)

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक
इस नक्षत्र में उत्पन्न कन्याओं में निम्न विशेषताएं मिलती हैं-
1. शारीरिक गठन- मछली के समान छोटी व चमकदार आँखे, वह आकर्षक व्यक्तित्व वाली होती
है। अश्विनी नक्षत्र के प्रभाव के समय पर यदि उसमें प्रथम ऋतुश्राव के लक्षण प्रकट हो तो प्रचुर धन,
वैभव और सन्तान का योग है।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- अपने मधुर वचनों से वह प्रत्येक व्यक्ति की आकर्षण प्राप्त करती
है। वह क्षमा बनाये रखती है तथा गहन मैधुन में मग्न रहती है। यह साफदिल होती है तथा आधुनिक
समाज में रहते हुए भी बुजर्गों का सम्मान प्राचीन मान्यताओं के अनुसार करती है।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन- यदि नौकरी पर होगी तो वह 50 वर्ष की आयु के बाद अपने
कार्य में रूचि नहीं लेगी अथवा वह स्वैच्छिक निवृत्ति अपना लेगी। इस अवस्था तक उसकी आर्थिक
दशा अच्छी होने के कारण उसके काम न करने का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यदि अन्य सांसारिक
अथवा ग्रह दशा प्रतिकूल न हों तो वह अपना समय सामाजिक कार्यों में लगायेगी। अथवा परिवार
की देखभाल करेगी। वह प्रशासनिक पदो(आई.ए.एस. सहित) के लिए विशेषता निमित है
4. परिवारिक जीवन- प्रायः 23 से 26 वर्ष की आयु में विवाह का योग है । यदि इससे पूर्व विवाह
होता भी है तो इसका परिणाम विवाह-विच्छेद अथवा लम्बा समय तक पति से दूर रहना पडेगा या
पति की मृत्यु भी हो सकती है।
पुत्रियों की संख्या पुत्रों से अधिक होगी। वह अपने बच्चों की वांछित आवश्यकताओं की पूर्ति
सहजता से करेगी। वह घर की देखभाल, समय रहते या तो स्वयं करेगी अथवा दूसरों से करायेगी।
यदि शुक्र अश्विनी के चौथे घर में होगा तथा इस पर चन्द्रमा की दृष्टि होगी तो कई सन्तानों का योग है
मगर उनमें जीवित कुछ ही रहेगी ।
5. स्वास्थ्य–उसका स्वास्थ्य प्रायः ठीक, रहेगा । अनावश्यक चिंताए या मानसिक परेशानियां अवश्य
थोड़ा स्वास्थ्य पर प्रभाव छोडेगी । लेकिन जब ये परेशानियां नियन्त्रण से बाहर होगी तो बड़ी
अवस्था में पागलपन का कारण हो सकती है। उसे खाना पकाते समय अथवा अग्नि के समीप रहते
हुए सावधानी बरतनी चाहिए। वाहन दुर्घटना भी हो सकती है।
बार-बार पेट की ऐंठन, ऊनिंद्रा रोग और ऋतुकाल की परेशानियां हो सकती हैं।
उसे इस अध्याय
के अन्त में दिये गये उपायों को अपनाना चाहिए। यदि शुक्र अश्विनी के चौथे भाग (10.00 से 13.20
डिग्री) में हो तथा इस पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो ऋतुकाल की परेशानियां प्रायः रहा करेगी ।





2-भरणी

जन्म नक्षत्र - भरणी ( शुक्र )
चिह्न -स्त्री की योनि
अधिष्ठाता देवता -यम
जाति - शूद्र
पहचान/प्रतीक -अश्विनी के पूर्व में स्त्री-योनि के आकार में सितारों का समूह.
दूसरे राशिचक्र में 13.20 अक्षांश से 26.40 अक्षांश तक के विस्तार का क्षेत्र भरणी नक्षत्र कहा जाता है।
अश्विनी नक्षत्र के पूर्व में स्थित
स्त्री योनि के आकार में तीन सितारों का समूह भरणी नक्षत्र का प्रतीक है। भरणी चीनी मिट्टी के कलश को भी कहते हैं। भरणी नक्षत्र, (41 सितारों वाले कलश) के आकार का होता है |
इस नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता “यम" जो कि दिवंगत आत्माओं का शासक है।
धारणा है कि यम 'विवासत' का पुत्र है । यह योग की आठ शाखाओं में प्रथम है। यह भगवान शिव का मृत्यु- प्रदान करने वाला प्रतिनिधि
है ।
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
1. अश्विनी चू, चे, चो, ला
2. भरणी ली, लु, ले, लो
3. कृतिका अ, ई, उ, ए
4. रोहिणी वो, वा, वी,वु
5. मृगशीर्ष वे, वो, का, की
6.आर्द्रा
7. पुनर्वसु के, को, हा,ही
8. पौष हू, हे, हो, डा
9. अश्लेष डी, डू, डे, डो
10. माध मा, मी, मू, मे
11. पूर्व-फाल्गुनी मो, टा, टी, टू
12. उत्तर- फाल्गुनी टे, टो, प, पी
13. हस्ता पु, ष, ण, रा
14. चित्रा पे, पो, रा, री
15. स्वाति रा, रे, रो, का
# गुण – राजसिक गुण ( अशान्त)
राजसिक गुणों के लोग अशान्त जीवन जीते हैं। वे एक ही समय में बहुत से काम करना चाहते हैं, लेकिन ऐसे लोग व्यस्त दिखने का ढोंग करते हैं मगर करते कुछ नहीं। धन और सम्पत्तिी प्राप्त करना उनका प्रबल लक्ष्य होता है। उनकी आन्तरिक और बाहूय शक्तियां नकारात्मक होती हैं। वे स्वार्थी होते हैं। वे इस कहावत पर पूरे उतरते हैं- “जब एक स्त्री को पता चला कि प्रलय आने वाली है, तो उसने भगवान से प्रार्थना की हे भगवान मुझे और मेरे सुनार को प्रलय से बचा लो।” राजासिक गुणा के लोग इसी प्रवृति के होते हैं।
# लिंग – ( स्त्री-योनि )
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
# वर्ग – मनुष्य वर्ग
वर्ग – ( देव वर्ग ,मनुष्य वर्ग, राक्षस वर्ग )
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक
1. शारीरिक गठन - वह मध्यम आकार का, छिदरे बालों वाला, बड़े माथे, चमकदार नेत्र और सुन्दर
दान्तों का होता है । उसका स्वरूप रक्ताभ तथा लम्बी गरदन व चेहरे वाला होता है । यह भी देखा
गया है कि दोपहर में जन्म हो तो जातक लम्बे कद का होगा । उसका चेहरा सिर के पास चौड़ा तथा
ठोड़ी के पास तंग होगा। उसकी घनी भौंहे होगी ।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना - भरणी नक्षत्र में उत्पन्न जातक साफ दिल और किसी का भी बुरा न
चाहने वाले होने के उपरान्त भी पसन्द नहीं किये जाते । वे दूसरों की भावनाओं की परवाह न करते
हुए किसी भी विषय। पर अपने विचार प्रकट करने की प्रकृति वाले होते हैं । वह चापलूसी करके
पाना नहीं चाहता। कुछ भी हो जाए वह हर उस काम को, जो दूसरों की निगाह में कितना ही अच्छा या
बुरा क्यों न हो, अपने मन के मानने पर ही करता है। अपनी उसी मनोवृति के कारण उसे
असफलताओं और विरोध का सामना करना पड़ता है। वह छोटी से छोटी बात पर भी अपने निकट
और प्रिय व्यक्ति से भी नाता तोड़ लेने में नहीं हिचकता- लेकिन जब वह अपनी गलती
के बारे में कायल कर दिया जाये और उसका विरोधी वलित हो कर आये तो, वह सारी शत्रुता भूल कर
पहले से सामान्य हो जाता है उसे व्यवहार कौशल नहीं आता । अधीनता की स्थिति से तो वह कोसों
दूर रहता है। उसका यह घमण्ड प्रायः उसके लिए विपत्ति का कारण बन जाता है। किसी के सामने
झुकना वह मरने के समान समझता है और जब उसे झुकना भी पड़ता
है तो वह विषादग्रस्त हो जाता है। सलाह व प्रोत्साहन
उसके समक्ष कोई हैसियत नहीं रखते ।
प्रायः ऐसे जातकों का ज्ञान बहुत अच्छा होता है । वे किसी भी
विषय की गहराई में जाने की क्षमता रखते हैं ये जन-जीवन में चमकते हैं फिर भी उन्हें आलोचना तथा
आर्थिक हानि का शिकार होना पड़ता है
वह दूसरों पर अपनी श्रेष्ठता प्रकट करने और उन पर शासन करने को पसन्द करता है। उसे कदम-
कदम पर रूकावटों और सख्त मुकाबला का सामना करना पड़ता है। जिससे उसे प्रायः
असफलताओं का मुख देखना पड़ता है। चाहे दूसरों की नजरों में वह घमण्डी हों लेकिन साफ दिल
होते हैं । उनका
जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है ।
भरणी नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को अनावश्यक विवाद और प्रतिस्पर्द्धाओं से बचने की सलाह दी जाती
है। उनका अपने सिद्धान्तों पर अड़े रहना उनके लिए मुसीबत का कारण बन जाता है। ये अफवाह
बाजी तथा गप्पबाजी के शौकीन होते हैं। जेसे कि पहले कहा गया है कि उनका जीवन उतार चढ़ाव
पूर्ण होता है। अतः उनके लिए सदैव एक सा समय नहीं रहता । वे दूसरों की देखभाल करने में सक्षम
होते हैं फिर भी वे चाहते हें कि दूसरे उसकी देखभाल करें। अन्त में उसके मित्र और चाहने वाले
उसके विरूद्ध हो जाते हैं। वह किसी से भी स्थायी सम्बन्ध नहीं बना पाता ।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-अच्छा या बुरा समय सदा नहीं रहता। 33 वर्ष की आयु के बाद
उसके जीवन में, वातावरण में तथा आजीविका में परिवर्तन होगां वह किसी भी कार्य को करने में
सक्षम होगा विशेषकर प्रशासनिक कार्य, व्यवसाय, कृषि तथ लघु उद्योग । वह संगीत, खेल-कूद,
कला-विज्ञापन, वाहन अथवा रस्तेराँ आदि में कमायेगा । वह अच्छा शल्य-चिकित्सक या न्यायाधीश भी
बन सकता है। वह तम्बाकू व्यवसाय में
सफल हो सकता है। यदि वह अपने निवास की पूर्व दिशा में अपने व्यवसाय का स्थान बनाए अथवा
पूर्व दिशा में यात्रा करें तो उसे हर क्षेत्र में सफलता मिलेगी ।
4. पारिवारिक जीवन - 27 वर्ष की आयु में विवाह, सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए भाग्यशाली ।
उसकी सहचरी गृहकार्यों, प्रशासन और अच्छे आचरण में निपुण होगी। यदि जातक का जन्म भरणी
नक्षत्र के प्रथम या हो तो वह अपने पिता की मृत्यु का कारण बनेगा। उसके बिना सोचे-समझे
अन्धाधुन्ध खर्च करने की आदत होने पर भी उसकी
पत्नी दुर्दिनों के लिए बचा कर रखेगी। वह अपने परिवार से इतना प्रेम करेगा कि उनसे एक दिन भी
अलग रहना नहीं चाहेगा ।
5. स्वास्थ्य- वह अपने स्वास्थ्य की ओर से लापरवाह होगा फिर भी उसे किसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या
का सामना नहीं करना पड़ेगा। ज्यादातर दन्तपीड़ा, मधुमेह, शरीर-दर्द, दिमागी चिंताए, तेज बुखार,
रक्तघात, चमड़ी के रोग, मलेरिया आदि से पीड़ित हो सकता है । वह खाने में बहुत संयमी होगा।
जेसा कि धारणा है कि वह जल दुर्घटनाग्रस्त हो सकता है, उसे
जलयात्राओं, नदी-तालाब, सागर आदि में स्नान आदि के दौरान सावधान रहना चाहिए। आंखों के पास
माथे पर चोट का चिन्ह । वह चैन स्मोकर होगा। अतः उसे अपने फेफड़ो के प्रति सावधान रहना
चाहिए ।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक
1. शारीरिक गठन - सुन्दर शरीर, सफेद दंत मगर पंक्ति असमाकृति में होगी ।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना - उसका चरित्र निर्मल, प्रशंसनीय तथा विनम्र होगा। वह माता-
पिता तथा बुजुर्गों का सम्मान करेगी मगर दूसरों का सुझाव पसन्द नहीं करेगी और वह अपनी
मनमानी करेगी। वह निर्भिक, आवेगी (भावुक), और अति आशावादी होगी।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन- उसकी अपनी आजीविका होगी ।
वह स्वागत अधिकारी, गाईड तथा विक्रेता के रूप में सफल होगी। वह उचित अवसर की प्रतीक्षा न
करके स्वयं अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अवसर उत्पन्न करेगी। वह
खेलकूद में भी अर्जित करेगी।
4. पारिवारिक जीवन- 23वें वर्ष में विवाह का योग है । वह हर मामलें में शीर्ष रहेगी और उसका
आचरण नायक की भांति होगा। उसे अपने पति पूरा स्नेह, विश्वास तथा सन्तुष्टि मिलेगी मगर ससुराल
के अन्य लोगों से परेशानी मिलेगी। यदि उसका जन्म भरणी नक्षत्र के प्रथम व द्वितीय चतुर्थांश में
हुआ है तो वह अपनी माता की मृत्यु का कारण बनेगी। वह सदैव अपने
परिवार के बारे में बढ़-चढ़ कर बोलेगी। जिसका वह सम्मान करती है उसी की आज्ञा पालन में
तत्पर रहेगी। यदि उसका विवाह गरीब परिवार के साधारण व्यक्ति से होगा तो वह उसे जीवन
पर्यन्त हर क्षेत्र में अपनी इच्छा के अनुरूप रखेगी। भरणी नक्षत्र में उत्पन्न स्त्री जातक कुछ उग्र
स्वभाव की
होती हैं अतः उनके जीवन साथी को चाहिए कि वह धैर्य व युक्ति से उनसे व्यवहार करे ताकि जीवन
में कटुता व टकराव की स्थिति से बच सके।
5. स्वास्थ्य- स्वाथ्य अच्छा होगा। प्रायः ऋतुकाल की समस्याओं,गर्भास्थ की अव्यवस्था, रक्ताल्पता
का सामना करना पड़ सकता हैं कुछ मामलों में क्षयरोग भी पाया गया है।




3-कृत्तिका

जन्म नक्षत्र - कृत्तिका ( सूर्य )
चिह्न -चाकू/उस्तरा
अधिष्ठाता देवता -अग्नि
जाति - ब्राह्मण
पहचान/प्रतीक -छुरे अथवा चाकू के आकार में छः सितारों का समूह। स्वर्ग की सेनाओं का अधिपति.
तीसरे राशिचक्र विस्तार 26.40 डिग्री से 40.00. डिग्री तक के क्षेत्र को कार्तिक नक्षत्र कहा जाता है। कार्तिक नाम भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय के ऊपर पड़ा
है। कार्तिकेय देवताओं की दिव्य सेनाओं के सेनापति भी हैं। कार्तिक शब्द का अर्थ “ज्वाला” से है। तीर की नोक अथवा छुरे । चाकू के आकार का छःसितारों का समूह कार्तिक नक्षत्र का प्रतीक है।
इस नक्षत्र का देवता 'अग्नि' है । 'अग्नि' मानव और सृष्टिकर्ता के क्रियाकलापों के ज्वलन्त उत्साह का प्रतीक है।
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
1. अश्विनी चू, चे, चो, ला
2. भरणी ली, लु, ले, लो
3. कृतिका अ, ई, उ, ए
4. रोहिणी वो, वा, वी,वु
5. मृगशीर्ष वे, वो, का, की
6.आर्द्रा
7. पुनर्वसु के, को, हा,ही
8. पौष हू, हे, हो, डा
9. अश्लेष डी, डू, डे, डो
10. माध मा, मी, मू, मे
11. पूर्व-फाल्गुनी मो, टा, टी, टू
12. उत्तर- फाल्गुनी टे, टो, प, पी
13. हस्ता पु, ष, ण, रा
14. चित्रा पे, पो, रा, री
15. स्वाति रा, रे, रो, का
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
राजसिक गुण ( अशान्त) – राजसिक गुणों के लोग अशान्त जीवन जीते हैं। वे एक ही समय में बहुत से काम करना चाहते हैं, लेकिन ऐसे लोग व्यस्त दिखने का ढोंग करते हैं मगर करते कुछ नहीं। धन और सम्पत्तिी प्राप्त करना उनका प्रबल लक्ष्य होता है। उनकी आन्तरिक और बाहूय शक्तियां नकारात्मक होती हैं। वे स्वार्थी होते हैं। वे इस कहावत पर पूरे उतरते हैं- “जब एक स्त्री को पता चला कि प्रलय आने वाली है, तो उसने भगवान से प्रार्थना की हे भगवान मुझे और मेरे सुनार को प्रलय से बचा लो।” राजासिक गुणा के लोग इसी प्रवृति के होते हैं।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़ , श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग , मनुष्य वर्ग, राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक
1. शारीरिक गठन - प्रायः मध्य कद का होगा। इस खण्ड में यदि शनि की दृष्टि हो तो जातक लम्बे
कद के भी हो सकते है। बड़ी नाक, सहानुभूति वाले आँखें, मजबूत और मोटी गर्दन, चौड़े कन्धे तथा
सुस्पष्ट मांसपेशियों के साथ सुगढ़ शरीर, शान्त मुखाकृति तथा आदरणीय व्यवहार । प्रभावशाली
आभास देने वाला व्यक्तित्व ।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना - जबकि वह एक और तो अत्यन्त बुद्धिमान होगा तथा दूसरी और
वह अपने लक्ष्य को ठीक से नहीं पा सकेगा।
दूसरे शब्दों में वह किसी भी काम से बहुत जल्दी उक्ता जाता है और बिना आगे पीछे सोचे उस काम
को छोड़ कर दूसरे काम को शुरू कर देता है । वह दूसरों को उनकी समस्याओं से निपटने के लिए
अच्छी सलाह देने में सक्षम है
मगर अपने जीवन में वही करता है जो उसका मन माने ।
वह अपने स्वाभिमान और आजादी के आड़े आने वाली हर दोस्ती को ठुकरा देगा। मगर वह गलत
तरीकों से अथवा दूसरों की दया से यश, धन और नाम कमाना नहीं चाहता। इसकी जरूरतें और
इच्छाएं किसी कारण की मोहताज नहीं है और न ही उसका सचयन प्रभावशाली है, फिर भी उसकी
धन कमाने की योग्यता अपूर्व है। उसके प्रयोजन किसी की कृपा प्राप्त करने की स्पष्ट इच्छा से परे हैं।
वह अपने कार्यों में दोष नहीं खोज सकता। स्वाभीमान
के साथ आशावादी होना उसकी विशेषता है। किसी भी लक्ष्य के लिए कठिन प्रयत्न करना उसकी
जिद्दी उद्दण्ड प्रकृति का परिचायक है ।
उसमें रुढ़ीवाद तथा एकेश्वरवाद दोनों पाये जाते है । उदाहरणार्थ जब वह रूढ़ीवादी है तो पुराने
रिवाजों और अन्ध विश्वासों को वह नहीं मानता।
लगातार प्रयत्न तथा कड़ी मेहनत उसका आदर्श है । वह विश्व के लिए अच्छे कार्य करना चाहता है
लेकिन वह देर तक अपनी इस इच्छा पर नहीं टिकता वह जनजीवन में गम्भीरता तथा ईमानदारी से
सम्मलित होना चाहता है लेकिन
अंत में हानि या असफलता ही मिलती है। उसकी यही कमी किसी कार्य को करने की उसकी योग्यता
पर प्रश्नचिन्ह लगा देती है ।
वह अपनी इन आदतों को सुधारने के लिए स्वयं पर कुछ नियम और प्रतिबन्ध लागू करता है लेकिन
फिर स्वयं ही उनमें फेरबदल कर देता है । वह जो वादा करता है उसे किसी भी कीमत पर निभाता है
।
जनजीवन में वह यश, मान और नाम अर्जित करता है। उसकी अत्यधिक ईमानदारी ही उसके पतन
का कारण है। छोटी बातों पर भी असफलता उसे कुंठित कर देती है और विस्फोटक की स्थिति
उत्पन्न हो जाती है। जब वह उत्तेजित होता है तो उससे विवाद करना खतरनाक हैं । अतः उसे
यथासम्भव मानसिक संतुलन बनाये रखना चाहिए और विस्फोटक की स्थिति से बचना चाहिए । तर्क
या प्रतितर्क तथा युक्ति में ही योग्यता है । प्रायः देखा गया है कि ऐसे लोग सत्य और धनहीन होकर
भटकते रहते हैं । वे किसी उपकार के प्रति आभारी नहीं होते बल्कि क्रूर शब्द भी बोलते है ।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-कार्तिक नक्षत्र में उत्पन्न जातक प्रायः अपने जन्म के स्थान पर
नहीं टिकते। अर्थात वे रोजगार के सिलसिले में परदेश जाते है। यहाँ मेरा तात्पर्य विदेश से नहीं बल्कि
जन्म स्थान से दूर स्थान में है । व्यवसाय में साझेदारी उसे रास नहीं आयेंगी ।
वह शासन से लाभ उठायेगा, इंजीनियर, यौन रोगों का विशेषज्ञ डाक्टर, राजकोष विभाग अथवा
ड्राफ्टसमैन बनने का संकेत है। यदि जातक की व्यवसाय में रूचि है तो उसे सूत निर्यात, दवाइयाँ
तथा साजसज्जा उद्योग से लाभ होगा। अपने काम में धीर लेकिन सफलता निश्चित। उसे अपने कार्यों
को तेजी से निपटाने की आदत डालनी चाहिए अन्यथा वह दूसरों से पीछे रह
जाएगा। उसे जीवन में बड़ी पैतृक सम्पत्ति मिलने का योग है ।
4. पारिवारिक जीवन-विवाहित जीवन में भाग्यशाली। उसकी सहचरी में कुशल, समर्पित, निष्ठावान
तथा सदाचारी होगी। इतनी अनुकूल परिस्थितियों के उपरान्त जीवन साथी का स्वास्थ्य उसकी चिन्ता
का विषय होगा और/अथवा कुछ ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जायेंगी कि उसे उस से अलग रहना
पड़ेगा। अलग रहने से मेरा तात्पर्य परिस्थितियाँ चाहे वो किसी कार्य अथवा उनमें से किसी का स्वास्थ्य
अथवा उनके सम्बन्धियों में से किसी की बिमारी होगा न कि आपस में मनमुटाव होगा ।
उसे जीवन के विभिन्न स्थलों पर रूकावटों का सामना करना पड़ेगा । वह अपने परिवार के क्षेत्र में
भाग्यवान होगा जहाँ पर उसे पूर्ण सन्तुष्टि व शान्ति मिलेगी। वह माता से बहुत स्नेह करेगा। उसे भी
बहनों व भाइयों में माता का स्नेह अधिक मिलेगा । उसका पिता धर्मपरायण तथा प्रसिद्ध व्यक्ति
होगा, तो भी उसे पिता का ज्यादा स्नेह व लाभ नहीं मिलेगा। जीवन में 50 वर्ष की आयु तक वह
संघर्षशील होगा और उसे वातावरण में निरन्तर बदलाव का सामना करना पड़ेगा। फिर भी 25 से 35
वर्ष तथा 50 से 56 वर्ष की आयु का समय बहुत अच्छा बीतेगा।
जातक के प्रेम विवाह होने का संकेत है। यह भी पाया गया है कि कार्तिक नक्षत्र में उत्पन्न जातक
अपने परिवार की परिचित लड़कियों से ही विवाह करते हैं।
5. स्वास्थ्य - उसकी खुराक अच्छी होगी लेकिन उसकी खाने की अनिश्चित व अनियमित आदत
होगी। वह दातों की परेशानी, कमजोर नेत्रदृष्टि, क्षय रोग, गैस, बवासीर, दिमागी बुखार, दुर्घटनाएं,
मलेरिया चोट अथवा दिमागी मैनिनजाइटिस से ग्रस्त हो सकता है।
उसका स्वास्थ्य कितना ही अच्छा या खराब क्यों न हो न तो वह अपनी बिमारियों से घबराएगा और न
ही वह अपने स्वास्थ्य पर नियमित ध्यान देगा।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक
1. शारीरिक गठन-वह साफ-सुन्दर शरीर व मध्यम कद की होगी वह 27 वर्ष की आयु तक अति
सुन्दर होगी उसके बाद मानसिक और परिस्थितियों के बदलाव के कारण उसकी सुन्दरता कम
होनी शुरू हो जाएगी।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना-जबकि वह प्रेमविहीन नहीं होगी फिर भी वह किसी के दबाव में
नहीं रहेगी। इसलिए वह मानसिक रूप से परेशान रहेगी। वह झगड़ालू स्वभाव की होगी। उसके
अक्खडपन का आभास उसके चेहरे पर ही नहीं बल्कि पूरा वातावरण से भी पता चलता है ।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-कार्तिक नक्षत्र में उत्पन्न स्त्री जातक प्रायः ज्यादा शिक्षित नहीं
होती। वे खेतों में, चरागाहों में, अथवा छोटे कारखानों में कार्यरत होती हैं । यदि उसका जन्म
कार्तिक नक्षत्र की पहली डिग्री में अथवा इसकी 12 से 13.20 डिग्री के बीच हुआ है तो जातक उच्च
शिक्षित होगी और वह प्रशासनाधिकारी, डाक्टर, कैमिकल इंजीनियर अथवा टीचर बनेगी। वह
संगीत या कला या सिलाई अथवा चमड़ा उत्पादन से भी अर्जित करेगी ।
4. पारिवारिक जीवन - उसे पति से पूरा सुख नहीं मिलेगा। कुछ मामलों में निसंतान अथवा पति से
अलगाव और कुछ में विवाह न होने का संकेत। यदि छोटी आयु में विवाह नहीं हुआ तो देखा गया
है कि उसका 37 वां वर्ष विवाह के लिए उत्तम है। वह अपने सम्बन्धियों से सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध नहीं
बना पायेगी क्योंकि उसका किसी के दबाव या आधीनता में रहना उसके स्वभाव के विरुद्ध है।
यह सही है कि ऐसी स्त्रियाँ भ्रम की स्थिति में रहती है और वे अपने सच्चे शुभचिन्तकों से भी बेरुखी
से पेश आती हैं । अन्त में उनके लिए एकाकी जीवन ही रह जाता है।
यदि मंगल या बृहस्पति उनकी जन्मकुण्डली में प्रतिकूल स्थान पर हों तो वे निसंतान होंगी अथवा
उनके बच्चों की मृत्यु का संकेत है। कार्तिक नक्षत्र में शनिवार के दिन उत्पन्न होने वाली जातक
'विषकन्या' कही जाती है। ऐसी स्त्री मृत बालक को जन्म देती है। उसके अंग ख़राब हो जाते हैं। वह
वस्त्राभूषण आदि से विरक्त होती है। कोई एक अनुकूल ग्रह चन्द्रमा अथवा जन्मलग्न से 178 से 185
तक अंक्षाश के बीच स्थित हों तो उपरोक्त प्रतिकूल प्रभाव विलुप्त अथवा नष्ट हो जाते है। यदि मंगल
ग्रह जन्म नक्षत्र से 26 वें, 27 वें अथवा 28 वें नक्षत्र में स्थित हो और उसकी शुभ दृष्टि
न हो तो स्त्री के विधवा होने का संकेत है ।
5. स्वास्थ्य - मानसिक शान्ति के अभाव अथवा अधिक कार्य के कारण स्वास्थ्य खराब रहेगा ।
ग्रन्थिय क्षय रोग भी कुछ मामलों में पाया गया है
श्री बी० सूर्यनारायण राव के “स्त्री जातक" के अनुसार “जब कार्तिक प्रबल हो उस समय कन्या में
उसके यौवनारम्भ अथवा प्रथम ऋतुश्राव के लक्षण दृष्टिगोचर हों तो वह झगड़ालू, व्यभिचारी, बांझ,
गर्भपात कराने वाली, आक्षित तथा मृत बच्चे उत्पन्न करने वाली होगी।”




4-रोहिणी

जन्म नक्षत्र - रोहिणी ( चन्द्रमा )
चिह्न -रथ
अधिष्ठाता देवता -ब्रह्मा
जाति - शूद्र
पहचान/प्रतीक -रथ के आकार में 5 सितारों का समूह.
चौथे राशिचक्र में 40.00 डिग्री से 53.20 डिग्री के विस्तार का क्षेत्र रोहिणी नक्षत्र है ।
रोहिणी बलराम की माता का नाम। रोहिणी का शाब्दिक अर्थ "लाल-गाय", जो चन्द्रमा की पत्नी तथा ऋषि कश्यप व सुरभि की पुत्री; रक्तवाहिनी और विद्युत इत्यादि से है।
रथ के आकार के पांच सितारों का समूह रोहिणी नक्षत्र का प्रतीक है।
दक्षिण भारतीय धारणाओं के अनुसार रोहिणी नक्षत्र 'वटू' वृक्ष के आकार का 42 सितारों का समूह है।
इस नक्षत्र का अधिण्ठाता देवता ब्रह्मा है जो सम्पूर्ण जगत का पिता है। उसे ‘प्रजापति’ अर्थात सृष्टि का सृजनकर्ता भी कहते हैं । इनके निवास को 'मनोवती' कहते हैं ।
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
1. अश्विनी चू, चे, चो, ला
2. भरणी ली, लु, ले, लो
3. कृतिका अ, ई, उ, ए
4. रोहिणी वो, वा, वी,वु
5. मृगशीर्ष वे, वो, का, की
6.आर्द्रा
7. पुनर्वसु के, को, हा,ही
8. पौष हू, हे, हो, डा
9. अश्लेष डी, डू, डे, डो
10. माध मा, मी, मू, मे
11. पूर्व-फाल्गुनी मो, टा, टी, टू
12. उत्तर- फाल्गुनी टे, टो, प, पी
13. हस्ता पु, ष, ण, रा
14. चित्रा पे, पो, रा, री
15. स्वाति रा, रे, रो, का
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
राजसिक गुण ( अशान्त) – राजसिक गुणों के लोग अशान्त जीवन जीते हैं। वे एक ही समय में बहुत से काम करना चाहते हैं, लेकिन ऐसे लोग व्यस्त दिखने का ढोंग करते हैं मगर करते कुछ नहीं। धन और सम्पत्तिी प्राप्त करना उनका प्रबल लक्ष्य होता है। उनकी आन्तरिक और बाहूय शक्तियां नकारात्मक होती हैं। वे स्वार्थी होते हैं। वे इस कहावत पर पूरे उतरते हैं- “जब एक स्त्री को पता चला कि प्रलय आने वाली है, तो उसने भगवान से प्रार्थना की हे भगवान मुझे और मेरे सुनार को प्रलय से बचा लो।” राजासिक गुणा के लोग इसी प्रवृति के होते हैं।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक
1. शारीरिक गठन- प्रायः पतला शरीर । यद्यपि दूसरे ग्रहों की दशा व दृष्टि के आधार पर छोटे कद
तथा स्थूल शरीर के भी पाये जाते हैं । विशेष आकर्षण लिए हुए छोटी आंखे; सुन्दर तथा आकर्षक
व्यक्तित्व, बड़े कन्धे तथा पुष्ट मांस-पेशिया होती हैं।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना - वह चिड़चिड़े स्वभाव का होता है जो एक बार क्रोधित होने पर
जल्दी सहज नहीं होता। उसके निर्णयों को कोई भी नहीं बदल सकता । यदि कोई उसके विचारों
अथवा योजनाओं में अड़चन डालता है तो वह बहुत ही जिद्दी तथा दुराग्रही हो जाता है । वह अपने
विचारों की अवहेलना करने वाली हर सलाह को ठुकरा देता है
वह दूसरों में ऐब ढूंढ़ने में दक्ष होता है। जबकि वह स्वयं किसी
निश्चित उद्देश्य पर नहीं टिकता। वह दिमाग के बजाए मन की अधीन है। जहाँ वह अपने प्रिय के लिए
जान तक लुटाने को तैयार है वहां वह अपने विरोधी को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ता। वह
अपने आप में ही संतुष्ट रहता है।
झूठ को नकार कर सत्य को अपनाना उसकी विशेषता है। वह अपने उद्देश्यों को नियोजित न करने
के कारण अपने जीवन में उतार चढ़ाव को सहन करता है। यदि उसके विचारों की निर्बांधता पर
'अंकुश लग जाये तो वह जीवन में बहुत सफल हो सकता है। उसे भविष्य की चिन्ता नहीं है उसका
सब कुछ
वर्तमान है। वह किसी भी स्वतन्त्र व्यवसाय में ही नहीं बल्कि सामाजिक सेवा में भी सफल होगा।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन - जो भी कार्य वह अपने जिम्मे लेगा उसे ईमानदारी व गम्भीरता
से पूरा करने की कोशिश करेगा। लेकिन उसमें क्षमाशीलता और धैर्य की कमी है। वह हरफनमौला
बनने की कोशिश करेगा मगर इस प्रक्रिया में उसकी नय व ढ़ंग में कमी के कारण उसे
असफलताओं का सामना करना पड़ेगा ।
उसके विचारों की स्वतन्त्रता ही उसके पतन का कारण है । यह भी देखा गया है कि रोहिणी नक्षत्र में
उत्पन्न जातक, दूसरे ग्रहों की बहुत अच्छे स्थान पर स्थित होने से, जीवन में निम्न स्थान से उठ कर
शिखर पर पहुंचे हैं ।
वह दुग्ध उत्पादनों व गन्ने के व्यवसाय अथवा कैमिकल इंजीनियर के रूप में कमायेगा। 18 वर्ष तथा
36 वर्ष की आयु के बीच का समय उसके लिए परीक्षा का समय होगा । उसे आर्थिक सामाजिक तथा
स्वास्थ्य सम्बन्धी बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा । प्रायः देखा गया है कि ऐसे
लोग अपने जीवन के 38 वें से 50 वें तथा 65 वें से 75 वें वर्ष के दौरान जीवन के उत्तम सुख भोगेंगे।
प्रथम मूलभूत कारक ध्यान रख लेना चाहिए कि उसे किसी को भी अपने विश्वास में नहीं लेना है।
अपने कर्मचारियों तथा साझीदारों से विशेषकर सावधान रहना चाहिए। उसमें यही एक कमी है कि
वह दूसरों पर अन्धाधुन्ध विश्वास कर लेता है। उसकी खुशहाली तथा सफलता इसी बात पर निर्भर है
कि वह किसी व्यक्ति पर विश्वास करने से पहले उसे अच्छी तरह जांच परख
4. पारिवारिक जीवन- वह अपने पिता से पूर्ण
सकेगा । उसका अपनी माता तथा मामा के प्रति अधिक लगाव होगा। वह आवश्यकता पड़ने पर
किसी भी धार्मिक या सामाजिक नियम को तोड़ने में नहीं हिचकेगा। उसका विवाहित जीवन रूकावटों
से भरा होगा ।
5. स्वास्थ्य-उसे रक्त की बिमारियां जिनमें रक्त दोष, ब्लड कैंसर,bपीलिया, मूत्र की रूकावट,
मधुमेह, क्षय रोग, दमा, लकवा तथा गले की तकलीफ शामिल हैं, हो सकती है।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक
1. शारीरिक गठन-वह सुन्दर, आकर्षक नेत्र, मध्यम कद तथा साफ रंग की होती है।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- उचित पहनावा तथा व्यवहार कुशलता उसकी विशेषता है। वह
दिखावेबाज होगी लेकिन साथ ही कमजोर दिल की होगी। पुरुष जातक की तरह रोहिणी नक्षत्र में
उत्पन्न स्त्री जातक चिड़चिड़े
स्वभाव की होगी और विपत्तियों को आमन्त्रित करेगी। वह व्यवहारिक, गोपनशील एवं उत्तेजित होने
पर उग्र होती है ।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-किसी भी काम के सौपें जाने पर अथवा करने पर उसकी
अन्तर्हित योग्यता प्रकट होती है। वह तेल, दूध, होटल, चरागाह तथा वस्त्र निर्माता के रूप में कार्य
करेगी। माध्यमिक शिक्षा का संकेत है।
4. पारिवारिक जीवन - उसका परिवारिक जीवन अच्छा होगा । उसे पति तथा बच्चों से भरपूर सुख
मिलेगा । यदि रोहिणी नक्षत्र में स्थित शुक्र पर शनि की दृष्टि होगी तो जातक की बहन पर संकट का
संकेत । कुछ मामलों
में बहन के न होने का भी योग । उसे साम जस्यपूर्ण विवाहित जीवन के लिए अपनी हठधर्मिता को
छोड़ना चाहिए। उसे अपने पति पर शक करना त्यागना चाहिए अन्यथा परिणाम तलाक हो सकता
है। यदि उसका विवाह माध नक्षत्र
में उत्पन्न हुए युवक से होगा तो उसके कई सन्तान होंगी और वह सुखी विवाहित जीवन जी सकेगी।
वह एक अच्छी माता सिद्ध होगी |
5. स्वास्थ्य - उसका स्वास्थ्य प्रायः ठीक रहेगा। उसे टांगों व पांव में दर्द, वक्षस्थल (स्तन) में दर्द,
कभी-कभी स्तन कैंसर, अनियमित मासिक चक्र, मुहांसे, गले में दर्द तथा गर्दन में फोड़ा आदि
तकलीफें हो सकती हैं। यदि रोहिणी उदय के समय प्रथम ऋतुक्षाव के लक्षण प्रकट हों तो वह
लड़ाका, दुश्चरित्र तथा गर्भपात कराने वाली होगी ।




5-मृगशिरा

जन्म नक्षत्र - मृगशिरा ( मंगल )
चिह्न -हिरण का सिर
अधिष्ठाता देवता -चन्द्रमा
जाति - सेवक जाति
पहचान/प्रतीक -हिरण के सिर के आकार के 3 सितारें.
मार्गशीर्ष (मृगासिर) नक्षत्र
पाँचवे राशिचक्र में 53.20 डिग्री से 66.40 डिग्री के विस्तार का कक्षा क्षेत्र मार्गशीर्ष नक्षत्र है। यह
सिर के आकार का तीन सितारों का समूह है। यह नारियल की आँख के समान भी दिखता है। ‘मृगशीर्ष' का तात्पर्य 'हिरण के सिर' से है।
मार्गशीर्ष नक्षत्र का अधिण्ठाता देवता चन्द्रमा है। पुराणों में चन्द्रमा को 'सोम' भी कहा जाता है। चन्द्रमा ने बृहस्पति की पत्नी तारा का धोखे से शीलभंग कर दिया था जिससे बुध का जन्म हुआ । प्रारम्भ में बृहस्पति ने
बुध को अपनाने से इन्कार कर दिया लेकिन बाद में बुध के सुन्दर व्यक्तित्व तथा स्वभाव से प्रभावित होकर बृहस्पति ने बुध को अपना पुत्र मान लिया। इससे पता चलता है कि चन्द्रमा इतनी शक्ति रखता है कि वह
मानव के मन में अहंकार उत्पन्न कर दे ।
(I) मार्गशीर्ष नक्षत्र में उत्पन्न जातकों के सामान्य परिणाम
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
1. अश्विनी चू, चे, चो, ला
2. भरणी ली, लु, ले, लो
3. कृतिका अ, ई, उ, ए
4. रोहिणी वो, वा, वी,वु
5. मृगशीर्ष वे, वो, का, की
6.आर्द्रा
7. पुनर्वसु के, को, हा,ही
8. पौष हू, हे, हो, डा
9. अश्लेष डी, डू, डे, डो
10. माध मा, मी, मू, मे
11. पूर्व-फाल्गुनी मो, टा, टी, टू
12. उत्तर- फाल्गुनी टे, टो, प, पी
13. हस्ता पु, ष, ण, रा
14. चित्रा पे, पो, रा, री
15. स्वाति रा, रे, रो, का
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
तामसिक गुण (निष्क्रिय) – इस समूह के व्यक्तियों में किसी भी बात को चाहे वो सही हो अथवा गलत विरोध करने की आदत होती है। जिसकारण परिवार में तथा समाज में उस व्यक्ति को टकराव का सामना करना पड़ता है। उसकी आन्तरिक शक्ति तो सकारात्मक विचार देती है, जबकि उसकी बाह्य शक्ति में नकारात्मक विचार होते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसे व्यक्ति मन से बुरे नहीं होते, लेकिन उनमें अर्न्तनिहित गुण शक्ति उन्हें तामसिक विचार प्रकट करने को बाध्य करती है। मनन या प्रार्थना के द्वारा इस अंसगति को कम किया जा सकता है। तामसिक गुणों वाली स्त्रियां 45 वर्ष की आयु में तथा पुरुष 40 वर्ष की आयु में अपने में असंगतिपूर्ण रिक्तता को विजित करने में सफल होते हैं ।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग, मनुष्य वर्ग, राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक
1. शारीरिक गठन - सुन्दर, दृढ़ शरीर, लम्बा कद, मध्य श्रेणी का रंग-रूप, पतली टांगों व लम्बी
भुजाओं वाला होता है ।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना-उसमें एक विलक्षण प्रवृति होती है कि वह शक्की स्वभाव का होता
है। हर चीज पर शक करता है। वह दूसरों से सद्भावपूर्वक व्यवहार करता है और वही व्यवहार दूसरों
से भी प्रतीक्षा करता है।
प्रायः ऐसा होता नहीं। उसके निष्कपट स्वभाव के कारण दूसरे उससे मेल जोल रखकर प्रसन्नता
अनुभव करते हैं। लेकिन उसे अपने मित्रों और सम्बन्धियों से तथा साथ ही भागीदारों से व्यवहार करते
हुए सावधानी बरतनी चाहिए कि वह
उनसे धोखा भी खा सकता है। दूसरों पर आँख मूंद कर विश्वास करना तथा बाद में धोखा खाना नैराश्य
और पछतावे को जन्म देता है। अपनो से बुराई करने वालों के साथ निपटने का उसे ढंग आता
उसमें जागरूकता, नेतृत्व करने की योग्यता तथा बुद्धिमतापूर्ण कौशल, उत्सुकता जैसी कई विशेषताएं
हैं, लेकिन उसके दूसरों के प्रति अनुरक्तिपूर्ण स्नेह के बदले उसे परिस्थितियों तथा लोगों द्वारा
अवहेलना या अपेक्षा मिलती है ।
वह सीधा-साधा व्यक्ति होता है। वह सिद्धान्ती व साधारण जीवन को पसन्द करता है। उसके विचार
निष्पक्ष तथा निष्कपट होते हैं। दूसरों के द्वेषपूर्ण निर्णय अथवा कार्यों का सामना उसके धैर्य की सीमा
खत्म कर देता है। जबकि वह दूसरों के विचारों का सम्मान करने तथा उन्हें अपनाने का प्रकट करता
है लेकिन उन्हें अपने निजी जीवन में कभी नहीं अपनाता । वह अपनी इच्छानुसार जीवनयापन करता
है। वह स्वयं को साहसी तथा किसी भी साहसिक कार्य को करने को प्रकट करता है जबकि वह
जन्मना कायर होता है।
उसे मानसिक शान्ति नहीं मिलती वह छोटी-छोटी बातों पर उत्तेजित हो जाता है। 32 वर्ष की आयु
तक उसका जीवन गल्तियों और चुनौतियों से भरा होगा तथा वह तुफान में फंसी हुई नौका की भांति
डावांडोल मनस्थिति में होगा तथा किसी भी निर्णय के अभाव में उसका मन भटकता रहेगा । 32
वर्ष की अवस्था के बाद, यदि दूसरी ग्रहीय स्थितियाँ अनुकूल हों तो, उसके जीवन में स्थिरता व संतोष
की स्थिति आ जायेगी ।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-अच्छी शिक्षा प्राप्त करेगा। वह अच्छा वित्तीय सलाहकार होगा।
वह दूसरों को मितव्ययता की सलाह देगा लेकिन स्वयं अपने खर्चों पर नियन्त्रण नहीं रख पायेगा और
अन्त में स्वयं को
आर्थिक संघर्षों में फंसा पायेगा । 32 वर्ष की आयु तक उसे उतार चढ़ाव का सामना करना होगा। इस
अवस्था के बाद उसे व्यवसाय/रोजगार तथा जीवन में सफलता मिलेगी। वह नियमित नीरस कार्यों को
बीच में ही छोड़कर प्रायः
नये कार्य शुरू कर देता है। यह उसके अवबोधन के कारण होता है, न कि प्रस्तुत कार्य की सफलता
या असफलता की संभावना को समझने की उसमें कमी के कारण। प्रस्तुत कार्य को बीच में छोड़कर
नये को अपनाना उसके लिए
अधिक व्यवहार्य है। दूसरे शब्दों में वह कोई भी कार्य लगातार तथा स्थायी रूप से करने में असमर्थ
है कुछ मामलों में देखा गया है कि जातक किसी कार्य को करने में सक्षम है मगर विधाता की और ही
इच्छा होती है जिससे असफलता की कुंठा उसे मारे डालती है। यह तो उसके इस नक्षत्र में उत्पन्न
होने का दोष है । अतः उन्हे इस अध्याय के अन्त में दी गई उपचार विधियों का पालन करने
की सलाह दी जाती है। 33 वर्ष से 50 वर्ष की आयु का समय उसके लिए सफलतापूर्वक कार्यों का
होगा जिसमें उसे अप्रत्याशित रूप से पूर्ण लाभ मिलेगा। लेकिन इस
समय में वह जो भी अर्जित करेगा अपनी भूलों से सब गंवा देगा ।
4. पारिवारिक जीवन-उसे सहजातक से कोई लाभ नहीं मिलेगा। ये सहजातक उसके लिए केवल
परेशानी या विपत्ति उत्पन्न नहीं करेंगे बल्कि उसको हानि पहुंचाने की भी दुश्मनी करेंगे, उसका
निश्छल प्रेम व स्नेह उसके परिजनों पर कोई प्रभाव नहीं डालेगा। दूसरे शब्दों में जातक की गलती न
होते
हुए भी उसके परिजन उसे गलत समझेंगे। इसी कारण भाग्य तथा सितारों का मनुष्य पर प्रभुत्व होता
है ।
उसके जीवन साथी का स्वास्थ्य अच्छा नहीं होगा। इससे अधिक, उसका वैवाहिक जीवन सौहार्द नहीं
होगा। उनमें छोटी-छोटी बातों पर तथा जातक के कड़ा स्वभाव के कारण स्नेह तथा सौहार्द से दूर
होगा ।
में यह देखा गया है कि दम्पति में इस मनमुटाव का कारण, उनमें से किसी। कुछ मामलों एक का
जीवन में श्रेष्ठता या वरियता प्राप्त करने से उत्पन्न हुआ छोटेपन से है । इस झगड़े तथा मनमुटाव को
दूर करने के लिए जातक की पति या पत्नी
मंगलवार को व्रत रखना चाहिए और शिव जी की पूजा करनी चाहिए। (जात पुरुष है तो उसको पत्नी
और स्त्री हो तो उसको पति व्रत रखना चाहिए)
5. स्वास्थ्य - बचपन में उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं होगा। बार-बार की कब्ज से पेट की बिमारी, चोट-
चपेट, गले की हड्डी के पास कन्धों में दर्द का संकेत ।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक
मार्गशीर्ष नक्षत्र में उत्पन्न स्त्री जातक भी प्रायः पुरुष जातकों वाली उपरोक्त परिणाम अनुभव करेगी।
इसके अतिरिक्त परिणाम निम्नलिखित हैं:
1. शारीरिक गठन-लम्बा-छरहरा शरीर, तीक्षण नाक-नक्श व बहुत ही सुन्दर शरीर की होगी ।
2. स्वभाव तथा सामान्य वृतान्त- बहुत बुद्धिमान होगी। सामाजिक कार्यों में रूचि लेगी ।
मानसिक रूप से चुस्त, हाजिर जवाब तथा मतलबी होगी। अपनी तेज तीखी जुबान के कारण उसे
दूसरों से बहस करते हुए अथवा लड़ते हुए अपशब्द कहते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि उसके
कहे
गये शब्द दूसरों के लिए नुकसान देह होते है। अर्थात उसका क्रोध में कहा गया श्राप पूरा होता है ।
वह शिक्षित तथा कला की पुजारिन होगी। उसके सन्तान होगी तथा वह पति को समर्पित होगी।
बहुत धनवान होगी तथा अच्छा रहन-सहन, वस्त्राभूषण व खान-पान के मामले में भाग्यशाली होगी।
वह धन के प्रति लालची प्रवृति की होगी।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-मैकेनिकल या इलैक्ट्रीकल इंजीनयरी, टेलीफोन, बिजली के
उपकरणों आदि में अच्छा ज्ञान प्राप्त करेगी। यह अचरज की बात होगी कि स्त्री होते हुए भी वह
पुरूषों वाले कार्यों अथवा व्यवसाय में रूचि लेगी ।
4. पारिवारिक जीवन-विवाह के बाद भी वह विभिन्न कार्यों में व्यस्त रहेगी। पति उसके नियन्त्रण में
होगा। जीवन में कुछ प्रेम प्रसंग होंगे जो विवाह की परिणति को नहीं पहुंचेगे लेकिन विवाह के बाद
वह पति को ही समर्पित होगी और पूर्व घटनाओं का उस पर कोई असर नहीं होगा। उसे
पूर्वफाल्गुनी
नक्षत्र में उत्पन्न जातक से विवाह नहीं करना चाहिए यदि वह ऐसा करती है तो पति की जल्दी मृत्यु
का खतरा है।
5. स्वास्थ्य - समय समय पर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होगी। उसे गलगण्ड, फुन्सियाँ, यौन रोग,
मासिक ऋतुचक्र से होने वाली परेशानियाँ तथा कन्धे पर दर्द हो सकता है। यदि इसके (स्त्री)
मार्गशीर्ष नक्षत्र के समय प्रथम ऋतुश्राव के लक्षण प्रकट हों तो वह धर्मात्मा, पतिभक्ता या पतिव्रता
होगी।




6-आर्द्रा

जन्म नक्षत्र - आर्द्रा ( राहू )
चिह्न -मनुष्य का सिर
अधिष्ठाता देवता -रूद्र
जाति - कसाई जाति
पहचान/प्रतीक -लाल रंग का । सिर के आकार का एक सितारा
छठे राशिचक्र में 66.40 डिग्री से 80.00 डिग्री के विस्तार का क्षेत्र आर्द्र है। अरब मंजिल में इसे “अलहनाह” (राशिपुंज); ग्रीक इसे 'बैटलगीज' मानते हैं। चीनी मतानुसार यह 'त्सान' है। हिन्दु तन्त्र के अनुसार आर्द्रा हीरे की तरह चमकता एक सितारा है। 'आर्द्र' का मतलब 'नम' है । आर्द्र नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता आँधी का स्वामी "रुद्र" हैं जो 'विनाश' का भी स्वामी है। यह नाडी-मण्डल (nervous system) का अग्रज है तथा इन्द्र का अनुज है। भगवान शिव को भी 'रूद्र' कहते हैं। (1)आर्द्र नक्षत्र में उत्पन्न जातकों के परिणाम
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
1. अश्विनी चू, चे, चो, ला
2. भरणी ली, लु, ले, लो
3. कृतिका अ, ई, उ, ए
4. रोहिणी वो, वा, वी,वु
5. मृगशीर्ष वे, वो, का, की
6.आर्द्रा
7. पुनर्वसु के, को, हा,ही
8. पौष हू, हे, हो, डा
9. अश्लेष डी, डू, डे, डो
10. माध मा, मी, मू, मे
11. पूर्व-फाल्गुनी मो, टा, टी, टू
12. उत्तर- फाल्गुनी टे, टो, प, पी
13. हस्ता पु, ष, ण, रा
14. चित्रा पे, पो, रा, री
15. स्वाति रा, रे, रो, का
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
तामसिक गुण (निष्क्रिय) – इस समूह के व्यक्तियों में किसी भी बात को चाहे वो सही हो अथवा गलत विरोध करने की आदत होती है। जिसकारण परिवार में तथा समाज में उस व्यक्ति को टकराव का सामना करना पड़ता है। उसकी आन्तरिक शक्ति तो सकारात्मक विचार देती है, जबकि उसकी बाह्य शक्ति में नकारात्मक विचार होते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसे व्यक्ति मन से बुरे नहीं होते, लेकिन उनमें अर्न्तनिहित गुण शक्ति उन्हें तामसिक विचार प्रकट करने को बाध्य करती है। मनन या प्रार्थना के द्वारा इस अंसगति को कम किया जा सकता है। तामसिक गुणों वाली स्त्रियां 45 वर्ष की आयु में तथा पुरुष 40 वर्ष की आयु में अपने में असंगतिपूर्ण रिक्तता को विजित करने में सफल होते हैं ।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग, मनुष्य वर्ग, राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक
1. शारीरिक गठन - यह पाया गया है कि आर्द्र नक्षत्र में उत्पन्न जातक विभिन्न आकार के यथा
छरहरे-पतले में स्थूल काय मोटे डीलडोल के होतें हैं।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- उसे जो भी कार्य मिलेगा वह पूरी जिम्मेदारी से पूरा करेगा।
जनसभाओं में वह अपने सरस तथा विनोदी बातों से सब के आकर्षण का केन्द्र बन जाता है। वह
अज्ञानी तथा अच्छा मनौवैज्ञानिक होता है।
मित्रों तथा परिजनों के साथ उसका व्यवहार सौहार्दपूर्ण होता है । कुछ मामलों में यह भी देखा गया है
कि जातक अपनी सहायता करने वालों का आभारी नहीं होता और उसका व्यवहार भी सदा एक सा
नहीं होता ।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन - उसमें सभी विषयों के बारे में जानकारी प्राप्त करने की योग्यता
है । फिर भी वह अपनी इस योग्यता से कोई प्रतिफल अथवा प्रसिद्धि नहीं पा सकेगा। उसे सलाह दी
जाती है कि इस अध्याय के अन्त में दिये गये उपचारों का बिना नागा किये नित्य जाप करें।
ऐसा करने पर उसे इस जन्मजात विपत्ति दुर्भाग्य से छुटकारा मिल जायेगा ।उसकी अपने काम में
ईमानदारी के कारण कोई छोटी सी परेशानी या मुश्किल पड़ने पर वह मानसिक रूप से पीड़ित हो
जाता है। फिर भी वह आर्थिक व मानसिक विपत्ति तथा दुर्भाग्य के समय मानसिक संतुलन बनाये
रखता है।
और उसका व्यवहार आकर्षक तथा सम्मानपूर्ण होता है । अपनी इन्ही विशेषताओं के कारण वह
सर्वप्रिय होता है।
वह किसी एक काम में दृढ नही रहता वह एक ही समय में कई कामों को आरम्भ कर लेगा। यहां तक
कि जब उसे पता चलेगा कि कार्य करने का ढंग, अथवा जो तरीका, उसे कार्य विशेष को पूरा करने
के लिए उसने अपनाया है, ठीक भी हो लेकिन दूसरों के अनुसार वह तरीका ठीक नहीं है तो
वह उनको प्रभावित करने और उनकी बात रखने में भी नहीं हिचकिचायेगा किसी अनुसंधान कार्य को
जब वह अपने तरीके से करता है तो महत्व प्राप्त कर सकते है। यह भी देखा गया है कि प्रायः सभी
निस्वार्थी समाज सेवक इसी नक्षत्र में उत्पन्न हुए हैं। उसमें एक समय में कई कार्यों को एक साथ
ग्रहण करने तथा उन्हें सभी क्षेत्रों में पूर्णता के साथ निष्पादित करने की क्षमता है। यदि वह किसी काम
के लिए कोई यात्रा करता है तो वह उन कार्यों को अनदेखा कर देता है, जो कि उस यात्रा के दौरान
सम्पन्न हो सकते थे |
आयु
जातक प्रायः अपना रोजगार परिवार और घर से दूर रहकर करेगा। दूसरे शब्दों में उसका कारोबार
परदेश में होगा । 32 वर्ष से 42 वर्ष की का समय उसके लिए सुनहरी समय होगा । वह यातायात,
जहाजरानी, संचार विभाग अथवा उनसे सम्बन्धित उद्योग में नियुक्त होगा । वह पुस्तक विक्रेता
अथवा वित्तीय दलाल के रूप में भी आय अर्जित कर सकता है।
4. पारिवारिक जीवन - विवाह देर से होगा । यदि विवाह जल्दी होगा तो वह दम्पति के आपसी वाद-
विवाद (मतभेद) अथवा अपने वश से बाहर किसी परिस्थिति के कारण उसे परिवार से अलग रहना
पड़ेगा। उसे जीवन में कई जन्मजात (भाग्य में लिखित) समस्याओं से उलझना पड़ेगा। लेकिन वह
अपनी समस्याएं किसी से नहीं बतायेगा ।
अगर उसका विवाह देर से होगा तो उसका विवाहित जीवन बहुत अच्छा होगा। उसकी पत्नी उस पर
पूरा ध्यान देगी।
5. स्वास्थ्य - उसे कुछ असाध्य बिमारियां हो सकती है। उदाहरर्णाथ लकवा, दिल अथवा दांत के रोग
। उसे रक्त की विशेष बिमारी होने का योग है।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक
1. शारीरिक गठन-उसका शरीर मनोहर, रमणीय नेत्र तथा ऊँचा नाक होती है।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना-वह शान्त स्वभाव की तथा सदव्यवहार पूर्ण होती है। अमितव्ययी
स्वभाव। बुद्धिकुशल, दूसरों की सहायता करने वाली लेकिन दूसरों के दोष ढूंढने में माहिर होती है।
कुछ मामलों में देखा गया है कि यदि स्त्री की जन्म कुन्डली में लग्न अश्विनी नक्षत्र में पड़ता हो तो
उसके दो पिता या दो माताओं का संकेत है।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-वह शिक्षा या विज्ञान के क्षेत्र में प्रवीणता प्राप्त करेगी। आर्द्रा
नक्षत्र में उत्पन्न मादा जातक प्रायः विद्युत उपकरण अथवा औषध विज्ञान की विशेषज्ञ होती है। वह
विभिन्न क्षेत्रों में सलाहकार के रूप में भी कमायेंगी।
4. पारिवारिक जीवन - नर जातकों की तरह इनका भी विवाह देर से होगा। लेकिन उसे अपने
पति अथवा ससुराल वालों से यथोचित मान व स्नेह नहीं मिलेगा। उसका वैवाहिक जीवन कांटों भरा
होगा। उसके बच्चे भी उसे अपेक्षित खुशी नहीं देंगे। कुछ मामलों में यह भी देखा गया है कि उसका
या
तो तलाक होत है या उसके विधवा होने का अंदेशा है।
5. स्वास्थ्य - उसे मासिक ऋतु चक्र की परेशानी, अस्थमा, रक्तदोष, अल्परक्तता, गर्भाशय की
परेशानी, कनफेड़, पित्तदोष और कफ के रोगों का योग है। यदि इस नक्षत्र में मादा जातकों के प्रथम
ऋतुश्राव के लक्षण प्रकट हों तो वह व्यभिचारी, यौन अंगों में खराबी तथा मृत बच्चे उत्पन्न करने
वाली होगी।
II आर्द्र नक्षत्र में विभिन्न ग्रहों की स्थिति के परिणाम




7-पुनर्वसु

जन्म नक्षत्र - पुनर्वसु ( बृहस्पति )
चिह्न -धनुष/(तीरकमान)
अधिष्ठाता देवता -अदिति
जाति - वैश्य
पहचान/प्रतीक -मकान के आकार के 5 सितारें ।
सातवें राशिचक्र में 80.00 डिग्री से 93.20 डिग्री के विस्तार का क्षेत्र पुर्नवसु नक्षत्र कहलाता है। अरब मंजिल में इसे “अधःधीरा” (शेर का पंजा) कहते है; ग्रीक इसे “जैमिनोरियम” तथा चीनी मतानुसार "त्सिङ”
कहते हैं।
सूर्य सिद्धान्त के अनुसार “पुनर" का अर्थ “दुबारा” तथा वसु का मतलब "अच्छा/चमकदार” है। 'पुनर' शब्द के अर्थ में कोई मतभेद नहीं है लेकिन 'वसु' के अर्थ में शक है कि इसका अर्थ “अच्छा” है या
“चमकदार”। इसका
शाब्दिक अर्थ तो ‘बसना' है। अतः मेरे अनुसार 'पुर्नवसु' का अर्थ “पुनस्थिरीकरण” करना है। इसके अतिरिक्त इस नक्षत्र के सितारों की संख्या के बारे में भी मतभेद हैं। 'शाक्य ' तथा 'खण्डकातक' के अनुसार
पुर्नवसु नक्षत्र के दो
सितारें होते हैं। क्योंकि जुड़वा के शीर्षों में एक-एक जोड़ी सितारे होना वर्णित किया गया है अतः चार सितारे, दोनों शीर्षों में एक-एक जोड़ी के हिसाब से, एक धनुषाकार में होते हैं । यहाँ एक संयोजन (मिलन)
सितारे का भी उल्लेख
है इसका वास्तविक अर्थ यह हुआ कि यह पांच सितारों का समूह है। आम स्वीकृत सिद्धान्त के अनुसार पुर्नवसु समूह एक मकान के समान स्थित है।
इससे मेरे तर्क को और बल मिलता है कि शब्द 'वसु' का तात्पर्य “बसना”है ।
पुर्नवसु नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता 'अदिति' है। अदिति दक्ष की पुत्री तथा देवताओं का माता की रूप में जानी जाती है। अदिति अनन्तता का मानवीकरण रूप समझी जाती है। विष्णु पुराण के अनुसार अदिति का
वाग्दान ऋषि कश्यप के साथ किया गया था जिससे बारह पुत्र उत्पन्न हुए जो आदित्य
कहलाये। अदिति, भगवान विष्णु ने जब वामन (बौना) अवतार लिया था तो, उनकी माता थी। वह सूर्य की भी माता है । वाल्मिकी रामायण के अनुसार भगवान राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी को, पुर्नवसु नक्षत्र के
चतुर्थ भाग में, जो कि लग्न भी है, पौष में बृहस्पति, अश्विनी में सूर्य, घनिष्ठा नक्षत्र में मंगल अनुराधा में शनि तथा रेवती नक्षत्र में शुक्र थे ।
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
1. अश्विनी चू, चे, चो, ला
2. भरणी ली, लु, ले, लो
3. कृतिका अ, ई, उ, ए
4. रोहिणी वो, वा, वी,वु
5. मृगशीर्ष वे, वो, का, की
6.आर्द्रा
7. पुनर्वसु के, को, हा,ही
8. पौष हू, हे, हो, डा
9. अश्लेष डी, डू, डे, डो
10. माध मा, मी, मू, मे
11. पूर्व-फाल्गुनी मो, टा, टी, टू
12. उत्तर- फाल्गुनी टे, टो, प, पी
13. हस्ता पु, ष, ण, रा
14. चित्रा पे, पो, रा, री
15. स्वाति रा, रे, रो, का
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
सात्व गुण (सत्य) – सात्व गुण के लोग साफ दिल वाले होंगें, वे क्रमबद्ध तथा मेहनती होते हैं। उनके प्रत्येक पग में एक विलक्षण ताल अथवा प्रभाव होता है। वे फल की चिन्ता किये बिना कर्म किये जाते हैं। जिस काम को करने की वे सोच लेते हैं उनको वे पूरा करते हैं। उनकी वाह्य अभिव्यक्ति कुछ अशिष्ठ होती है। वे चित्रकला, दस्तकारी, खेलों में असाधारण सफलता प्राप्त करते हैं ।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(I) पुर्नवसु नक्षत्र में उत्पन्न जातकों के सामान्य परिणाम
(क) पुरुष जातक
1. शारीरिक गठन-मनोहर स्वरूप, लम्बी जंघा, लम्बा चेहरा तथा चेहरे पर अथवा सिर के पिछले
हिस्सें में कोई पहचान-चिन्ह |
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- जातक भगवान में विश्वास रखने वाला, धार्मिक प्रवृति का होगा।
आरम्भ में उसका अच्छा व्यवहार होगा लेकिन बाद में परिस्थिति के अनुसार उसमें बदलाव आयेगा ।
अतः दूसरों को उससे मिलते समय सावधान रहना चाहिए। उसके अंत विचारों की जानना कठिन
है। कभी वह सहमत दिखता है मगर फौरन ही क्रोधित हो जाता है । वह पुरातन विचारधाराओं व
मान्यताओं में विश्वास रखता है ।
वह किसी गैर कानूनी काम में सहयोग नहीं देता बल्कि दूसरों को भी ऐसा करने से रोकता है। वह
दूसरों को कष्ट पहुंचाने की अपेक्षा जरूरतमन्दों की सहायता करने की कोशिश करता है । वह
साधारण जीवन व्यतीत करेगा।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन - वह साझेदारी के व्यवहार को छोड़कर हर क्षेत्र में सफल तथा
विख्यात हो सकता है । वह शिक्षक, लेखक, अभिनेता, चिकित्सक आदि के रूप में नाम और मान
अर्जित कर सकता है।
32 वर्ष तक की आयु का समय उसके लिए ठीक नहीं है इसलिए उसे इस अवस्था तक किसी
महत्वपूर्ण व्यवसाय को नहीं करना चाहिए। वह धन संचय की स्थिति में नहीं होगा लेकिन सम्मान
अर्जित करेगा । उसके पास धन न होने
का कारण उसकी स्पष्टवादिता का होना तथा व्यवसाय की चालाकियों का न होना है। उसके चेहरे पर
मासूमयत तथा निराशा एक साथ दिखायी पड़ेगी।
4. पारिवारिक जीवन - माता-पिता का बहुत ही आज्ञाकारी होगा। वह माता-पिता तथा गुरु का
सम्मान करने वाला होगा । उसका विवाहित जीवन अच्छा नहीं होगा । वह या तो अपनी पत्नी को
तलाक देगा या उसके रहते दूसरा विवाह करेगा। यदि वह दूसरा विवाह नहीं भी करेगा तो उसकी
पत्नी
की स्वास्थ्य समस्याएं उसे मानसिक रूप से परेशान करती रहेगी । फिर भी उसकी पत्नी में अच्छी
गृहिणी के गुण होंगे। परिवार में अन्य लोगों से भी मनमुटाव चलता रहेगा। इन सभी कारणों से वह
मानसिक रूप से रूग्ण हो सकता है।
5. स्वास्थ्य-उसे कोई गम्भीर स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या नहीं होगी फिर भी वह छोटी-मोटी बिमारियों
से परेशान होगा। वह अधिक पानी पीने वाला होगा तथा उसका हाजमा अच्छा होगा

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक
1. शारीरिक गठन- रक्तिम नेत्र, घुंघराले बाल, मृदुभाषी तथा उन्नत नासिका वाली होगी ।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- प्रायः शान्त स्वभाव की होगी मगर उसकी विवादप्रिय तथा कटु
बोली के कारण उसका अपने पड़ोसियों तथा परिजनों से झगड़ा होता रहेगा। फिर भी वह दयालू
तथा दूसरों का मान करने वाली होगी। उसके दारू-दासियां होगें । सब मिलाकर वह आरामदायक
जीवन बितायेगी ।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन - वह संगीत प्रेमी तथा नृत्य पारंगत होगी ।
4. पारिवारिक जीवन-उसका पति बहुत ही मनोहर स्वरूप का होगा ।
पुर्नवसु नक्षत्र में उत्पन्न मादा जातक यदि 'हस्ता' नक्षत्र में उत्पन्न युवक से विवाह करे तो उसे अपने
पति से भरपुर सुख तथा अच्छी सन्तान प्राप्त होगी।
5. स्वास्थ्य-वह अच्छे स्वास्थ्य का सुख नहीं पा सकेगी। यह उसकी अपने स्वास्थ्य के प्रति
लापरवाही के कारण होगा। उसे पीलिया, क्षयरोग,निमोनिया, गलगण्ड तथा कान व पेट की
परेशानियां घेरे रहेंगी। यदि पुर्नवसु नक्षत्र के प्रभाव के समय पर मादा जातक में प्रथम ऋतुश्राव के
लक्षण प्रकट
हों तो वह धार्मिक स्वभाव की होगी । उसे अच्छा पति, धन तथा सन्तान प्राप्त होगी ।




8-पुष्य

जन्म नक्षत्र - पुष्य ( शनि )
चिह्न -एक फूल;एक वृत;एक तीर
अधिष्ठाता देवता -बृहस्पति
जाति - क्षत्रिय
पहचान/प्रतीक -तीर के आकार के 3 सितारें
आठवें राशिचक्र में 98.20 डिग्री से 106.40 डिग्री तक के विस्तार का
क्षेत्र पुष्य नक्षत्र अथवा 'पुष्यमि' नक्षत्र कहलाता है। अरब-मंजिल में इसे
" अन-नत्राः” अर्थात "शेर का नथुना”; ग्रीक इसे "केन्क्रि” तथा चीनी
मतानुसार यह “कुई" है। टोलोमी के अनुसार यह उन सितारों में से एक है।
जिनकी चमक पिछले दो या तीन हजार वर्षों में कम हो गई है। पुष्य तीर
कमान आकृति का तीन सितारों का समूह है। सूर्य सिद्धान्त के अनुसार
"पुष्य" का अर्थ पोषित करना अथवा उन्नति देना है। पुष्य को “तिष्य”
अर्थात मंगलकारी तथा 'सिध्य' अर्थात 'फलता फूलता' या 'हितकारी' के रूप
में भी जाना जाता
है ।
पुष्य नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता बृहस्पति है। फलित ज्योतिष में
वर्णित नौ ग्रहों में से एक ग्रह बृहस्पति है। यह देवताओं के भी
गुरु हैं।
बाल्मिकी रामायण के अनुसार भगवान श्री राम के अनुज भरत का
जन्म पुष्य नक्षत्र में ही हुआ था ।
(I) पुष्य नक्षत्र में उत्पन्न जातकों के सामान्य परिणाम
सामान्य मतानुसार पुष्य नक्षत्र में प्रथम भाग अर्थात पहला 3.20
डिग्री में जन्म जातक के स्वयं के लिए अनिष्टकर है। दूसरे भाग अर्थात
6.40 डिग्री तक में जन्म जातक उसकी माता के लिए अनिष्टकर है। तीसरे
भाग अर्थात 6.40 से 10.00 डिग्री में जन्म जातक उसके पिता के स्वास्थ्य व
धन सम्पति के लिए अहितकार है तथा इसके चौथे भाग अर्थात 10.00 से
13.20 डिग्री में जन्म जातक उसके मामा के लिए घातक है।
के
मेरे अनुभव
अनुसार यह देखा गया है कि जब पुष्य नक्षत्र में लग्न
भी पड़ता हो और इसके अतिरिक्त इस नक्षत्र के अलग-अलग अंशों में चन्द्रमा
की स्थिति, अथवा और स्पष्ट करने के लिए, जब लग्न तथा जन्म राशि दोनों
पुष्य नक्षत्र के एक ही भाग में पड़ें तभी उपरोक्त अनिष्टकर प्रभाव जातक पर
पड़ते हैं। यह भी देखा गया है कि दूसरे भाग में नर जातक का जन्म पिता के लिए तथा इसी भाग में मादा जातक का जन्म माता के लिए घातक होता है। तथा तीसरे भाग में नर जातक का जन्म पिता के लिए तथा
इसी भाग में जातक का जन्म माता के लिए मृत्यु का कारण होता है |
उपरोक्त परिणामों की भविष्यवाणी करते हुए यह ध्यान रखना
चाहिए कि दूसरी हितकारी परिस्थितियों या ग्रहों के अशुभ प्रभाव तथा तिथि इन परिणामों में फेर बदल कर सकती है। और स्पष्ट करने के लिए, जो अच्छी ग्रहीय स्थिति तथा दृष्टि, (जिनकी हम आगे विवेचना करेंगे)
में उत्पन्न हुए हैं
तथा उनके जन्म की शुभ तिथि तथा योग के परिणाम और ग्रहों का प्रभाव और उनके प्रभावित तिथि और योग यदि अच्छे न हों तो उपरोक्त परिणाम होंगे ।
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
1. अश्विनी चू, चे, चो, ला
2. भरणी ली, लु, ले, लो
3. कृतिका अ, ई, उ, ए
4. रोहिणी वो, वा, वी,वु
5. मृगशीर्ष वे, वो, का, की
6.आर्द्रा
7. पुनर्वसु के, को, हा,ही
8. पौष हू, हे, हो, डा
9. अश्लेष डी, डू, डे, डो
10. माध मा, मी, मू, मे
11. पूर्व-फाल्गुनी मो, टा, टी, टू
12. उत्तर- फाल्गुनी टे, टो, प, पी
13. हस्ता पु, ष, ण, रा
14. चित्रा पे, पो, रा, री
15. स्वाति रा, रे, रो, का
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
तामसिक गुण (निष्क्रिय) – इस समूह के व्यक्तियों में किसी भी बात को चाहे वो सही हो अथवा गलत विरोध करने की आदत होती है। जिसकारण परिवार में तथा समाज में उस व्यक्ति को टकराव का सामना करना पड़ता है। उसकी आन्तरिक शक्ति तो सकारात्मक विचार देती है, जबकि उसकी बाह्य शक्ति में नकारात्मक विचार होते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसे व्यक्ति मन से बुरे नहीं होते, लेकिन उनमें अर्न्तनिहित गुण शक्ति उन्हें तामसिक विचार प्रकट करने को बाध्य करती है। मनन या प्रार्थना के द्वारा इस अंसगति को कम किया जा सकता है। तामसिक गुणों वाली स्त्रियां 45 वर्ष की आयु में तथा पुरुष 40 वर्ष की आयु में अपने में असंगतिपूर्ण रिक्तता को विजित करने में सफल होते हैं ।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक
1. शारीरिक गठन - पुष्य नक्षत्र में जन्म जातकों के शारीरिक गठन का वर्णन या निरूपण करना
कठिन है क्योंकि इस नक्षत्र में जन्म लोगों की कोई एक स्पष्ट शारीरिक सरंचना नहीं होती। दूसरे
शब्दों में कहा जाय तो वह विभिन्न आकार प्रकार के व्यक्ति दृष्टिगत होते है । एक विरल पहचान चिन्ह
इन व्यक्तियों में पाया जाता है कि उनके चेहरे पर कोई तिल अथवा दाग-धब्बा नजर आयेगा ।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- वह कमजोर दिल अर्थात भीरू / डरपोक होगा। उसका किसी
विषय पर निर्णय लेना बहुत कठिन है। उसके विचारों में असंगति होने का मुख्य कारण उसका
“संशयत्मा विनाशति” अर्थात “संशय स्वभाव” है।
उसमें व्यवहार कौशल होगा लेकिन उसका यह व्यवहार केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए होगा।
इससे स्पष्ट होता है कि उसका बाह्य रूप केवल छिद्रान्वेषी है और उसकी अन्र्तात्मा के विरुद्ध है।
अर्थात भीतर से जो वह नहीं चाहता वह बाहर से उसे चाहने का प्रकट करता है । वह दूसरों का
आदर करना नहीं जानता जबकि उसमें आदर की इच्छा निहित है। वह प्रशंसा पर तुरंत प्रतिक्रिया
करता है, मगर आलोचना से फौरन मुरझा जाता है, स्वयं को ईमानदारी तथा सम्मान से स्नेह और
अनुराग देता है, फिर भी वह अपनी
दुर्बलताओं को जानकर गूढ़ आसक्ति को आकार देते झिझकता है।, जैसा कि पहले कहा गया है,
जीवन के हर क्षेत्र में अन्तर्हित
स्वतन्त्रता उसे बुरी संगति की और ले जायेगी। अतः उसे अपने मित्रों से सावधान रहना चाहिए। वह
अच्छे पहनावे का शौकीन होगा।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-वह किसी भी काम को, बिना विचार किये कि वह उसे कर
सकने में समर्थ है भी या नहीं, हाथ में ले लेता है, जिस कारण वह जो काम भी करता है उसमें असफल
रहता है। जबकि मैं कहता हूँ कि वह अच्छा पूर्वानुमानी नहीं है, वह कुछ कार्यों में बहुत अच्छा होता है
और मीठे बोल उसके लिए स्वाभाविक स्वभाव हैं। उसके लिए यह
अच्छा होगा कि वह किसी कार्य को करने से पहले अपनी योग्यता और सार्मथ्य का मूल्यांकन करें
जहां उसे सफलता मिल सकती है। यदि वह ऐसा करता है तो दुनिया की कोई ताकत उसे अपेक्षित
परिणाम पाने से नहीं रोक सकती। उसमें एक और विशेषता यह है कि वह अपनी हार से आसानी से
विचलित नहीं होता और विभिन्न बाधाओं में से अपना रास्ता निकाल ही लेता
यद्यपि उसे बुनियादी शिक्षा नही मिली है, फिर भी वह किसी विषय पर अपने असाधारण बुद्धिमता
तथा ज्ञान का परिचय देता है । उसमें एक गुण यह भी है कि वह कानून अथवा नीति विरोधी किसी भी
योजना अथवा विचार या कार्य का अपनी पूरी शक्ति से विरोध करता है। उसके विचार में सभी
अपराधी, चाहे वो उसके मित्र, परिजन या शत्रु क्यों न हों, अवश्य दण्डित होने चाहिए। उसे जो भी
कार्य सोंपा जायेगा वह पूरी ईमानदारी तथा विश्वास से पूरा करेगा। वह किसी भी कार्य को, जो उसे
सौंपा जाता है, ठीक प्रकार से निपटाने की भरसक चेष्टा करता है लेकिन उसके उछंखल्ल/ या
उद्धतापूर्ण
स्वभाव के कारण परिणाम नकारात्मक हो जाते हैं। उसकी योग्यताएं कई पहलू लिए हैं मगर उसकी
संभावित सफलताएं कला, थियेटर अथवा व्यवसाय में निहित हैं।
प्रायः देखा गया है कि पुष्य नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को 15-16 वर्ष की अवस्था तक घोर दरिद्रता का
सामना करना पड़ता है, तदोपरान्त 32 वर्ष की आयु तक उसका समय उतार-चढ़ाव पूर्ण होगा जिसमें
उतार अधिक व चढ़ाव कम होंगे। 33 वर्ष की अवस्था के बाद उनके जीवन में, पुष्य नक्षत्र के प्रथम
भाग अर्थात 0.00 डिग्री से 3.20 डिग्री (राशिचक्र के 93.20 डिग्री से 96.40 डिग्री तक) में जन्म
जातकों के मृत्यु से बचाव को छोड़कर, हर क्षेत्र, यथा आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य सम्बन्धी में अद्भुत
सुधार होगा ।
प्रायः देखा गया है कि पुष्य नक्षत्र में उत्पन्न जातक आजीविका के लिए अपने जन्म स्थान तथा परिवार
से दूर रहेंगे। वह प्रायः वही कार्य करेंगे जिसमें यात्रा की अधिक संभावना होती है ।
4. पारिवारिक जीवन - उसके परिवार में बहुत सी समस्याएं होती है। उसे अपनी दैनिक जरूरतों के
लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ेगा। जहां बचपन में वह दूसरों पर निर्भर होगा बड़े होने पर
आत्मनिर्भर हो जायेगा । वह अपनी पत्नी और बच्चो के साथ रहना चाहेगा मगर परिस्थितियां उसे
उनसे दूर रखेगी। वह अपनी पत्नी से प्रतीक्षा करेगा कि वह पूर्ण रूप से
आत्मनिर्भर हो और प्रशंसनीय योग्यता भी हो। यदि उनका विवाह बिना जन्मकुण्डली अथवा गण
मिलाये किया गया तो वह अपनी विवेक बुद्धि को भूल कर तथा अपनी त्रुटियों को न जान कर अपनी
पत्नी पर शक करेगा। वह अपने माता-पिता में आसक्त रहेगा ।
5. स्वास्थ्य - अपने बचपन में अर्थात 15 वर्ष की आयु तक उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा। उसे
पित्तअश्मरी, गैस्ट्रीक अल्सर, पीलिया, खांसी,एग्जीमा तथा कैंसर जैसे रोग होने का संकेत है।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक
1. शारीरिक गठन - वह छोटे कद, सामान्य स्वरूप, संतुलित चेहरे व शरीर की मनोरम स्त्री होगी ।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- उसे शान्त वातावरण का सुख नहीं मिलेगा। उसका स्वभाव
सौहार्दपूर्ण तथा शान्तमय होगा । वह बुजुर्गों के प्रति समर्पित मगर दूसरों द्वारा उत्पीड़ित होगी। वह
ईमानदार व स्नेही लेकिन मनमौजी स्वभाव की होगी। वह धार्मिक प्रवृति की, बड़ों का आदर करने
वाली
तथा रूढ़ीवादी होगी। वह योजनानुसार तथा व्यवस्थित ढंग से कार्य करेगी ।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-उसे भूमि तथा भवनों से आमदनी होगी। वह ऐसे पदों पर काम
करेगी जहां पूर्ण विश्वास की आवश्यकता होती है अर्थात निजी सचिव अथवा देश के गोपनीय
विभाग आदि। कृषि से भी
आय होगी।
4. पारिवारिक जीवन-वह पतिव्रता होगी, फिर भी उसका पति उसके आचरण पर सन्देह करेगा ।
यदि वह अपना स्वाभाविक संकोच त्याग कर अपने पति पर कुछ प्रतिबन्ध या नियन्त्रण करे तथा
उसका दूसरों से व्यवहार संतुलित हो तो; वह इस स्थिति से बच सकती है। इसके जीवन में हलचल
होने का मुख्य कारण उसके इस व्यवहार पर निर्भर है कि वह अन्दर से क्या सोचती है तथा बाहर
क्या प्रकट करती है। वह कहना तो कुछ चाहती है, मगर अपनी संकोची प्रवृति के कारण वह कह
नहीं पाती और उसे गलत समझा जाता है और लोगों के मन में उसके प्रति नकारात्मक विचार बन
जाते.
हैं। उसके कर्तव्य निष्ट सन्तान होगी ।
5. स्वास्थ्य - उसे श्वास की समस्या होगी । उसे क्षय रोग, अल्सर स्तन कैंसर, पीलिया, एग्जीमा,
छाती में चोट, गैसटीक अल्सर जैसे रोग होने का संकेत है। प्रथम रजश्राव पुष्य नक्षत्र में प्रकट हों तो
उसे अच्छी सन्तान, सभी प्रकार के सुख तथा पति से भरपूर प्यार मिलेगा।
II पुष्य नक्षत्र में ग्रहों की स्थिति से उत्पन्न सामान्य परिणाम




9- आश्लेषा

जन्म नक्षत्र - आश्लेषा ( बुद्ध )
चिह्न -सर्प
अधिष्ठाता देवता -नागदेवता
जाति - शूद्र
पहचान/प्रतीक -6 सितारों का समूह जो सर्प के आकार में बना है।
नौंवे राशिचक्र में 106.40 डिग्री से 120.00 डिग्री तक का विस्तार अश्लेष नक्षत्र है। अरब मंजिल के अनुसार यह “अत्-टर्फ” अर्थात "शेर की दृष्टि"; ग्रीक इसे "हिदरे” तथा चीनी मत में यह "ल्यो” है। अश्लेष का
अर्थ है "आलिंगन करना”। इस समूह में सितारों की संख्या के बारे में मतभेद हैं।
के अनुसार इसमें छः सितारें है। जबकि अन्य धारणाएं केवल पांच सितारों का होना बताती हैं। खण्ड कातक इसे 'चक्र (पहिंया) आकार रूप में मानता है जबकि अन्य धारणाएंइ से 'सर्पाकार' मानती हैं।
अश्लेष नक्षत्र का अघिष्ठाता देवता 'सर्प' है । बाल्मिकी रामायण के अनुसार भगवान श्री राम के जुड़वा भाई लक्ष्मण और शत्रुघ्न अश्लेष नक्षत्र में उत्पन्न हुए थे ।
(1) अश्लेष नक्षत्र में उत्पन्न जातकों के सामान्य परिणाम
कहा जाता है कि अश्लेष नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्तियों की दृष्टि सर्प जैसी होती है जो दूसरों को किसी अनजान शक्ति के रूप में छेदती हुई प्रतीत होती है। इस प्रकार की कुदृष्टि से बचने के लिए, प्राचीन प्रथानुसार
लोग अपने घरों के इर्द-गिर्द बांस उगाते थे। शायद बाँस में इस प्रकार की दृष्टि और आवाज को पकड़ने की चुम्बकीय शक्ति होती है। इस नक्षत्र के दूसरे भाग में उत्पन्न जातकों को धन की हानि होगी ।
तीसरे भाग में उत्पन्न जातक माता के जीवन के लिए संकट तथा चौथे भाग में उत्पन्न जातक पिता के लिए घातक होते हैं। प्रथम भाग में उत्पन्न जातक से किसी को कोई खतरा नहीं होता । यह भी देखा गया है कि
चौथे भाग में जन्म जातक का माता, पिता तथा फिर जातक की मृत्यु का सूचक है। अर्थात
आठ वर्ष के अन्तराल में पहले माता की मृत्यु, फिर पिता की मृत्यु तथा अन्त में जातक की भी मृत्यु
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
1. अश्विनी चू, चे, चो, ला
2. भरणी ली, लु, ले, लो
3. कृतिका अ, ई, उ, ए
4. रोहिणी वो, वा, वी,वु
5. मृगशीर्ष वे, वो, का, की
6.आर्द्रा
7. पुनर्वसु के, को, हा,ही
8. पौष हू, हे, हो, डा
9. अश्लेष डी, डू, डे, डो
10. माध मा, मी, मू, मे
11. पूर्व-फाल्गुनी मो, टा, टी, टू
12. उत्तर- फाल्गुनी टे, टो, प, पी
13. हस्ता पु, ष, ण, रा
14. चित्रा पे, पो, रा, री
15. स्वाति रा, रे, रो, का
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
सात्व गुण (सत्य) – सात्व गुण के लोग साफ दिल वाले होंगें, वे क्रमबद्ध तथा मेहनती होते हैं। उनके प्रत्येक पग में एक विलक्षण ताल अथवा प्रभाव होता है। वे फल की चिन्ता किये बिना कर्म किये जाते हैं। जिस काम को करने की वे सोच लेते हैं उनको वे पूरा करते हैं। उनकी वाह्य अभिव्यक्ति कुछ अशिष्ठ होती है। वे चित्रकला, दस्तकारी, खेलों में असाधारण सफलता प्राप्त करते हैं ।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक
1. शारीरिक गठन - अश्लेष नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्ति रूखे स्वभाव के होते हैं । वे स्थूल शरीर तथा
रूक्ष आभास वाले दिखायी देते हैं मगर भीतर से रिक्त होते है ।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- वह किसी के भी प्रति, यहां तक कि जीवन देने वालों के प्रति भी
आभारी नहीं होता। बाहर से वह दिखाता है कि वह बहुत ही निष्कपट है और दूसरों के दुखों को
बांटने वाला है। लेकिन वास्तव में वह ऐसा नहीं है। वह बहुत बातूनी होता है। उसमें एक गुण यह भी
होता है कि वह अपने पाखण्डपूर्ण शब्द जाल से लोगों को वश में कर लेता
है तथा वह अपने इस गुण के कारण विभिन्न संस्थाओं को नेतृत्व देने में सक्षम होता है। उसमें नेतागिरी
तथा शिखर पर पहुंचने का जन्मजात गुण होने के कारण, वह राजनीतिक क्षेत्र में बहुत सफल हो
सकता है। उपरोक्त विशेषताओं के आधार पर, चाहे उसका चरित्र विपरीत पक्ष प्रस्तुत करता हो, मगर
वह बहुत बुद्धिमान व्यक्ति होता है जो देश को उपयुक्त नेतृत्व दे सकता है। यह भी देखा गया है कि
अश्लेष नक्षत्र में उत्पन्न कुछ व्यक्ति डरपोक, छद्रहृदय तथा कोमल बोलने वाले होते है । वे अपने
आप में अक्खड़ नहीं होते,बल्कि उनके दुनिया पर अपने विलक्षण भाव प्रकट करने के कारण उनके
प्रति अक्खड़ बन जाते है ।
इस नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्ति दूसरों पर आँख मूंद कर विश्वास नहीं करता। फिर भी देखा गया है कि वह
कालाबाजारियों, चोरों तथा कातिलों को प्रायः सहयोग देता है। वह गरीब और अमीर, अच्छे और बुरे
व्यक्ति में कोई भेद नहीं करता। वह किसी भी वर्ग द्वारा अपनी स्वतन्त्रता का विरोध पसन्द
नहीं करता और जो व्यक्ति उसके नेतृत्व को मानते हुए उसकी आज्ञा पालन को, चाहे वे नकारात्मक
या सकारात्मक पक्ष में क्यों न हों, तत्पर रहते हैं, वह उनको पसन्द करता है तथा उसके लिए कुछ भी
कुर्बान करने को तैयार रहता
है । वह न तो दूसरों को धोखा देना चाहता है और न ही उनकी सम्पति हड़पना चाहता है। लेकिन
देखा गया है कि फिर भी लोग उसे गलत समझते हैं अश्लेष नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्तियों में एक दोष यह
पाया जाता है कि वह जरूरतमन्द की सहायता न करके उनकी सहायता करता है, जिनको इसकी
आवश्यकता नहीं होती। तथा वास्तविक जरूरतमन्दों की याचना ठुकरा देता है। फिर भी यदि वह
किसी जरूरतमन्द की सहायता कर भी देता है तो
उस सहायता का प्रचार करता फिरता है। दूसरे शब्दों में उसका यह आचरण चापलूसी के समकक्ष
है।
अश्लेष नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्तियों में, चाहे यह उनका गुण हो या दोष, मगर देखा गया है कि वे अति
भाग्यशाली, लोकप्रिय, क्रोधी स्वभाव के व्यक्ति होते हैं। यदि इसके पास रहकर ध्यान से देखें तो
पायेंगे कि वह जहां पर क्रोध की आवश्यकता न हो वहां तो क्रोध करता है और जहां क्रोध करना
चाहिए वहां वह चुप लगा जाता है। एक तरफ तो हम कहत हैं कि अश्लेष
में उत्पन्न व्यक्ति अति भाग्यशील होते हैं, मगर उस भाग्यशीलता का फल वे भोग नहीं पाते । प्रायः
उसके मित्र और परिजन समय पड़ने पर धोखा ढे जाते हैं और वहीं कुछ अजनबी व्यक्ति उसकी
सहायता पर आ जाते हैं।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-वह कला अथवा वाणिज्य के क्षेत्र में शिक्षित होगा। यदि शनि की
दृष्टि हो तो जातक सेना या पुलिस विभाग में नौकरी करेगा अथवा यदि व्यवसाय में हो तो तेल और
अन्य द्रव्य पदार्थों का व्यवसाय करेगा। व्यवसायिक क्षेत्र में जातक तेजी से उन्नती करेगा फिर
अचानक अघात लगेगा। 35-36 वर्ष की अवस्था में भारी घाटा लगेगा तथा 40 वर्ष की आयु में उसे
अप्रत्याशित रूप से अनार्जित धन मिलेगा।
4. पारिवारिक जीवन - जातक के परिवार में सबसे बड़ा होने के कारण परिवार की सारी जिम्मेदारी
उस पर होगी । पत्नी उसे समझ नहीं पायेगी तथा अपना धन ससुराल में किसी को देना चाहेगी।
5. स्वास्थ्य-उसे उदर-स्फीति, पीलिया, टांगों और घुटनों में दर्द, पेट की समस्याएं इत्यादि होगी। वह
नशे का आदि होगा ।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक
अश्लेष नक्षत्र में उत्पन्न स्त्री जातकों में पुरुष जातकों वाले प्रायः सभी विशेषताए व परिणाम होंगे।
इसके अतिरिक्त विशेषताएं इस प्रकार होगी
1. शारीरिक गठन- इस नक्षत्र में उत्पन्न स्त्रियां सुन्दर नहीं होगी फिर भी यदि इस नक्षत्र में मंगल
का साथ हो तो वे सुन्दर कद-काठी की हो सकती है।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना - वह आत्मनियांत्रित होगी मगर लापरवाह रवैया अपनाये होगी।
अश्लेष नक्षत्र में उत्पन्न स्त्रियों में महिलोचित शर्म अधिक मात्रा में होती है। उसका चरित्र ऊंचे दर्जे
का होता है। उसे अपने परिजनों से आदर व सम्मान मिलता है। उसमें शत्रुओं को अपने शब्द जाल
में लपेट कर वश में करने की क्षमता है ।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन - वह अपने घर से बाहर के कार्यों में कुशल होगी। यदि वह
शिक्षित होगी तो प्रशासनिक क्षमता में नियुक्त होगी और अशिक्षित होने पर वह कृषि कार्य तथा
मछली बेचने के काम में सलंग्न होगी ।
4. पारिवारिक जीवन - वह गृह प्रबन्ध में कुशल होगी। उसे अपनी ससुराल वालो से व्यवहार करते
हुए सावधान रहना चाहिए क्योंकि ऐसी संभावना है कि वे उसके पति से सम्बन्ध बिगड़वाने के लिए
कुछ भी कर सकते हैं।
5. स्वास्थ्य - वह जोड़ों में दर्द, हिस्टीरिया, जलोदर, पीलिया तथा अपच जैसी व्याधाओं से ग्रस्त
रहेगी । उसे प्रायः मानसिक आघात लगते रहेंगे।
जब अश्लेष नक्षत्र प्रभाव में हो उस समय जातक में प्रथम ऋतुश्राव के लक्षण यदि प्रकट हो तो वह
दूसरे पुरुषों में आस्था रखने वाली, क्रूर हृदय तथा धोखेबाज होगी उसे अच्छी सन्तान नहीं होगी ।
II अश्लेष नक्षत्र में विभिन्न ग्रहों की स्थिति से उत्पन्न परिणाम




10-मघा

जन्म नक्षत्र - मघा ( केतू )
चिह्न -पालकी
अधिष्ठाता देवता - पितृगण
जाति - शूद्र
पहचान/प्रतीक -पालकी के आकार में 6 सितारों का समूह
दसवें राशिचक्र के विस्तार में 120.00 डिग्री से 133.20 डिग्री तक का क्षेत्र माघ नक्षत्र कहलाता है। अरब मंजिल में यह "अज्-ज्वाह" (शेर का माथा); ग्रीक इसे 'रेगुलास' या 'ल्योनिस' तथा चीनी मतानुसार यह
'सिंग' कहलाता है। अश्लेष नक्षत्र की भांति यहां भी माघ नक्षत्र के सितारों की
संख्या के बारे में मतभेद है। खण्ड कातक छः सितारों का बताता है जबकि अन्य धारणाएं इसके पांच सितारे होना बताती है। यह मतभेद 6 सितारों के समूह में दो सितारों की कम रोशनी के कारण उठा है। माघ
नक्षत्र पांच सितारों
का छडी (झन्डा) के आकार में, सीधी कतार में समूह है। जबकि 6 सितारों वाली धारणा के अनुसार इसका आकार मकान (पालकी) के जैसा होता है। माघ को तात्पर्य “शक्तिशाली” है। माघ नक्षत्र का अधिष्ठाता
देवता 'पितर' अर्थात पिता अथवा मृतक आत्माएं हैं।
(I) माघ नक्षत्र में उत्पन्न जातकों के सामान्य परिणाम
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
1. अश्विनी चू, चे, चो, ला
2. भरणी ली, लु, ले, लो
3. कृतिका अ, ई, उ, ए
4. रोहिणी वो, वा, वी,वु
5. मृगशीर्ष वे, वो, का, की
6.आर्द्रा
7. पुनर्वसु के, को, हा,ही
8. पौष हू, हे, हो, डा
9. अश्लेष डी, डू, डे, डो
10. माध मा, मी, मू, मे
11. पूर्व-फाल्गुनी मो, टा, टी, टू
12. उत्तर- फाल्गुनी टे, टो, प, पी
13. हस्ता पु, ष, ण, रा
14. चित्रा पे, पो, रा, री
15. स्वाति रा, रे, रो, का
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
तामसिक गुण (निष्क्रिय) – इस समूह के व्यक्तियों में किसी भी बात को चाहे वो सही हो अथवा गलत विरोध करने की आदत होती है। जिसकारण परिवार में तथा समाज में उस व्यक्ति को टकराव का सामना करना पड़ता है। उसकी आन्तरिक शक्ति तो सकारात्मक विचार देती है, जबकि उसकी बाह्य शक्ति में नकारात्मक विचार होते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसे व्यक्ति मन से बुरे नहीं होते, लेकिन उनमें अर्न्तनिहित गुण शक्ति उन्हें तामसिक विचार प्रकट करने को बाध्य करती है। मनन या प्रार्थना के द्वारा इस अंसगति को कम किया जा सकता है। तामसिक गुणों वाली स्त्रियां 45 वर्ष की आयु में तथा पुरुष 40 वर्ष की आयु में अपने में असंगतिपूर्ण रिक्तता को विजित करने में सफल होते हैं ।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक
1. शारीरिक गठन - उसकी सुप्रकट गर्दन तथा बालदार शरीर होता है।उसके हाथों में तथा कन्धों के
नीचे तिल होते हैं। मध्यमकद तथा मासूमयत लिए हुए मुखाकृति के होते हैं।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना - जातक बहुत उद्यमशील, बुजुर्गों का सम्मान करने वाला, धार्मिक
तथा जीवन के आनन्द लेने वाला होगा। वह विभिन्न विद्याओं में पारंगत तथा मृदुभाषी, शान्त जीवन का
इच्छुक, विद्वानों से मान-प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाला होता है। उसे विभिन्न कलाओं का अच्छा
ज्ञान होता है। वह अपना बहुमूल्य समय सांस्कृतिक विकास में लगायेगा तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में
सक्रिय भाग लेगा ।
वह अच्छी तरह से विचार करके नियोजित ढंग से दूसरों से व्यवहार करता है, और किसी की भी
भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाता। यदि उसके
कृत्य से दूसरों की भावनाओं को आघात पहुंचता है तो वह फौरन उस कार्य
मैं सुधार कर लेता है। वह उन लोगों को भी पसन्द नही करता जो दूसरों के
कामों में रूकावट डाल कर उन्हें परेशान करते हैं। इसी कारण जातक के जीवन
में कई छिपे शत्रु होते हैं। वह क्रोधी स्वभाव का होता है। वह सत्य से परे
किसी भी कार्य या व्यवहार को सहन नहीं कर सकता। उसके यही विचार उसे
असफलता की और अग्रसर करते है । स्वार्थपरता उससे कोसों दूर रहती है।
वह समाज या समुदाय के लिए विभिन्न कार्य अपनी मानसिक तुष्टि के लिए
करता है न कि बदले में कुछ पाने की इच्छा के वशीभूत। यही कारण है कि
जातक जनता की आंख का तारा बन जाता है ।
3. शिक्षा, रोजगार/ आय के साधन- उसके पास धन सम्पति तथा
सेवक होंगे। अपनी स्पष्टवादिता तथा व्यापारी बुद्धि नहीं रखने के कारण से
वह व्यवसायिक क्षेत्र में भौतिक सफलता प्राप्त नही कर पाता है। फिर भी वह
ईमानदारी तथा परिश्रम का सही उदाहरण प्रस्तुत करता है। उसकी यह
ईमानदारी तथा परिश्रम उसे कभी-कभी फल देती है मगर उतना नहीं जितना
कि उसे मिलना चाहिए । प्रायः वह अपने व्यवसाय के कार्य क्षेत्र बदलने पर
बाध्य हो जाता है। कभी वह नौकरी करता है तो कभी व्यापार करने लग
जाता है। जब वह कोई निर्णय कर लेता है तो उस पर अडिग रहता है। अपने
से वरिष्ठ तथा मातहत दोनों प्रकार के व्यक्तियों के साथ उसके सम्बन्ध
हार्दिक मगर यांत्रिक ढंग से होते हैं । अतः वह वरिष्ठों तथा मातहतों के बीच
एक कड़ी बनने के योग्य होता है।
4. पारिवारिक जीवन - माघ नक्षत्र में उत्पन्न जातक प्रायः खुशहाल
तथा सामन्जस्यपूर्ण विवाहित जीवन का आनन्द लेते हैं। यदि इस नक्षत्र में
शनि स्थित हो और इस पर मंगल की दृष्टि हो तो उपरोक्त परिणाम अपवाद
भी हो सकते हैं। यदि इस नक्षत्र में स्थित चन्द्रमा पर सूर्य की दृष्टि न हो
तो जातक अच्छी सन्तान पाने का भाग्यशाली होता है। उसे विभिन्न
जिम्मेदारियों को, विशेषकर अपने जुड़वां की सभी जिम्मेदारियाँ उठानी होगी।
स्वास्थ्य-उसे
5. स्वास्थ्य - उसे रतौंधी रोग हो सकता है। यदि इस नक्षत्र में शनि
और मंगल की सयुंक्त दृष्टि चन्द्रमा पर हो तो कैन्सर रोग अथवा इनके
सयुंक्त हो जाने पर अस्थमा अथवा मिरगी का संकेत है।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक
1. शारीरिक गठन-अति सुन्दर तथा आकर्षक नैन नक्श । यदि इस नक्षत्र में चन्द्रमा पर शनि की
दृष्टि हो तो उसके लम्बे गच्छेदार बाल होंगे।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- जहां वह लड़ने की शौकीन तथा क्रोधी स्वभाव की होगी, वहां वह
दानशील तथा धार्मिक प्रवृत्ति की होगी। वह शाही सुख प्राप्त करेगी। वह ग्रह कार्य तथा बाहर के
कार्य (दफ्तर-व्यवसाय आदि) दोनों में सक्षम हो सकेगी। उसका धर्म की ओर विशेष झुकाव होगा।
जब भी कोई विपत्ति में होगा उसकी स्वार्थरहित सहायता करेगी।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-यदि इस नक्षत्र में बृहस्पति भी स्थित हो तो वह उच्चतम स्थिति
पर नियुक्त होगी अथवा वह रानी की मान मर्यादा से रहेगी अर्थात उसका विवाह अति धनवान
व्यक्ति से होगा।
4. पारिवारिक जीवन - इस नक्षत्र में उत्पन्न मादा जातकों में एक दोष यह होगा कि वह परिवार में
झगड़े उत्पन्न करेंगी। अपने पति और ससुराल के अन्य लोगों में मनमुटाव करायेगी जिस कारण
परिवार में हर व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान रहेगा। अच्छे परिवारिक जीवन के लिए उसकी इस
मानसिकता को रोका जाना चाहिए। उसके अच्छी सन्तान होगी पहला पुत्र तथा उसके बाद दो
पुत्रियां ।
5. स्वास्थ्य–यदि मंगल संयुक्त हो तो बालरिष्ट होने का संकेत है।उसकी आंखे प्रभावित होगी । रक्त
की खराबी, गर्भाशय की परेशानी तथा हिस्टीरिया । यदि इस नक्षत्र में शनि पर मंगल की दृष्टि हो तो
पीलिया होने का संकेत है। इस नक्षत्र के प्रभाव के समय यदि उसमें प्रथम ऋतुश्राव के लक्षण प्रकट
हो तो वह सम्मानित, व उदार होगी तथा उसे पैतृक सम्पति की
प्राप्ति होगी।
II माघ नक्षत्र में विभिन्न ग्रहों की स्थिति से उत्पन्न परिणाम




11- पूर्व फाल्गुनी

जन्म नक्षत्र - पूर्व फाल्गुनी ( शुक्र )
चिह्न - पलंग/ हवन कुण्ड
अधिष्ठाता देवता - भग
जाति - ब्राह्मण
पहचान/प्रतीक -वर्ग के प्रत्येक तरफ दो-दो सितारे अर्थात पलंग के पायों के आकार में वर्ग के कोनों में चार सितारे ।
ग्यारहवें राशिचक्र में 133.20 डिग्री से 146.40 डिग्री तक का विस्तार क्षेत्र पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र है। अरब मंजिल में यह “अज-जुबराहू" अर्थात शेर की अयाल; ग्रीक इसे “ल्योनिस” तथा चीनी मतानुसार इसे “चांग”
कहते हैं । पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र के प्रतीक दो सितारे, एक वर्ग के दो किनारों पर स्थित होने के समान, अथवा पलंग के दो पाये प्रतीत होते हैं।
पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता "भग" है जो सूर्य की माता अदिति के बारह पुत्रों में से एक है।
1. पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र में उत्पन्न जातकों के सामान्य परिणाम
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
1. अश्विनी चू, चे, चो, ला
2. भरणी ली, लु, ले, लो
3. कृतिका अ, ई, उ, ए
4. रोहिणी वो, वा, वी,वु
5. मृगशीर्ष वे, वो, का, की
6.आर्द्रा
7. पुनर्वसु के, को, हा,ही
8. पौष हू, हे, हो, डा
9. अश्लेष डी, डू, डे, डो
10. माध मा, मी, मू, मे
11. पूर्व-फाल्गुनी मो, टा, टी, टू
12. उत्तर- फाल्गुनी टे, टो, प, पी
13. हस्ता पु, ष, ण, रा
14. चित्रा पे, पो, रा, री
15. स्वाति रा, रे, रो, का
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
राजसिक गुण ( अशान्त) – राजसिक गुणों के लोग अशान्त जीवन जीते हैं। वे एक ही समय में बहुत से काम करना चाहते हैं, लेकिन ऐसे लोग व्यस्त दिखने का ढोंग करते हैं मगर करते कुछ नहीं। धन और सम्पत्तिी प्राप्त करना उनका प्रबल लक्ष्य होता है। उनकी आन्तरिक और बाहूय शक्तियां नकारात्मक होती हैं। वे स्वार्थी होते हैं। वे इस कहावत पर पूरे उतरते हैं- “जब एक स्त्री को पता चला कि प्रलय आने वाली है, तो उसने भगवान से प्रार्थना की हे भगवान मुझे और मेरे सुनार को प्रलय से बचा लो।” राजासिक गुणा के लोग इसी प्रवृति के होते हैं।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक
1. शारीरिक गठन - आर्कषक व्यक्तित्व, स्थूल शरीर तथा मिश्रित रंग का होता है। उसे प्रायः अधिक
पसीना आता है। उसकी चपटी नाक होती है।
2. स्वभाव तथा सामान्य घटना - वह पूर्ण स्वतन्त्रता चाहता है। देखा गया है कि जातक किसी एक
क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त करता है फिर भी वह किसी न किसी कारण से उखड़ा उखड़ा रहता है। उसमें
दूसरों की परेशानियां ज्ञात करने की जन्मजात सहानुभूति होती है। अतः दूसरों द्वारा सहायता की
याचना करने से पहले ही वह उनकी मदद को आ जाता है। वह मृदुभाषी तथा
यात्राओं का शौकीन होता है।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-वह किसी के बन्धन में नहीं रहता । अपनी इस विशेषता के
कारण वह ऐसे कार्य अथवा पद ग्रहण नहीं करता जिनमें उसे दूसरों के समक्ष अधीनता में होना पड़े।
उसमें एक कमी यह भी है कि वह नौकरी में होने पर भी अपने अधिकारी की चापलूसी नहीं
करता। इसी कारण उसे अपने वरिष्ठ अधिकारियों की कृपादृष्टि तथा अन्य लाभों से वंचित होना पड़ता
है।
वह प्रत्येक कार्य में, जो वह करता है, ईमानदार होता है। न तो वह अवैध कार्य करने वालों का साथ
देता है और न ही वह ऐसे कार्यों को सहन करता है। उसकी यह मानसिक स्थिति उसे विभिन्न
जटिलताओं में खींच लेती है तथा वह भी इनका सामना करने को तैयार रहता है। वह दूसरों के सहारे
कोई लाभ लेना नहीं चाहता। उसके कई परोक्ष शत्रु होते है, जो उसकी प्रगति
में बाधा डालते हैं। फिर भी वह ऐसे शत्रुओं का मर्दन करने में सक्षम हो जाता है, और अपने हर कार्य
में सफलता प्राप्त करता है। जातक शक्ति व्यवसायी होता है अर्थात वह पद, गरिमा और शक्ति को
पैसे के आगे तरजीह देता है।
वह उन्नति के सही मार्ग का अवलोकन करता है तथा उसमें अपना कीमती समय लगाता है। जातक
योग्य और बुद्धिमान होता है मगर फिर भी जिस स्तर पर वह पहुंचना चाहता है नहीं जा पाता। इसका
यह अर्थ भी नहीं है कि वह जीवन में उन्नति नहीं करेगा।
रोजगार के क्षेत्र में वह प्रायः अपने कार्य बदलता रहेगा। अपनी आयु के 22, 27, 30, 32, 35, 37
और 44वें वर्ष में ये परिवर्तन हो सकते हैं। वह वांछित पद या स्थिति पर अपने 45 वर्ष की आयु के
बाद पहुंचेगा। जबकि वह दूसरों का धन नहीं चाहता पिफर भी वह उनके कारण प्रायः वित्तीय संकटों
में फंसा रहेगा। दूसरे शब्दों में उधार लेने वाले उसका पैसा वापस नहीं करेंगे।
उपरोक्त नकारात्मक स्थितियों के बावजूद 45 वर्ष की आयु के बाद वह ऐसी दृढ़ स्थिति में होगा
जिसमें शान्ति तथा अधिकार निहित होंगे। व्यवसाय के क्षेत्र में वह और अधिक दीर्घामान हो सकता है
1
4. परिवारिक जीवन-उसका विवाहित जीवन सुखी होगा। उसकी नेक पत्नी तथा सन्तान होगी जिनसे
उसे भरपूर सुख मिलेगा। कुछ मामलों में यह भी देखा गया है कि जातक अपनी पसन्द की लड़की से
विवाह नहीं करता तथा कुछ अन्य मामलों में यदि ठीक 180 डिग्री स्थिति से शनि मंगल पर
आक्रान्त हो तो उसकी पत्नी की मृत्यु अथवा तलाक होने का योग है। वह अपने परिवार तथा जन्मस्थान
से दूर रहकर जीवन व्यतीत करेगा।
5. स्वास्थ्य - उसका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। फिर भी उसे दांत के रोग, पेट की समस्याएं तथा मधुमेह हो
सकते हैं। उसे कोई स्थायी रोग नहीं होगा ।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक-
इस नक्षत्र में उत्पन्न स्त्री जातकों के विषय में ऋषि-मुनियों ने नकारात्मक विचार प्रकट किये हैं।
लेकिन मेरे तथा प्यार करने वाले पति तथा सन्तान के मामलें में भाग्यशाली होगी।
1. शारीरिक गठन-मध्यम कद, गोल चेहरा, लम्बी नाक तथा दुहरी ठोड़ी की होती है। सब
मिलाकर आर्कषक व्यक्तित्व होगा।
2. स्वभाव और सामान्य घटना-वह शिष्ट, अनुकूल स्वभाव की तथा नेक होगी और उसे कलाओं
का ज्ञान होगा। वह दानपुण्य करने वाली प्रसन्नचित तथा धार्मिक अनुष्ठान करने वाली होगी।
उपरोक्त विशेषताओं के होने के बावजूद उसमें एक विशेषता यह होगी कि वह स्वयं को सबसे श्रेष्ठ
समझेगी तथा बहुत ही ज्यादा दिखावेबाज होगी। उसे सफलता प्राप्त करने के लिए ऐसी मनोवृति को
बदलना चाहिए।
3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-वह वैज्ञानिक विषयों में ज्ञान प्राप्त करने की इच्छुक होगी।
अच्छी शिक्षा उपाधि प्राप्त करेगी। वह लेक्चरार हो सकती है। उसके पास संतुलित मात्रा में धन होगा
।
4. पारिवारिक जीवन-उसका पति प्यार करने वाला तथा बच्चे नेक होंगे। वह स्वयं भी कर्तव्यनिष्ठ
पत्नी होगी। वह अपने परिवार के लिए सबकुछ न्योछावर करने को तत्पर होगी और जरूरत के
समय अपनी मदद करने वाले को हमेशा याद रखती है। फिर भी उसे हठी और दुस्साहसी कहा
जायेगा। उसके अनुसार परिवार में एक वही बुद्धिमान है शेष सभी को वह बेवकूफ या मूर्ख समझती
हैं। उसकी यह मनोवृति परिवार में झगड़े खड़े कर देगी। उसके अपने पड़ोसियों से भी अच्छे
सम्बन्ध नहीं होंगे। यह सब उसका अपने पति की स्थिति तथा धनी होने के घमण्ड के कारण होगा
5. स्वास्थ्य - वह प्रायः ऋतुचक्र की परेशानियों, अस्थमा, पीलिया या श्वास की समस्याओं से ग्रस्त
होगी। यदि पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र के प्रभाव के समय जातक में प्रथम ऋतुश्राव के लक्षण प्रकट हों तो
वह दुखी, दूसरे लोगों
की संगति में सोने वाली, क्रूर तथा प्रतिशोधी स्वभाव की होगी।




12- उत्तर फाल्गुनी

जन्म नक्षत्र - उत्तर फाल्गुनी ( सूर्य )
चिह्न -छोटी पलंग
अधिष्ठाता देवता - आर्यमान
जाति - क्षत्रिय
पहचान/प्रतीक -यथा
बारहवें राशिचक्र में 146.40 डिग्री से 160.00 डिग्री तक का विस्तार क्षेत्र उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र हैं। अरब मंजिल में इसे 'अश-सरफाह' (मोड़); ग्रीक इसे ‘लायनिस' तथा चीनी मतानुसार यह 'वाई' है। पुर्वफाल्गुनी की भांति उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में भी पलंग के पायों के आकार के प्रतीक दो सितारे है। उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता "आर्यमान" है जो सूर्य की माता अदिति के बारह पुत्रों में से एक है।
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
1. अश्विनी चू, चे, चो, ला
2. भरणी ली, लु, ले, लो
3. कृतिका अ, ई, उ, ए
4. रोहिणी वो, वा, वी,वु
5. मृगशीर्ष वे, वो, का, की
6.आर्द्रा
7. पुनर्वसु के, को, हा,ही
8. पौष हू, हे, हो, डा
9. अश्लेष डी, डू, डे, डो
10. माध मा, मी, मू, मे
11. पूर्व-फाल्गुनी मो, टा, टी, टू
12. उत्तर- फाल्गुनी टे, टो, प, पी
13. हस्ता पु, ष, ण, रा
14. चित्रा पे, पो, रा, री
15. स्वाति रा, रे, रो, का
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
राजसिक गुण ( अशान्त) – राजसिक गुणों के लोग अशान्त जीवन जीते हैं। वे एक ही समय में बहुत से काम करना चाहते हैं, लेकिन ऐसे लोग व्यस्त दिखने का ढोंग करते हैं मगर करते कुछ नहीं। धन और सम्पत्तिी प्राप्त करना उनका प्रबल लक्ष्य होता है। उनकी आन्तरिक और बाहूय शक्तियां नकारात्मक होती हैं। वे स्वार्थी होते हैं। वे इस कहावत पर पूरे उतरते हैं- “जब एक स्त्री को पता चला कि प्रलय आने वाली है, तो उसने भगवान से प्रार्थना की हे भगवान मुझे और मेरे सुनार को प्रलय से बचा लो।” राजासिक गुणा के लोग इसी प्रवृति के होते हैं।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक 1. शारीरिक गठन- प्रायः लम्बा और मोटा शरीर, लम्बी मुखाकृति, लम्बी नाक/गर्दन के दांयी भाग में एक काला तिल उनकी पहचान होता है। 2. स्वभाव और सामान्य घटना- जातक प्रसन्न-चित व आनन्द मग्न होता है। वह कई मामलों में भाग्यवान होता है। उसका व्यवहार अच्छा तथा प्रत्येक काम ईमानदारी व गंभीरता से करता है। धार्मिक विचारों का होता है। अपने सामाजिक कार्यों द्वारा प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। जहां वह साफ-दिल होता है, वहीं वह क्रोधी स्वभाव का भी होता है। उसमें वांछित सहनशीलता और धैर्य की कमी है। जब उसे क्रोध आता है तो वह सहज ही शान्त नहीं हो पाता। लेकिन बाद में जब वह अपने इस बतार्व के बारे में सोचता है तब तक देर हो चुकी होती है। फिर भी वह किसी कीमत पर अपनी गल्ती नहीं मानता। यदि उसे उसकी गलती का यकीन दिलाया भी जाये तब भी वह इसे नहीं मानता। फिर भी उसमें अच्छी विवेचन शक्ति होती है और वह व्यवहार कुशल होता है। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-वह आजाद स्वभाव का होता है। फिर भी वह जो भी जिम्मेदारी लेता है उसे पूरी तरह से निभाता है। न तो वह दूसरों को धोखा देता है और न ही उनसे धोखा खाता है। वह जनसम्पर्क के कार्यों में दीप्तिमान हो सकता है। व्यवहार्य कौशल में निहित गुणों पर सफलता निर्भर है। जनता से लेन-देन के कार्य से प्राप्त कमीशन द्वारा अच्छा पैसा कमाता है। जहां वह दूसरों के कामों में ईमानदार होता है वहीं अपने कामों में लापरवाह होता है। एक बार जो निर्णय वह कर लेता है उसी पर अन्त तक अडिग रहता है। अपने जन्मजात मेहनती स्वभाव के कारण वह अच्छी स्थिति प्राप्त करता हैं। वह शिक्षक, लेखक अथवा वैज्ञानिक क्षेत्र में शोध छात्र के कार्य के लिए उपयुक्त है। कुछ मामलों में वह शिक्षापन द्वारा अतिरिक्त आय अर्जित करता है। उसकी 32 वर्ष तक की आयु का समय अंधकार पूर्ण होता है। इसके बाद 38 वर्ष की अवस्था तक इसमें सुधार होता है। 38 वर्ष की आयु के बाद वह तेजी से उन्नति करेगा और वांछित सफलताएं पायेगा। 62 वर्ष की आयु तक उसका जीवन निर्विहन व्यतीत होगा। अपने आयु के पांचवे दशक में वह प्रसिद्धि तथा धन के मामले में भाग्यवान होगा। उसकी स्वार्जित पूंजी होगी। वह गणित या इंजीनियरिंग, खगोल शास्त्र अथवा ज्योतिष शास्त्र में निपुण होगा। वह विज्ञापन व्यवसाय में भी सफल हो सकता है। 4. पारिवारिक जीवन-उसका विवाहित जीवन कमोबेश अच्छा गुजरेगा। वह अपने परिवारिक जीवन से बिलकुल संतुष्ट होगा। यदि शुक्र बुद्ध पर आक्रान्त हो या इसके साथ संयुक्त हो तो उसके दो विवाह होने का योग है। उसकी पत्नी कुशल गृहिणी होगी । 5. स्वास्थ्य - उसका स्वास्थ्य सामान्य रूप से अच्छा होगा। फिर भी वह शरीर दर्द, दांतों की समस्या, गैस आदि से पीड़ित होगा। मंगल से आक्रान्त होने की दशा में उसे अन्त्र तथा जिगर की समस्याएं हो सकती है।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र में उत्पन्न मादा जातकों के इसी नक्षत्र में उत्पन्न नर जातकों के कमोबेश वही सामान्य परिणाम होंगे। इसके अतिरिक्त अन्य परिणाम इस प्रकार है : 1. शारीरिक गठन-मध्यम कद, कोमल शरीर, मध्यम रूप रंग तथा कुछ बड़ी नाक वाली होती है। उसमें पहचान चिन्ह के रूप में चेहरे पर काला तिल पाया जाता है | 2. स्वभाव और सामान्य घटना- वह बहुत शान्त तथा साधारण स्वभाव की होती है। वह लम्बे समय तक कटुता नहीं रखती। वह सिद्धान्तवादी होती है तथा सदैव प्रसन्नचित रहती है। 3. शिक्षा रोजगार/आय के साधन-उसमें जन्मजात गणितीय योग्यता अथवा वैज्ञानिक आधार होता है। अतः वह शिक्षक या लेक्चरार अथवा प्रशासनिक क्षेत्र के उपयुक्त होती है। वह सफाई विभाग अथवा हस्पताल से भी सम्बन्धित हो सकती है। वह मोडल अथवा अभिनेत्री के रूप में धन अर्जित करेगी। 4. पारिवारिक जीवन - वह पति तथा बच्चों से सुख पायेगी। गृहकार्यों के प्रबन्ध में कुशल/पति संतुलित ढंग से धनी होगां उसे अपनी शान-शौकत व दिखावे की मनोवृति को नियन्त्रित करना चाहिए अन्यथा उसके पड़ौसी ईष्या के कारण उनके परिवारिक माहौल में, ससुराल के लोगों से सम्बन्ध बिगड़वा कर, अनापेक्षित समस्याएं उत्पन्न करा दे सकते हैं। 5. स्वास्थ्य - सामान्यतः उसका स्वास्थ्य ठीक होगा। फिर भी उसे अस्थमा, ऋतुचक्र की परेशानी तथा तेज सिरदर्द हो सकता है। इस नक्षत्र के प्रभाव के सयम यदि उसमें प्रथम ऋतुश्राव के लक्षण प्रकट हों तो वह नेक, सर्वप्रिय, मित्रवर्ग में प्रमुख स्थान पर तथा पुण्यकार्यों में संलग्न होगी। उसे नेक संतान होगी ।




13- हस्त

जन्म नक्षत्र - हस्त ( चन्द्रमा )
चिह्न -हथेली
अधिष्ठाता देवता - आदित्य
जाति - वैश्य
पहचान/प्रतीक -हथेली के आकार के 5 सितारें ।
तेरहवें राशिचक्र में 160.00 डिग्री से 173.20 डिग्री तक का विस्तार क्षेत्र हस्त नक्षत्र है। 'अरब-मंजिल' के अनुसार यह 'अल-ऑवा' अर्थात भौकनेवाला कुत्ता ग्रीक इसे ‘कोरवी' तथा चीनी मतानुसार यह 'चिन' है। हस्त का तात्पर्य 'हाथ' है। हस्त नक्षत्र के प्रतीक पांच सितारे है, जो हाथ की पांच अंगुलियों के आकार में होते हैं। हस्त नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता आदित्य (सूर्य) है। विष्णु पुराण के अनुसार दक्ष की पुत्री अदिति ऋषि कष्यप को विवाह में दी गई जिससे बारह पुत्र हुए जो आदित्य कहलाये। सूर्य, अदिति के इन बारह पुत्रों में से एक है। एक अन्य विवरण के अनुसार जब देवताओं के राजा इन्द्र, जो वर्षा के भी देवता है, ने स्वर्ग को धरती से अलग कर लिया। सूर्य ने पृथ्वी की नाभि से उत्पन्न होकर तीनों लोंको, स्वर्ग, पृथ्वी तथा उनके बीच का स्थान जो आकाश या अंतरिक्ष है, को पृथक कर दिया। 1. हस्त नक्षत्र में उत्पन्न जातकों के सामान्य परिणाम- हस्त नक्षत्र में पुष्य नक्षत्र की तरह ही पद दोष (नक्षत्र के किसी विशेष भाग में उत्पन्न होने पर विपत्ति का होना) होता है। इस नक्षत्र के प्रथम भाग (0.00 डिग्री से 3.20 डिग्री) में जातक का जन्म उसके पिता के लिए संकट उत्पन्न करेगा। इसी नक्षत्र के दूसरे भाग (3.2 डिग्री से 6.40 डिग्री) में उसका जन्म मामा के लिए संकट का; तीसरे भाग (6.40 डिग्री से 10.00 डिग्री) में जन्म स्वयं के लिए खतरा उत्पन्न करेगा। इसी नक्षत्र के चतुर्थ भाग (10.00 डिग्री से 13.20 डिग्री) में जातक का जन्म उसकी माता के लिए खतरा उत्पन्न करेगा। फिर भी ये परिणाम सीधे लागू नहीं हो सकते। भविष्यवाणी करने से पूर्व सप्ताह के दिन तथा तिथि को भी ध्यान में रखना चाहिए।
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
1. अश्विनी चू, चे, चो, ला
2. भरणी ली, लु, ले, लो
3. कृतिका अ, ई, उ, ए
4. रोहिणी वो, वा, वी,वु
5. मृगशीर्ष वे, वो, का, की
6.आर्द्रा
7. पुनर्वसु के, को, हा,ही
8. पौष हू, हे, हो, डा
9. अश्लेष डी, डू, डे, डो
10. माध मा, मी, मू, मे
11. पूर्व-फाल्गुनी मो, टा, टी, टू
12. उत्तर- फाल्गुनी टे, टो, प, पी
13. हस्ता पु, ष, ण, रा
14. चित्रा पे, पो, रा, री
15. स्वाति रा, रे, रो, का
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
राजसिक गुण ( अशान्त) – राजसिक गुणों के लोग अशान्त जीवन जीते हैं। वे एक ही समय में बहुत से काम करना चाहते हैं, लेकिन ऐसे लोग व्यस्त दिखने का ढोंग करते हैं मगर करते कुछ नहीं। धन और सम्पत्तिी प्राप्त करना उनका प्रबल लक्ष्य होता है। उनकी आन्तरिक और बाहूय शक्तियां नकारात्मक होती हैं। वे स्वार्थी होते हैं। वे इस कहावत पर पूरे उतरते हैं- “जब एक स्त्री को पता चला कि प्रलय आने वाली है, तो उसने भगवान से प्रार्थना की हे भगवान मुझे और मेरे सुनार को प्रलय से बचा लो।” राजासिक गुणा के लोग इसी प्रवृति के होते हैं।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक 1. शारीरिक गठन-जातक लम्बे कद व गठीले बदन का होता है। मिश्रित रंग तथा शरीर के अनुपात में हाथ छोटे होते हैं। उसके दांये हाथ के ऊपरी भाग या कन्धे के नीचे कोई दाग का निशान होगा। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- जातक शान्त स्वभाव का होता है। उसकी मुस्कान में एक विलक्षणता पाई जाती है। अर्थात उसकी मधुर मुस्कान में दूसरों को आर्कषित करने की चुम्बकीय शक्ति होती है। उसकी यह सहज विशेषता दूसरों में एक सिहरन सी उत्पन्न कर देती है और जब ऐसी जानकारी घटित होती है तो दूसरों द्वारा जातक को अस्वीकार करना कठिन हो जाता है। वह जनता से सम्मान तथा आदर बड़ी आसानी से प्राप्त कर लेता है। वह बदले में बिना कुछ चाहे प्रत्येक जरूरत मंद की सहायता करने को तत्पर रहता है। वह किसी भी हालत में दूसरों को धोखा नहीं देता। अपनी इस विशेषता के बदले उसे कुछ नहीं मिलता। यदि मिलती है तो निन्दा और विरोध । वह तड़क-भड़क पूर्ण जीवन में विश्वास नहीं करता । अन्य नक्षत्रों में उत्पन्न व्यक्तियों के विपरीत हस्त नक्षत्र में उत्पन्न जातकों का जीवन अक्सर उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। एक पल में वह शिखर पर होता है तो दूसरे पल वह रसातल में पड़ा होता है। चाहे यह उसका व्यवसाय क्षेत्र हो अथवा उसका मानसिक संसार । दूसरे शब्दों में सौभाग्य या दुर्भाग्य बिना बताये उस पर टूट ही पड़ता हैं अतः हम उसे स्थायी रूप से अमीर अथवा गरीब की श्रेणी में नहीं रख सकते। जब वह किसी विशेष क्षेत्र में लक्ष्य के करीब पहुंचने ही वाला होता है तब भी उलट परिणाम उसके भाग्य में बढ़ा हो सकता है और जब वह इस प्रकार के उलट परिणामों से उबरने की कोशिश करता है तो प्रत्याशित स्थान से उसे सहायता प्राप्त हो जाती है और फिर से वह उस क्षेत्र में मध्यम सफलता प्राप्त कर लेता हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जातक पर किसी अदृश्य अभिशाप की छाया है, वरना उसके प्रत्येक कार्य में मेहनत, लग्न और ईमानदारी के कारण उसे उन्नति प्राप्त होनी ही चाहिए। जब कि वह दूसरों को दुख देना नहीं चाहता है, वहीं जब उसे दूसरों से पीड़ा मिलती है तो वह बदला लेने की ताक में रहता है, मगर तभी वह ईश्वर के चरणों में गिर कर तसल्ली कर लेता है और सोच लेता है कि बुराई करने वाले को दण्ड ईश्वर देगा और वह इस कष्टप्रद प्रकरण से अलग हो जाता है। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-अपने कार्य क्षेत्र में वह पूर्ण अनुशासन का पालन करता है। मातहत पदों पर नौकरी प्रायः उसके योग्य नहीं होती। कुछ ही मामलों में हस्त नक्षत्र में उत्पन्न जातक ऐसे पदों पर पाये जाते हैं प्रायः मामलों में वे या व्यवसाय में हाते है अथवा किसी औद्योगिक संस्थान में उच्च पदों पर । हस्त नक्षत्र में उत्पन्न जातक में अपनी अल्पशिक्षा के बावजूद हर क्षेत्र का अच्छा ज्ञान होता है। वह सिद्ध कर देता है कि वह किसी भी मामले में किसी से पीछे नहीं है। उसमें विभिन्न विवादित मामलों में दखल देने तथा उन्हें सुलझाने की क्षमता होने के कारण वह अच्छा सलाहकार हो सकता है। सफलता की पहली सीढ़ी पर चढ़ने से पूर्व उसे बहुत सी जिम्मेदारियां अथवा प्रयत्न निभाने पड़ते हैं । उसकी 30 वर्ष तक की अवस्था का समय उसके परिवार के सम्मुख तथा साथ ही शिक्षा और कार्य अथवा व्यवसाय के क्षेत्र में अप्रत्याशित स्थितियों द्वारा बदलाव लाने वाला होगा। उसकी आयु के 30 से 42 वर्ष तक का समय उसके लिए सुनहरी समय होगा, जब वह अपने जीवन में स्थिरता प्राप्त कर लेगा । यदि जातक 64 वर्ष के पश्चात भी जीवित रहता है तो, उसे व्यवसायिक क्षेत्र में चौतरफा सफलता मिलेगी तथा वह असाधारण रूप से धन संचय करेगा। 4. परिवारिक जीवन-वह आर्दश विवाहित जीवन का आनन्द लेने के योग्य होगा, फिर भी जैसा कि हर परिवार में छोटा-मोटा मनमुटाव संभव होता है, प्रायः इसके साथ भी होगा। उसकी पत्नी से कुशल गृहिणी वाले सभी गुण होंगे। हस्त नक्षत्र के जातक की पत्नी में एक परोक्ष बात देखने में यह आयेगी कि वह अपनी युवावस्था में समलिंगकामी क्रियाओं में लिप्त होगी। 5. स्वास्थ्य-उसे तेज खांसी, जुकाम, नजला, बलगम, अस्थमा अथवा स्वाश रोग से पीड़ित होने का योग है।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक हस्त नक्षत्र में उत्पन्न मादा जातक के कमोबेश वहीं परिणाम होंगे जो इसी नक्षत्र में नरजातकों के विषय में दिये गये है। इनके अतिरिक्त वे निम्नलिखित परिणाम और देखेंगी। 1. शारीरिक गठन-उसकी आँखे और कान, अन्य नक्षत्रों में उत्पन्न मादा जातकों की अपेक्षा, बहुत ही अधिक सुन्दर तथा अलग होते हैं। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- इसमें स्त्रियोचित जन्मजात लज्जा होती हैं वह बुजुर्गों का सम्मान करेगी मगर किसी की आधीनता अथवा गुलामी में नहीं रहेगी। वह अपने विचारों को निःसंकोच प्रकट करने में नहीं हिचकेगी। उसे अपने विचारों की दूसरों पर प्रतिक्रिया की परवाह नहीं होती। इस कारण उसे अपने परिजनों की शत्रुता का भाजन बनना पड़ता है। यदि वह अपने विचारों को खुलेआम प्रकट करने की प्रवृति पर अंकुश रखे तो वह परिवार की समस्याओं को हल करने में अच्छी सफलता प्राप्त कर सकेगी और अपना जीवन सुख से भोगेगी। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-अक्सर मामलों में हस्त नक्षत्र में उत्पन्न स्त्री अपने पिता अथवा पति की अच्छी आर्थिक स्थिति के कारण नौकरी नहीं करती। कुछ मामलों में यह भी देखा गया है कि इस नक्षत्र की जातक यदि गरीब परिवार में उत्पन्न हुई है तो वह कृषि तथा निर्माण कार्यों में नियुक्त होती है। 4. परिवारिक जीवन- अपने पति की दीर्घायु तथा परिवार में सामन्जस्य के लिए उसे मूल नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्ति के साथ विवाह नहीं करना चाहिए। वह सुखी विवाहित जीवन का आनन्द लेगी। उसका पति प्रेम करने वाला तथा धनवान होगा। वह अपने बच्चों से सुख प्राप्त करेगी। उसके पहले एक पुत्र तथा बाद में दो पुत्रियां होगी । 5. स्वास्थ्य-उसका स्वास्थ्य प्राय ठीक रहेगा। फिर भी वह बृद्धावस्था में रक्त चाप, नाड़ी में ऐंठन तथा अस्थमा रोग से पीड़ित हो सकती है।




14- चित्रा

जन्म नक्षत्र - चित्रा ( मंगल )
चिह्न -एक मोती
अधिष्ठाता देवता - त्वष्ठाव
जाति - सेवक
जाति पहचान/प्रतीक -मोती के आकार का एक सितारा ।
चौदहवें राशिचक्र में 173.20 डिग्री से 186.40 डिग्री तक के विस्तार का क्षेत्र चित्र नक्षत्र है। अरब-मंजिल में इसे 'अस-सिमाक", ग्रीक इसे “विर्जिनिस और स्पाईका” तथा चीनी मतानुसार यह “कियो” है। चित्र का अर्थ चमकीला से है। यह नक्षत्र मोती के समान अथवा लैम्प जैसा प्रतीत होता है। चित्र को “समृद्धि का सितारा" के रूप में भी जाना जाता है। चित्र नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता “त्वास्तक" (विश्वकर्मा) अर्थात शिल्पकार है।
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
1. अश्विनी चू, चे, चो, ला
2. भरणी ली, लु, ले, लो
3. कृतिका अ, ई, उ, ए
4. रोहिणी वो, वा, वी,वु
5. मृगशीर्ष वे, वो, का, की
6.आर्द्रा
7. पुनर्वसु के, को, हा,ही
8. पौष हू, हे, हो, डा
9. अश्लेष डी, डू, डे, डो
10. माध मा, मी, मू, मे
11. पूर्व-फाल्गुनी मो, टा, टी, टू
12. उत्तर- फाल्गुनी टे, टो, प, पी
13. हस्ता पु, ष, ण, रा
14. चित्रा पे, पो, रा, री
15. स्वाति रा, रे, रो, का
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
तामसिक गुण (निष्क्रिय) – इस समूह के व्यक्तियों में किसी भी बात को चाहे वो सही हो अथवा गलत विरोध करने की आदत होती है। जिसकारण परिवार में तथा समाज में उस व्यक्ति को टकराव का सामना करना पड़ता है। उसकी आन्तरिक शक्ति तो सकारात्मक विचार देती है, जबकि उसकी बाह्य शक्ति में नकारात्मक विचार होते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसे व्यक्ति मन से बुरे नहीं होते, लेकिन उनमें अर्न्तनिहित गुण शक्ति उन्हें तामसिक विचार प्रकट करने को बाध्य करती है। मनन या प्रार्थना के द्वारा इस अंसगति को कम किया जा सकता है। तामसिक गुणों वाली स्त्रियां 45 वर्ष की आयु में तथा पुरुष 40 वर्ष की आयु में अपने में असंगतिपूर्ण रिक्तता को विजित करने में सफल होते हैं ।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक 1. शारीरिक गठन-उसका पतला शरीर होता है। कुछ मामलों में, जहाँ बृहस्पति या सूर्य चन्द्रमा से अधिक शक्तिशाली हों तो देखा गया है कि चित्रा नक्षत्र में उत्पन्न जातक स्थूल व लम्बे शरीर के होते हैं। वह सैंकड़ों लोगों की भीड़ में अपने भव्य व्यवहार तथा अभिव्यंजना के द्वारा अलग पहचाना जाता है। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- जातक बुद्धिमान तथा शान्तिप्रिय होता है। जब चन्द्रमा पर शनि आक्रान्त हो अथवा शनि की दृष्टि राशिचक्र के ठीक 180.00 डिग्री से 185.00 डिग्री पर से चन्द्रमा पर हो अथवा शनि चन्द्रमा के साथ संयुक्त हो तो, पाया गया है कि जातक सबके प्रति धूर्त और दुष्टतापूर्ण व्यवहार करता है । अपने स्वार्थ के लिए वह किसी भी हद तक गिर सकता है। चित्र नक्षत्र में उत्पन्न जातकों में परोक्ष रूप से जन्मजात देन होती है अर्थात आरम्भ में उसके मत, विचार अथवा सलाह मूर्खतापूर्ण प्रतीत होते हैं मगर बाद में वही मत, विचार अथवा सलाह ही प्रभावोत्पादक या प्रचलित होते हैं। उसमें एक और जन्मजात देन अर्न्तदृष्टि की है । अतः यह व्यक्ति ज्योतिषी के व्यवसाय के लिए, जहां पर अर्न्तदृष्टि का होना अत्यन्त आवश्यक है, सर्वथा उपयुकत है । कुछ मामलों में यह भी पाया गया है कि जातक अक्सर जो स्वपन देखता है, प्रायः वे सभी वास्तविकता में सत्य उतरते हैं। इससे परोक्ष रूप से यह सिद्ध होता है कि चित्र नक्षत्र में उत्पन्न जातकों के दिमाग़ में दैवीय शक्ति स्वयंमेव ही स्थापित होती है। जातक ऐसा व्यक्ति होता है जिसे दूसरों की भावनाओं की परवाह नहीं करती, न ही वह दूसरों के प्रति स्वार्थी होता है। अपने इस कठोर रवैये के बावजूद वह समाज में गरीबों के प्रति स्नेहपूर्ण तथा दयालू होता है । प्रायः लोग उसे रूखा और डंकदार समझने की भूल करते हैं। वह किसी भी विषय पर बिना विचारे बोल जाता है और जब उसे आखिरी समय पर अपनी गलती का अहसास होता है तो उस गल्ती को ठीक करने का समय बीत चुका होता है। प्रत्येक मामले में उसे शत्रुओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन वह उनके षड़यंत्रों से बच जाने में सक्षम होता है। कमजोर वर्ग के लोगों के लिए उसके मन में कोमल भावनाऐं होती हैं और वह समाज के इस वर्ग की भलाई के लिए अपना समय लगाता है। लेकिन इस भलाई के पीछे पहले तो उसका निस्वार्थ भाव होता है मगर बाद में उसके स्वार्थता रूप लेता है। विशेषकर जब शनि राशिचक्र की 180.00 डिग्री से 187.00 डिग्री के बीच से मंगल पर दृष्टि डालता है। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-उसके जीवन में अड़चन या रूकावटों का अधिक महत्व नहीं है। वह अपने साहस और मेहनत से इनको दूर कर देता है। 32 वर्ष की आयु तक उसका जीवन आराम से नहीं बीतेगा। उसके 33 वर्ष से 54 वर्ष की आयु का समय उसके लिए सुनहरा समय है। चित्र नक्षत्र में उत्पन्न जातकों में एक विशेषता यह पायी जाती है कि वे बिना अधिक प्रयास किए अप्रत्याशित सहायता प्राप्त कर लेते हैं। विभिन्न जन्म कुण्डलियों की जांच करके मैने पाया कि उनकी आयु का 22, 27, 30,36, 39, 43 तथा 48वां वर्ष उनके लिए हर प्रकार से अनिष्टकारी होता है। यदि इस नक्षत्र में सूर्य और चन्द्रमा एक साथ स्थित हों तो जातक किसी फैक्टरी में कारीगर या वास्तुकार की नौकरी करता है। यदि बृहस्पति भी संयुक्त हो तो जातक राजनीति में होगा और बुध के संयुक्त होने पर वह इंजीनियर या वस्त्र शिल्प वैज्ञानिक बनेगा । 4. पारिवारिक जीवन - एक तरफ तो वह अपने माता-पिता तथा सहजातकों को निष्कपट प्यार करता है वहीं वह उनके आचरणों पर भी सन्देह है। चित्र नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्ति प्रायः अपने पिता से लाभ स्नेह व प्यार नहीं पाते। यह भी देखा गया है कि इनके पिता पृथ्क जीवन बिताते हैं अथवा यदि सूर्य पर शनि आक्रान्त हो तो उसके बचपन में पिता की मृत्यु का योग भी नकारा नहीं जा सकता। कुछ भी हो, जातक पिता से पृथक ही रहेगा। एक बात और देखी गयी है कि जातक का पिता उससे अलग होते हुए भी अपने कार्य क्षेत्र में प्रसिद्ध तथा नामी होता है। जातक माता के प्रति अधिक अनुरक्त होता है और माता अथवा माता सम्बन्धी से लाभान्वित होता है। यह भी कहा जाता है कि चित्र नक्षत्र में उत्पन्न जातक, जिस घर में वह पैदा हुआ है, वहां नहीं टिकता। या तो वह उस मकान को छोड़कर कहीं और चला जायेगा अथवा वह मकान या तो बिक जायेगा या नष्ट हो जायेगां दूसरे शब्दों में वह अपने जन्म स्थान से दूर जाकर पुर्नस्थापित होता है। उसका विवाहित जीवन प्रायः सुखी नहीं होता । सुखी विवाहित जीवन से तात्पर्य यह है कि उनका विवाह तो स्थायी होगा मगर दम्पत्ति में अक्सर झगड़ों के कारण सम्बन्ध सामान्य नहीं हो पाते। श्रविष्ठ (घनिष्ठ) अथवा शताभिषज या पुष्य नक्षत्रों में मंगल या शनि अथवा दोनों की स्थिति हो तो उसकी पत्नी की जल्दी मृत्यु होने का संकेत है। यदि शनि पर बृहस्पति की भरपूर दृष्टि हो और मंगल पर बृहस्पति या सूर्य की दृष्टि हो तो सकारात्मक परिणाम देते हैं अर्थात सामान्य विवाहित जीवन तथा खुशहाल बच्चें। फिर भी उसे जीवनपर्यन्त बहुत सी जिम्मेदारियों तथा आलोचनाओं का शिकार होना पड़ता है। 5. स्वास्थ्य-गुर्दों तथा मूत्राशयों की सूजन, दिमागी बुखार, कीड़ो द्वारा रोग होने का संकेत। पेट में फोड़ा या अपेन्डेसाइटिस भी पाया गया है।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक चित्र नक्षत्र में मादा जातकों के इसी नक्षत्र के नरजातकों वाले ही परिणाम होते हैं, सिवाय इसके कि वे दुर्भाग्य के हाथों अधिक वश में होती है। 1. शारीरिक गठन-उसका ईष्याजनक सुन्दर शरीर होता है। वह लम्बे कद के साथ संतुलित शरीर गठन की होती है। उसके प्राकृतिक लम्बे बाल होते हैं मगर आज के आधुनिक युग में वे बाल कटा लेती हैं। 2. स्वभाव और सामान्य घटना- उसका अधिक स्वतन्त्रता की तीव्र इच्छा तथा अमर्यादित व्यवहार जटिल समस्याएं उत्पन्न कर देगा। वह बिना किसी कारण के गर्वीती होती है। वह लालची, पापी प्रकृति की और मन्द होती है। उसके बहुत कम मित्र होते हैं। वह पाप कर्म करती है। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-वह विज्ञान विषयों में शिक्षित होगी। वह नर्स, मॉडल अथवा फिल्म अभिनेत्री होगी। यदि ग्रहों की स्थिति शुभ अथवा संतुलित न हो तो वह कृषि क्षेत्र में नौकरी करेगी। 4. परिवारिक जीवन-यदि जातक विवाह जन्म कुण्डली ठीक से मिलाये बगैर किया गया हो तो उसके विधवा होने, तलाक अथव पति से कोई भी सुख न मिलने का योग है। कुछ मामलों में उसके बांझ होने का भी संकेत है। जीवन में सुख तथा खुशी प्राप्त करने के लिए इस अध्याय के अन्त में दिये गये उपचारों को अपनाने की सलाह दी जाती है। 5. स्वास्थ्य-उसे गर्भाश्य की जलन अथवा सूजन, दिमागी तेज बुखार, सिर दर्द तथा अल्सर होने का संकेत है। इस नक्षत्र के प्रभाव के समय यदि उसमें प्रथम-ऋतुश्राव के लक्षण प्रकट हो तो वह कामुक प्रवृति की, भद्रव्यवहार करने वाली तथा जीवन के आनन्द लेने में विश्वास रखने वाली होगी।




15- स्वाति

जन्म नक्षत्र - स्वाति ( राहू )
चिह्न -मूंगा
अधिष्ठाता देवता - वायु
जाति - कसाई जाति
पहचान/प्रतीक -लाल रंग का -नीलमणि के आकार का एक सितारा ।
पन्द्रहवें राशिचक्र में 186.40 डिग्री से 200.00 डिग्री तक के विस्तार का क्षेत्र स्वाति नक्षत्र है। अरब मंजिल में इसे “अलगफर” अर्थात “ढ़कना” तथा ग्रीक इसे “बुटीस या आर्कटर्स” कहते हैं। चीनी मतानुसार यह “किंग” है। स्वाति का तात्पर्य तलवार से है। तैत्रीय ब्राह्मण के अनुसार स्वाति को “निष्टय” अर्थात फेक देना भी कहते हैं। हस्त नक्षत्र की भांति स्वाति नक्षत्र का प्रतीक एक सितारा है जो मोती के समान प्रतीत होता है स्वाति नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता वायु अर्थात वरूण है। I. स्वाति नक्षत्र में उत्पन्न जातकों के सामान्य परिणाम-
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
1. अश्विनी चू, चे, चो, ला
2. भरणी ली, लु, ले, लो
3. कृतिका अ, ई, उ, ए
4. रोहिणी वो, वा, वी,वु
5. मृगशीर्ष वे, वो, का, की
6.आर्द्रा
7. पुनर्वसु के, को, हा,ही
8. पौष हू, हे, हो, डा
9. अश्लेष डी, डू, डे, डो
10. माध मा, मी, मू, मे
11. पूर्व-फाल्गुनी मो, टा, टी, टू
12. उत्तर- फाल्गुनी टे, टो, प, पी
13. हस्ता पु, ष, ण, रा
14. चित्रा पे, पो, रा, री
15. स्वाति रा, रे, रो, का
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
तामसिक गुण (निष्क्रिय) – इस समूह के व्यक्तियों में किसी भी बात को चाहे वो सही हो अथवा गलत विरोध करने की आदत होती है। जिसकारण परिवार में तथा समाज में उस व्यक्ति को टकराव का सामना करना पड़ता है। उसकी आन्तरिक शक्ति तो सकारात्मक विचार देती है, जबकि उसकी बाह्य शक्ति में नकारात्मक विचार होते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसे व्यक्ति मन से बुरे नहीं होते, लेकिन उनमें अर्न्तनिहित गुण शक्ति उन्हें तामसिक विचार प्रकट करने को बाध्य करती है। मनन या प्रार्थना के द्वारा इस अंसगति को कम किया जा सकता है। तामसिक गुणों वाली स्त्रियां 45 वर्ष की आयु में तथा पुरुष 40 वर्ष की आयु में अपने में असंगतिपूर्ण रिक्तता को विजित करने में सफल होते हैं ।।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक 1. शारीरिक गठन-स्वाति नक्षत्र में उत्पन्न जातकों में एक विशेषता यह पायी जाती है कि इनके पांव नीचे से कुछ मुड़े हुए तथा घुटने उठे हुए से प्रतीत होते हैं। उसका शारीरिक गठन स्त्री वर्ग को आर्कषित करने वाला होता है तथा शरीर मासल होता है। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- जातक शान्तिप्रिय और अटल और स्वच्छ ख्याल का होता है। वह न तो दूसरे की सम्पत्ति हड़पना चाहता है और न दूसरों को अपनी सम्पत्ति हड़पने देता है। उसे अपने काम की आलोचना पसन्द नहीं । जब उसे क्रोध आता है तो उसे शान्त करना कठिन होता हैं । उसे अच्छे भविष्य के लिए अपना दिमागी सन्तुलन ठीक रखना चाहिए। वह दूसरों की सहायता करने को तत्पर रहता है बशर्ते कि उसकी स्वतन्त्रता पर कोई फर्क न पड़ता हो। वह दूसरों को, बिना उनके स्तर अथवा स्थिति में अन्तर किये, आदर देने में एक सीमा तक अनुसरण करता हैं। दूसरे शब्दों में वह आदर देने में छिद्रान्वेषी नहीं है। वह जरूरतमन्दों का सबसे अच्छा मित्र तथा घृणित लोगों का सबसे बड़ा शत्रु है। वह अपने विरोधियों से बदला लेने में नहीं हिचकता। उसका बचपन समस्याग्रस्ता होगा। वह पहले तो अपने सर्वप्रिय व्यक्ति के लिए सहायता और सुरक्षा प्रदान करता है मगर बाद में उनकी आलोचना किये जाने पर अपने विचार बदल लेता है। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-उसमें बुद्धिमता तथा किसी कार्य को करने की अपूर्व योग्यता है। 25 वर्ष की अवस्था तक सम्पन्न परिवार में उत्पन्न होने के बावजूद वह आर्थिक तथा मानसिक परेशानियों में घिरा रहेगा। फिर भी 30 वर्ष की आयु तक उसे अपने व्यवसाय अथवा पेशे में उन्नति की आशा नहीं रखनी चाहिए। बाद में 60 वर्ष की आयु तक उसके लिए सुनहरी समय होगा । जातक सुनार, कैमिस्ट अथवा ट्रैवलिंग ऐजन्ट के व्यवसाय द्वारा कमायेगा। इस नक्षत्र में शुक्र के साथ चन्द्रमा के होने पर वह अभिनेता या नाटककार अथवा कपड़ा मिल का मजदूर होगा; मंगल के साथ होने पर वह ज्योतिषी या अनुवादक; सूर्य और मंगल के साथ होने पर वह मैकेनिकल इंजीनियर होगा। 4. पारिवारिक जीवन-विवाहित जीवन उसके लिए बहुत अनुकूल नहीं होगा। बाहर वालों को तो वे (दम्पति) संतुलित/व्यवस्थित दिखायी देते हैं मगर वास्तव में वे भीतर से ऐसे नहीं होते । 5. स्वास्थ्य - उसका स्वास्थ्य प्राय ठीक होगा। फिर भी मानव शरीर में कुछ रोग तो होते ही रहते हैं अतः वह पेट की बिमारियों, हृदय रोग, बवासीर या गठिया से ग्रस्त हो सकता है।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक होते हैं। स्त्री जातकों के परिणाम उपरोक्त नर जातकों के परिणाम से भिन्न 1. शारीरिक गठन-अपनी धीमी चाल के कारण वह सबसे अलग पहचानी जाती है। 2. स्वभाव और सामान्य घटना- वह प्यार और सहानुभूति रखने वाली, नेक तथा उच्च सामाजिक स्थिति का उपभोग करने वाली होगी। धार्मिक अनुष्ठान करने में रूचि रखेगी। सत्यभाषी होगी, उसके कई मित्र होंगे, शत्रुओं पर विजयी होगी। जब कि अन्य स्त्रियां घूमने की शौकीन होती हैं मगर इसे घूमने (पर्यटन) में कोई रूचि नहीं होती । 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-यदि वह नौकरी में होगी तो उसे अप्रत्याशित रूप से प्रसिद्धि मिलेगी। जैसा की उसकी प्रकृति कि उसे यात्राओं में रूचि नहीं होगी, फिर भी परिस्थितिवश उसे ऐसा काम या नौकरी मिलेगी जो पर्यटन से सम्बन्धित होगी । 4. परिवारिक जीवन-परिवार में वातावरण तथा परिस्थितियों के कारण उसे नैतिक रूप से अपनी अर्त्तात्मा के विरूद्ध चलना पड़ेगा। फिर भी उसे सन्तान से पूर्ण संतुष्टि प्राप्त होगी। यदि उसका विवाह उत्तर-आषाढ़-नक्षत्र में उत्पन्न युवक के साथ होगा तो उसके पुत्रियां ही उत्पन्न होगी। 5. स्वास्थ्य-बाहर से तो वह स्वस्थ नजर आयेगी, मगर उसकी भीतरी बनावट कमजोर होगी। वह श्वासरोग, अस्थमा छाती के दर्द, घुटनों में टूटन तथा गर्भाश्य की परेशानियों से ग्रस्त होगी। यदि इस नक्षत्र के प्रभाव के समय उसमें प्रथम ऋतुश्राव के लक्षण प्रकट हो तो वह नेक और विश्वासपात्र होगी और उसके नेक सन्तान होगी। मैकेनिकल व्यवसाय में रूचि लेगी तथा स्वस्थ और धनवान होगी ।




16- विशाखा

जन्म नक्षत्र - विशाखा ( बृहस्पति )
चिह्न -कुम्हार का चाक
अधिष्ठाता देवता - इन्द्राग्नि
जाति - शूद्र
पहचान/प्रतीक -कुम्हार के चाक के आकार में तीन सितारे ।
सोलहवें राशिचक्र में 200.00 डिग्री से 213.20 डिग्री तक के विस्तार का क्षेत्र विशाखा नक्षत्र कहलाता है। अरब मंजिल में यह “अज्-जबनान” (बिच्छू के दो डंक) के नाम से जाना जाता है; ग्रीक इसे “लिबरे” तथा चीनी मतानुसार यह “ताई” कहा जाता है। 'शाक्य' और 'खण्ड कातक' के अनुसार विशाखानक्षत्र दो सितारों का बना है, जबकि बाद की धारणाएं इसे चार सितारों का समूह बताती हैं, जो कुम्हार के “चाक” के आकार का है।विशाखा नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता 'इन्द्रागिन' (इन्द्र और अग्नि का विशिष्ट निधारण) है। इन्द्र सृष्टि (जीव) के शरीरों का शिल्पकार है। इसे वृषभ भी कहते हैं, जो सौ किलाओं का विनाशक तथा विश्व का प्राण या जीवन है। इन्द्र पांच प्राणों से बना है। ये प्राण हैं: (1) उदान; (2) प्राण; (3) अपान; (4)समान; तथा (5) व्यान । अमरावती इन्द्र का निवास है । वह भगवान शिव, जो तीन परमेश्वरों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में से एक है, का अग्रज भी है । 'अग्नि'आग को कहते हैं।
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
16. विशाखा री, तु, ते, तो
17. अनुराधा ना, नी, नु, ने
18. ज्येष्ठ नो, या, यि, यु
19. मूल ये, यो, भ, भी
20. पूर्व- आषाढ़ बु, धा, भा, दा
21. उत्तर- आषाढ़ बे, बो, जा, जी
22. अभिजीत ज्यू, जी, जू, खी
23. श्रवण शी, शु, श, शो
24. श्रविष्ठा ग, गी, गु, गे
25. शताभिषज गो, सा, सी, सु
26. पूर्व-भाद्रपद से, सो, ट, टी
27. उत्तर-भाद्रपद दु, था, ज्ञ, हा
28. रेवती दे, दो, चा, ची
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
सात्व गुण (सत्य) – सात्व गुण के लोग साफ दिल वाले होंगें, वे क्रमबद्ध तथा मेहनती होते हैं। उनके प्रत्येक पग में एक विलक्षण ताल अथवा प्रभाव होता है। वे फल की चिन्ता किये बिना कर्म किये जाते हैं। जिस काम को करने की वे सोच लेते हैं उनको वे पूरा करते हैं। उनकी वाह्य अभिव्यक्ति कुछ अशिष्ठ होती है। वे चित्रकला, दस्तकारी, खेलों में असाधारण सफलता प्राप्त करते हैं ।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक 1. शारीरिक गठन-उसका गोल चमकदार चेहरा, शारीरिक रूप रंग अति आर्कषक होता है। मैंने दो तरह के शारीरिक रूप रंग देखे हैं पहला मोटा और लम्बा रूप तथा दूसरा पतला तथा छोटा रूप । 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना-वह बल, ओजस्विता तथा बुद्धिमानी से परिपूर्ण होगा। वह ईश्वरभक्त होगा तथा सत्यनिष्ठापूर्वक जीवन व्यतीत करेगा। वह पुराने रीति रिवाजों तथा रूढ़ियों में विश्वास नहीं करता। वह आधुनिक विचारों को अपनाना चाहता है। प्रायः वह अपने परिवार से दूर रहता है। वह प्रत्येक व्यक्ति से उसकी औकात या हैसियत के अनुसार व्यवहार करता है। किसी की गुलामी करना उसके लिए आत्महत्या के समान है। हालांकि वह धार्मिक विचारों का है मगर वह किसी धार्मिक अन्धविश्वास और कट्टर पंथी में विश्वास नहीं रखता। वह सभी धर्मों तथा जातियों से एक जैसा व्यवहार करता है। वह गांधीवादी विचारधारा “अहिसा परमो धर्माः” तथा “सत्य ही ईश्वर है" में विश्वास रखता में सन्यास है। कुछ मामलों में मैंने पाया है कि ऐसे जातक 35 वर्ष की आयु ग्रहण कर लेते हैं। सन्यास लेने से मेरा तात्पर्य यह नहीं है कि वह घर की जिम्मेदारियों से पूर्णतया अलग हो जायेगा। वह सन्यासी रहते हुए भी अपने परिवार की पूरी देखभाल करेगा। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-वह एक अच्छा वक्ता होगा तथा उसमें लोगों को आर्कषित करने की क्षमता होगी। वादविवाद प्रतियोगिता में वह कई पुरस्कार जीतेगा। अतः वह राजनीतिक क्षेत्र के लिए उपयुक्त व्यक्ति होगा। उसमें एक विशेषता यह पाई जाती है कि वह कहीं तो खर्च करने मे कंजूसी करता है तो कहीं अनावश्यक खर्च कर देता है । वह स्वतन्त्र व्यवसायों अथवा जिम्मेदारीपूर्ण पदों जैसे बैंकिग तथा धार्मिक व्यवसाय, गणित या शिक्षण अथवा प्रकाशन आदि के योग्य है। 4. पारिवारिक जीवन-उसे माता से स्नेह और देखभाल नहीं मिलेगी। इसके पीछे प्रमुख कारण या तो उसकी माता की मृत्यु अथवा परिस्थितिवश माता का जातक से दूर रहना । कुछ जन्मकुण्डिलयों में बृहस्पति की दृष्टि के कारण माता की दीर्घायु का योग देखा गया है मगर वह (जातक) माता से स्नेह और देखभाल नहीं पा सकता। दूसरी तरफ उसके पिता में बहुत से गुण होंगे जिनके कारण उसे अपने पिता पर गर्व होगा। फिर भी उसे पिता से बहुत अधिक सहायता नहीं मिलेगी। दूसरे शब्दों में यह निष्कर्ष निकलता है कि कमोबेश वह माता-पिता के होते अनाथों का सी जीवन बिताता है। कई बातों में उसका अपने पिता से मतभेद होगा औरे इसका कोई सौहार्दपूर्ण हल संभव नहीं होगा। यही कारण है कि वह बचपन से ही मेहनती और स्वनिर्मित व्यक्ति होगा । वह अपनी पत्नी तथा बच्चों से बहुत प्यार करेगा। फिर भी उसमें दो अवगुण होंगे प्रथम तो वह शराबी होगा और दूसरे वह अन्य स्त्रियों से बहुत अधिक काम-क्रियाओं में लिप्त होगा। इन कमजोरियों के बावजूद उसके परिवारिक या सामाजिक जीवन में कोई रूकावट नहीं आयेगी। 5. स्वास्थ्य - उसमें ईश्वरीय देन रूप में बल और ओजस्विता होने के कारण उसका स्वास्थ्य प्रायः ठीक रहेगा। फिर भी वह लकवे का शिकार हो सकता है। मैने 55 वर्ष की आयु से अधिक के 70 प्रतिशत विशाखा नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्तियों में लकवा पाया है। विशेषकर जब कि उनका जन्म इस नक्षत्र के दूसरे या तीसरे भाग में हआ हो। शेष 30 प्रतिशत लोगों के विषय में मुझे सन्देह है कि वे अपने जन्म का ठीक समय नहीं दे पाये, अन्यथा उनमें लकवे का कोई न कोई लक्षण अवश्य पाया जाता। यह भी देखा गया है कि वे अस्थमा के भी रोगी पाये जाते है।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक इस नक्षत्र में उत्पन्न मादा जातकों के भी कमोबेश नर जातकों वाले ही सामान्य परिणाम होते हैं इसके अतिरिक्त वे निम्न परिणाम और अनुभव करेंगी। 1. शारीरिक गठन-उसका नाक-नक्शा उत्पन्न सुन्दर होगा। इसकी इस ईश्वरीय उपकार के रूप में प्राप्त इस सुन्दरता से लोग आर्कषित होंगे, इस कारण उसे बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना-उसकी मीठी जुबान होगी। गृहकार्यों में निपुण और यदि नौकरी में होगी तो अपने कार्यालय के कामों में भी निपुण होगी। इन स्त्रियों में गर्व बहुत कम पाया जाता है। वह दिखावे बाजी में विश्वास नहीं करती तथा साधारण रहन-सहन पसन्द करती है। न ही वह सौन्दर्य प्रसाधनों का इस्तेमाल करती है। वह अपनी महिला मित्रों तथा परिजनों की ईष्या का भाजन होती हैं। वह धार्मिक अस्थाओं में अटूट विश्वास रखती है तथा व्रत-पूजा तथा तीर्थों की यात्रा करेगी। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-वह काव्य में रूचि लेती है। यदि अन्य हितकारी संयोजन, विशेषकर चन्द्रमा और शुक्र सयुंक्त हो तो वह प्रसिद्ध लेखिका बनेगी। उसमें कला तथा साहित्य में शैक्षणिक श्रेष्ठता होगी। 4. पारिवारिक जीवन-वह पति में ईश्वर की भांति आस्था रखेगी।अपने धार्मिक विचारों के कारण ससुराल के लोगों से स्नेह और प्यार पायेगी।जैसा कि वह अपने परिजनों तथा दूर के रिश्तेदारों के हित साधन के कार्य करेगी, उसे काफी अधिकार और शक्तियां प्राप्त होगी । उसका अपने ससुर अधिक स्नेह होगा। वह प्रायः तीर्थों की यात्राएं करेगी। 5. स्वास्थ्य-उसका स्वास्थ्य सामान्यतया ठीक रहेगा, फिर भी उसे गुर्दे की परेशानी, गलगण्ड तथा समलिंगकामुकता से कमजोरी हो सकती है।




17- अनुराधा

जन्म नक्षत्र - अनुराधा ( शनि )
चिह्न -कमल का फूल
अधिष्ठाता देवता - मित्र
जाति - शूद्र
पहचान/प्रतीक -कमल अथवा छतरी के आकार के तीन सितारे ।
सतरहवें राशिचक्र में 213.20 डिग्री से 226.40 डिग्री तक का विस्तार क्षेत्र अनुराधा नक्षत्र है। अरब मंजिल के अनुसार यह “अल-इकलिल” (ताज) है, ग्रीक इसे “स्कोरपिथॅनिस” तथा चीनी मतानुसार इसे “फेंग” कहते हैं। 'अनुराधा' का अर्थ 'सफलता' है। शाक्य के अनुसार अनुराधा नक्षत्र समूह तीन सितारों को होता है, जबकि अन्य धारणाएं संयोजन सितारे को मिलाकर चार सितारों का समूह होता है जो 'कमल' तथा कभी ‘छतरी’ के आकार का प्रतीत होता है। अनुराधा नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता 'मित्र' है जो बारह आदित्यों में एक है। आदित्यों के विषय में पूर्ण विवरण हस्त नक्षत्र में दिया जा चुका है। मित्र मस्तिष्क के समरूप है, जिसमें दिमाग की कोशिकाएं, जो अनाज, बून्दों व गुफाओं की प्रतीक है तथा स्नायुतन्तु जो घास, बाल तथा धागे का प्रतीक है।
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
16. विशाखा री, तु, ते, तो
17. अनुराधा ना, नी, नु, ने
18. ज्येष्ठ नो, या, यि, यु
19. मूल ये, यो, भ, भी
20. पूर्व- आषाढ़ बु, धा, भा, दा
21. उत्तर- आषाढ़ बे, बो, जा, जी
22. अभिजीत ज्यू, जी, जू, खी
23. श्रवण शी, शु, श, शो
24. श्रविष्ठा ग, गी, गु, गे
25. शताभिषज गो, सा, सी, सु
26. पूर्व-भाद्रपद से, सो, ट, टी
27. उत्तर-भाद्रपद दु, था, ज्ञ, हा
28. रेवती दे, दो, चा, ची
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
तामसिक गुण (निष्क्रिय) – इस समूह के व्यक्तियों में किसी भी बात को चाहे वो सही हो अथवा गलत विरोध करने की आदत होती है। जिसकारण परिवार में तथा समाज में उस व्यक्ति को टकराव का सामना करना पड़ता है। उसकी आन्तरिक शक्ति तो सकारात्मक विचार देती है, जबकि उसकी बाह्य शक्ति में नकारात्मक विचार होते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसे व्यक्ति मन से बुरे नहीं होते, लेकिन उनमें अर्न्तनिहित गुण शक्ति उन्हें तामसिक विचार प्रकट करने को बाध्य करती है। मनन या प्रार्थना के द्वारा इस अंसगति को कम किया जा सकता है। तामसिक गुणों वाली स्त्रियां 45 वर्ष की आयु में तथा पुरुष 40 वर्ष की आयु में अपने में असंगतिपूर्ण रिक्तता को विजित करने में सफल होते हैं ।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक 1. शारीरिक गठन- जातक का सुन्दर चेहरा तथा चमकीली आंखें होती है। कुछ मामलों में जहां ग्रहों के ठीक संयोजन नहीं होते जातक का चेहरा क्रूर दिखाई देता है। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- जातक जीवन में बहुत सी बाधाऐं झेलता है। इस पर भी उसमें कठिन से कठिन स्थिति से नियोजित ढंग से निपटने की योग्यता है। फिर भी जब हम उसके चेहरे को देखते हैं तो उस पर एक विलक्षण निराशा अंकित पाते है। उसके इस प्रकार के धुंधले से आभास के दिखाई देने का मुख्य कारण उसके द्वारा समय-समय पर विभिन्न समस्याओं का सामना करना है। और स्पष्ट करने के लिए उसे मानसिक शान्ति नहीं मिलती। एक छोटी सी समस्या भी उसके दिमाग को छेदना शुरू कर देती है और फिर बार-बार की समस्याओं की तो बात ही अलग है। वह मौका मिलने पर प्रतिशोध लेने की सदा सोचता रहता है। इन कमियों के बावजूद वह अत्यन्त मेहनती होता है और अपने कार्य को पूरा निभाने को सदैव तत्पर रहता है। “कुछ भी हो जाये, अपना काम करते रहो”,यही उसका लक्ष्य है। यहां मैं यह बता दूं कि विभिन्न बाधाओं के बावजूद अन्त में उसे इच्छित परिणाम पाने में सफलता मिलती है। वह ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखता है। वह किसी से भी स्थायी रूप से स्थिर सम्बन्ध नहीं रख पाता। उसका जीवन पूर्ण रूप से निस्सहाय मगर स्वच्छन्द होता है। विभिन्न रूकावटों में भी वह आशा का दामन नहीं छोड़ता । 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-वह व्यवस्था के क्षेत्र में सफल हो सकता है। यदि वह नौकरी में होगा तो उसमें अपने वरिष्ट अधिकारियों को अपने अनुकूल कर लेने की विशेष योग्यता होती है। वह अल्पायु अर्थात 17 या 18 वर्ष की अवस्था से ही रोजगार के फेर में पड़ जाता है। उसका 17 से 48 वर्ष तक की आयु का समय समस्याओं से पूर्ण होगां जब हम “समस्याओं से पूर्ण” कहते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि उपरोक्त समय में उसके लिए अच्छा समय होगा ही नहीं । प्रायः वांछित परिणाम और लाभ निश्चित रूप से उसे मिलते दिखाई पड़ते हैं। 48 वर्ष की आयु के बाद का समय बहुत ही अच्छा होगा। इसी समय में वह अपने इच्छित तरीके से जीवन में स्थापित हो जायेगा और जीवन के कष्टों और परेशानियों से वह मुक्त हो जायेगा । यदि चन्द्रमा मंगल के साथ है तो वह डाक्टर अथवा कैमिस्ट बन सकता है। 4. पारिवारिक जीवन- किसी भी स्थिति में उसे अपने सहजातकों से कोई सहायता नहीं मिलेगी। उसे अपने पिता से कोई अवलम्बन या लाभ भी नहीं मिलेगा। कुछ मामलों में उसका अपने पिता से मनमुटाव भी देखा गया है। इसी प्रकार वह माता से भी स्नेह और देखभाल पाने भाग्यशाली नहीं होगा। प्रायः वह अपने जन्म-स्थान से दूर जाकर बसता है। फिर भी उसके जीवन में विभिन्न विपरीत परिणाम, जो ऊपर बताये गये हैं, के बावजूद उसका विवाहित जीवन पूर्णतया संतोषजनक होगा। उसकी पत्नी में एक अच्छी गृहिणी वाले गुण होंगे। जैसा की भगवान की देने के रूप में जब वह अपने बीते जीवन में पिता का अपने प्रति व्यवहार का याद करता है तो वह अपनी सन्तान की पूरी निष्ठा से देखभाल करता है और उनकी प्रत्येक आवश्यकताओं की पूर्ति पूरे प्यार और स्नेह के साथ करता है। अतः उसकी सन्तान उससे भी ऊंची स्थिति में पहुंचती हैं। 5. स्वास्थ्य - उसका स्वास्थ्य सामान्यतः ठीक रहेगा। वह अस्थमा के प्रकोप, दांतों की समस्याएं, खांसी जुकाम कब्ज तथा गले की खराबी से पीड़ित रहेगा। अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही के कारण वह दवाएं भी ठीक प्रकार से नहीं लेता ।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक 1. शारीरिक गठन-उसके चेहरे पर मासूमियत नजर आती है। कुरुप चेहरे की स्त्री अपनी सुन्दर कमर के कारण पुरुषों के आर्कषण का केन्द्र होती है। अनुराधा नक्षत्र में उत्पन्न स्त्री अपने आर्कषक चेहरे व शरीर के साथ सुन्दर कमर के कारण पुरुषों को अपनी और आकर्षित करती है। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना-उसके जीवन में घमण्ड या दर्प को कोई स्थान नहीं है। वह साफ दिल होती है। वह फैशन परस्त नहीं होती। उसका जीवन साधारण तरीके का होता है। उसका व्यक्तित्व निस्वार्थ, सामन्जस्यपूर्ण तथा आकर्षक आभास देता है। वह सामाजिक व राजनीतिक क्षेत्र में दीप्तिमान हो सकती है। वह अपने बुजुर्गों का सम्मान करती है। वह प्रायः अपने मित्र वर्ग में उनकी नेता के रूप में दिखाई पड़ती है। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-वह संगीत और ललित कलाओं में अधिक रूचि लेगी। संगीत व नृत्य में कुशल जानकार तथा अकादमिक उपाधि प्राप्त होगी। पेशेवर नृत्यांगनाएं इसी नक्षत्र में उत्पन्न हुई होती हैं। 4. पारिवारिक जीवन-वह अपने पति के प्रति निष्ठावान तथा धार्मिक आदर्शों को मानने वाली होगी। अपने बच्चों के लालन-पालन के मामले में वह एक आदर्श माता होगी। अपने ससुराल के प्रति उसकी निष्ठा उसके निजी जीवन को और कीर्तिमान करेगी। 5. स्वास्थ्य - वह अनियमित मासिक चक्र से ग्रस्त होगी । श्राव के समय दूषित रक्त के पूर्णतया रूक जाने के कारण उसके तेज दर्द होगा। कुछ मामलों में यह बताया गया है कि माहवारी के प्रकट होने के बाद कुछ धन्टों या एक दो दिन के लिए ये श्राव रूक जाते हैं, तब वास्तविक श्राव शुरू हैं। वह सिरदर्द तथा नजला जुकाम से भी पीड़ित हो सकती है।




18- ज्येष्ठा

जन्म नक्षत्र - ज्येष्ठा ( बुद्ध )
चिह्न -कान का बाला
अधिष्ठाता देवता - इन्द्र
जाति - सेवक जाति
पहचान/प्रतीक -लाल रंग के तीन सितारे जो देखने में एक छतरी के आकार में होते हैं।
अठारहवें राशिचक्र के विस्तार में 226.40 डिग्री से 240.00 डिग्री तक का क्षेत्र ज्येष्ठ नक्षत्र है। अरबमंजिल के अनुसार यह “अल्-कलब” (बिच्छु का दिल)”; ग्रीक इसे ‘अन्तेरेस' कहते हैं। चीनी “स्यू” के अनुसार यह 'सिन' है। ज्येष्ठ नक्षत्र समूह में सीधी दिशा में तीन सितारें जो पेन्डन्ट अर्थात कान में लटकने वाली बाली के होते हैं। ज्येष्ट का अर्थ “वृद्ध” है। एक सिद्धान्त के अनुसार नक्षत्रों की श्रृंखला या श्रेणी ज्येष्ट नक्षत्र से आरम्भ हुई थी। अगर ऐसा है तो इसका अर्थ प्राचीनतम उचित है। ज्येष्ट नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता इन्द्र है । इन्द्र सृष्टि के जीवों का शरीर निर्माता है। वह वृषभ तथा शत किलाओं का विनाशक तथा सार्वभौम प्राण व जीवन के रूप में जाना जाता है। इन्द्र पाँच प्राणों (1-उदान; 2-प्राण;3-अपान; 4-समान तथा 5-व्यान) में समविष्ट है। भगवान इन्द्र का निवास अमरावती में हैं।
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
16. विशाखा री, तु, ते, तो
17. अनुराधा ना, नी, नु, ने
18. ज्येष्ठ नो, या, यि, यु
19. मूल ये, यो, भ, भी
20. पूर्व- आषाढ़ बु, धा, भा, दा
21. उत्तर- आषाढ़ बे, बो, जा, जी
22. अभिजीत ज्यू, जी, जू, खी
23. श्रवण शी, शु, श, शो
24. श्रविष्ठा ग, गी, गु, गे
25. शताभिषज गो, सा, सी, सु
26. पूर्व-भाद्रपद से, सो, ट, टी
27. उत्तर-भाद्रपद दु, था, ज्ञ, हा
28. रेवती दे, दो, चा, ची
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
सात्व गुण (सत्य) – सात्व गुण के लोग साफ दिल वाले होंगें, वे क्रमबद्ध तथा मेहनती होते हैं। उनके प्रत्येक पग में एक विलक्षण ताल अथवा प्रभाव होता है। वे फल की चिन्ता किये बिना कर्म किये जाते हैं। जिस काम को करने की वे सोच लेते हैं उनको वे पूरा करते हैं। उनकी वाह्य अभिव्यक्ति कुछ अशिष्ठ होती है। वे चित्रकला, दस्तकारी, खेलों में असाधारण सफलता प्राप्त करते हैं ।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक 1. शारीरिक गठन- उसकी बहुत अच्छी शारीरिक ऊर्जस्विता तथा आर्कषक मुखाकृति होगी। यह देखा गया है कि इस नक्षत्र में उत्पन्न प्रायः जातकों के दांत खराब होते हैं। ये दांत या तो छिदरे होते है या बाहर को निकले हुए होते हैं। अलग ये दोनों खराबियां न भी हों तो उनके दाँतों की रंगत अलग तरह की होती है। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना-जातक मन का साफ तथा मर्यादित होता है लेकिन उसके अपने विचारों को दूसरों पर प्रकट न करने की आदत के कारण उसकी ये विशेषताएं छुपी रहती है। वह छोटी सी भी समस्या का सामना नहीं कर सकता। यह ऐसा व्यक्ति होता है जिसे कोई भेद की बात अथवा गुप्त बात नहीं बतानी चाहिए। वह किसी भी बात को, चाहे वह उससे ही सम्बन्धित क्यों न हो, मन में नहीं रख सकता। जब तक वह इसे दूसरों पर प्रकट नही कर लेता वह बेचैन रहता है और ठीक से सो भी नहीं पाता इस नक्षत्र में उत्पन्न कई व्यक्ति मेरे पास आये कि उन्हें ठीक से नींद न आने की शिकायत है। जब उनसे इस शिकायत के पीछे कारणों का पता किया गया तो सभी ने माना कि उनके मन में एक विलक्षण सी उथल-पुथल रहती है और जब तक इस उथल-पुथल का कारण प्रकट न कर दिया जाये उन्हें चैन नहीं पड़ता। इसलिए वह अगली सुबह को सबसे पहले मिलने वाले व्यक्ति को सब बता देता है। जातक क्रोधी तथा दुराग्रही होता है। अपनी इस प्रवृति के कारण वह अक्सर समस्याओं का सामना करता है और अपनी प्रगति के मार्ग में बाधाएं पाता है। वह दूसरों की सलाह कभी नही मानता। वह अपनी अन्र्त्तात्मा के अनुसार कार्य करता है। सिद्धान्तों के मामले में विभिन्न विषयों पर वह बिना कोई मौका या परिस्थिति देखे फौरन निर्णय कर लेता है जिस कारण वह संदिग्ध अथवा खतरनाक परिस्थिति में फंस जाता है। अपने क्रोधी स्वभाव के कारण वह अपने हितकारियों, जिन्होने जरूरत पड़ने पर उसकी सहायता की थी, के लिए भी समस्याऐं तथा मुसीबते उत्पन्न कर देता है और उनसे बुरा बर्ताव भी करता है। उसे अपने परिजनों से किसी भी सहायता की आशा नहीं होती । ऊपर से तो वह दम्भी नजर आता है मगर जब हम उसे नजदीक से परखते हैं तो पाते हैं कि वह वास्तव में उससे विपरीत है। जातक को नशीली दवाओं, शराब आदि से दूर रहना चाहिए। क्योंकि इनके नशें में वह बहक जाने पर अपनी अर्जित प्रतिष्ठा खो बैठेगा, जिससे उसके व्यवसास तथा परिवारिक जीवन पर आघात लगेगा। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-छोटी आयु में वह घर छोड़कर दूर स्थान पर आश्रय लेगा। अपने प्रयत्नों से ही वह अपनी रोजी कमा पायेगा । अपने कार्यक्षेत्र में ईमानदारी के कारण वह अपनी वर्तमान स्थिति से जल्दी उभरता है। उसके व्यवसायों व कार्यों में अक्सर बदलाव पाया गया है। उसकी 50 वर्ष तक की आयु का समय कड़े परीक्षण का होगा। इसके बाद ही उसके जीवन में ठहराव आयेगा। 18 से 26 वर्ष की आयु का समय उसके लिए ज्यादा कष्टकारक होगा। इस समय मं आर्थिक तथा मानसिक परेशानियों से गुजरेगा यहां तक कि उसका मानसिक संतुलन भी बिगड़ सकता है। 27 वर्ष की आयु के बाद उसका जीवन ठहराव को और अग्रसर होगा और फिर भी 50 वर्ष की आयु तक यह उन्नति बहुत धीमी होगी। 4. पारिवारिक जीवन - वह अपनी माता तथा सहजातक से किसी भी सहायता की आशा नहीं रख सकता बल्कि वे उसके शत्रु बन जायेंगे। अपने परिजनों द्वारा वह पसन्द नहीं किया जायेगा। यह सब इस कारण है कि ज्येष्ट नक्षत्र में उत्पन्न जातकों का अस्तित्व व पहचान अलग होती है। उसकी पत्नी उस पर हावी रहेगी तथा उसके नशे के प्रति आदतों का प्राणपण से विरोध करेगी। जबकि उसका विवाहित जीवन सुव्यवस्थित होगा तथा इससे वह पूर्ण सुख प्राप्त करेगा। समय-समय पर पत्नी की स्वास्थ्य समस्याएं अथवा न टलने वाली परिस्थितियों के कारण उससे अलगाव उसके मन पर बहुत प्रभाव डालेगी । 5. स्वास्थ्य - जातक बुखार, पेचिस, खांसी-जुकाम, अस्थमा के प्रकोप तथा पेट की समस्याओं से प्रायः ग्रस्त रहेगा। यह देखा गया है कि ऐसे लोग प्रायः किसी न किसी रोग से ग्रस्त रहते हैं। उसे कन्धो व बाजुओं में भी तेज दर्द रहेगा।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक ज्येष्ट नक्षत्र में उत्पन्न स्त्री जातकों के परिणाम कमोबेश इसी नक्षत्र के पुरुष जातकों वाले ही होंगे। इसके अतिरिक्त निम्न परिणाम और होंगे: 1. शारीरिक गठन-लम्बे बाजुओं के साथ सुगठित और संतुलित शरीर। साधारण से ऊचाँ कद । चौड़ा चेहरा, छोटे घुंघराले बाल होंगे। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- उसमें अति भावुकता, कामुकता, ईष्या तथा गहरे प्रेम की अनुभूति होती है। वह बुद्धिमान, विचारशील तथा अनुबोधक होती है। वह अपने बारे में लोगों के विचार जानने की इच्छुक होती है। फिर भी उसकी स्वाभाविक जन्मजात स्त्रियोचित गुण उसे परिवार में दबंग नहीं बनने देंगे। वह एक अच्छी व्यवस्थापक होगी। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-खेलों में निपुण, माध्यमिक शिक्षा होगी। प्रायः घर में अपने पति की सफलता के द्वारा अपने जीवन को संवारने में संर्घषशील रहेगी। अतः ज्येष्ट नक्षत्र में उत्पन्न स्त्रियां कोई व्यवसाय या रोजगार नहीं करती । 4. पारिवारिक जीवन - उसका संतानरहित अव्यवस्थित विवाहित जीवन। कुछ मामलों में यह भी पाया गया है कि वह अपने ससुराल वालों की प्रताड़ना की शिकार होती है और उसके अपने परिजनों तथा पडौसियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए क्योंकि यही लोग उसके जीवन में जहर घोल सकते है। उसके लिए निश्चिन्त होने का कोई समय नहीं होता। जबकि वह अपने बच्चों को अपने नियमानुसार चलाना चाहती है, मगर वे बड़े होकर उसका अपने प्रति बचपन का व्यवहार देख कर, बदला लेने के लिए उसे नकार देते है। 5. स्वास्थ्य-उसका स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं होगा। इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक गर्भाश्य की अव्यवस्था (गड़बड़ी) से ग्रस्त पायी गयी हैं। उसे कन्धे और बाजुओं में दर्द, निर्बल ग्रन्थियों के फैलाव से ग्रस्त होने का योग है।




19- मूल

जन्म नक्षत्र - मूल ( केतू )
चिह्न -शेर की पूंछ अथवा हाथी के अंकुश
अधिष्ठाता देवता - निरिती
जाति - कसाई जाति
पहचान/प्रतीक -हाथी का अंकुश के आकार में 6 सितारें ।
उन्नीसवें राशि चक्र में 240.00 डिग्री से 253.20 डिग्री तक के विस्तार क्षेत्र को मूल नक्षत्र कहते हैं। अरब मंजिल के अनुसार इसे "अश-शौलह" (बिच्छु का डंक), ग्रीक इसे "स्कारपयॅन" तथा चीनी मतानुसार यह "उई" हैं। मूल अर्थात 'जड़' । यह नक्षत्र शाक्य के अनुसार, शेर की पूंछ के आकार में नौ सितारों का समूह है। अन्य धारणा इस समूह में ग्यारह सितारे बताती है। खण्ड कातक, केवल दो सितारों के होने का कहता है। मूल को विचतौ भी कहता है जिसका अर्थ “दो छोड़ने वाले” है। अथर्ववेद भी दो सितारों का होना मानता है। इसमें वर्णित है कि जब मूल नक्षत्र का उदय होता है तो“चिरकालिक बिमारियों" में राहत मिलती है। बेन्टली का कथन है कि मूल की आरम्भिक गिनती प्रथम तारापुंज के रूप में होती है। इसीलिए इसे मूल या जड़ का नाम दिया गया है। इस प्रकार मूल का अर्थ “प्रथम” या “शुरू करना” अथवा “आदि" भी हो सकता है। मूल नक्षत्र का अधिष्टाता देवता “नृति” है। नृति एक देवी है जिसकी रंग काली है और वह काली रंग का कपड़ा पहनती है। विश्वास है कि वह मृतकों के जगत में निवास करती है। वह बुराई का प्रतिनिधित्व करती है, इस कारण किसी अनुष्ठान से पूर्व, इस देवी को दूर रखने के लिए एक विशेष प्रार्थना या पूजा की जाती है। (I) मूल नक्षत्र में उत्पन्न जातकों के सामान्य परिणाम
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
16. विशाखा री, तु, ते, तो
17. अनुराधा ना, नी, नु, ने
18. ज्येष्ठ नो, या, यि, यु
19. मूल ये, यो, भ, भी
20. पूर्व- आषाढ़ बु, धा, भा, दा
21. उत्तर- आषाढ़ बे, बो, जा, जी
22. अभिजीत ज्यू, जी, जू, खी
23. श्रवण शी, शु, श, शो
24. श्रविष्ठा ग, गी, गु, गे
25. शताभिषज गो, सा, सी, सु
26. पूर्व-भाद्रपद से, सो, ट, टी
27. उत्तर-भाद्रपद दु, था, ज्ञ, हा
28. रेवती दे, दो, चा, ची
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
तामसिक गुण (निष्क्रिय) – इस समूह के व्यक्तियों में किसी भी बात को चाहे वो सही हो अथवा गलत विरोध करने की आदत होती है। जिसकारण परिवार में तथा समाज में उस व्यक्ति को टकराव का सामना करना पड़ता है। उसकी आन्तरिक शक्ति तो सकारात्मक विचार देती है, जबकि उसकी बाह्य शक्ति में नकारात्मक विचार होते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसे व्यक्ति मन से बुरे नहीं होते, लेकिन उनमें अर्न्तनिहित गुण शक्ति उन्हें तामसिक विचार प्रकट करने को बाध्य करती है। मनन या प्रार्थना के द्वारा इस अंसगति को कम किया जा सकता है। तामसिक गुणों वाली स्त्रियां 45 वर्ष की आयु में तथा पुरुष 40 वर्ष की आयु में अपने में असंगतिपूर्ण रिक्तता को विजित करने में सफल होते हैं ।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक 1. शारीरिक गठन-अच्छा शारीरिक आभास होता है, सुन्दर अंग, चंचल तथा चमकदार आंखे होती हैं। वह परिवार में सबसे आकर्षक व्यक्ति होता है। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- जातक मीठे स्वभाव का शान्तिप्रिय व्यक्ति होता है। जीवन में उसके निर्धारित नियम होते हैं। मूल नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्तियों के बारे में एक आम भय होता है। यह भय सदा नही होता। वह किसी भी विपरीत स्थिति का सामना कर सकता है। वह उस विपरीत स्थिति को भेद कर मंजिल प्राप्त करने में सक्षम होता है उसे न तो आने वाले कल की चिन्ता होती है और नही वह अपने मामलों में गम्भीर होता है। वह सब कुछ ईश्वर पर छोड़ कर आशावाद का शिकार हो जाता है। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-वह आय और व्यय में संतुलन न कर पाने के कारण कर्जों में डूबा रहता है। वह वो व्यक्ति है जो दूसरों को तो सलाह देता है मगर स्वयं उन्ही सिद्धान्तों पर अमल करने में असमर्थ होता है। उसकी यह विलक्षण आदत उसे आर्थिक या धार्मिक सलाहकार के काम के लिए योग्य पाती है। उसकी विभिन्न क्षेत्रों में कुशलता के कारण, उसके कार्य क्षेत्रों में प्रायः बदलाव होता रहेगा। किसी भी जगह पर ठहराव की स्थिति बहुत कम देखने को मिलेगी। अपनी अक्सर बदलाव की इस जन्मजात आदत के कारण वह सदैव पैसे का जरूरतमन्द रहेगा। मूल नक्षत्र में उत्पन्न जातकों में एक विशेष बात यह देखने में आती है कि वह मित्र वर्ग में अपनी आय का बड़ा भाग खर्च कर डालता है। यह स्वाभाविक है कि जब उसका खर्च आय से अधिक होगा और वह किसी गैरकानूनी काम द्वारा भी नही कमायेगा तो परिणाम नकारात्मक होंगे अतः उसे ऐसे मित्रों से दूर रहना चाहिए और जहां वह यह भी सोचता है कि दुनिया में जो कुछ भी होता है ईश्वर की इच्छा से होता है, उसे थोड़ा सा स्वार्थी बनना चाहिए और अपनी आय को बढ़ाने के प्रयत्न करने चाहिए। इस पुस्तक में, जो मैंने सभी 28 नक्षत्रों के बारे में कहा है, इनसे मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि मूल नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्ति ही अपने नियोक्ता तथा उन व्यक्तियों के प्रति जो उस पर विश्वास करते हैं, पूरी ईमानदारी तथा लग्न के साथ समर्पित होते हैं। इन लोगों के जीवन के गहन अध्यक्ष के बाद यह तथ्य प्रकट होता है कि अन्य नक्षत्रों में उत्पन्न व्यक्तियों से ये अलग अस्तित्व लिए होते हैं अर्थात कोई आन्तरिक या बाह्य शक्ति इन्हें (मूल नक्षत्र में उत्पन्न) प्रत्येक कार्य में, जो वे करते हैं, सुशिक्षित करती है। जातक अपनी आजीविका परदेश में कमायेगा। अतः यह सलाह दी जाती है कि उसे जहां तक हो सके, व्यवसाय या पेशे किसी में भी विदेश में जाने के अवसर प्रदान करने चाहिए, क्योंकि वह अपने जन्म स्थान पर अच्छा भाग्य नहीं पा सकता, जबकि वह विदेश में अच्छी सफलता प्राप्त कर सकता है । जैसा कि पहले कहा गया है कि वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दीप्तिमान होगा, विशेषकर ललितकला लेखन और समाजसेवा के क्षेत्र में। 4. पारिवारिक जीवन- अपवादों को छोड़कर, प्रायः देखा गया है कि वे मूल नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्ति अपने माता-पिता से कोई लाभ नहीं पाते, स्वनिर्मित व्यक्ति होते हैं। उनका विवाहित जीवन कमोबेश संतोषजनक होता है। उसकी पत्नी में एक अच्छी गृहणी के सभी गुण होते हैं । 5. स्वास्थ्य-उसकी जन्मकुण्डली में यदि सूर्य, चन्द्रमा तथा शुक्र आक्रान्त हैं तो जातक क्षय रोग अथवा (Isnophelia) से प्रभावित होगा। यदि यह आक्रान्त मंगल, शनि या राहू के कारण है तो लकवा या पेट की समस्याएं होगी। कोई भी रोग क्यों न हो, जातक के चेहरे या हावभाव से वह प्रकट नही होता। यहां तक कि उसके सख्त बिमार पड़ने पर भी उसके चेहरे के हावभाव तथा आर्कषण में कोई फर्क नजर नहीं आता । प्रायः देखा गया है कि जातक अपनी सेहत के प्रति लापरवाह होता है। इस कारण उसकी आयु के 27 वें, 31 वें, 44 वें, 48 वें, 56 वें तथा 60 वें वर्ष में दुष्कर स्वास्थ्य समस्याओं का उसे सामना करना पड़ेगा । एक बार वह किसी नशे का आदी हो जाये तो उसे छोड़ना जातक के लिए बहुत कठिन है । अतः उसे किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहना चाहिए ।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक 1. शारीरिक गठन-मध्यम रंग-रूप, न काला न गोरा और न ही गर्म देशों वाला सांवला रंग होगा । ठन्डे देशों में लालिमायुक्त रंग होगा। उसके मुख्य दांत घने न होकर छिदरे होते हैं जो धनवान होने की निशानी है । 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- प्राय ये साफ-दिल होती हैं। फिर भी उनमें जिद्दीपन को नकार नहीं सकते। छोटे-छोटे मामले में भी वह बहुत अडियल होती है। उसमें व्यवहार शीलता की कमी होने के कारण उसे प्रायः विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-प्रायः मूल नक्षत्र में उत्पन्न स्त्रियां ज्यादा शिक्षित नहीं होती। इन्हें पढ़ाई में कोई रूचि नही होती। प्रायः प्रत्येक क्लास दो साल में पास करती है और अन्त में वह पढ़ना ही छोड़ देती है। अपवाद के रूप में यदि बृहस्पति परोक्ष में स्थित हो अर्थात माघ नक्षत्र में स्थित हो या दृष्टिगत हो तो वह डाक्टर या किसी ईष्या करने योग्य अच्छे पद पर होंगी अर्थात ऐसी स्त्रियों का उत्तम शैक्षणिक रिकार्ड होता है तथा वे शिखर पर पहुंचती हैं। 4. पारिवारिक जीवन - इस नक्षत्र में नर जातकों के विपरीत मादा जातकों का वैवाहिक जीवन पूर्णता संतोषजनक नही होता। उसका पति से तलाक हो जाने अथवा विधवा हो जाने के कारण एकाकी जीवन देखा है। यह परिणाम प्रत्येक पर लागू नहीं होता, दूसरी हितकारी ग्रहीय स्थिति; किसी सीमा तक इन दुष्प्रभावों को नष्ट कर देती है। उसके विवाह में कोई रूकावट आ सकती है या विवाह देर से हो सकता है। यदि मंगल की स्थिति प्रतिकूल है तो उसे पति या बच्चों के कारण बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। 5. स्वास्थ्य-उसे गठिया, कमर दर्द, कूल्हों, हाथों या कन्धों में दर्द होने का योग है।




20- पूर्व आषाढा

जन्म नक्षत्र - पूर्व आषाढा ( शुक्र )
चिह्न -हाथी की सूंड
अधिष्ठाता देवता - वरूण
जाति - ब्राह्मण
पहचान/प्रतीक -4 सितारों का वर्गाकार समूह.
बीसवें राशिचक्र में 253.20 डिग्री से 266.40 डिग्री तक का विस्तार क्षेत्र पूर्व-आषाढ़ नक्षत्र कहलाता है। अरब मंजिल के अनुसार इसे “अन-नायिम” (चरते हुए पशु); ग्रीक “सेगिट्टारी" कहते है। चीनी मतानुसार यह "की" “पूर्व” का तात्पर्य “पहले का” तथा आषाढ़ का अर्थ 'अविजीत' अथवा “अशान्त” है। पूर्व आषाढ नक्षत्र समूह में हाथी की सूंड के आकार के चार सितारें होते हैं। पूर्व आषाढ़ नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता 'जल' है। इसे पानी या नीर भी कहते हैं। (1)पूर्व आषाढ़ नक्षत्र में उत्पन्न जातकों के सामान्य परिणाम पूर्व आषाढ़ नक्षत्र में किसी विशेष भाग में जन्म होने के कारण प्राप्त कष्ट या दोषों को पद-दोष कहते हैं। इस नक्षत्र के प्रथम भाग (0.00 से 3.20 डिग्री) में जातक का जन्म माता के स्वास्थ्य अथवा दीर्घायु पर प्रभाव डालता है। इसी नक्षत्र के दूसरे भाग (3.20 से 6.40 डिग्री) में जन्म उसके पिता के स्वास्थ्य या दीर्घायु पर प्रभाव डालता है। इसी नक्षत्र के तीसरे भाग(6.40 से 10.00 डिग्री) में जन्म मामा के स्वास्थ्य या दीर्घायु पर तथा चौथे भाग (10.00 से 13.20) में जन्म स्वयं जातक के स्वास्थ्य अथवा दीर्घायु पर प्रभाव डालते हैं। उपरोक्त पद-दोष प्राचीन कहावतों अथवा मान्यताओं के आधार पर होते हैं, लेकिन मेरे अनुभव के अनुसार ये पद-दोष शतप्रतिशत ठीक नहीं होते। पद-दोष के साथ जन्म का समय, सप्ताह का दिन तथा तिथि को भी ध्यान में रखकर कोई निष्कर्ष निकालना चाहिए।
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
16. विशाखा री, तु, ते, तो
17. अनुराधा ना, नी, नु, ने
18. ज्येष्ठ नो, या, यि, यु
19. मूल ये, यो, भ, भी
20. पूर्व- आषाढ़ बु, धा, भा, दा
21. उत्तर- आषाढ़ बे, बो, जा, जी
22. अभिजीत ज्यू, जी, जू, खी
23. श्रवण शी, शु, श, शो
24. श्रविष्ठा ग, गी, गु, गे
25. शताभिषज गो, सा, सी, सु
26. पूर्व-भाद्रपद से, सो, ट, टी
27. उत्तर-भाद्रपद दु, था, ज्ञ, हा
28. रेवती दे, दो, चा, ची
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
राजसिक गुण ( अशान्त) – राजसिक गुणों के लोग अशान्त जीवन जीते हैं। वे एक ही समय में बहुत से काम करना चाहते हैं, लेकिन ऐसे लोग व्यस्त दिखने का ढोंग करते हैं मगर करते कुछ नहीं। धन और सम्पत्तिी प्राप्त करना उनका प्रबल लक्ष्य होता है। उनकी आन्तरिक और बाहूय शक्तियां नकारात्मक होती हैं। वे स्वार्थी होते हैं। वे इस कहावत पर पूरे उतरते हैं- “जब एक स्त्री को पता चला कि प्रलय आने वाली है, तो उसने भगवान से प्रार्थना की हे भगवान मुझे और मेरे सुनार को प्रलय से बचा लो।” राजासिक गुणा के लोग इसी प्रवृति के होते हैं।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक 1. शारीरिक गठन-जातक का लम्बा व पतला शरीर होता है। उसके अति सुन्दर दांत, लम्बे कान, चमकदार आंखे, पतली कमर तथा लम्बे बाजू होते है। दूसरे शब्दों में उसका शारीरिक गठन आकर्षक होता है। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना-उसमें अनुकरणीय बुद्धिमता होती है। उसमें किसी भी सम्पर्क में आने वाले मामले के फौरन निष्कर्ष निकालने की प्रवृति होती है। उससे कोई बातों में जीत नहीं सकता। उसमें दूसरे को कायल कराने की असाधारण योग्यता होती है। चाहे ठीक हो या गलत किसी भी स्थिति में वह दूसरे के सामने हथियार नहीं डालता। एक तरफ तुम उससे जितनी चाहे सलाह ले लो मगर वह दूसरे की सलाह नहीं मानता। हालांकि वह साहसी होने का दम भरता है, मगर वह साहस पूर्ण कार्य तब तक नहीं कर सकता जब तक कि परिस्थितियाँ अथवा कोई व्यक्ति उसे ऐसा करने को बाध्य न कर दे। निर्णय करने के मामले में तो वह अति अस्थिर चित है। छोटे-छोटे मामलों पर भी वह निर्णय नहीं ले सकता। एक बार वह उक्साने पर या विवाद के कारण उत्तेजित हो जाता है तो किसी भी अच्छे-बुरे की सोच-समझे बिना वह एक निर्णय ले लेता है और फिर अन्त तक उसी निर्णय पर अड़ा रहता है। यदि वह अपने मामले में गलत भी हो तो कोई उसके निर्णयों को बदल नहीं सकता। वह ऐसे अड़ियल स्वभाव का होता है। बदले में कुछ पाने की इच्छा किए बगैर वह दूसरों के लिए सब कुछ करना चाहता है मगर वह तीखी आलोचना का शिकार हो जाता है। अनजान व्यक्तियों से उसे भरपूर लाभ मिलता है। वह किसी से भी स्थायी सम्बन्धी नहीं रख सकता। यदि वह विशेष लक्ष्ण तथा ईमानदारी और लग्न के साथ किसी कार्य को करे तो वह जीवन में शीर्ष स्थान पर पहुंच सकता है। वह बाहरी दिखावे से घृणा करता है। वह धार्मिक, ईमानदार, विनम्र तथा पाखण्ड से दूर रहता है। वे ऐसा काम करने की सोच भी नहीं सकता जिससे दूसरों की उन्नति में बाधा पड़ती हो । वह अति धार्मिक होगा तथा श्रद्धालु लोगों को भोजन कराने में रूचि रखने वाला होता है। अपना प्रायः समय पूजा-पाठ अथवा अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में बितायेगा । वह प्राचीन वस्तुओं का अच्छा संग्रहकर्ता होता है तथा कविताएं लिखने में रूचि लेता है। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-यद्यपि वह प्रत्येक क्षेत्र में दीप्तीमान हो सकता है, फिर भी वह डाक्टरी पेशे या ललित कलाओं के लिए विशेष रूप से योग्य होता है। उसे जब तक भरोसेमन्द कर्मचारी या मैनेजर न मिले व्यवसाय में पर्दापण नहीं करना चाहिए। वह गुप्त विद्याओं तथा दर्शनशास्त्र की तरफ आकर्षित होगा तथा दीप्तिमान होगा। 32 वर्ष तक की आयु का समय उसकी भूलों तथा संकट का समय होगा। बाद में वह सफलता की सीढ़ियां चढ़ेगा। 32 वर्ष से 50 वर्ष तक की आयु का समय उसके लिए बहुत अच्छा होगा। 4. पारिवारिक जीवन-उसे अपने माता-पिता से कोई लाभ नहीं मिलेगा। फिर भी अपने भाइयों अथवा सहजातकों से लाभ प्राप्त करने में भाग्यशाली होगा । अपना अधिकतर जीवन वह विदेशों में बितायेगा । उसका विवाहित जीवन कमोबेश सुखी होगा। विवाह देर से हो सकता है। देखा गया है कि उसका विवाह अति प्रतिस्पर्धात्मक रूप से होगा। पत्नी व ससुराल वालों की तरफ उसका झुकाव होगा। फिर भी दम्पत्ति में प्रायः विवाद होते रहेंगे। अन्त में उसे पत्नी के सान्ध्यि में ही शान्ति मिलेगी। वह अति योग्य तथा आज्ञाकारी सन्तान के मामले में भाग्यशाली होगा। उसके अधिकतम दो बच्चे होंगे जो उसका नाम रोशन करेंगे। 5. स्वास्थ्य-वह बाहर से तो बिल्कुल सामान्य नजर आता है मगर उसका भीतरी ढांजा ठीक नहीं होगा अर्थात स्वास्थ्य खराब रहेगा। अक्सर पाया गया है कि उसके किसी असाध्य रोग से ग्रस्त होने का संकेत है। फिर भी वह अपने स्वास्थ्य की परवाह नहीं करेगा। उसे तेज खाँसी, श्वास की समस्या आदि से पीड़ित होने का योग है। इसके अतिरिक्त यदि चन्द्रमा और शुक्र पर दुष्ट ग्रहों का प्रभाव हो तो ऐसे जातकों में क्षय रोग, दिल का दौरा, मलेरिया भी पाया जाता है। गम्भीर बिमारी की हालत में भी वह आवश्यक कार्यों को करने से परहेज नहीं करता। उसे जांघों तथा गठिया के दर्द का सामना करना पड़ सकता है। उसे अपने फेफड़ों का ध्यान रखना चाहिए।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक पूर्व आषाढ़ नक्षत्र में उत्पन्न मादा जातकों के भी इसी नक्षत्र में उत्पन्न स्त्री जातकों वाले कमोबेश बड़ी परिणाम होंगे। इनके अतिरिक्त निम्न परिणाम और होगें। 1. शारीरिक गठन-वह अति सुन्दर होगी। उसकी बादाम जैसी आंखों में गजब की चुम्बकीय शक्ति होगी। लम्बी नाक, मनोहर रूप, साफ रंग तथा भूरे बाल होंगे। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना-वह बुद्धिमान होगी। उसमें शक्ति उत्साह, तेज और ओजस्विता पायी जाती है। अतः उसमें हर वस्तु के प्रति लालसा होती है। फिर भी वह जिद्दी या हठीली नहीं होती। विपरीत परिस्थितियों में भी वह अधिक सफलता प्राप्त कर सकती है। वह किसी भी फैसलें पर पहुंचने से पूर्व उसके अच्छे बुरे की गहन परख करती है। जो उसके विचार में ठीक है, वही वह कहती है चाहे दूसरे इसे माने या न माने। कुत्ते आदि पालतू जानवरो से उसे लगाव होता है। वह अपने वायदों पर कायम नहीं रहती। अपने भाइयों और माता-पिता के प्रति उसमें द्वेष भावना पायी जाती है। अपने परिजनों में वह प्रमुख स्थान पर होती है। दृढ़ निश्चयी तथा सत्य निष्ट चरित्र की होती है। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन- इस नक्षत्र में उत्पन्न स्त्रियां ज्यादातर शिक्षित होती हैं। वह शिक्षिका, बैंककर्मचारी, अथवा धार्मिक संस्थाओं से सम्बद्ध होगी। यदि चन्द्रमा के साथ बुद्ध भी स्थित हो तो वह प्रकाशक या लेखक के रूप में कमायेगी। 4. पारिवारिक जीवन - वह गृह कार्यों में दक्ष होगी। आयु के बीतने के साथ-साथ उसका अपने पति के प्रति लगाव बढ़ता जाता है, परिणाम स्वरूप उसका जीवन अधिक खुशहाल होता जाता है। एक निश्चित सीमा तक संतान से लाभ प्राप्त करेगी। 5. स्वास्थ्य–सामान्यतः उसका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। पुरुष जातकों के विषय में बताए गये रोगों के अलावा उसे गम्भीर रूप से गर्भाशय और बच्चादानी की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। उसे जांघों की भी परेशानी होगी।




21- उत्तर आषाढा

जन्म नक्षत्र - उत्तर आषाढा ( सूर्य )
उत्तार- आषाढ़ की 10.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 266.40 डिग्री से 276.40 डिग्री तक) तथा अभिजीत की 4.14.13 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 276.40 डिग्री से 280.54-13 डिग्री) तक
चिह्न -रक्टोला
अधिष्ठाता देवता - विश्वदेव
जाति - क्षत्रिय
पहचान/प्रतीक -लाल रंग के 4 सितारों,जो देखने में वर्गाकार जैसा-
इक्कीसवें राशिचक्र के विस्तार में 266.40 डिग्री से 280.00 डिग्री तक का विस्तार क्षेत्र उत्तर आषाढ़ नक्षत्र कहलाता है। (भविष्यवाणी के कारण अभिजीत नक्षत्र को भी शामिल किया जाये तो उत्तरआषाढ़ नक्षत्र का विस्तार केवल 266.40 से 276.40 डिग्री तक ही होगा) । अरब मंजिल में इस नक्षत्र को ‘अल-बल्दाह’ (शहर) और ग्रीक में 'सैजिजट्राई' कहते हैं। चीनी मतानुसार यह ‘तेऊ’ है। ‘उत्तर’ का अर्थ 'बाद में' तथा आषाढ़ का अर्थ 'अविजित' अथवा ‘अशान्त’ है। उत्तर-आषाढ़ नक्षत्र समूह में 'पलंग' के आकार के चार सितारे हैं। इस नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता 'विश्वदेव' अर्थात 'देवसमूह' या विश्व के देवता है। मस्तिष्क की कोशिकाएं आकाश के सितारों की भांति होती है इनको भी विश्वदेव कहा जाता है। दूसरे शब्दों में विश्वदेव मस्तिष्क की कोशिकाओं का नियन्त्रण करने वाले देवता होते हैं। I.
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
16. विशाखा री, तु, ते, तो
17. अनुराधा ना, नी, नु, ने
18. ज्येष्ठ नो, या, यि, यु
19. मूल ये, यो, भ, भी
20. पूर्व- आषाढ़ बु, धा, भा, दा
21. उत्तर- आषाढ़ बे, बो, जा, जी
22. अभिजीत ज्यू, जी, जू, खी
23. श्रवण शी, शु, श, शो
24. श्रविष्ठा ग, गी, गु, गे
25. शताभिषज गो, सा, सी, सु
26. पूर्व-भाद्रपद से, सो, ट, टी
27. उत्तर-भाद्रपद दु, था, ज्ञ, हा
28. रेवती दे, दो, चा, ची
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
राजसिक गुण ( अशान्त) – राजसिक गुणों के लोग अशान्त जीवन जीते हैं। वे एक ही समय में बहुत से काम करना चाहते हैं, लेकिन ऐसे लोग व्यस्त दिखने का ढोंग करते हैं मगर करते कुछ नहीं। धन और सम्पत्तिी प्राप्त करना उनका प्रबल लक्ष्य होता है। उनकी आन्तरिक और बाहूय शक्तियां नकारात्मक होती हैं। वे स्वार्थी होते हैं। वे इस कहावत पर पूरे उतरते हैं- “जब एक स्त्री को पता चला कि प्रलय आने वाली है, तो उसने भगवान से प्रार्थना की हे भगवान मुझे और मेरे सुनार को प्रलय से बचा लो।” राजासिक गुणा के लोग इसी प्रवृति के होते हैं।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़, श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक 1. शारीरिक गठन-सही अनुपात में शरीर, चौड़ा सिर, लम्बा कद, लम्बी नाक तथा चमकदार आँखे होती है। साफ रंग के साथ मनोहर तथा ललित रूप होता है। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- जातक संस्कारी, मृदुभाषी, साफदिल तथा मासूम चेहरे वाला प्रतीत होता है। यदि वह समाज में बहुत अच्छी स्थिति में होगा तो आडम्बर और तड़क-भड़क दिखाना पसन्द नहीं करेगा। उसका पहनावा भी साधारण होगा। वह सभी का, विशेषकर स्त्रीवर्ग का सम्मान करता है। धार्मिक होता है। लोगों के लिए उसके गुण और अवगुणों के बारे में जानना आसान नहीं होता। उससे कई बार मिलने तथा व्यवहार करने के बाद ही जातक के स्वभाव के बारे में कोई निश्चित राय बन पाती है। प्रायः सभी मामलों में देखा गया है कि उसकी पीठ या चेहरे पर कोई तिल का निशान होता है। उसकी आँखों में लालिमा देखी गयी है। वह अपने व्यवहार में स्पष्ट होता है तथा प्रत्येक कार्य पूरी ईमानदारी से करता है। वह न तो दूसरों को धोखा देता है और न ही उनके लिए परेशानी उत्पन्न करता है। इस पर भी अपने जन्मजात अच्छी व्यवहारिक विशेषताओं के कारण वह कई बार बिना बुलाई समस्याओं में फंस जाता है। जबकि वह स्पष्ट दिल होता है वह किसी के दबाव में आकर झुकता नहीं है, और न ही किसी के प्रति पूर्ण विश्वास प्रकट करता है। लेकिन, जिसको वह विश्वास में ले लेता है, तो कोई भी उसके इस विश्वास को बदल नहीं सकता। कुछ हद तक वह चापलूसी का गुलाम होता है और दूसरों से अपनी भलाई की आशा करता है। वह निर्णय करने में जल्दबाज नहीं होता । अपने विश्वासी व्यक्तियों से पूर्ण सलाह करने के बाद ही वह किसी निष्कर्ष पर पहुंचता हैं हालांकि वह अपने सभी करने वाले कामों में रत्त होता है मगर फिर भी आदतन आराम- पसन्द होता है। मतभेद की हालत में भी वह किसी से कटुवचन नहीं बोलता तथा अपने विरोधी को भी, उस पर अपनी अप्रसन्नता अथवा नाराजगी को प्रकट नहीं होने देता। वह अपनी दुर्भावना को प्रकट किये बिना दूसरों से गंभीर विचार विर्मश करता है। अपनी अल्पायु में ही उसे जिम्मेदारियां उठानी पड़ती हैं, इस कारण से वह किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी को निभाने में दक्ष होता है। एक बार वह कायल कर दिया जाये कि उसका कोई कृत्य अथवा कथन गलत है तो उस पर पछताने तथा अफसोस प्रकट करने में संकोच नहीं करता । उसका प्रत्येक कार्य दूसरों की मान्यता पर निर्भर होता है, अन्यथा वह कष्टप्रद स्थिति में पड़ जाता है। एक स्तर पर वह पूर्णता सुखी होता है तो दूसरे स्तर पर वह पूर्ण दुखों के सागर में गोते लगा रहा होता है। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-किसी भी विवादास्पद व्यवहार में उसे सावधानी अपनानी चाहिए। किसी भी साझेदारी में पड़ने से पहले उसे उस व्यक्ति को अच्छी प्रकार से परख लेना चाहिए, जिसके साथ वह संयुक्त कारोबार करने जा रहा है। अन्यथा उसे असफलताओं का मुंह देखना पड़ेगा। 38 वर्ष की आयु के बाद का समय उसके लिए चौतरफा सफलता और समृद्धि का समय होगा । 4. पारिवारिक जीवन-सामान्यतया उसका बचपन अच्छा होगा। प्रायःउसकी पत्नी जिम्मेदार तथा स्नेहमयी होगी। साथ ही पत्नी का स्वास्थ्य उसकी चिन्ता का भी कारण होगा। साथ ही पत्नी का स्वास्थ्य उसकी चिन्ता का भी कारण होगा। उसकी पत्नी को अम्लता तथा गर्भाशय की समस्याएं होंगी। उपरोक्त तुलनात्मक फायदों के अतिरिक्त, उसे बच्चों से सुख नहीं मिलेगा, वहीं उसके दुखों का मुख्य कारण भी यही बच्चे होंगे। 5. स्वास्थ्य-उसे पेट की समस्याओं, लकवा, फेफड़ों की बिमारियां होने का योग है। कमजोर नज़र तथा आँखों के दोष से भी वह पीड़ित होगा।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक उत्तरआषाढ़ नक्षत्र में उत्पन्न स्त्री जातकों के इसी नक्षत्र में उत्पन्न पुरुष जातकों वाले कमोबेश वहीं परिणाम होंगे। इनके अतिरिक्त निम्न परिणाम और होंगे- 1. शारीरिक गठन-उसका चौड़ा माथा, लम्बी नाक, आकर्षक आँखें,सुन्दर दांत तथा सुगठित शरीर होगा मगर बाल सुन्दर नहीं होंगे। 2. स्वभाव और सामान्य घटना-इन स्त्रियों में सबसे बड़ा दोष यह होता है कि वे हठी किस्म की तथा दुसाहसी होती है। वह बिना सोचे विचारे बोलती है तथा दूसरों से झगड़े मोल लेती हैं। ऐसी स्त्रियां आ बैल मुझे मार वाली प्रकृति की होती है। इनके बावजूद उनके रहन सहन का स्तर बहुत सादा होता है । 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन - इस नक्षत्र में उत्पन्न स्त्रियां प्रायः शिक्षित होती हैं। वह शिक्षिका, बैंक कर्मचारी अथवा किसी धार्मिक संस्थान से सम्बद्ध होगा। यदि चन्द्रमा के साथ बुद्ध भी स्थित हो तो वह लेखक या प्रकाशक के रूप में भी कमायेंगी। 4. परिवारिक जीवन-वह सदैव अपने पति के बिछुड़ने अथवा किसी अन्य समस्या के बारे में चिंतित रहेगी, जिस कारण वह विवाहित जीवन की सही खुशियां प्राप्त नहीं कर पायेगी। वह धार्मिक विचारों की होगी तथा सभी व्रत अनुष्ठान आदि धार्मिक कृत्य करेगी। रेवती अथवा उत्तरभाद्रपद नक्षत्रों में उत्पन्न युवक से उसका विवाह उसे पूर्ण सुख प्रदान करने वाला होगा। 5. स्वास्थ्य-वह गैस, हरन्या अथवा गर्भाशय आदि की समस्याओं से पीड़ित होगी ।




22- श्रवण

जन्म नक्षत्र - श्रवण ( चन्द्रमा )
चिह्न -तीर/कान
अधिष्ठाता देवता - विष्णु
जाति - शूद्र
पहचान/प्रतीक -तीर के जैसे और कभी कभी मानव कान के आकार में तीन सितारें ।
तेइसवें राशिचक्र में 280.00 डिग्री से 293.20 डिग्री तक के विस्तार का क्षेत्र श्रावण नक्षत्र कहलाता है। (यदि अभिजीत नक्षत्र को भी शामिल किया जाए तो श्रावण नक्षत्र का विस्तार केवल 280.54.13 डिग्री से 293.20 डिग्री तक का होगा) अरब मंजिल के अनुसार इसे 'सद्-बुला' (भक्षण करने में आनन्द करने वाला) अथवा 'अलबुला' (भक्षण करने वाला) कहते हैं, ग्रीक इसे ‘अक्वेरी' तथा चीनी मतानुसार यह 'न' कहलाता है। श्रावण का तात्पर्य ‘सुनना’ है। तैत्रिय में श्रावण को 'श्रोण' भी कहते हैं जिसका अर्थ ‘लगंड़ा’ है। श्रावण नक्षत्र के प्रतीक तीन सितारे हैं। इस नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता विष्णु है। श्रावण के तीन सितारें भगवान विष्णु के तीन पद-चिन्ह है। विष्णु हिन्दु विचारधारा में तीन ईश्वरों में से एक है। विष्णु (वि + ष्णु) अर्थात 'वह जिसने ऊँचाइयों को पार कर लिया है' अथवा दूसरे शब्दों में हर काम में “उन्नति” किया हो। विश्वास किया जाता है कि श्रावण की देवी सरस्वति, जो विद्या की भी देवी है, का नक्षत्र है। इसकी पूजा शुक्ल पक्ष की पंचमी को की जाती है(जबकि सूर्य श्रावण नक्षत्र में तथा चन्द्रमा रेवती नक्षत्र में होता है)।
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
16. विशाखा री, तु, ते, तो
17. अनुराधा ना, नी, नु, ने
18. ज्येष्ठ नो, या, यि, यु
19. मूल ये, यो, भ, भी
20. पूर्व- आषाढ़ बु, धा, भा, दा
21. उत्तर- आषाढ़ बे, बो, जा, जी
22. अभिजीत ज्यू, जी, जू, खी
23. श्रवण शी, शु, श, शो
24. श्रविष्ठा ग, गी, गु, गे
25. शताभिषज गो, सा, सी, सु
26. पूर्व-भाद्रपद से, सो, ट, टी
27. उत्तर-भाद्रपद दु, था, ज्ञ, हा
28. रेवती दे, दो, चा, ची
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
राजसिक गुण ( अशान्त) – राजसिक गुणों के लोग अशान्त जीवन जीते हैं। वे एक ही समय में बहुत से काम करना चाहते हैं, लेकिन ऐसे लोग व्यस्त दिखने का ढोंग करते हैं मगर करते कुछ नहीं। धन और सम्पत्तिी प्राप्त करना उनका प्रबल लक्ष्य होता है। उनकी आन्तरिक और बाहूय शक्तियां नकारात्मक होती हैं। वे स्वार्थी होते हैं। वे इस कहावत पर पूरे उतरते हैं- “जब एक स्त्री को पता चला कि प्रलय आने वाली है, तो उसने भगवान से प्रार्थना की हे भगवान मुझे और मेरे सुनार को प्रलय से बचा लो।” राजासिक गुणा के लोग इसी प्रवृति के होते हैं।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक 1. शारीरिक गठन-जातक का आकर्षक शरीर होगा, प्रायः छोटा कद, चेहरे पर कोई विलक्षण चिन्ह, तिल अथवा अन्य कोई निशान होगा, जो कुछ कुरूपता लिए होगा। कुछ मामलों में कन्धों के नीचे काला तिल पाया जाता है। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना-जातक मधुर भाषी तथा प्रत्येक कार्य सफाई व कुशलता से करने वाला होगा। उसके जीवन में निश्चित सिद्धान्त होते हैं। वह अपना वातावरण साफ चाहता है और जो व्यक्ति सफाई न रखने की प्रकृति के होते हैं, उन्हें वह पसन्द नहीं करता। बेढ़ंगे व्यक्ति को देख कर वह उसे टोकने से संकोच नहीं करता। वह दूसरों की दुर्दशा में देखकर द्रवित हो जाता है और उनकी हर संभव सहायता करता है। वह साफसुथरा भोजन करता है, इस कारण से वह एक अच्छा आतिथ्य करने वाला भी होता है वह धार्मिक तथा गुरुभक्त व्यक्ति होता है । वह 'सत्यमेव जयते' में विश्वास रखता है। जिनकी वह निस्वार्थ सहायता करता है उनसे वह कुछ भी पाने की आशा नहीं रखता मगर देखा गया है कि उसे दूसरों से धोखा व फरेब ही मिलता है। यदि वह किसी चोर को पकड़ लेता है तो पहले वह उसके चोर बनने के पीछे कारणों का पता करेगा और उसकी बेगुनाही का यकीन हो जाने पर वह उसे छोड़ भी देगा। उसका शान्तिपूर्ण आभास तथा उनकी अर्न्तनिष्ट विशेषता तथा व्यवहार कुशलता लोगों के मन को मचती है अतः वह आधुनिक समय में एक कुशल राजनीतिज्ञ हो सकता है। उसकी एक मुस्कान लोगों को आर्कषित करने के लिए यथेष्ट होती है और एक बार आर्कषित होने के बाद उसे भुला पाना कठिन होता है उसके जीवन में कितने ही उतार-चढ़ाव आये वह न तो शीर्ष पर उठेगा और न ही रसातल में गिरेगा। दूसरे शब्दों में वह सामान्य जीवन व्यतीत करेगा इस नक्षत्र में उत्पन्न अनपढ़ व्यक्ति भी पूर्ण परिपक्वता दिखाते हैं तथा अवसर पाने पर ज्ञान अर्जित करने की इच्छा रखते हैं। वह अच्छा सलाहकार होता है। व्यक्तिगत तथा सामूहिक समस्याओं के समाधान के लिए लोग उस पर निर्भर होते हैं। वह बहुमुखी तथा प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति होगा। उसमें एक समय में कई कार्यों को सम्पन्न करने की क्षमता होगी। यदि वह किसी ऐसे पद पर नियुक्त हो जहां कुछ शक्ति और अधिकार निहित हो तो वह बहुत दीप्तिमान होगा। वह सदैव इसी प्रकार के अधिकारपूर्ण कार्यों/पदों की तलाश में रहता है. वह बहुत सी जिम्मेदारियां दिलाता है और उन पर खर्च भी करता है, इस कारण वह सदा धन का जरूरतमन्द रहेगा। अपने कट्टर शत्रु से भी बदला लेना नहीं चाहता उसका विचार होता है कि ईश्वर उसके किये की सजा देगा। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-सामान्यता उसकी 30 वर्ष तक की आयु का समय परिवर्तनशील होगा । 30 से 45 वर्ष की आयु के बीच उसके जीवन के क्षेत्र में स्थिरता आयेगी । हितकारी ग्रहों की स्थिति के कारण वह यदि 6: वर्ष की आयु के बाद भी जीवित रहता है तो उसे सामाजिक तथा आर्थिक उन्नति की आशा करनी चाहिए। जातक मशीनी या तकनीकी अथवा इंजीनियरिंग कार्यों के लिए उपयुक्त है। वह पैट्रोलियम अथवा तेल उत्पादन से भी सम्बद्ध हो सकता है। 4. पारिवारिक जीवन-उसका विवाहित जीवन असाधारण रूप से सुखी होगा। उसकी पत्नी एक अच्छी गृहिणी के गुणों से सम्पन्न और आज्ञाकारिणी होगी। फिर भी जातक के अन्य स्त्रियों से काम-सम्बन्धों को नकारा नहीं जा सकता । 5. स्वास्थ्य-वह कान की समस्याओं, त्वचा के रोग, एग्जीमा, दमा,क्षय रोग तथा अपच से पीड़ित हो सकता है।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक - श्रवण नक्षत्र में उत्पन्न स्त्री जातकों के कमोबेश इसी नक्षत्र में उत्पन्न पुरुष जातकों वाले ही परिणाम होंगे। इनके अतिरिक्त निम्न परिणाम और होंगे : 1. शारीरिक गठन-लम्बा व पतला शरीर । चौड़े चेहरे तथा तुलनात्मक रूप से बड़ा सिर। बड़े-बड़े दांत, सामने के दांतो के बीच अन्तर होगा। उन्नत नाक होगी। 2. स्वभाव और सामान्य घटना- दान करने में विश्वासी तथा धार्मिक प्रकृति की होगी, कई तीर्थ यात्राएं करेगी। भीतर से वह कपटी होगी। फिर भी गरीबों से सहानुभूति तथा जरूरतमन्दों के प्रति उसमें दयालुता पायी जाती है। वह दिखावेबाज होती है। उसमें परिस्थिति के अनुसार स्वयं को ढ़ालने की योग्यता है, मगर अपने पति के अनुसार स्वयं को नहीं ढ़ालेगी। अति बातूनी होगी तथा अपनी जिव्हा पर काबू नहीं कर पाती । 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-उ-अच्छी नृत्यांगना होगी और विभिन्न ललित कलाओं में उसकी रूचि होगी। अनपढ़ स्त्रियां खेत-खलिहान अथवा कुआं खोदने का कार्य करेंगी। माध्यमिक शिक्षा के साथ अन्य स्त्रियां टाइपिस्ट कर्लक या स्वागतकर्ता की नौकरी करेगी। 4. परिवारिक जीवन-उसके परिवार को उस पर गर्व होगा । वह हर मामले में पूर्ण दक्षता चाहती है, इस कारण से उसका समय-समय पर अपने पति से विवाद होता रहेगा । उसे दूसरों से पूर्ण दक्षता की आशा नहीं रखनी चाहिए। जैसा कि पहले कहा गया है कि वह किसी भी परिस्थिति के अनुसार स्वयं को ढ़ाल सकती है, उसका यह व्यवहार केवल बाहर वालों के लिए होगा न कि अपने पति के प्रति, जिसे वह पूर्ण संभ्रान्त समझती है। 5. स्वास्थ्य-वह किसी त्वचा के रोग से ग्रस्त होगी। उसे एग्जीमा, फिलेरिया, मवाद पड़ना, क्षय रोग आदि से पीड़ित होने का संकेत है। मामूली प्रकार के कुष्ट रोग को भी नकारा नहीं जा सकता। उसे कान की भी समस्या होगी। सामान्य विश्वास है कि इस नक्षत्र के प्रभाव के समय यौवनाशम (रजोनिवृति) होने पर उसके नेक संतान होगी ।




23- धनिष्ठा

जन्म नक्षत्र - धनिष्ठा ( मंगल )
चिह्न -ढोल
अधिष्ठाता देवता - अष्टवसु
जाति - सेवक जाति
पहचान/प्रतीक -ढोल अथवा मृदंग के आकार में चार सितारों का समूह
चौबीसवें राशिचक्र में 293.20 डिग्री से 306.40 डिग्री तक का विस्तार क्षेत्र श्रविष्ठा नक्षत्र कहलाता है। अरब मंजिल में इसे 'साद-अस-सूद' (अति-प्रसिद्ध) तथा ग्रीक इसे ‘डेलफिनी’ कहते हैं। चीनी मतानुसार इसे 'हय' कहते हैं। श्रविष्ठा का अर्थ 'अति प्रसिद्ध' है। इसे 'धनिष्ठ' जिसका भी अर्थ यही है, भी कहते हैं। लेकिन यदि इसके संक्षिप्त रूप 'धनिन' को अपनाये तो इसका अर्थ 'धनि' होगा। इस नक्षत्र समूह के 'ढोल' के आकार के चार सितारे हैं । श्रविष्ठा नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता 'अष्ट वसवास' है। ये अष्ट वास आठ वेदिक देवता है, जो इस प्रकार है : धरा, ध्रुव, सोम, विष्णु, अनल, अनिल, प्रत्युस और प्रोवास। बंगाल में मान्यता है कि ये वावस (बंगला भाषा में बासु) गंगा नदी से उत्पन्न हुए हैं।
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
16. विशाखा री, तु, ते, तो
17. अनुराधा ना, नी, नु, ने
18. ज्येष्ठ नो, या, यि, यु
19. मूल ये, यो, भ, भी
20. पूर्व- आषाढ़ बु, धा, भा, दा
21. उत्तर- आषाढ़ बे, बो, जा, जी
22. अभिजीत ज्यू, जी, जू, खी
23. श्रवण शी, शु, श, शो
24. श्रविष्ठा ग, गी, गु, गे
25. शताभिषज गो, सा, सी, सु
26. पूर्व-भाद्रपद से, सो, ट, टी
27. उत्तर-भाद्रपद दु, था, ज्ञ, हा
28. रेवती दे, दो, चा, ची
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
तामसिक गुण (निष्क्रिय) – इस समूह के व्यक्तियों में किसी भी बात को चाहे वो सही हो अथवा गलत विरोध करने की आदत होती है। जिसकारण परिवार में तथा समाज में उस व्यक्ति को टकराव का सामना करना पड़ता है। उसकी आन्तरिक शक्ति तो सकारात्मक विचार देती है, जबकि उसकी बाह्य शक्ति में नकारात्मक विचार होते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसे व्यक्ति मन से बुरे नहीं होते, लेकिन उनमें अर्न्तनिहित गुण शक्ति उन्हें तामसिक विचार प्रकट करने को बाध्य करती है। मनन या प्रार्थना के द्वारा इस अंसगति को कम किया जा सकता है। तामसिक गुणों वाली स्त्रियां 45 वर्ष की आयु में तथा पुरुष 40 वर्ष की आयु में अपने में असंगतिपूर्ण रिक्तता को विजित करने में सफल होते हैं ।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़, श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक 1. शारीरिक गठन-सामान्य जातक लम्बे कद का व पतले शरीर का होता है। अपवाद के रूप में कुछ स्थूल शरीर भी पाये जाते हैं। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- वह अपने प्रत्येक कार्य में दक्ष होता है। वह तेज दिमाग, बुद्धिमान तथा ज्ञानवान होता है। वह मन, वचन तथा कर्म द्वारा किसी को भी कष्ट नहीं देता। फिर भी वह धर्मात्मा पाया गया है और अपने चरित्रबल, योग्यता तथा प्रयत्नों के द्वारा सदैव शुभ आचरण करता है। अंतिम क्षण तक वह किसी के प्रति अपनी नापसन्दगी को प्रकट नहीं करता । जिस प्रकार हाथी अपने पर वार को चुपचाप सह लेता है और उस अवसर का इंतजार करता है जबकि वह शत्रु को असावधान पाकर कुचल डालता है। इसी प्रकार श्रविष्ठा नक्षत्र में उत्पन्न जातक भी अपने विरोधी अथवा शत्रु पर वार करने के लिए उचित अवसर की प्रतिक्षा करता है। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-मैंने जितनी भी जन्मकुंडलियां देखी है तो पाया है कि प्रायः वैज्ञानिक और इतिहासकार इसी नक्षत्र में उत्पन्न हुए हैं। इन जातकों में किसी बात या भेद को गुप्त रखने की जन्मजात योग्यता होने के कारण वे खुफिया विभाग, उच्चाधिकारियों के निजी सचिव के पद के लिए पूर्णता योग्य होते हैं । उसकी शिक्षा कुछ भी हो मगर उसकी बुद्धिमता तथा समझ संदेह से परे है। वाद-विवाद में भी वह सर्वोपरि होने के कारण वकील के पेशे के लिए भी उपयुक्त है। सामान्यता 24 वर्ष की आयु के बाद वह अपने उपार्जन क्षेत्र में उन्नति करेगा। वह ऐसे व्यवसाय अथवा धन्धों में लगा होगा जिनमें दूसरों पर भरोसा करना होता है अतः उसे किसी पर भी विश्वास करने से पूर्व पूर्ण सावधानीपूर्वक जांच कर लेनी चाहिए। 4. पारिवारिक जीवन - अपने परिवार के क्षेत्र में भी वह सर्वोच्च प्रशासक होता है। उसके परिजन उसके लिए बहुत सी उलझनें तथा परेशानियां उत्पन्न करेंगे। वह अपने बहन-भाइयों के प्रति समर्पित होगा । ग्रहों की शुभ स्थिति होने की दशा में उसे उत्तराधिकार में काफी सम्पत्ति मिलेगी। अपनी ससुराल की तरफ से कोई विशेष लाभ नहीं होगा। लेकिन यह दोष उसकी पत्नी के सदगुणों के कारण परोक्ष में चला जायेगा। उसकी पत्नी लक्ष्मी का रूप होगी। अधिक स्पष्ट करने के लिए जातक की आर्थिक उन्नति उसके विवाह के बाद ही होगी। यह भी पाया गया है कि श्रविष्ठा नक्षत्र में उत्पन्न जिन जातकों की जन्म कुण्डली में सूर्य और बुद्ध इक्टठे स्थित हो तो जातक की पत्नी की मृत्यु होती देखी गई है। 5. स्वास्थ्य – उसका स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं होगा । उसे अपने स्वास्थ्य की चिन्ता नहीं होगी। जब उसका रोग चरम सीमा पर पहुंचता है तब वह उसके उपचार की सोचता है। थोड़ा सा रोग में आराम पाते ही वह फिर से अपने काम में जुट जाता है। उसे सूखी खांसी, अनिमिया आदि रोग होने का संकेत है। फिर भी वह लम्बे समय तक बिमार नहीं रहेगा ।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक - श्रविष्ठा नक्षत्र में उत्पन्न स्त्री जातकों के इसी नक्षत्र में उत्पन्न पुरुष जातकों वाले कमोवेश वही परिणाम होंगे। 1. शारीरिक गठन-मनोहर व कमनीय रूप । अपनी प्रोढ़ावस्था में भी कमनीय तथा आकर्षक नजर आयेगी। भारी होंठों के साथ चुम्बकीय व्यक्तित्व। कुछ मामलों में उसके बाहर को निकले हुए दांतों के कारण भद्दापन भी मिलता है। 2. स्वभाव और सामान्य घटना - जीवन में महत्वाकांक्षी होने के साथ फिजूज खर्च होगी। सुशील तथा उदार व्यक्तित्व। कमजोरो के प्रति सहानुभूतिपूर्ण । श्रावण नक्षत्र में उत्पन्न मादा जातकों की भांति कार्यान्वित करने वाली होगी। उसे परिवार में अनुकूल वातावरण बनाये रखने के लिए अपनी भावनाओं पर काबू पाना चाहिए। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-शिक्षा के क्षेत्र में मिश्रित प्रतिभाएं देखी गई हैं। कुछ साहित्य में तथा कुछ विज्ञान में रूचि रखती हैं। अतः वे प्रायः शिक्षिका, प्राध्यापिका अथवा रिसर्च छात्रा पायी जाती है। 4. परिवारिक जीवन-गृह प्रबन्ध में कुशल पाई जाती है। 5. स्वास्थ्य - उसका स्वास्थ्य अच्छा नहीं होगा। वह अनिमिया, रक्तदोष तथा गम्भीर रूप से गर्भाशय की बिमारियों से ग्रस्त होगी। यह भी विश्वास किया जाता है कि इस नक्षत्र के प्रभाव के दौरान यौवन (रजोधर्म) को प्राप्त करने वाली स्त्रियों के पास धन-दौलत की प्रचुरता होगी।




24- शतभिषा

जन्म नक्षत्र - शतभिषा ( राहू )
चिह्न -100 पुष्पों का गुच्छा
अधिष्ठाता देवता - वरूण
जाति - कसाई जाति
पहचान/प्रतीक -100 सितारों के एक समूह जो एक फूल की जैसे दिखते हैं
25वें राशिचक्र में 306.40 डिग्री से 320.00 डिग्री तक का विस्तार क्षेत्र शताभिषज नक्षत्र कहलाता है। अरब मंजिल में इस नक्षत्र को 'सद्-अल अषियो (म्बू का परम सुख) तथा 'साद-अल-मेलिक' (राजा का भाग्यशाली सितारा); ग्रीक भाषा में इसे 'अक्वेरी' कहते हैं। चीनी मतानुसार यह 'गोइ' है। 'शताभिषज' शब्द पर एक सन्देह है कि इसे "चत या षट" अर्थात "सौ” और अभिषजस अर्थात चिकित्सक सही शब्द “अभिषजस” होना चाहिए,“अभिषज” नहीं। इसके शब्दार्थ से देखा जाये तो शताभिषज नक्षत्र के प्रतीक फूल के आकार के सौ सितारे होते हैं। खण्डकातक में इस नक्षत्र का प्रतीक एक सितारा ही माना जाता है । शताभिषज नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता वरूण है, जो वर्षा का देवता तथा आदित्यों में से एक है । सम्पूर्ण बाह्य जगत-भूमि, समुद्र तथा वायुमण्डल-वरुण से सम्बद्ध है। अकाल की स्थिति में वर्षा के लिए वरूण देवता की पूजा की जाती है। विश्वास किया जाता है कि वरूण अन्तरिक्ष में घूमता है तथा अधिमुख आरोहित रेडियोधर्मिता शक्तियों को मूलतत्व से नियन्त्रित करता है। वह 'निरिति' जो कि शुभ कार्यों और मांगलिक समारोहों में बाधक मानी जाती है, से बचाने के लिए शक्ति ग्रहण करता है। उसे चिकित्साशास्त्र का देवता भी माना गया है।
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
16. विशाखा री, तु, ते, तो
17. अनुराधा ना, नी, नु, ने
18. ज्येष्ठ नो, या, यि, यु
19. मूल ये, यो, भ, भी
20. पूर्व- आषाढ़ बु, धा, भा, दा
21. उत्तर- आषाढ़ बे, बो, जा, जी
22. अभिजीत ज्यू, जी, जू, खी
23. श्रवण शी, शु, श, शो
24. श्रविष्ठा ग, गी, गु, गे
25. शताभिषज गो, सा, सी, सु
26. पूर्व-भाद्रपद से, सो, ट, टी
27. उत्तर-भाद्रपद दु, था, ज्ञ, हा
28. रेवती दे, दो, चा, ची
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
तामसिक गुण (निष्क्रिय) – इस समूह के व्यक्तियों में किसी भी बात को चाहे वो सही हो अथवा गलत विरोध करने की आदत होती है। जिसकारण परिवार में तथा समाज में उस व्यक्ति को टकराव का सामना करना पड़ता है। उसकी आन्तरिक शक्ति तो सकारात्मक विचार देती है, जबकि उसकी बाह्य शक्ति में नकारात्मक विचार होते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसे व्यक्ति मन से बुरे नहीं होते, लेकिन उनमें अर्न्तनिहित गुण शक्ति उन्हें तामसिक विचार प्रकट करने को बाध्य करती है। मनन या प्रार्थना के द्वारा इस अंसगति को कम किया जा सकता है। तामसिक गुणों वाली स्त्रियां 45 वर्ष की आयु में तथा पुरुष 40 वर्ष की आयु में अपने में असंगतिपूर्ण रिक्तता को विजित करने में सफल होते हैं ।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक 1. शारीरिक गठन-उसका कोमल शरीर, अत्युत्तम स्मरण शक्ति, चौड़ा माथा, आकर्षक नेत्र, चमकदार चेहरा, ऊँची नाक तथा उभरा हुआ पेट होता है। पहली दृष्टि में ही वह देखने पर शाही परिवार से सम्बन्धित नजर आता है। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- वह 'सत्यमेव जयते' प्रकार का व्यक्ति है अर्थात सत्य के लिए वह प्राण भी देने में संकोच नहीं करता। उसके कुछ जन्मजात सिद्धान्त होते हैं और अपने जीवन के इन सिद्धान्तों से न हट पाने के कारण उसका लोगों से प्रायः टकराव होता रहता है। उसका उद्देश्य निस्वार्थ सेवा हैं। वह धार्मिक मान्यताओं को अपनाने पर बल देता है। वह अड़ियल प्रकार का व्यक्ति भी होता है। वह एक बार जो निर्णय कर लेता है फिर उसे कोई हटा नहीं सकता। जीवन के प्राय हर क्षेत्र में वह मेधावी तथा सक्षम होता है साथ ही वह नरम दिल भी होता है। वह अच्छे और बुरे का मिश्रण है।जब उसे उत्तेजित किया जाता है तो वह सुखार हो जाता है, लेकि जल्दी ही उसका क्रोध बैठ जाता है। जैसा कि वह दिखावेबाजी में विश्वास नहीं रखता वह अपनी विद्वता का प्रदर्शन करने में संकोच करता है हालांकि बातचीत के दौरान उसकी विद्वता उसके उपदेशों तथा शिक्षाओं के रूप में प्रकट होती है। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-व्यवसायिक क्षेत्र में उसका 34 वर्ष तक की आयु का समय मुश्किलों का समय होता है। इस अवस्था के बाद उसके लिए सतत प्रगति का योग है । वह ज्योतिष मनौवैज्ञानिक तथा चिकित्सा के पेशे के लिए उपयुक्त है। उसकी छोटी से उम्र में ही उसकी साहित्यक प्रतीभा तथा महानता प्रकाश में आयेगी। वह श्रेष्ठ तथा उच्च शिक्षा प्राप्त में सक्षम होगा। इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक अच्छा डॉक्टर तथा चिकित्सा के क्षेत्र में उत्तम अनुसन्धान छात्र होता है। 4. पारिवारिक जीवन-सामान्यता उसे अपने प्रियजनों के द्वारा उत्पन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। फिर भी वह बिना उनके याचना किये उन्हे भरपूर सहायता प्रदान करता है। यह भी देखा गया है कि वह अपने भाइयों के कारण अधिकतम मानसिक वेदना सहता है। उसे अपने पिता से भी कोई लाभ प्राप्त नहीं हो सकेगा, जबकि उसे माता से भरपूर स्नेह और देखभाल मिलेगी। 5. स्वास्थ्य-देखने में तो वह पूर्ण स्वस्थ नजर आता है, मगर वास्तव में ऐसा नहीं है। वह अपने शरीर पर छोटा-सा भी दुष्प्रभाव सह नहीं पाता। उसे मूत्र की बिमारियां, सांस की तकलीफ तथा मधुमेह होने का संकेत है। उसके मैथुन क्रिया में अधिक इच्छा रखने के कारण वह यौन रोगों से भी ग्रस्त हो सकता है। फिर भी उसके गुप्त रूप से अन्य स्त्रियों के साथ अवैध सम्बध होंगे। उसे अपने जबड़े की भी परेशानी होगी। वह उदरशूल से ग्रस्त होगा । उसे स्वयं को ठन्डे मौसम के कारण होने वाले रोगों से बचाव के लिए सावधानी अपनानी चाहिए ।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक 1. शारीरिक गठन- पतली तथा लम्बे कद की मनोहर तथा साफ रंग, सुरूचिपूर्ण स्वभाव। प्रफुल्ल होठ, चौड़े गाल, उन्नत सिर तथा कूल्हों वाली होगी। 2. स्वभाव और सामान्य घटना- शान्त स्वभाव की होगी लेकिन कभी-कभी वह क्रोधित व उत्तेजित भी हो जाती है। धार्मिक स्वभाव की होने के कारण धार्मिक अनुष्ठान, व्रत उपवास आदि करेगी। उसके तेज स्वभाव के कारण उसका अपने परिवार के लोगों से झगड़ा होता रहेगा तथा मानसिक रूप से शान्ति नहीं पा सकेगी। उसकी स्मरण-शक्ति काफी तेज होगी। अति सहानुभूतिपूर्ण व दयालु। अपने मानवता के प्रति निस्वार्थ भलाई करने पर भी उसे आम लोग ही नहीं बल्कि घर के लोग भी गलत समझेंगे। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-विज्ञान विषयों के अध्ययन में रूचि/आकंलन करने पर पता चलता है कि अधिकतर महिला डॉक्टर इसी नक्षत्र में उत्पन्न हुई होती है। 4. परिवारिक जीवन - वह अपने पति को प्यार तथा आदर देगी फिर भी उसका जीवन समस्याओं से पूर्ण होगा। कभी-कभी लम्बा बिछड़ाव अथवा विधवा होना भी पाया जाता है। इस नक्षत्र के प्रभाव के समय यौवन (रजोधर्म) को प्राप्त स्त्रियों के पुत्रियां अधिक होगी। 5. स्वास्थ्य-उसका स्वास्थ्य उसकी चिंता का विषय रहेगा। मूत्राशय तथा गर्भाशय की खराबी, उदरशूल तथा छाती के दर्द से परेशान रहेगी ।




25- पूर्व भाद्रपद

जन्म नक्षत्र - पूर्व भाद्रपदा ( बृहस्पति )
चिह्न -तलवार
अधिष्ठाता देवता - अजयकापत
जाति - ब्राह्मण
पहचान/प्रतीक - तलवार के आकार में 2 सितारें ।
26 वें राशिचक्र के विस्तार में 320.00 डिग्री से 333.20 डिग्री तक का क्षेत्र पूर्वभाद्रपद नक्षत्र कहलाता है। अरब मंजिल में इसे “अल-फरग-अल-मुकदिम” (पानी के मर्तबान की चार टोंटिया) ग्रीक “पेगसी” कहते हैं। चीनी मतानुसार यह “चे” है। ‘पूर्व' अर्थात “पहलेवाला” + “भाद्र” “सुन्दर” + 'पद' अर्थात पांव। पूर्व भाद्रपद नक्षत्र के प्रतीक चौकी के आकार के दो सितारे होते हैं। इस नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता “अज-एकापथ" (रूद्र अथवा शिव का एक रूप) जिसका अर्थ एक पांव की बकरी होता है। यह पुराणों में वर्णित एक देवता है।
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
16. विशाखा री, तु, ते, तो
17. अनुराधा ना, नी, नु, ने
18. ज्येष्ठ नो, या, यि, यु
19. मूल ये, यो, भ, भी
20. पूर्व- आषाढ़ बु, धा, भा, दा
21. उत्तर- आषाढ़ बे, बो, जा, जी
22. अभिजीत ज्यू, जी, जू, खी
23. श्रवण शी, शु, श, शो
24. श्रविष्ठा ग, गी, गु, गे
25. शताभिषज गो, सा, सी, सु
26. पूर्व-भाद्रपद से, सो, ट, टी
27. उत्तर-भाद्रपद दु, था, ज्ञ, हा
28. रेवती दे, दो, चा, ची
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
सात्व गुण (सत्य) – सात्व गुण के लोग साफ दिल वाले होंगें, वे क्रमबद्ध तथा मेहनती होते हैं। उनके प्रत्येक पग में एक विलक्षण ताल अथवा प्रभाव होता है। वे फल की चिन्ता किये बिना कर्म किये जाते हैं। जिस काम को करने की वे सोच लेते हैं उनको वे पूरा करते हैं। उनकी वाह्य अभिव्यक्ति कुछ अशिष्ठ होती है। वे चित्रकला, दस्तकारी, खेलों में असाधारण सफलता प्राप्त करते हैं ।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक 1. शारीरिक गठन-जातक में एक शारीरिक विलक्षणता यह पाई जाती है कि उसके पांव का नली (ankle) उभरा हुआ होता है। कद तथा डीलडोल दोनों में मध्यम आकार का शरीर, चौड़े गाल तथा लाल होंठ होते हैं। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- जातक शान्त स्वभाव का होता है मगर उसमें प्रचण्ड क्रोध भी पाया जाता है। वह कुछ मूर्ख प्रकार का होता है। उसके अति सिद्धान्ती व्यक्ति होने के कारण, उसे मानसिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है, क्योंकि वह छोटी-छोटी बातों या समस्याओं को मन में बिठा लेता है। वह अच्छा भोजन पसन्द करता है और अति भक्षक होता है। पहनावे के मामले में उसकी कोई विशेष पसन्द या पहचान नहीं होती । उसके विचार निष्पक्ष होते हैं। वह धर्मान्धता के सिद्धान्तों को नहीं मानता। जरूरतमन्दों को सहायता देने में तत्पर होता है। इस पर भी उसे बदले में टकराव और घृणा ही मिलती है। वह आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद दूसरों से सम्मान और विश्वास प्राप्त करेगा। धार्मिक स्वभाव का होगा तथा वेद-शास्त्रों के अनुसार धार्मिक अनुष्ठान सम्पन्न करेगा। जबकि वह यथेष्ट रूप से धनी होगा, वह धन संचय करने की बजाए इज्जत और मान अर्जित करने का इच्छुक होगा। अपने विचार निष्पक्ष ढंग से प्रस्तुत करेगा। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन - वह जन्मजात बुद्धिमान और व्यापार कौशल व्यक्ति होने के कारण किसी भी व्यवसाय में दीप्तिमान होगा। यदि वह सरकारी नौकरी में होगा तो सरकार से अप्रत्याक्षित रूप से पदोन्नति और अन्य लाभ प्राप्त करने की आशा कर सकता है। वह आर्थिक और सामाजिक रूप से स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करने में सक्षम होगा। उसकी आयु के 24 से 33 वर्ष का समय उसके जीवन में विशिष्ट उन्नति और प्रगति का समय होगा। फिर भी इस समय में मानसिक परेशानियों को नकारा नहीं जा सकता । उसकी आयु के 40 से 54 वर्ष का समय जीवन का सुनहरी समय होगा जबकि वह पूर्णरूप से सुव्यवस्थित होगा। अपने खर्चों पर नियन्त्रण रखेगा। वह व्यवसाय, बैंकिग, सरकारी नौकरी अथवा शिक्षक, अभिनेता या लेखक, अनुसंधान कर्मचारी तथा ज्योतिषी या खगोलशास्त्री के रूप में दीप्तिमान होगा। यदि सरकारी नौकरी में होगा तो देखा गया है कि पूर्व-भाद्रपद नक्षत्र में उत्पन्न जातक प्रायः राजस्व वसूली विभाग में अथवा ऐसे विभाग में जहां रोकड़ विनिमय का काम होता है, किसी भी पद पर होते हैं। 4. पारिवारिक जीवन - वह अपनी माता का स्नेह और देखभाल पूर्ण रूप में प्राप्त नहीं कर सकेगा। ज्योतिष के विद्वानों के अनुसार जातक अपनी माता की मृत्यु अथवा उससे अलग होने का कारण बनेगा। मेरे निजी अनुभव के अनुसार जातक अपनी माता से पूर्ण स्नेह और देखभाल प्राप्त नहीं कर सकेगा क्योंकि वह रोजगार में लगी होगी। और यह स्वाभाविक है कि रोजगार युक्त माता होने के कारण वह स्वयं बालक से अधिकतर समय दूर रहेगी। अतः हमारे प्राचीन ऋषियों की यह धारणा कि बालक माता से पृथक रहेगा काफी हद तक ठीक थी न कि मृत्यु की धारणा । माता की मृत्यु के लिए इस नक्षत्र में बालक के जन्म के साथ अन्य ग्रहीय प्रभावों का भी होना आवश्यक है। एक विशेषता यह होगी कि कई मामलों में जातक अपने पिता पर गर्व कर सकता है। यदि अन्य ग्रहों की अनुकूल स्थिति हो तो उसका पिता प्रसिद्ध तथा नैतिक रूप से चरित्रवान पाया गया है। ललितकलाओं, भाषण अथवा लेखन के क्षेत्र में उसके पिता को लोकप्रियता प्राप्त होगी मगर पिता की इतनी विशेषताओं के बावजूद भी उनमें (पिता-पुत्र) मतभेद रहने के कारण विवाद उत्पन्न होगा। 5. स्वास्थ्य–उसे लकवे का प्रकोप, अम्लता, मधुमेह आदि से ग्रस्त होने का योग है। उसे पसलियों, बगल तथा पांव के तलवो में भी शिकायत होगी।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक इस नक्षत्र में उत्पन्न स्त्री जातकों के परिणाम कमोबेश पुरुष जातकों वाले ही होंगे। इनके अतिरिक्त निम्न परिणाम इस प्रकार होंगे: 1. शारीरिक गठन-वह न तो पतली होती है और न ही मोटी। इसी प्रकार वह न तो लम्बी होती है और न ही नाटी । कुछ मामलों में पतले शरीर की स्त्रियां भी पाई जाती हैं, हालांकि वे देखने में सुन्दर होती हैं। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना-ईमानदारी तथा सत्यता उसके चरित्र की विशेषता होती है। उसका विश्वास होता है कि चाहे जान चली जाये मगर अपने सिद्धान्तों और ईमान पर आंच नहीं आनी चाहिए। उसमें जन्मजात नेता के गुण होते हैं। वह दूसरों से काम लेने में सक्षम है। जब उसे शक्ति और अधिकार प्राप्त होते हैं तो वह पूर्णतया सफल होती है। वह पूर्ण आशावादी होती है। हांलाकि वह मानवतावादी दृष्टिकोण को मानने वाली होती है, फिर भी वह तब तक किसी की सहायता नहीं करती जब तक उसे यह विश्वास न हो जाये कि सहायता पाने वाला उसकी दयालुता, उदारता तथा सहानुभूति का पात्र है। उसके व्यवहार में विलक्षण प्रकार की नम्रता पायी जाती है। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र में शिक्षित होगी। अतः वह अध्यापिका, Statistician, ज्योतिषी या अनुसंधान कर्मचारी के रूप में सफल होगी। 4. पारिवारिक जीवन - वह अपने पति के प्रति समर्पित होगी तथा संतानवती होगी। गृह-प्रशासन में योग्य । सन्तान से पूर्ण लाभ प्राप्त करेगी। यदि उसका विवाह रोहिणी नक्षत्र में उत्पन्न युवक से हो तो उसके कई बच्चे होंगे। 5. स्वास्थ्य-उसे निम्न रक्तचाप, जलोदर, घुटनों में सूजन रक्ताघात, घबराहट, तलवों में पसीना आना, अपेन्टिसैटिस तथा जिगर के बढ़ने की बिमारियां होने का संकेत है।




26- उत्तर भाद्रपद

जन्म नक्षत्र - उत्तर भाद्रपद ( शनि )
चिह्न -जुड़वां
अधिष्ठाता देवता - अहिर बुद्धन्य
जाति - क्षत्रिय
पहचान/प्रतीक -वर्गाकार में चार सितारें के समूह में से दो सितारें पूर्व में
27 वें राशिचक्र में 333.20 डिग्री से 346.40 डिग्री तक का विस्तार क्षेत्र उत्तरभाद्रपद नक्षत्र कहलाता है। अरब मंजिल में इसे “अल-परग - अल-मुखिर" ( पानी के जग की पीछे की टूटियां); ग्रीक इसे “एन्ड्रोमेडे” कहते हैं। चीनी मतानुसार इसे “पाइ” कहते हैं। उत्तर-भाद्रपद का अर्थ है “सुन्दर-बाया पैर” ।जबकि पूर्व-भाद्रपद अचानक क्रोध का संकेत करता है तो उत्तर-भाद्रपद उस क्रोध को नियंत्रित करने की शक्ति का संकेत है। उत्तर-भाद्रपद नक्षत्र सब कुछ पीछे छोड़कर आध्यात्मिक जगत की ओर प्रगति के अनजाने समर का भी प्रतीक है। (I) उत्तर-भाद्रपद नक्षत्र में उत्पन्न जातकों के सामान्य परिणाम
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
16. विशाखा री, तु, ते, तो
17. अनुराधा ना, नी, नु, ने
18. ज्येष्ठ नो, या, यि, यु
19. मूल ये, यो, भ, भी
20. पूर्व- आषाढ़ बु, धा, भा, दा
21. उत्तर- आषाढ़ बे, बो, जा, जी
22. अभिजीत ज्यू, जी, जू, खी
23. श्रवण शी, शु, श, शो
24. श्रविष्ठा ग, गी, गु, गे
25. शताभिषज गो, सा, सी, सु
26. पूर्व-भाद्रपद से, सो, ट, टी
27. उत्तर-भाद्रपद दु, था, ज्ञ, हा
28. रेवती दे, दो, चा, ची
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
तामसिक गुण (निष्क्रिय) – इस समूह के व्यक्तियों में किसी भी बात को चाहे वो सही हो अथवा गलत विरोध करने की आदत होती है। जिसकारण परिवार में तथा समाज में उस व्यक्ति को टकराव का सामना करना पड़ता है। उसकी आन्तरिक शक्ति तो सकारात्मक विचार देती है, जबकि उसकी बाह्य शक्ति में नकारात्मक विचार होते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसे व्यक्ति मन से बुरे नहीं होते, लेकिन उनमें अर्न्तनिहित गुण शक्ति उन्हें तामसिक विचार प्रकट करने को बाध्य करती है। मनन या प्रार्थना के द्वारा इस अंसगति को कम किया जा सकता है। तामसिक गुणों वाली स्त्रियां 45 वर्ष की आयु में तथा पुरुष 40 वर्ष की आयु में अपने में असंगतिपूर्ण रिक्तता को विजित करने में सफल होते हैं ।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक 1. शारीरिक गठन-अति आकर्षक तथा मासूम सा दिखाई देने वाला व्यक्ति। उसकी दृष्टि में जन्मजात चुम्बकीय शक्ति होती है। यदि वह किसी को मुस्कुरा कर देख ले तो वह सब कुछ छोड़कर उसका गुलाम बन जायेगा । 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना- वह अमीर-गरीब, सबसे बिना उनके स्तर को देखे, एक जैसा व्यवहार करता है। वह साफ दिल होता है और किसी को कष्ट नहीं देता। उसके व्यवहार में केवल एक ही कमी पायी जाती है। कि उसे क्रोध बहुत जल्दी आता है। लेकिन वह क्रोध स्थायी नहीं होता। जो लोग उसे प्यार करते हैं उनके लिए वह जान भी देने में संकोच नहीं करता। साथ ही एक बार छेड़े जाने पर अथवा ठेस लगने पर वह उग्र हो जाता है। उसमें बुद्धिमता, ज्ञान तथा व्यक्तित्व होता है। वह लुभावनी भाषण कला में दक्ष होता है। शत्रुओं को परास्त करके उच्च स्थिति प्राप्त करने में सक्षम है। वह यौन सुख की लालसा वाला तथा सदैव स्त्रियों की संगत का इच्छुक होता है। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-वह एक समय में विभिन्न विषयों में दक्षता प्राप्त कर सकता है। हालांकि वह अधिक शिक्षित नहीं होता मगर उसका ज्ञान तथा विभिन्न विषयों के बारे में उसके विचार किसी अच्छे पढ़े लिखे व्यक्ति के समकक्ष होते हैं। वह ललित कलाओं में रूचि लेता है तथा विस्तृत लेख और पुस्तके लिखने में सक्षम होगा। अपनी असाधारण योग्यता और क्षमता के कारण वह अपने कार्य क्षेत्र में दीप्तिमान हो सकता है। आलस्य का उसके जीवन में कोई महत्व नहीं है। जब वह किसी काम को करने की ठान लेता है तो उसे पूरा करके ही रहता है । असफलता की स्थिति में भी वह निराश नहीं होता। यदि नौकरी में होगा तो शीर्ष पर पहुंचेगा। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उत्तर भाद्रपद नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्ति आरम्भ में छोटे या मध्यम पदों पर नियुक्त होते हैं मगर बाद में वे अच्छी स्थिति प्राप्त करके सदा दूसरों से प्रशंसा तथा पुरस्कार प्राप्त करते हैं। देखा गया है कि उनके जीवन में स्थायीपन अथवा प्रगति उनके विवाह के बाद ही आती है। 18 या 19 वर्ष की उर्म में वे रोजगार रत हो जाते हैं। व्यवसायिक क्षेत्र में प्रमुख बदलाव उसकी आयु के 19 वें, 21 वें, 28 वें, 30 वें, 35 वें तथा 42 वें वर्ष में होगा। 4. पारिवारिक जीवन-जहां एक तरफ वह अपने पिता के उच्च व्यक्तित्व और धार्मिक दृढ़ता की तारीफ करेगा, वहीं उसे अपने पिता से कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा। उसका बचपन उपेक्षित होगा। सामान्यता अपने पैतृक शहर से दूर रहकर जीवन यापन करेगा। उसका विवाहित जीवन खुशियों से भरा होगा। उसकी अत्यन्त योग्य पत्नी होगी। उसकी संतान ही उसकी पूंजी होगी जो आज्ञाकारी, समझदार तथा आदर करने वाले होंगे। उसके पौत्र भी होगें। वह अपने परिवार में रत्न होगा। 5. स्वास्थ्य-उसका स्वास्थ्य बहुत अच्छा होगा लेकिन इसके प्रति वह लापरवाह होगा। जब वह गम्भीर रूप से विद्वान होगा तभी डाक्टर के पास जायेगा। उसे लकवे का प्रकोप, पेट की समस्याएं, बवासीर तथा हरनिया रोग होने का संकेत है।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक उत्तर भाद्रपद नक्षत्र में उत्पन्न मादा जातकों के इस नक्षत्र में उत्पन्न नर जातकों वाले कमोबेश वही परिणाम होगें। इनके अतिरिक्त निम्न परिणाम और होंगे : 1. शारीरिक गठन-वह मध्यम कद व स्थूल शरीर की होगी। बड़ी तथा बाहर को निकली हुई आंखे होगी । 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना-वह अपने परिवार में वास्तविक लक्ष्मी का रूप होगी। दूसरे शब्दों में वह गृहलक्ष्मी का प्रतिरूप होगी। उसका व्यवहार अत्यन्त स्नेहपूर्ण, आदरयुक्त तथा प्रशंसनीय होगा। परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढ़ालने की प्रवृति होगी। अवसर के अनुकूल पात्रता और देश की आवश्यकतानुसार निष्पक्षता उसके चरित्र की विशेषता होगी। जब एक व्यक्ति में आज कीआवश्यकतानुसार उपरोक्त तीनों विशेषताएं विद्यमान हो तो और अधिक उसके चरित्र का क्या वर्णन कर सकता हूं। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-नौकरी में लगी हुई स्त्रियां अपने प्रयत्नों से अच्छी स्थिति में पहुंचेगी। वह वकील या अधिवक्ता के कार्य के लिए सर्वथा उपयुक्त होगी। वह एक अच्छी नर्स और डाक्टर भी हो सकती है। 4. पारिवारिक जीवन - इस नक्षत्र में उत्पन्न स्त्रियां जिस परिवार में उत्पन्न होगी या विवाह करके जायेगी, उस घर परिवार को रोशनी कर देगी।दूसरे शब्दों में घर में उसका पदार्पण लक्ष्मी के प्रवेश के समान होगा। उसे पुनर्वसु नक्षत्र में उत्पन्न युवक से विवाह नहीं करना चाहिए अन्यथा उसके विधवा होने का भय है। 5. स्वास्थ्य-वह गठिया के दर्द से ग्रस्त होगी। अपच, कब्ज, हारनिया और कुछ मामलों में मामूली किस्म का क्षय रोग भी पाया जाता है।




27- रेवती

जन्म नक्षत्र - रेवती ( बुद्ध )
चिह्न -मछली
अधिष्ठाता देवता - पूष्वाव्
जाति - शूद्र
पहचान/प्रतीक - मछली के आकार में तीन सितारें ।
28 वें राशिचक्र में 346.40 डिग्री से 360.00 डिग्री तक के विस्तार का क्षेत्र रेवती नक्षत्र कहलाता है। अरब मंजिल में इस नक्षत्र को “बल-अल-हुत " (मछली का पेट) अथवा “अर-रिष” “बैण्ड” तथा ग्रीक “पिसियम्” कहते हैं। चीनी मतानुसार यह “कोई” है। रेवती का अर्थ 'धनवान' या 'प्रचुर' है। श्रविष्टा नक्षत्र की भांति इसके प्रतीक ड्रम के आकार के 32 सितारें होते हैं। रेवती नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता “पुशान” अर्थात समृद्धि का देवता है, जो आदित्यों में से एक है। कहा जाता है कि पुशान या पूसवान आकाश में आरम्भ से अन्त तक चलायमान रहता है। (I) रेवती नक्षत्र में उत्पन्न जातकों के सामान्य परिणाम
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
16. विशाखा री, तु, ते, तो
17. अनुराधा ना, नी, नु, ने
18. ज्येष्ठ नो, या, यि, यु
19. मूल ये, यो, भ, भी
20. पूर्व- आषाढ़ बु, धा, भा, दा
21. उत्तर- आषाढ़ बे, बो, जा, जी
22. अभिजीत ज्यू, जी, जू, खी
23. श्रवण शी, शु, श, शो
24. श्रविष्ठा ग, गी, गु, गे
25. शताभिषज गो, सा, सी, सु
26. पूर्व-भाद्रपद से, सो, ट, टी
27. उत्तर-भाद्रपद दु, था, ज्ञ, हा
28. रेवती दे, दो, चा, ची
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
सात्व गुण (सत्य) – सात्व गुण के लोग साफ दिल वाले होंगें, वे क्रमबद्ध तथा मेहनती होते हैं। उनके प्रत्येक पग में एक विलक्षण ताल अथवा प्रभाव होता है। वे फल की चिन्ता किये बिना कर्म किये जाते हैं। जिस काम को करने की वे सोच लेते हैं उनको वे पूरा करते हैं। उनकी वाह्य अभिव्यक्ति कुछ अशिष्ठ होती है। वे चित्रकला, दस्तकारी, खेलों में असाधारण सफलता प्राप्त करते हैं ।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़, श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक 1. शारीरिक गठन-रेवती नक्षत्र में उत्पन्न जातक अच्छे डील-डौल के यथेष्ट रूप से लम्बे तथा संतुलित तथा संतुलित शरीर और साफ रंग के होते है। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना-वह दिल का साफ, व्यवहार में ईमानदार तथा मृदुभाषी होता है। परिस्थिती अनुसार उसमें दूसरों से व्यवहार करने का कौशल है। वह दूसरों पर अनावश्यक रूप से अधिक ध्यान नही देता। उसका जीवन पूर्णता स्वतन्त्र होने के कारण उसके मार्ग में बाधाएं उत्पन्न होने पर उसे ठेस लगती है। वह लम्बे समय तक किसी बात को गुप्त नहीं रख सकता। वह अपने प्रिय व्यक्ति पर भी आंख मूंद कर विश्वास नहीं करता। लेकिन जब वह किसी पर विश्वास कर लेता है तो फिर उसे उस व्यक्ति से दूर करना आसान नहीं होता । वह अति क्रोधी स्वभाव का होता है। कुछ भी हो जाये, अपनी अन्र्तात्मा के अनुसार आचरण करना उसका सिद्धान्त है। वह किसी भी सिद्धान्त को पहले परखता है और उसके ठीक जंचने पर ही दृढ़ता पूर्वक उस पर अमल करता है। किसी भी मामले का पूर्व निष्कर्ष निकल लेता है। वह धार्मिक, अन्धविश्वासी, धर्मान्ध तथा रूढ़ीवादी संस्कृति और सिद्धान्तों को दृढ़तापूर्वक पालता है। वह हठीला तथा महत्वाकांक्षी होता है। उसके विचारों या योजनाओं की तनिक सी असफलता उसे बहुत कुंठित करती है। 28 नक्षत्रों में से केवल रेवती नक्षत्र में उत्पन्न जातक सबसे अधिक धार्मिक तथा धर्मान्ध होते हैं। अतः वे ही ईश्वरीय कृपा को सबसे अधिक प्राप्त करते हैं। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-वह वैज्ञानिक समाधान, ऐतिहासिक खोजों तथा प्राचीन संस्कृतियों में रूचि लेता है। इन तीनों क्षेत्रों में से किसी में भी वह विख्यात होगा। प्राचीन संस्कृतियों में ज्योतिष और खगोलशास्त्र भी सम्मिलत है। वह अच्छा चिकित्सक, कवि या ज्योतिषी बन सकता है। यदि वह सरकारी नौकरी में होगा तो बहुत सफल होगा। रेवती नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्ति प्रायः विदेशों में जा बसते हैं। विदेश से मेरा तात्पर्य जन्मस्थान से दूर (परदेश) भी हो सकता है। वह अपने प्रयासों से जीवन में उन्नति करेगा। उसमें जन्मजात बुद्धिमता तथा योग्यता होती है। वह लम्बे समय तक किसी एक पद या कार्य पर नहीं रहेगा। 50 वर्ष की आयु तक उसे किये गये प्रयत्नों के अनुसार वांछित मात्रा में लाभ अथवा फल नहीं मिलेगा। उसकी आयु के 23 से 26 वर्ष का समय अच्छा समय होगा जबकि 26 से 42 वर्ष का समय उसके लिए आर्थिक, सामाजिक व मानसिक परेशानी से भरा होगा। केवल 50 वर्ष की आयु के बाद स्थायी व निश्चिन्त जीवन होगा । 4. पारिवारिक जीवन - अपने सम्बन्धियों यहां तक कि पिता से भी कोई सहायता प्राप्त नहीं होगी। दूसरे शब्दों में वह अपने परिजनों से कोई सहायता पाने योग्य भाग्यशाली नहीं होगा। हालांकि उसका विवाहित जीवन ठीक होगा। उसकी पत्नी सामन्जस्यपूर्ण होगी। 5. स्वास्थ्य-उसे बुखार, पेचिस, दांतों के रोग, आंतों का अल्सर तथा कान की पीड़ा होगी।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक नक्षत्र फल 1. शारीरिक गठन-वह अत्यन्त सुन्दर होगी। अपने आकर्षक, मनोहर व्यक्तित्व के कारण वह हजारों में पहचानी जाती है । 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना-वह कुछ हठीले स्वभाव की होती है। दूसरों पर आधिपत्य जमाने की इच्छुक । नर जातकों की भांति यह भी धार्मिक, अन्ध विश्वासी तथा प्राचीन रूढ़ीवादी संस्कृति और सिद्धान्तों का दृढ़तापूर्वक पालन करती है। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-उसकी शिक्षा, कला, साहित्य अथवा गणित के क्षेत्र में होगी। वह व्यवसाय तथा अन्य क्षेत्रों में भी कार्यरत होगी अर्थात वह टेलीफोन आपरेटर, टाइपिस्ट, अध्यापिका या कम्पनियों की प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती होगी। जब हितकारी ग्रहों की शुभ दृष्टि हो तो वह राजदूत के या सांस्कृतिक रूप में देश का प्रतिनिधित्व करेगी। 4. पारिवारिक जीवन-उसे आर्द्रा नक्षत्र में उत्पन्न युवक से विवाह नहीं करना चाहिए, क्योंकि दम्पति में आपसी सामन्जस्य नहीं हो पायेगा और तलाक की नौबल आ सकती है। वह अत्यन्त स्नेहपूर्ण और सामन्जस्पूर्ण विवाहित जीवन व्यतीत करेगी। 5. स्वास्थ्य - उसके पैर में कुछ रोग हो सकता है। आंतों का अल्सर पेट की गड़बडी तथा कुछ मामलों में बहरापन भी देखा गया है।




28- अभिजित

जन्म नक्षत्र - अभिजित ( सूर्य )
उत्तार- आषाढ़ की 10.00 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की ( सूर्य ) 266.40 डिग्री से 276.40 डिग्री तक) तथा अभिजीत की 4.14.13 डिग्री (परिक्रमा कक्षा की 276.40 डिग्री से 280.54-13 डिग्री) तक
चिह्न -तिकोन/ पान
अधिष्ठाता देवता - बृह्मा
जाति - वैश्य
पहचान/प्रतीक -वेगा (Vega) अथवा लीरे (Lyre) के नाम से बोले जाने वाले, सबसे चमकदार 31 सितारों का समूह ।
बाइसवें राशिचक्र में 276.40 डिग्री से 280.54.13 डिग्री तक के विस्तार का क्षेत्र अभिजीत नक्षत्र कहलाता है। अरब मंजिल में यह 'साद-अध-दबिह' (बलिदानी का परमानन्द) और ग्रीक भाषा में यह 'बेगा' कहलाता है। चीनी मतानुसार यह 'नियु' है। यह तीन सितारे के समूह में सबसे चमकदार तथा त्रिकोणात्मक आकार में प्रतीत होता है । अभिजीत नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता 'ब्रह्मा' है । ब्रह्मा खगोलीय जगत अथवा ब्रह्माण्ड का पिता तथा जीवों का ईश्वर हैं सामवेद में वर्णित है कि भगवान ब्रह्मा की उत्पत्ति भगवान विष्णु की नाभि से निकले कमल से हुई है । महर्षि व्यास के अनुसार एक बार अभिजीत नक्षत्र आकाश में अपने स्थान से गिर गया। आगे महर्षि बताते हैं कि जब यह नक्षत्र गिरने लगा तो इन्द्र ने स्कन्द से बिनती की कि इसको गिरने से बचाने का उपाय किया जायें, क्योंकि आकाश की पक्तादश 27 नक्षत्रों के द्वारा ही हो सकती है, 26 के द्वारा नहीं। यह कथन कुछ उलझनपूर्ण है। क्योंकि अभिजीत को निकाल कर भी 27 नक्षत्र बचते हैं। अभिजीत नक्षत्र के गिरने से पूर्व क्या कोई अन्य नक्षत्र गिर गया था या बाद में अन्य कोई नक्षत्र इनमें शामिल किया गया? अष्टोतरी दशा नियम अभिजीत नक्षत्र को मान्यता देता हैं 'सूर्य प्रजापति' के अनुसार जब सूर्य और चन्द्रमा अभिजीत नक्षत्र के प्रथम बिन्दु पर संयुक्त हुए तो मकरसक्रान्ति हुई अर्थात ग्रहण बिन्दु, जोकि 'जेता पिश्चम' सितारे के 175.55.10 पूर्व में स्थित था और इसी काल में पंच वर्षीय वैदिक कलैन्डर की शुरूआत हुई । अमेरिकन-ब्रिटिश-डच्च परियोजना के अर्न्तगत छोड़े गये अंतरिक्ष यान पर स्थापित शक्तिशाली 'इन्फ्रा रेड-टैलीस्कोप' ने वेगा सितारे के गिर्द कणों के एक घेरे (वृत्त) का पता लगाया तथा संकेत दिया कि वेगा सितारे के पास एक और सौर-परिवार का अस्तित्व हो सकता है। हमें ज्ञात होना चाहिए कि इससे पूर्व खगोल-शास्त्रियों ने गणना की थी कि सूर्य अन्य ग्रहों के साथ वेगा वृत की तरफ 12 मील प्रति सैकंड की गति से बढ़ रहा है। वेगा नामक सितारा लीरा तारामण्डल समूह में 61.44 डिग्री अक्षांतर तथा 285.03 डिग्री रेखान्तर पर स्थित है। यह हिन्दु नक्षत्र अभिजीत के अतिरिक्त और कोई नहीं है। क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि आधुनिक यंत्रों से की गई गणना हमारे प्राचीन ऋषियों द्वारा की गणना के समतुल्य है! मध्यरात्रि को 28 मिनट पहले तथा 28 मिनट बाद का समय तथा इसी प्रकार मध्यान्ह में 28 मिनट पहले तथा 28 मिनट बाद का समय (11.32 से 12.28 तथा 23.32 से 00.28 बजे) अभिजीत मुहुरत कहलाता हैं यह मुहुरत सभी अज्ञात पिण्डों, सितारों तथा ग्रहों वी अनिष्टकारी प्रवृतियों को नष्ट कर देता हैं इस समय में सम्पूर्ण विश्व पर एक बुलेट-प्रूफ कार की भांति सुरक्षा आवरण होता है। अतः यह समय किसी भी मांगलिक कार्य करने के लिए सर्वथा उपयुक्त होता है। यदि कोई व्यक्ति इस मुहुरत में दक्षिण दिशा को छोड़ कर, कंही की भी यात्रा आरम्भ करे, तो उसकी यात्रा का उद्देश्य अवश्य सफल होता है। यही रात्रि का मुहुरत था जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। आजकल ज्योतिषी अभिजीत नक्षत्र को भविष्यवाणियों के लिए सम्मलित नहीं करते हैं। इस नक्षत्र को छोड़ देने का कारण अज्ञात है। अभिजीत नक्षत्र में स्थित ग्रह रोहिणी नक्षत्र में स्थित ग्रहों के अवरोधक होते हैं। इसी प्रकार इनकी विपरीत स्थिति के भी विपरीत परिणाम होते हैं।
नक्षत्र ध्वनि सूचक अक्षर
16. विशाखा री, तु, ते, तो
17. अनुराधा ना, नी, नु, ने
18. ज्येष्ठ नो, या, यि, यु
19. मूल ये, यो, भ, भी
20. पूर्व- आषाढ़ बु, धा, भा, दा
21. उत्तर- आषाढ़ बे, बो, जा, जी
22. अभिजीत ज्यू, जी, जू, खी
23. श्रवण शी, शु, श, शो
24. श्रविष्ठा ग, गी, गु, गे
25. शताभिषज गो, सा, सी, सु
26. पूर्व-भाद्रपद से, सो, ट, टी
27. उत्तर-भाद्रपद दु, था, ज्ञ, हा
28. रेवती दे, दो, चा, ची
गुण – तामसिक गुण (निष्क्रिय) राजसिक गुण ( अशान्त) सात्व गुण (सत्य)
तामसिक गुण (निष्क्रिय) – इस समूह के व्यक्तियों में किसी भी बात को चाहे वो सही हो अथवा गलत विरोध करने की आदत होती है। जिसकारण परिवार में तथा समाज में उस व्यक्ति को टकराव का सामना करना पड़ता है। उसकी आन्तरिक शक्ति तो सकारात्मक विचार देती है, जबकि उसकी बाह्य शक्ति में नकारात्मक विचार होते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसे व्यक्ति मन से बुरे नहीं होते, लेकिन उनमें अर्न्तनिहित गुण शक्ति उन्हें तामसिक विचार प्रकट करने को बाध्य करती है। मनन या प्रार्थना के द्वारा इस अंसगति को कम किया जा सकता है। तामसिक गुणों वाली स्त्रियां 45 वर्ष की आयु में तथा पुरुष 40 वर्ष की आयु में अपने में असंगतिपूर्ण रिक्तता को विजित करने में सफल होते हैं ।
लिंग – पुरुष-योनि स्त्री-योनि नपुंसक-योनि
विश्व में तीन प्रकार के लिंग होते हैं-1. पुल्लिंग (पुरुष-योनि);
2. स्त्रीलिंग (स्त्री-योनि) तथा 3. नपुसंक (नपुसंक योनि) । नक्षत्र भी इन तीनों योनियों में से किसी एक में वर्गीकृत किये गये हैं। जो इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि-अश्विनी, पुर्नवसु, पौष हस्ता, अनुराधा, श्रवण, पूर्व-भाद्रपद तथा उत्तर-भाद्रपद ।
स्त्री-योनि-भरणी, कृतिका, रोहिणी आर्द्रा, अश्लेष, माघ, पूर्वफाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्व-आषाढ़, उत्तर-आषाढ़
श्रविष्ठा तथा रेवती ।
नपुंसक – योनि में मृगशीर्ष, मूल तथा शतभिषज ।
विभिन्न योनियों में जन्म के परिणाम इस प्रकार हैं-
पुरुष-योनि – पुरुष-योनि में उत्पन्न जातक अच्छे वक्ता, लेखक, डॉक्टर तथा शास्त्रों में निपुण होते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी प्रधानता सिद्ध करते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार चुनौतियों का स्वागत करते हैं तथा उनसे पूर्ण सफलता के साथ निपटते हैं। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक पुरुषोचित स्वभाव की होती हैं। वे पुरुष वर्ग के प्रति सुमेद्य नहीं होती। उनमें स्वयं अर्जित करने की क्षमता होती हैं। जहां वे दिल से कमजोर होती है, वहां वे अपनी इस योनि में जन्म लेने की अर्न्तनिहित विशेषताओं के कारण आरम्भ में उद्दण्डता दिखाती हैं।
स्त्री-योनि – स्त्री-योनि में उत्पन्न नर-जातक अच्छे कार्मिक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, बावर्ची तथा सोना-चांदी, लोहा, धातू आदि के व्यापारी होते हैं । वे हर स्तर पर पराधीन होते हैं। देखा गया है कि वे घर में अथवा कर्मक्षेत्र में स्त्रियों से आदेश प्राप्त करते हैं। वे स्वतन्त्र विचारक नहीं होते। वे ऐसे घोड़े होते हैं, जिन्हें सवार की आवश्यकता होती हैं, अर्थात उन्हें मार्गदर्शन कराने वाला होना चाहिए। इस योनि में उत्पन्न स्त्री-जातक कुशल प्रशासक, डॉक्टर, लैक्चरार तथा कार्मिक होती हैं। वे बच्चों के प्रति आसक्त होती हैं। उनका विवाहित जीवन उतार-चढ़ाव पूर्ण होता है। वे अपने साथी के साथ गुलाम तुल्य व्यवहार करती हैं। प्रायः मामलों में देखा गया है कि उनके प्रति नकारात्मक व्यवहार के कारण उनके पति या तो शराब के व्यसनी हो जाते हैं अथवा दूसरी स्त्रियों की तरफ आर्कषित हो जाते हैं।
नपुंसक – योनि-नपुसंक – योनि में उत्पन्न नर जातक योद्धा होते हैं। अर्थात वे अच्छे सैनिक और कुशल सर्जन बन सकते हैं। तथा कुछ निम्न सेवा
कार्यों पर भी नियुक्त हो सकते हैं। प्रायः उनका मिश्रित स्वभाव होता है। उनकी दिमागी क्रिया चन्द्रमा के उतार-चढ़ाव से सम्बद्ध होती है । उनका अक्खड़ व्यवहार रिश्तों में क्रोध उत्पन्न करता है। पुरुष-योनि तथा स्त्री-योनि में उत्पन्न जातकों को नपुसंक योनि में उत्पन्न व्यक्तियों से सावधानी पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
वर्ग – देव वर्ग मनुष्य वर्ग राक्षस वर्ग
ब्रह्माण्ड में तीन लोकों की कल्पना की गई है-
1. स्वर्ग लोक 2. पृथ्वी (मृत्यु लोक) तथा 3. नरक अथवा पाताल लोक।
स्वर्ग में देवताओं का वास होता है;
पृथ्वी अथवा मृत्यु लोक में मानव
बसते हैं तथा
पाताल में दानव या राक्षस होते हैं। इसी प्रकार तीनों वर्गों अथवा गणों के अनुसार 28 नक्षत्रों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार
है-
देव वर्ग – अश्विनी, मृगशीर्ष, पुर्नवसु, पौष, हस्ता, स्वाति, अनुराधा,अभिजीत, श्रवण, रेवती ।
मनुष्य वर्ग – मरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्व-फाल्गुनी, उत्तर-फाल्गुनी, पूर्व-आषाढ, उत्तर-आषाढ़, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद ।
राक्षस वर्ग – कृतिका अश्लेष, माघ, चित्रा,विशाखा, ज्येष्ठा,मूल, श्रविष्ठा, शताभिषज ।
रंग – हमारे प्राचनी महर्षियों ने अपनी दिव्यदृष्टि तथा साधना के बल पर
प्रत्येक नक्षत्र के रंग इस प्रकार बतायें हैं :
नक्षत्र रंग
1. अशिवनी – रक्त-वर्ण
2. भरणी – रक्त-वर्ण
3. कृतिका – श्वेत
4. रोहिणी – श्वेत
5. मृगशीर्ष – हलका स्लेटी
6.आर्द्रा – हरा
7. पुर्नवसु – गहरा स्लेटी
8 . पौष – लाल मिश्रित काला रंग
9. अश्लेष – लाल मिश्रित काला रंग
10. माघ – क्रीम रंग (हाथी दांत का)
11. पूर्व-फाल्गुनी – हलका भूरा
12. उत्तर-फाल्गुनी – चमकदार नीला
13. हस्ता – गहरा हरा
14. चित्रा – काला
15. स्वाति – काला
16. विशाखा – सुनहरी रंग
17. अनुराधा – लालिमा युक्त भूरा रंग
18. ज्येष्ठा – पीलापन लिए क्रीम
19. मूल – भूरापन लिए पीला
20. पूर्व-आषाढ़ – काला
21. उत्तर- आषाढ़ – ताम्बे जैसे रंग का
22. अभिजीत – भूरापन लिए पीला
23. श्रवण – हलका नीला
24. श्रविष्ठा – हलका स्लेटी
25. शताभिषज – एक्वामेरिन
26. पूर्वभाद्रपद – हलका स्लेटी
27. उत्तर भाद्रपद – परपल
28. रेवती – भूरा
मानव शरीर के अंगों का नक्षत्रों में आवंटन
प्रत्येक नक्षत्र शरीर के कुछ अंगों को प्रभावित अथवा नियन्त्रित करते
हैं। दुष्ट ग्रहों से आक्रान्त नक्षत्र शरीर के सम्बन्धित अंगों पर प्रभाव डालते हैं। अशुभ ग्रहों से प्रभावित नक्षत्रों को चार्ट में खोजें, फिर उस नक्षत्र से प्रभावित शरीर के अंग को ज्ञात करें, शरीर के उस अंग के प्रति उचित सावधानी बरतें। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र में दिये गये उपायों द्वारा
अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के यत्न किये जायें।
प्रत्येक नक्षत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंग इस प्रकार हैं-
1. पांव का ऊपरी भाग >> अश्विनी
2. पांव का निचला भाग >> भरणी
3. सिर >> कृतिका
4. माथा >> रोहिणी
5. आँखों की बरोनियां >> मृगशीर्ष
6. आँखे >> आर्द्रा
7. नासिका >> पुर्नवसु
8. चेहरा >>> पोष
9. कान >>>> अश्लेष
10. होंठ और ठोडी >>> माघ
11. दांया हाथ >>> पूर्व – फाल्गुनी
12. बायां हाथ>>> उत्तर- फाल्गुनी
13. हाथों की अंगुलिया >>> हस्ता
14. गर्दन>>>> चित्रा
15. छाती >>>> स्वाति
16. वक्षस्थल >>> विशाखा
17. पेट >>> अनुराधा
18. दांयी बगल >>> ज्येष्ठा
19. बांयी बगल >>> मूल
20. पीठ >>> पूर्व-आषाढ़
21. कमर (कटि) >>> उत्तर- आषाढ़
22. मस्तिष्क >> अभिजीत
23. जननांग >>> श्रवण
24. गुदा >>> श्रविष्ठा
25. दांयी जांघ >>> शताभिषज
26. बांयी जांघ >>> पूर्व-भाद्रपद
27. अन्तर्जधिकाएं >>> उत्तर-भाद्रपद
28. घुटने >>>> रेवती
नक्षत्र समूह –
आजकल की राजनीति की भांति, नक्षत्र भी चार प्रकार के समूहों,दलों अथवा वृतों में विभाजित हैं, जो वायु, अग्नि, इन्द्र और वरूण वर्ग कहलाते हैं। इन वर्गों में प्रत्येक नक्षत्र की स्थिति इस प्रकार है-
वायु: उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्नवसु, मृगशीर्ष, अश्विनी
अग्नि: पौष, कृतिका, विशाखा, भरणी, माघ, पूर्व भाद्रपद, पूर्व-फाल्गुनी,
इन्द्र: अभिजीत, श्रवण, श्रविष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तर- आषाढ़, अनुराधा
वरूण: रेवती, पूर्व – आषाढ़, आर्द्रा, अश्लेष, मूल, उत्तर-भाद्रपद, शताभिषज

पुरुष (MALE)
(क) पुरुष जातक 1. शारीरिक गठन-मध्यम कद, सानुपातिक शरीर, चुंबकीय व्यक्तित्व । दीप्तिमान आभास तथा मनोहर अभिव्यक्ति और छेदती हुई दृष्टि होता है। 2. स्वभाव तथा सामान्य घटना-जातक विद्वानों तथा अभिजात्य वर्ग में सम्मानित होता है। उसका व्यवहार अत्यन्त शिष्ट होता है। वह प्रत्येक क्षेत्र में प्रसिद्ध होता है। धार्मिक व्यक्ति, मृदु भाषी जन्मजात महत्वाकांक्षी और आशावादी होता है। उसमें गुप्त विद्याओं को जानने की प्रवृत्ति होती है। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन- जातक अपने परिवार में अति विद्वान, अति प्रसिद्ध तथा उच्च स्थान पर होगा। यदि इस नक्षत्र में शनि स्थित न हो तो वह ऐसे कामों में रत्त होगा जिनमें शक्ति और अधिकार निहित होंगे। इस नक्षत्र में शनि की स्थिति होने पर जातक का मिश्रित व्यवसाय होगा अर्थात उसके कार्य क्षेत्र में अक्सर बदलाव होता रहेगा। यदि व्यवसाय में होगा तो एक से दूसरे व्यवसाय को अपनाता रहेगा । 4. पारिवारिक जीवन - एक से अधिक पत्नियां होने का संकेत। 23 वर्ष की आयु में अथवा आस-पास विवाह होगा। बहुत अधिक सन्तान होगी । परिवार नियोजन के तरीके नहीं अपनायेगा। 27 वर्ष की आयु तक आर्थिक समस्याएं होंगी। उसके बाद उसे धन की कमी नहीं रहेगी। एक या दो बच्चों की उनके बीसवें वर्ष के दशक में मृत्यु होने का योग । जीवित बच्चे आरामदायक स्थिति में पहुंचेंगे। फिर भी वह सबसे बड़े पुत्र के साथ रहेगा । 5. स्वास्थ्य - बचपन में स्वास्थ्य खराब रहेगा। जातक के माता-पिता उसके स्वास्थ्य की गिरती हालत पर कई बार चिंतित होंगे। 20 वर्ष की आयु के बाद उसके स्वास्थ्य में सुधार होगा। वह पीलिया तथा बवासीर से पीड़ित हो सकता है। आयु के 19वें या 20वें वर्ष में उसके जीवन को संकट हो सकता है। यदि वह यह समय निकाल गया तो आगे कोई गम्भीर स्वास्थ्य समस्या नहीं होगी ।

स्त्री (FEMALE)
(ख) स्त्री जातक 1. शारीरिक गठन - लम्बा चेहरा, पतला शरीर, लम्बी और दोहरी ठोड़ी लम्बे पांव वाली होगी। 16 वर्ष की आयु तक बहुत मोटी होगी । 2. स्वभाव और सामान्य घटना-उसकी आयु के 18वें वर्ष में एक अप्रत्याशिक घटना घटेगी। इस घटना के बाद वह पूर्णता परिपक्व स्त्री बन जायेगी, जिसे जीवन के महत्व का पता होता है। वह हर क्षेत्र में विद्यमान होगी। उसमें एक ही समय में कई कामों को निपटाने की क्षमता होती है। उसमे अति उत्तम कार्यकारी योग्यता होती है। वह मालिक भी होगी तथा कार्यकर्ता भी। दूसरे शब्दों में वह मालिक और सेवक के भेद को नहीं मानती । वह अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ मिल बैठ कर सभी कार्य निपटाती है। अपने उद्यम से यथेष्ट धन अर्जित करेगी। 3. शिक्षा, रोजगार/आय के साधन-आशावादी तथा महत्वाकांक्षी होने के कारण वह अपना जीवन स्वयं बनायेगी। अपनी स्वयं की प्रगति से अधिक वह व्यवसाय को महत्व देगी। 4. परिवारिक जीवन-अपनी छोटी आयु में, 12 या 14 वर्ष की अवस्था में बलात्कार की शिकार होने के कारण, वह पुरुषवर्ग से घृणा करेगी तथा आरम्भ में विवाह के नाम से कतरायेगी। फिर भी उसका विवाह 27 से 30 वर्ष की आयु में होगा। उसका विवाहित जीवन अच्छा होगा तथा नेक सन्तान होगी। 5. स्वास्थ्य–बचपन में स्वास्थ्य बहुत खराब होगा। वह काली-खांसी, दमा, गठिया अथवा त्वचा के रोगों से ग्रस्त हो सकती है। उसका 15वां वर्ष कष्टमय बीतेगा। माता-पिता को चाहिए कि वे इस जातक को डांट-डपट में या खतरे के काम में न डाले। वे उस परोक्ष से निगाह में रखें तथा प्रेम पूर्वक उसकी गलतियों के बारे में समझाये। यदि वह 18वां वर्ष पार कर लेती है तो आगे चिन्ता की कोई बात नहीं है, इसके बाद तो वह शीर्ष स्थान पर होगी।