यदि लड़के और लड़की की जन्मकुण्डली मिलाते समय निम्न नक्षत्र दोनो के समान होते है तो जोड़ी उत्तम मानी जाती है :
1. रोहिणी
2. आर्द्रा
3. माध
4. हस्त
5. विशाखा
6. श्रवण
7. उत्तर भाद्रपद
8. रेवती
निम्नलिखित नक्षत्र समान हो तो जोड़ी मध्यम मानी जाती है :
1. अश्विनी
2. कृतिका
3. मृगशीर्ष
4. पुर्नवसु
5. पूर्व-फाल्गुनी
6. उत्तर - फाल्गुनी
7. चित्रा
8. अनुराधा
9. पूर्व- आषाढ़ तथा
10. उत्तर - आषाढ़
यदि लड़के और लड़की की कुंडली में निम्नलिखित नक्षत्र समान हो तो उनका विवाह नहीं होना चाहिए :
1. भरणी
2. पुष्य
3. अश्लेष
4. स्वाति
5. ज्येष्ठा
6. मूल
7. श्रविष्ठा
8. शताभिषज
9. पूर्वभाद्रपद
निम्नलिखित नक्षत्रों का संयोग विवाह के लिए अशुभ है अतः इन्हें निरस्त कर देना चाहिए :
लड़कियां - कालम 1 नक्षत्र में उत्पन्न लड़कियों का विवाह कालम 2.नक्षत्र में उत्पन्न लड़को से नहीं करना चाहिए :
कालम-1 कालम-2
1 कृतिका - अश्लेष 2 अश्लेष - स्वाति
3 चित्रा - पूर्व-आषाढ़
4 शताभिषज - कृतिका
5. अनुराधा - श्रविष्ठा
6. ज्येष्ठा - शताभिषज
7. उत्तर- फाल्गुनी - मृगशीर्ष
8. हस्ता - मूल
ज्येष्ठ और शताभिषज नक्षत्रों का मिलाप परिवार के लिए अनिष्टकारी होगा। इसी प्रकार उत्तर-फाल्गुनी और कृतिका तथा हस्ता और मूल नक्षत्रों का मिलाप दोनों की मृत्यु का कारण होगा। विशाखा तथा माध अथवा विशाखा तथा श्रवण का संयोग शत्रुता उत्पन्न करेगा। अश्विनी और श्रवण अथवा उत्तर-भाद्रपद और मृगशीर्ष का संयोग होने पर लड़की के विधवा होने का परिणाम देगा । उत्तम-संयोग- रेवती और उत्तर-आषाढ़, जो पूर्ण संतुष्टि देगा; पूर्व-भाद्रपद और मूल, यह सम्पन्नता देगा; उत्तर भाद्रपद और पूर्व - आषाढ़ यह दोनों में प्यार उत्पन्न करेगा तथा पौष और भरणी जो सुख प्रदान करेगा।
लड़के-लड़कों के मामले में कालम - 1 नक्षत्र में उत्पन्न लड़कों का विवाह कालम-2 नक्षत्र में उत्पन्न लड़कियों से उत्तम माना जाता है :
कालम-1 कालम-2
1. आर्द्रा - उत्तरफाल्गुन
2. रोहणी - माघ
3. माघ - अनुराधा
4. स्वाति - उत्तरआषाढ़
5. पूर्वभाद्रपद - रेवती
6. अश्विनी - पुनर्वसु
7. पुष्य - चित्रा
8. रैवती - माघ
9. पुनर्वसु - हस्त
हमारे महाऋषियों ने लड़की के प्रथम बार ऋतुवती होने तथा विवाह के बीच कुछ अन्तराल का विधान दिया है। यदि विवाह लड़की के ऋतुवती होने से पहले किया गया हो, उसका अपने पति से मिलन नक्षत्रानुसार निम्नलिखित कालोपरान्त होना चाहिए-
भरणी - 10 मास;
कृतिका और अश्लेष - 4 मास;
तथा ज्येष्ठ
पूर्व-आषाढ़
तथा पूर्व भद्रपद - 8 मास
आद्र - 6 मास
माघ - 12 मास
पुनर्वसु - 5 मास
मूल नक्षत्र के अंतिम भाग तथा अश्लेष नक्षत्र के प्रथम भाग में
उत्पन्न लड़कियां किसी के लिए हानिप्रद नहीं होती।
दूल्हा-दूल्हन के सामजंस्यपूर्ण विवाहित जीवन के लिए दूल्हे का नक्षत्र दुल्हन के नक्षत्र से गिनने पर 9वें, 18वें तथा 27वें क्रम पर आना चाहिए।
ॐ गणपतये नमः
ॐ नमः शिवाय
ॐ नारायणाय नमः
ॐ ब्रह्माय नमः
ॐ आदित्याय नमः