1-अश्विनी

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केतु - अश्विनी नक्षत्र

 

चरण -1

प्रथम भाग ( 0.00 डिग्री से 3.20 डिग्री)-अच्छी शिक्षा होगी। समृद्धि के लिए उद्यमशील होगा। लोकप्रिय होगा। इंजीनियर (मुख्यता मैकेनिकल) बनने का योग ।

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चरण -2

द्वितीय भाग ( 3.20 डिग्री से 6.40 डिग्री) - जीवन में निम्न स्तर पर होगा । उसके अच्छे जन सम्पर्क होंगे। स्त्रियों की तरफ अति लगाव होगा ।

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चरण -3

तृतीय भाग (6.40 डिग्री से 10.00 डिग्री) - निम्न प्रवृति के लोगों से मेलजोल रखेगा। नियोग द्वारा ही कन्या की प्राप्ति होगी। इन प्रतिकूल परिणामों के उपरान्त भी वह लोगों द्वारा अपनी विपत्ति में सहायता किये जाने को याद रखेगा और समय आने पर उसका प्रतिदान भी करेगा ।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (10.00 डिग्री से 13.20 डिग्री ) - जातक अपने जन्म स्थान से दूर रहना चाहेगा। वह सदैव दूसरों पर निर्भर रहेगा। ऐसे जातकों में कुछ की आयु 30 वर्ष की देखी गयी है।

2-भरणी

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केतु - भरणी

चरण -1

प्रथम भाग (13.20 से 16.40 डिग्री) - कहा जाता है कि वह कमल के पत्तों पर भोजन करता है और सात वर्ष तक जीवित रहता है। यदि इस स्थान पर केतू पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो उसका जीवन 20 वर्ष होगा (व्याघ्रपद संहिता के अनुसार)

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चरण -2

द्वितीय भाग (16.40 से 20.00 डिग्री)-63 वर्ष तक आयु। मृत्यु जलीय रोगों के कारण। सिर में चोट । मिरगी या मस्तिष्क में रूधिर का अधिक सञ्चय हो सकता है। सेना या पुलिस विभाग में कार्यरत हो सकता है। कुछ मामलों में मोतियाबिन्द अथवा कमजोर दृष्टि होने के संकेत है

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चरण -3

तृतीय भाग (20.00 से 23.20 डिग्री)-महान योगी बनेगा। प्रायः रोगहरण शक्त्यिों के साथ मुख्य पुजारी। यदि बृहस्पति अस्लेश नक्षत्र में स्थापित हो तो वह लोगों की दृष्टि में भगवान के समकक्ष पूजा जाएगा। जड़ी-बूटियों द्वारा इलाज करके कमाएगा ।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (23.20 से 26.40 डिग्री)-दीर्घायु का योग । वह वास्तुकार अथवा बड़ी इस्टेट या नगर का स्वामी होगा। संगीत तथा ललित कला में रूचि। ऐसे जातकों में चितकबरेपन या सिफलिश भी देखा गया है। नेत्र दृष्टि कमजोर होगी।

3-कृत्तिका

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केतु - कृत्तिका

चरण -1

प्रथम भाग (26.40 डिग्री से 30.00 डिग्री ) - व्यवसायिक क्षेत्र में अक्सर परेशानियों का सामना करना पडेगा । प्रयत्न करने पर भी निराशा हाथ लगेगी। हृदय सम्बन्धी समस्या। धातुकर्मी अथवा रसायन इंजीनियर । यदि शुभ दृष्टि न हो तो जीवन काल 50 वर्ष तक का होगा ।  

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चरण -2

द्वितीय भाग ( 30.00 डिग्री से 33.20 डिग्री) - जातक अपने परिजनों से रहेगा। शरीर में दर्द । स्त्री और मदिराव्यस्नी । सम्पत्ति रहित होगा ।

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चरण -3

तृतीय भाग (32.20 डिग्री से 36.40 डिग्री)- अटकल बाजियों से घाटा । शासके वर्ग से निन्दा का सामना । कानूनविद् लोगों से सम्पर्क | परिवार में उत्पन्न कन्या (उससे उत्पन्न नहीं) के कारण खलबली होगी। आवश्यकता पड़ने पर दूसरे उसकी सहायता करेंगे।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (36.40 डिग्री से 40.00 डिग्री)- व्यवसाय में अपने से वरिष्ठ व्यक्तियों के कारण रूकावटों और विवादों का जन्म । विवाह में अनगिनत परेशानियां अथवा विवाह देरी से होगी । वैभवपूर्ण जीवन जियेगा । कार्तिक नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को मार्गशीर्ष, अश्लेष, मूल पूर्व-फाल्गुन नक्षत्र में उत्पन्न लोगों से कोई सम्पर्क अथवा रिश्ता नहीं बनाना चाहिए । कार्तिक नक्षत्र में उत्पन्न जातकों का अधिण्ठाता दशा सूर्य है जिसके बाद चन्द्रमा, मंगल, राहू, बृहस्पति, शनि और बुद्ध आते हैं।

4-रोहिणी

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केतु - रोहिणी

चरण -1

प्रथम भाग (40.00 डिग्री से 43.20 डिग्री) - वह अपने जन्मस्थान से रहने का प्रयास करेगा। वह प्रायः दूसरे के आश्रित रहेगा। देखा गया है कि जातक की निर्धनता के कारण 30 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो जाती है । उसे अन्धापन अथवा मोतियाबिन्द भी हो सकता है।

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चरण -2

द्वितीय भाग (43.20 डिग्री से 46.40 डिग्री ) - लम्बी आयु होने में सन्देह है। यदि बृहस्पति की शुभ दृष्टि हो तो 21 वर्ष तक की आयु होगी। बचपन से ही दृष्टिदोष का संकेत ।

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चरण -3

तृतीय भाग (46.40 डिग्री से 50.00 डिग्री) - शिक्षक बनने का योग । बड़ा परिवार होगा। 30 वर्ष की आयु तक विरासत में मिली सम्पति से अच्छा जीवन । तदुपरान्त पत्नी के कारण सारा धन गंवा देगा। उसे गले या मुख का कैंसर अथवा हकलापन होने का संकेत । 

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चरण -4

चतुर्थ भाग (50.00 डिग्री से 53.20 डिग्री)-वेद शास्त्रों में निपुण । वादविवाद में प्रवीण । तन्त्र और मन्त्र पर पांडित्य होगा। कुछ मामलों में अच्छे आयुर्वेदिक चिकित्सक पाये गये हैं। फिर भी वह अन्धापन, मोतियाबिन्द तथा उच्चारण दोष से पीड़ित होगा ।

5-मृगशिरा

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केतु - मृगशिरा

चरण -1

प्रथम भाग (53.20 डिग्री से 56.40 डिग्री)-उसका जीवन चिन्ताओं से भरा होगा। वह प्रयत्न करने पर भी धन जमा नहीं कर सकेगा। फिर भी उसकी वृद्धावस्था अपने बच्चों की आर्थिक समृद्धता तथा सम्पन्नता के कारण शान्तिपूर्वक तथा सुख से बीतेगी। उसे मध्यावस्था में मोतियाबिन्द अथवा अन्धापन हो सकता है।

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चरण -2

द्वितीय भाग (56.40 डिग्री से 60.00 डिग्री) - अपंगता का योग । वह अति विद्वान होगा। अपना जीवन मानसिक रूप से विकलांग तथा अपंग व्यक्तियों की सेवा में गुजारेगा। गले अथवा जिहवा के रोग से पीड़ित होगा ।

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चरण -3

तृतीय भाग (60.00 डिग्री से 63.20 डिग्री) - वह ईर्ष्यालू स्वभाव का होगा । गठिया, चकतों अथवा दाद से पीड़ित होगा।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (63.20 डिग्री से 66.40 डिग्री) - पापकर्मों में लिप्त, झगड़ालू, भ्रष्ट तथा कई रोगों से प्रभावित। लेकिन वह धनवान तथा सफल व्यक्ति होगा ।

6-आर्द्रा

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केतु - आर्द्रा

चरण -1

प्रथम भाग (66.40 डिग्री से 70.00 डिग्री) - क्रूर तथा धूर्त व्यक्ति होगा । अपने उपकार करने वालों का आभार न मानने वाला। सरकार से निन्दित होगा । पत्नी या तो बिमार होगी अथवा 35 वर्ष की आयु से पहले पत्नी की मृत्यु का योग । उसकी आयु मध्यमवय तक होगी। अस्थमा अथवा क्षय रोग से पीड़ित होगा।

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चरण -2

द्वितीय भाग (70.00 डिग्री से 73.20 डिग्री ) - लड़ाका प्रवृत्ति का होगा । धन की हानि । मुख के राग होंगे। वह अपने परिवार के द्वारा त्यागा जायेगा। माता का स्नेह भी नही मिलेगा ।

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चरण -3

तृतीय भाग (73.20 डिग्री से 76.40 डिग्री) - कृषि सम्बन्धित व्यवसाय अथवा कृषि कार्य करेगा। मुकदमे बाजी में भूमि गंवा देगा । विवाहित जीवन कलहपूर्ण होगा। बच्चों की असमय मृत्यु । क्षय अथवा कैंसर रोग से पीड़ित होगा।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (76.40 डिग्री से 80.00 डिग्री) - पैतृक सम्पत्ति गंवा देगा। पिता से कोई सहारा या लाभ नहीं मिलेगा । उसे जहर दिये जाने का खतरा । (पतला) शरीर उसे शारीरिक विकलांगता भी हो सकती है। आर्द्रा नक्षत्र बच्चे की शिक्षा प्रारम्भ कराने के लिए बहुत ही शुभ नक्षत्र है। इस नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को पौष, माघ, उत्तर- फाल्गुन, उत्तर आषाढ़, अभिजीत तथा श्रावण नक्षत्रों में उत्पन्न लोगों से कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए। इस नक्षत्र का दशा स्वामी राहू है, जिसके बाद बृहस्पति, शनि, बुध, केतू, शुक्र, सूर्य तथा चन्द्रमा का क्रम हैं ।

7-पुनर्वसु

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केतु - पुनर्वसु

चरण -1

प्रथम भाग (80.00 डिग्री से 83.20 डिग्री)- यदि बुध भी यहां स्थित हो तो जातक धनी बनेगा तथा उसके दीर्घायु सन्तान होगी। वह बुद्धिमान होगा। यहां पर अकेले केतू के होने पर उसके भाई-बहनों की तबाही का संकेत । उसके चेहरे पर बड़े आकार का पहचान चिन्ह होगा ।

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चरण -2

द्वितीय भाग ( 83.20 डिग्री से 86.40 डिग्री) - उसे कुछ शारीरिक बिमारियां होगी । धनी परिवार में जन्म लेगा तथा उसका पिता धर्मनिष्ठ, धनी तथा प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा। लेकिन जातक अपने पिता के दुख की जड़ होगा। यदि हितकारी ग्रहों की केतू पर दृष्टि अथवा संयोग न हो तो ये परिणाम निकल सकते हैं। यदि दुष्ट ग्रहों की दृष्टि हो अथवा केतू अकेला हो तो उपरोक्त परिणाम ही होंगें ।

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चरण -3

तृतीय भाग (86.40 डिग्री से 90.00 डिग्री) - जातक के तीन पलियां होंगी। सदैव कर्जों में डूबा रहेगा । उसकी दो पत्नियां उसे काफी कष्ट देंगी। कई बच्चे होंगे। दिल के दौरे से मरेगा अथवा यदि दो या अधिक दुष्ट ग्रहों की केतू पर दृष्टि अथवा संयोजन हो तो जातक आत्महत्या करेगा।

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चरण -4

चतुर्थ भाग ( 90.00 डिग्री से 93.20 डिग्री) - जातक मेहनती होगा मगर इसका उसे कम लाभ मिलेगा। इस अंश में केतू की उपस्थिति के कारण वह मजदूरी, कुलीगिरी अथवा दूसरे दासोचित कार्य करेगा फिर भी उसके बच्चे धनी व विद्वान होंगे और उसकी वृद्धावस्था में सेवा करेंगे। पुर्नवसु नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को पौष, अश्लेष, शताभिषज तथा कार्तिक नक्षत्रों में उत्पन्न व्यक्तियों से सम्बन्ध नहीं बनाना चाहिए। पुर्नवसु नक्षत्र का दशा स्वामी बृहस्पति है, जिसके बाद शनि, बुध, केतू, शुक्र, सूर्य, चन्द्रमा तथा मंगल का क्रम है।

8-पुष्य

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केतु - पुष्य

चरण -1

प्रथम भाग ( 93.20 डिग्री से 96.40 डिग्री ) - केतू के लिए यह स्थिति अच्छी नहीं है। जातक अपने घर से भाग जायेगा। रास्ते में बहुत कष्ट उठायेगा। वह कुछ समय तक घरेलू नौकर के रूप में काम करेगा। धीरे-धीरे उसे सम्मानित कार्य मिल जायेगा ।

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चरण -2

द्वितीय भाग ( 96.40 डिग्री से 100.00 डिग्री)- बुरे मित्रों की संगत में 'नष्ट कर देगा। माता तथा घर की सम्पति के लिए संकट उत्पन्न करेगा। वह परिवार की भलाई के लिए चिंतित होगा। उसके दो विवाह होंगे।

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चरण -3

तृतीय भाग (100.00 डिग्री से 103.20 डिग्री) - वह किसी असाध्य रोग से ग्रस्त होगा । सदा कर्जों में डूबा रहेगा । धक्के खाता घूमेगा। लगभग 10 वर्ष तक किसी दूर स्थान पर जाकर उसे धन प्राप्त होगा और शाही शान शौकत से रहेगा। बाद में वह धन दूसरों द्वारा हथिया लिया जायेगा और वह पूर्व स्थिति में पहुंच जायेगा। यदि बृहस्पति मकर राशि में हो तो जातक सारा धन नहीं खोयेगा।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (103.20 डिग्री से 106.40 डिग्री) - जातक किसी मशीनी कार्य में सलंग्न होगा। वह धन अर्जित करेगा मगर बुरी स्त्रियों की संगति में सब कुछ नष्ट कर देगा। अन्त में उसकी पत्नी अपने विवाहित जीवन के आरम्भ कष्ट उठायेगी। लेकिन जातक अपनी 40 वर्ष की आयु के बाद सुखी विवाहित जीवन व्यतीत करेगा । पुष्य नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को माघ, उत्तर, फाल्गुन चित्रा, श्राविष्ठा तथा शताभिषज नक्षत्रों में उत्पन्न व्यक्तियों से कोई सम्बन्ध नहीं बनाना चाहिए। पुष्य नक्षत्र का दशा स्वामी शनि है, जिसके बाद बुध केतू, शुक्र, सूर्य,चन्द्रमा तथा मंगल का क्रम है।

9- आश्लेषा

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केतु - आश्लेषा

चरण -1

प्रथम भाग (106.40 डिग्री से 110.00 डिग्री) - स्त्री जातक नर्स का काम करेगी। लेकिन यदि श्रावण नक्षत्र में बृहस्पति स्थित हो तो वह डाक्टर या कैमिस्ट बनेगी। नर जातक सुरक्षा विभाग में होंगे।

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चरण -2

द्वितीय भाग (110.00 डिग्री से 113.20 डिग्री) - अति साहसी । धार्मिक अनुष्ठान करेगा। उसके कष्टों का मुख्य कारण उसका पिता होगा। जातक अपनी माता के साथ दोनों पिता की उपेक्षा के शिकार होंगे। फिर भी वह उन्नति करके माता को आश्रय व आराम प्रदान करेगा।

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चरण -3

तृतीय भाग (113.20 डिग्री से 116.40 डिग्री) - अच्छी स्थिति होगी। विभिन्न विज्ञान विषयों में अच्छा ज्ञान होगा। काफी यात्राएं करेगा और धन अर्जित करेगा ।

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चरण -4

चतुर्थ भाग ( 116.40 डिग्री से 120.00 डिग्री ) - जातक के कई मित्र होंगे जो उसके लिए कोई परेशानी उत्पन्न नहीं करेंगे। वह उनकी बदौलत अच्छी स्थिति में पहुंचेगा। वह जमीन जायदाद के धन्धे में अच्छा लाभ कमायेगा । अश्लेष नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को पूर्व-फाल्गुनी, हस्ता, स्वाति, शताभिषज तथा पूर्व-भाद्रपद नक्षत्रों में उत्पन्न व्यक्तियों से कोई सम्बन्ध नही बनाना चाहिए। अश्लेष नक्षत्र का दशा स्वामी बुध है, जिसके बाद केतू, शुक्र, सूर्य, चन्द्रमा तथा मंगल का क्रम है ।

10-मघा

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केतु - मघा

चरण -1

प्रथम भाग (120.00 डिग्री से 123.20 डिग्री ) - जातक विभिन्न तरीकों से हानि उठायेगा। वह जुआरी होगा, रेस का शौकीन तथा समाज द्वारा प्रतिबन्धित अवैध कार्यों में निमग्न रहेगा ।

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चरण -2

द्वितीय भाग (123.20 डिग्री से 126.40 डिग्री ) - जातक सबसे अलग एकांतवासी जीवन बितायेगा। उसे कहीं पर भी खुशी नहीं मिलेगी। वह सुखों के पीछे भागेगा जो कि उसे अपने घर में ही मिलेगा कुछ समय के लिए सन्यासी बन सकता है और मध्यावस्था के बाद दौबारा घर लौट आयेगा। यह  देखा गया है कि इस भाग में लग्न पड़ता है या नहीं, अकेले केतू की स्थिति ही जातक (स्त्री) के पति की मृत्यु कर देने में समर्थ है।

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चरण -3

तृतीय भाग (126.40 डिग्री से 130.00 डिग्री) - कार्यक्षेत्र में अनावाश्यक चिन्ताएं । यदि शताभिषज नक्षत्र में लग्न पड़ता हो तो स्त्री के 37 वें वर्ष में पति की मृत्यु तथा पुरुष के 40 वें वर्ष में पत्नी की मृत्यु का योग है।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (130.00 डिग्री से 133.20 डिग्री) - यदि इस भाग में लगन भी पड़ता हो, तथा श्रविष्ठा नक्षत्र में बृहस्पति स्थित हो तो जातक सेना में उच्च पद पर होगा । वह सामन्जस्यपूर्ण विवाहित जीवन बितायेगा तथा धन और सम्मान से सम्पन्न होगा । माघ नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को उत्तर-फाल्गुनी चित्रा, विशाखा, उत्तर-भाद्रपद तथा रोहिणी नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्तियों से सम्बन्ध नही बनाना चाहिए।

11- पूर्व फाल्गुनी

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केतु - पूर्व फाल्गुनी

चरण -1

प्रथम भाग (133.20 डिग्री से 136.40 डिग्री ) -केतू के लिए सबसे अच्छी स्थिति। जातक को जीवन की सभी इच्छाएं, सुख, धन, स्वास्थ्य प्रसिद्ध प्राप्त होगी। सुखी विवाहित जीवन होगा।

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चरण -2

द्वितीय भाग (136.40 डिग्री से 140.00 डिग्री) - प्रथम अंश वाले उपरोक्त परिणाम लागू होते हैं।

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चरण -3

तृतीय भाग (140.00 डिग्री से 143.20 डिग्री) - भगवान के प्रति पूरी तरह समर्पित होगा। विभिन्न तीर्थ यात्राएं करेगा। ईश्वर की उस पर कृपा होगी। फिर भी वह पत्नी की स्वास्थ्य समस्याओं से परेशान होगा। निष्कपट और सत्यवादी होगा। आँख और नाक के बीच (माथे के नीचे) तीसरी आँख के प्रतीक रूप से एक चिन्ह होगा।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (142.20 डिग्री से 146.40 डिग्री) - 35 वर्ष की आयु के बाद उसकी स्थिति में धीरे-धीरे सुधार होगा। यदि बृहस्पति और मंगल भी यहां पर स्थित हो तो जातक बुद्धिमान, छोटे कद-काठी का तथा सुव्यवहारी होगा। पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को अश्लेष, स्वाति, हस्ता, मृगशीर्ष, नक्षत्रों में उत्पन्न व्यक्तियों से कोई सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए। इस नक्षत्र के प्रभाव के समय कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए। पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र का दशा स्वामी शुक्र है, जिसके बाद सूर्य, चन्द्रमा,मंगल, राहू, बृहस्पति, शनि तथा बुद्ध का क्रय है। 

12- उत्तर फाल्गुनी

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केतु - उत्तर फाल्गुनी

चरण -1

प्रथम भाग (146.40 डिग्री से 150.00 डिग्री)- यह स्थिति कुछ है। जातक स्वास्थ्य धन तथा संतुलित विवाहित जीवन बितायेगा । केवल पुत्रियाँ ही होंगी। वह अस्थमा, फेफड़ों या जिगर की समस्या से ग्रस्त होगा।

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चरण -2

द्वितीय भाग ( 150.00 डिग्री से 153.20 डिग्री) - प्रतिशोधी स्वभाव होगा। पत्नी के द्वारा काफी धन लाभ होगा। लेकिन पत्नी ज्यादा देर तक जीवित नहीं रहेगी।

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चरण -3

तृतीय भाग (153.20 डिग्री से 156.40 डिग्री) - उचित रूप से विद्वान | गुप्त विद्याओं, ज्योतिष और खगोल शास्त्र में रूचि होगी। कर्लक, स्टेनोग्राफर, टाइपिस्ट आदि के रूप में नौकरी करेगा। 40 वर्ष की आयु के बाद अपने व्यवसाय में अचानक उन्नति करेगा।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (156.40 डिग्री से 160.00 डिग्री)- उसके प्रायः दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण जातक को सलाह दी जाती है कि वह वाहन चलाने से परहेज करें। जातक सरकारी नौकरी में होगा। यदि इस भाग में केतु पर अन्य ग्रहों का प्रभाव हो तो वह नौकरी छोड़ कर कोई व्यवसाय करेगा और भारी घाटा उठायेगा । उत्तर- फाल्गुनी नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को चित्रा, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद तथा पुर्नवसु नक्षत्रों में उत्पन्न लोगों से कोई सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए। उत्तर- फाल्गुनी नक्षत्र का दशा स्वामी सूर्य है, जिसके बाद चन्द्रमा,मंगल, बृहस्पति, शनि तथा बुद्ध का क्रम है।

13- हस्त

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केतु - हस्त

चरण -1

प्रथम भाग (160.00 डिग्री से 163.20 डिग्री) -जातक भोजन की विषाक्तता के कारण उल्टी-दस्त से पीड़ित होगा। वह टाइपिस्ट, कर्लक, लेखाकार के रूप में नौकरी करेगा। शुक्र के साथ होने पर वह गरीब और अनपढ़ होगा और घरेलू नौकर के कार्य करेगा।

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चरण -2

द्वितीय भाग (163.20 डिग्री से 166.40 डिग्री)-उसकी याददाशत बहुत कमजोर होगी। प्रायः नाड़ी तन्त्र की खराबी से पीड़ित होगा। बवासीर, यक्ष रोग तथा कैंसर का योग है।

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चरण -3

तृतीय भाग (166.40 डिग्री से 170.00 डिग्री) - वह उच्च शिक्षा प्राप्त तथा सरकारी नौकरी में उच्च पद पर होगा। आरम्भ में वह छोटे पद पर नियुक्त होगा। मंगल के साथ होने पर वह अचानक ऊँचे स्तर के पद पर उन्नीत करेगा। सुखी विवाहित जीवन होगा। मंगल के साथ होने पर उसके दो बच्चे होंगे। 

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चरण -4

चतुर्थ भाग (170.00 डिग्री से 173.20 डिग्री)-यह स्थिति केतू के लिए शुभ है। यदि बृहस्पति भी यहां पर स्थित है तो जातक बड़ा लेखक या प्रकाशक होगा। वह सरकार में वित्तीय और लेखा अधिकारी होगा। हस्त नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को स्वाति, अनुराधा, मूल, भरणी तथा पुर्नवसु नक्षत्रों में उत्पन्न व्यक्तियों से सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए। हस्त नक्षत्र का दशा स्वामी चन्द्रमा है, जिसके बाद मंगल, राहू, बृहस्पति, शनि, बुध, केतू तथा शुक्र का क्रम है।

14- चित्रा

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केतु - चित्रा

चरण -1

प्रथम भाग (173.20 डिग्री से 176.40 डिग्री) - )- इस भाग में यदि केतू अकेला स्थित हो तो जातक दुश्कर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करेगा। वह धन लोलुप होगा।  

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चरण -2

द्वितीय भाग (176.40 डिग्री से 180.00 डिग्री)- यदि इस भाग में लग्न भी पड़ता हो और हितकारी ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक राजसी वैभव का आनन्द लेगा। अन्य ग्रहों के साथ वह सामान्य परिणामों को प्राप्त करेगा।

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चरण -3

तृतीय भाग (180.00 डिग्री से 183.20 डिग्री) - जातक का रोगी शरीर होगा और अपनी बिमारी के कारण कुंठित मनोदशा में होगा। वह कैमिकल या स्टील के व्यवसाय से सम्बन्धित संस्थान में नियुक्त होगा।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (183.20 डिग्री से 186.40 डिग्री) - वह नेक तथा धनी होगा। केतू के आधिपत्य के लिए अति शुभ स्थिति । 35 वर्ष की आयु के बाद नेक पत्नी तथा बच्चों से युक्त होगा । यदि 32 वर्ष की आयु से पहले विवाह होगा तो जातक की पत्नी के दोष के कारण वह उसे तलाक देगा। चित्र नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को विशाखा, ज्येष्ठ, पूर्वआषाढ़, कार्तिक तथा पुष्य नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्तियों से कोई सम्बन्ध नहीं बनाना चाहिए। चित्र नक्षत्र का दशा स्वामी मंगल है, जिसके बाद राहू, बृहस्पति, शनि, बुध, केतू तथा शुक्र का क्रम है।

15- स्वाति

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केतु - स्वाति

चरण -1

प्रथम भाग (186.40 डिग्री से 190.00 डिग्री) - जातक दीर्घायु होगा । नृत्य संगीत का शौकीन । विभिन्न शास्त्रों में विद्वान ।

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चरण -2

द्वितीय भाग (190.00 डिग्री से 193.20 डिग्री) - जनसम्पर्क में श्रेष्ठ, स्त्रियों के प्रति बहुत अधिक आर्कषित। जीवन में निम्न स्तर पर और धन से रहित होगा।

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चरण -3

तृतीय भाग (193.20 डिग्री से 196.40 डिग्री) - निम्नश्रेणी के लोगों की संगति करेगा। केवल पुत्रियां मगर उससे नहीं । क्षय रोग तथा जिगर की बिमारी होगी।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (196.40 डिग्री से 200.00 डिग्री)-जातक शक्तियों और अधिकार से पूर्ण होगा मगर अपने रोज के गुजारे लायक ही कमा पायेगा । घरेलू मामलों में वह कमोबेश सुखी वातावरण में रहेगा । स्वाति नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को अनुराधा, मूल, उत्तर-आषाढ़,कार्तिक रोहिणी, मृगशीर्ष तथा अश्लेष नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्तियों से सम्बन्ध नहीं बनाना चाहिए। स्वाति नक्षत्र का दशा स्वामी राहू है, जिसके बाद बृहस्पति, शनि,बुद्ध, केतू, शुक तथा सूर्य का क्रम है।

16- विशाखा

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केतु - विशाखा

चरण -1

प्रथम भाग (200.00 डिग्री से 203.20 डिग्री) - जातक में आत्मविश्वास नहीं होगा। मानसिक रूप से परेशान रहेगां पुरानी पेचिस से पीड़ित होगा। शनि के साथ होने पर जातक मशीनों से सम्बन्धित पद पर नियुक्त होगा। 35 से 40 वर्ष की आयु का समय शुभ होगा।

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चरण -2

द्वितीय भाग (203.20 डिग्री से 206.40 डिग्री) - वह चंचल चित का व्यभिचारी तथा पैतृक सम्पति लुटा देने वाला होगा।

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चरण -3

तृतीय भाग (206.40 डिग्री से 210.00 डिग्री) - वह उत्तेजित स्वभाव का वाक्पटु, नेकियों से रहित लेकिन बहादुर और माता-पिता का विरोधी होगा।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (210.00 डिग्री से 213.20 डिग्री) - अपने व्यवहार में आडम्बरपूर्ण तथा दम्भी व आलसी व्यक्तियों की संगति में आनन्द लेगा ।

17- अनुराधा

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केतु - अनुराधा

चरण -1

प्रथम भाग (213.20 डिग्री से 216.40 डिग्री)- शनि और बुध के साथ जातक विद्वान, तथा अच्छी स्थिति में होगा। लेकिन शनि के कारण उसकी प्रगति धीमी और विलम्ब से होगी। वह धार्मिक शिक्षक होगा ।

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चरण -2

द्वितीय भाग (216.40 डिग्री से 220.00 डिग्री)-केतू के आधिपत्य के लिए बिल्कुल भी शुभ स्थिति नहीं है । वह सम्पति के मामलों में मुकदमें बाजी में पड़ा रहेगा तथा भारी हानि उठायेगा । वह अन्य नीच जाति की स्त्रियों से काम-सम्बन्ध रखेगा। उसके शत्रु उसके लिए सभी संभावित मुश्किलें उत्पन्न करेंगे।

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चरण -3

तृतीय भाग (220.00 डिग्री से 223.20 डिग्री) - शनि के साथ होने पर जातक इंजीनियर होगा। 24 वर्ष की आयु तक उसे कोई स्थायी काम नहीं मिलेगा। 30 वर्ष की आयु के बाद अच्छी स्थिति प्राप्त करेगा तथा जीवन के सभी सुख-ऐश्वर्यों का आनन्द लेगा ।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (223.20 डिग्री से 226.40 डिग्री) - जातक का निवास प्रायः बदलता रहेगा। पैतृक सम्पति बेच कर वह परदेश में भटकता रहेगा। स्त्रियों के द्वारा हानि उठायेगाअनुराधा नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को मूल, उत्तर-आषाढ़, अश्लेष, आर्द्रा तथा पुनर्वसु लक्षत्रों में उत्पन्न व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए। इस नक्षत्र का दशा स्वामी शनि है, जिसके बाद बुध, केतू, शुक्र, सूर्य, चन्द्रमा, मंगल और राहू का क्रम है।

18- ज्येष्ठा

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केतु - ज्येष्ठा

चरण -1

प्रथम भाग (226.40 डिग्री से 230.00 डिग्री)- सरकारी नौकरी के लिए अच्छी स्थिति । मंगल के साथ होने पर वह शीर्ष स्थान पर होगा। विभिन्न प्रशिक्षणों के लिए चुना जायेगा तथा विदेश यात्राएं करेगा।

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चरण -2

द्वितीय भाग (230.00 डिग्री से 233.20 डिग्री)-जातक प्रथम भाग वाले ही परिणाम पायेगा। यदि शुक्र संयोजन अथवा दृष्टि के द्वारा सहयोग में हो तो जातक वाहन व्यवसाय के द्वारा यथेष्ट लाभ अर्जित करेगा।

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चरण -3

तृतीय भाग ( 233.20 डिग्री से 236.40 डिग्री) - वह अच्छे मित्रों का साथ होगा। खेल प्रतियोगिता या मनोरंजन के क्षेत्र में विभिन्न जिम्मेदारियाँ संभालेगा तथा धनी होगा ।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (236.40 डिग्री से 240.00 डिग्री) - ऐसे जातक प्राय व्यवसाय के क्षेत्र में होते हैं। ये सदैव प्रसन्नचित तथा सुखी होते हैं। वह धार्मिक संस्थाओं से भी जुड़े होते हैं। 

19- मूल

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केतु - मूल

चरण -1

प्रथम भाग (240.00 डिग्री से 243.20 डिग्री)-यदि अनुराधा नक्षत्र में लग्न पड़ता हो तो जातक भव्य भवनों तथा जमीन-जायदाद तथा सुखों से सम्पन्न होगा। फिर भी उसकी 31 वर्ष की आयु में उसे भारी हानि होगी । लेकिन इस खोई हुई सम्पति को वह अपनी 35 वर्ष की आयु में पुनः प्राप्त कर लेगा ।

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चरण -2

द्वितीय भाग (243.20 डिग्री से 246.40 डिग्री) - प्रथम भाग की भांति धन और सुखों से सम्पन्न होगा। यदि मंगल भी यहां सम्मिलत हो तो जातक मन्त्री या समकक्ष पद पर होगा ।

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चरण -3

तृतीय भाग (246.40 डिग्री से 250.00 डिग्री) - जातक ऊपर दिये गये प्रथम और द्वितीय भागों वाले ही परिणाम प्राप्त करेगा तथा उसे हृदय रोग अथवा रक्त विषाक्तता की परेशानी होगी।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (250.00 डिग्री से 253.20 डिग्री)- इस स्थिति में केतू जहां जातक को अधिकतम उन्नति प्रदान करेगा, वहां उसके परिवार में गतिरोध उत्पन्न कर देगा। उसके परिजन उसके शत्रु बन जायेगें और उसके लिए समस्याएं उत्पन्न करेगें।

20- पूर्व आषाढा

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केतु - पूर्व आषाढा

चरण -1

प्रथम भाग (253.20 डिग्री से 256.40 डिग्री) - यदि यहां लग्न भी पड़ता हो तो गठिया रोग का संकेत। अच्छी धन दौलत अर्जित करेगा । उसका बहुत विस्तृत परिवार होगा।

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चरण -2

द्वितीय भाग (256.40 डिग्री से 260.00 डिग्री) - इस भाग में बृहस्पति तथा मूल अथवा पूर्वआषाढ़ नक्षत्रों में बुध हो तो जातक बुद्धिमान, बड़ों का आदर करने वाला होगा। उसके पांच भाई और तीन बहनें होगी। बृहस्पति के अकेले और बिना किसी अन्य ग्रह की दृष्टि के होने पर जातक किसी लोह-मशीन फैक्ट्री में काम करेगा।

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चरण -3

तृतीय भाग (260.00 डिग्री से 263.20 डिग्री) - शतभिषज नक्षत्र में सूर्य के साथ जातक डाक्टर होगा और पत्नी के द्वारा धन प्राप्त करेगा। 55 वर्ष की आयु के बाद विदेश यात्रा करेगा।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (263.20 डिग्री से 266.40 डिग्री) - राजनीतिज्ञों के निकट सम्पर्क में रहने से वह शक्ति और अधिकार प्राप्त करेगा, मगर धन नही होगा । उसके अनपढ़ होने तथा शक्ति व्यापारी होने, अधिक दिखावेबाज होने के कारण वह अपनी गाढ़े पसीने की कमाई खर्च कर डालेगा, मगर बदले में कुछ नहीं पायेगा । पूर्व आषाढ़ नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को श्रावण, शतभिषज, उत्तर-भाद्रपद, पुष्य, अश्लेष और चित्रा नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए। मंगल इस नक्षत्र का दशा स्वामी शुक्र है जिसके बाद सूर्य, चन्द्रमा, राहू, बृहस्पति तथा शनि का क्रम है। पूर्व आषाढ़ नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्ति की आयु लगभग 86 वर्ष की आंकी गई है। 

21- उत्तर आषाढा

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केतु - उत्तर आषाढा

चरण -1

प्रथम भाग (266.40 डिग्री से 270.00 डिग्री)-इस भाग में केतू की स्थिति एक स्तर पर तो जातक को उसके कार्य क्षेत्र में शीर्ष स्थान पर पहुंचाएगी तथा दूसरे स्तर पर उसे गिरा भी देगी।

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चरण -2

द्वितीय भाग (270.00 डिग्री से 273.20 डिग्री) - सूर्य के साथ होने पर जातक का पिता सरकारी नौकरी में होगा। फिर भी वह अपने पिता से कोई लाभ प्राप्त नहीं कर पायेगा। वह बुद्धिमान तथा धार्मिक विचारों का होगा । शरीर दर्द से पीड़ित रहेगा।

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चरण -3

तृतीय भाग (273.20 डिग्री से 276.40 डिग्री) - इस भाग में केतू और ज्येष्ठ नक्षत्र में चन्द्रमा के स्थित होने पर जातक वकील और 55 वर्ष की आयुमें विशिष्ट राजनयिक होगा तथा सुखी जीवन व्यतीत करेगा।

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चरण -4

इस नक्षत्र में केतू बृहस्पति और शुक्र के उत्कर्ष का परिणाम देता है। जातक उच्च विद्वान, सरकार में उच्च पदाधिकारी अथवा बड़ा उद्योगपति होगा। उत्तर- आषाढ़, रेवती, माध तथा स्वाति नक्षत्रों में उतपन्न व्यक्तियों से सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए। इस नक्षत्र का दशा स्वामी सूर्य है, जिसके बाद चन्द्रमा, मंगल, राहू, बृहस्पति, शनि, बुद्ध तथा केतू का क्रम है। 

22- श्रवण

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केतु - श्रवण

चरण -1

प्रथम भाग ( 280.54.13 डिग्री से 283.20 डिग्री)- जब इस भाग मे लगन भी पड़ता हो तो जातक सदा का धनी तथा संतानवान होगा।

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चरण -2

द्वितीय भाग (283.20 डिग्री से 286.40 डिग्री) - पुत्रियों के कारण मानसिक रूप से परेशान होगा। अनिष्टकारी ग्रहों से आक्रांत होने पर उसका जीवन बच्चों के कारण बहुत दुखी होगा।

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चरण -3

तृतीय भाग (286.40 डिग्री से 290.00 डिग्री)-पत्नी उसके लिए समस्याएं उत्पन्न करेगी। इस कारण उसकी प्रगति में बाधा आयेगी ।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (290.00 डिग्री से 293.20 डिग्री) - जातक श्वास रोग, निमोनिया अथवा क्षयरोग से ग्रस्त होगा। पत्नी और बच्चों के कारण उसे खतरा होगा । श्रावण नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को शताभिषज, उत्तर-भाद्रपद, अश्विनी, माध ओर पूर्वफाल्गुनी नक्षत्रों में उत्पन्न व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए। श्रावण नक्षत्र का दशा स्वामी चन्द्रमा है, जिसके बाद मंगल, राहू,बृहस्पति, शनि, बुद्ध, केतू और शुक्र का क्रम है। 

23- धनिष्ठा

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केतु - धनिष्ठा

चरण -1

प्रथम भाग (293.20 डिग्री से 296.40 डिग्री ) - जातक धार्मिक प्रवृति का होगा। सहजातकों से अच्छे सम्बन्ध नहीं होंगे। जमीन जायदाद पर परिवार में झगड़े होंगे। शुभ ग्रहों के संयोग से जातक इन झगड़ों से लाभान्वित होगा ।

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चरण -2

द्वितीय भाग (296.40 डिग्री से 300.00 डिग्री)-उसका कोई आप्रेशन होगा। बार-बार दुर्घटनाएं होगी । अतः उसे स्वयं गाड़ी नहीं चलानी चाहिए।

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चरण -3

तृतीय भाग (300.00 डिग्री से 303.20 डिग्री)- घर में चोरी होगी। मादा जातकों के बार-बार गर्भपात तथा राजोनिवृति की समस्याएं होंगी।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (303.20 डिग्री से 306.40 डिग्री) - स्थिति कुछ अच्छी होगी। जातक सरकारी नौकरी में होगा। उसकी सन्तान में से एक धनी और प्रसिद्ध होगा । श्रविष्ठा नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को पूर्व-भाद्रपद, रेवती, भरणी तथा अनुराधा नक्षत्रों में उत्पन्न व्यक्तियों से कोई सम्बन्ध नहीं बनाना चाहिए। इस नक्षत्र का दशा स्वामी मंगल है, जिसके बाद राहू, बृहस्पति, शनि, बुद्ध, केतु तथा शुक्र का क्रम है।

24- शतभिषा

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केतु - शतभिषा

चरण -1

प्रथम भाग (306.40 डिग्री से 310.00 डिग्री) - शुभ दृष्टि से रहित होने की दशा में जातक जीवन के सभी संभावी कष्ट पायेगा । सूर्य और बुद्ध पर बृहस्पति की दृष्टि के साथ विपरीत परिणाम होंगे अर्थात जातक को जीवन में कोई कष्ट नहीं होगा। सामान्य लोगों से अलग अति विद्वान और शिक्षा के क्षेत्र में विशिष्टता प्राप्त करेगा। वह कुशल इंजीनियर भी हो सकता है

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चरण -2

द्वितीय भाग (310.00 डिग्री से 313.20 डिग्री) - उपरोक्त प्रथम भाग में वर्णित परिणामों के अतिरिक्त जातक पेट के अल्सर, तेज खांसी और जुकाम से पीड़ित होगा ।

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चरण -3

तृतीय भाग ( 313.20 डिग्री से 316.40 डिग्री) - घर में चोरी होने के कारण भारी हानि होगी। जातक सरकार से दण्ड प्राप्त करेगा। सब तरफ से निराशा होगी। यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो ये बुरे प्रभाव क्षीण हो जायेंगे।

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चरण -4

चतुर्थ भाग ( 316.40 डिग्री से 320.00 डिग्री)- उसे धन की भारी हानि होगी, शक्तियां और अधिकार छिन जायेंगे। निम्न वर्ग की स्त्रियों, दासियों आदि से काम-सम्बन्ध रखेगा। उसके इन कृत्यों का परिजनों को पता चलेगा तो वह पलायन कर जायेगा। 40 वर्ष की आयु में स्थिरता प्राप्त करेगा,तब तक वह मुसीबत ग्रस्त रहेगा। उसे इस अध्याय के अन्त में दिये गये उपायों को अपनाना चाहिए। शताभिषज नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को उत्तर-भाद्रपद, अश्विनी, कृतिका और श्रविष्ठा (घनिष्ठा नक्षत्रों में उत्पन्न व्यक्तियों से सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए। शताभिषज नक्षत्र का दशा स्वामी राहू है, जिसके बाद बृहस्पति, शनि, बुद्ध, केतू तथा शुक्र का क्रम है। इस नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्तियों की अधिकतम आयु 88 वर्ष आंकी गई है।

25- पूर्व भाद्रपद

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केतु - पूर्व भाद्रपदा

चरण -1

प्रथम भाग (320.00 डिग्री से 323.20 डिग्री) - मंगल के साथ संयोजन होने पर जातक ग्राम प्रमुख होगा । यदि आर्द्रा नक्षत्र में सूर्य के साथ इस भाग में केतू स्थित हो तो जातक की दो पत्नियां होगी। उसका एक भाई डाक्टर होगा।

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चरण -2

द्वितीय भाग (323.20 डिग्री से 326.40 डिग्री)-जातक काफी धन अर्जित करेगा। पत्नी का स्वास्थ्य उसकी स्थायी समस्या होगी।

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चरण -3

तृतीय भाग (326.40 डिग्री से 330.00 डिग्री) - जातक श्वास रोग अथवा क्षय से ग्रस्त होगा। मानसिक दबाव से भी पीड़ित पाया गया है। बच्चों से भी उसे सुख नहीं मिलेगा।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (330.00 डिग्री से 333.20 डिग्री ) - जातक बुरी तरह से सट्टे बाजी से फंसा होगा। दिल के रोग, मधुमेह से पीड़ित होगां यथेष्ट धन होगा। पूर्वभाद्रपद नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को रेवती, भरणी तथा मूल नक्षत्रों में उत्पन्न व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध नही बनाने चाहिए। इस नक्षत्र का दशा स्वामी बृहस्पति है, जिसके बाद शनि, बुध, केतू,शुक्र, सूर्य, चन्द्रमा तथा राहू का क्रम है ?

26- उत्तर भाद्रपद

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केतु - उत्तर भाद्रपद

चरण -1

प्रथम भाग (333.20 डिग्री से 336.40 डिग्री) - जातक बार-बार अपना निवास बदलता रहेगा। वह घर से भाग जायेगा । उसका प्रारम्भिक समय 24 वर्ष की आयु तक कष्टपूर्ण तथा असफलताओं से भरा होगा वह मानसिक रूप से अशान्त होगा। 24 वर्ष की आयु के बाद वह अपने पद पर व्यवस्थित हो जायेगा और उसे पूर्ण संतुष्टि प्राप्त होगी।

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चरण -2

द्वितीय भाग (336.40 डिग्री से 340.00 डिग्री) - विभिन्न तरीकों से जातक को भारी हानि होगी। उसे 30 वर्ष तक की आयु में निवेश करने से बचना चाहिए। हितकारी ग्रहों से सयुंक्त होने पर केतू जातक को जेल करायेगा ।अनिष्टकारी प्रभाव होने पर वह 30 वर्ष की आयु के बाद सूखी होगा ।

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चरण -3

तृतीय भाग ( 340.00 डिग्री से 343.20 डिग्री)-वह कृषि के द्वारा कमायेगा। छोटी आयु में परिवार के सदस्यों की मृत्यु हो जाने के कारण उस पर बहुत सी जिम्मेदारियां आ जायेगी। कुछ मामलों में यह भी देखा गया है कि वह मुकदमें बाजी के कारण हरजाने में भारी रकम देने से दिवालिया हो जायेगा ।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (343.20 डिग्री से 346.40 डिग्री)- जातक परदेश में रहेगा।माता-पिता से झगड़ा होगा। शिक्षा अधूरी होगी लेकिन बाद में अच्छी शिक्षा प्राप्त करके उच्च स्थिति में पहुंचेगा और शक्ति अधिकार प्राप्त व्यक्ति होगा । उत्तर भाद्रपद नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को अश्विनी, कृतिका मृगशीर्ष तथा पूर्व - आषाढ़ नक्षत्रों में उत्पन्न व्यक्ति से सम्बन्ध नही बनाना चाहिए। 

27- रेवती

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केतु - रेवती

चरण -1

प्रथम भाग (346.40 डिग्री से 350.00 डिग्री) - यदि शुक्र यहां पर सम्मिलत हो तो वह डाक्टर विशेषता स्त्री रोग विशेषज्ञ होगा। सूर्य भी हो तो वह आंखों का सर्जन होगा। जब वह उच्च व्यवसायिक विशिष्टता प्राप्त करेगा अथवा सम्मानित होगा तब उसका परिवारिक जीवन अशान्त होगा ।

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चरण -2

द्वितीय भाग (350.00 डिग्री से 353.20 डिग्री) - 40 वर्ष की आयु तक उसके पास स्वास्थ्य और धन तो होगा मगर खुशी नहीं होगी। 35 वर्ष की आयु तक वह परिवार से दूर रहेगा। उसे अपनी पत्नी पर सन्देह करने की आदत को छोड़ना चाहिए क्योंकि इसी कारण से वह परिवार से अलग रहेगा।35 वर्ष की आयु के बाद उसका अपने परिवार से पुर्नमिलन होगा।

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चरण -3

तृतीय भाग (353.20 डिग्री से 356.40 डिग्री) - बार-बार की यात्राओं द्वारा धन अर्जित करेगा। आराम और सुख का जीवन होगा।

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चरण -4

चतुर्थ भाग (356.40 डिग्री से 360.00 डिग्री) - देखा गया है कि इस भाग में केतू के साथ व्यक्ति ठेकेदारी से सम्बन्धित कार्य करते हैं। वे किसी के आधीन कार्य नहीं कर सकते इसलिए उनका व्यवसाय या पेशा स्वतन्त्र होता है। रेवती नक्षत्र में उत्पन्न जातकों को भरणी, रोहिणी, श्रावण तथा पूर्व-आषाढ़ नक्षत्रों में उत्पन्न व्यक्तियों से सम्बन्ध नहीं बनाना चाहिए। रेवती नक्षत्र का दशा स्वामी बुध है, जिसके बाद केतू, सूर्य, चन्द्रमा,मंगल, राहू, बृहस्पति तथा शनि का क्रम है।

28- अभिजित

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केतु - अभिजित

इस नक्षत्र में केतू बृहस्पति और शुक्र के उत्कर्ष का परिणाम देता है। जातक उच्च विद्वान, सरकार में उच्च पदाधिकारी अथवा बड़ा उद्योगपति होगा।