विविध

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अपने जन्म नक्षत्र को 12 बराबर वर्गों में विभक्त करें। अपने जन्म नक्षत्र से सम्बन्धित वर्ग की खोजें तथा प्रत्येक वर्ग के आगे दिये गये परिणाम देखें। सुविधा तथा संदर्भ के लिए मैंने इनको इस प्रकार रखा है-

1) 0.00.00-1.06.40 (विदेश में रहेगा।)
2.) 1.06.40 - 2.13.20 (उच्चस्थिति तथा शक्ति)
3.) 2.13.20 - 3.20.00 (खतरा, दुर्घटना की जोखिम)
4.) 3.20.00 - 4.26.40 (राजसी स्थिति)
5.) 4.26.40 - 5.33.20 (परिवार में उच्च स्थिति)
6.) 5.33.20 - 6.40.00 (बिमार प्रकृति)
7.) 6.40.00-  7.46.40 (स्थिति से वंचित)
8.) 7.46.40 - 8.53.20 (किसी वस्तु से भयभीत)
9.) 8.53.20 - 10.00.00 (गरीब अस्तित्व)
10.) 10.00.00 - 11.06.40 (छोटी आयु की युवती से विवाह)
11.) 11.06.40 - 12.13.20 (सभी सुख)
12. 12.13.20 - 13.20.00 (अच्छाऔर काफी मात्रा में भोजन)

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अपने जन्म नक्षत्र को 60 बराबर वर्गों में विभक्त करें। देखें कि किस वर्ग में आपका जन्म नक्षत्र पड़ता है। प्रत्येक वर्ग (विभाजन) के आगे दिये गये परिणाम इस प्रकार है :

1) 0.00.00 - 0.13.20 (पद त्याग स्थिति की हानि )
2) 0.13.20 - 0.26.40 ( तपस्या )
3) 0.26.40 - 0.40.00(अन्य स्त्रियों से काम सम्बन्ध)
4)0.40.00 - 0.53.20(चोरी होना)
5) 0.53.20 - 1.06.40(वाहन, हाथी, सवारी)
6) 1.06.40-  1.20.00 (राजसी स्थिति)
7) 1.20.00 - 1.33.20(राजा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या समकक्ष पद)
8) 1.33.20 - 1.46.40(शत्रुओं पर विजय)
9) 1.46.40 - 2.00.00(कानून विशेषज्ञ, वकील या बोधगम)
10) 2.00.00 - 2.13.20(नेक और भाग्यवान)
11) 2.13.20 - 2.26.40(सबके प्रति दयालू)
12) 2.26.40 - 2.40.00(सिरोच्छेद (मृत्युदण्ड)
13) 2.40.00 - 2.53.20(हाथ या पांव में चोट)
14) 2.53.20 - 3.06.40(कारावास)
15) 3.06.40 - 3.20.00(बरबादी)
16) 3.20.00 - 3.33.20(राजसी स्थिति)
17) 3.33.20 - 3.46.40(वेदों में विद्वान)
18) 3.46.40 - 4.00.00(नशेबाज (व्यसनी)
19) 4.00.00 - 4.13.20(धार्मिक प्रकृति)
20) 4.13.20 - 4.26.40(धर्म न्याय संगत तथा ईमानदारी)
21) 4.26.40 - 4.40.00(भाग्यशाली अस्तित्व)
22) 4.40.00 - 4.53.20(पैतृक अथवा गुप्त धन)
23) 4.53.20 - 5.06.40(वजनधारक)
24) 5.06.40 - 5.20.00(लेखक तथा अनुवादक)
25) 5.20.00 - 5.33.20(शत्रुओं का विनाशक)
26)5.33.20 - 5.46.40(रोग)
27)5.46.40 - 6.00.00(शत्रुओं के कारण असफलता से पीड़ित)
28)6.00.00 - 6.13.20(जन्म स्थान का त्याग)
29) 6.13.20 - 6.26.40(सेवक होगा)
30) 6.26.40 - 6.40.00(धन की होनि)
31) 6.40.00 - 6.53.20(महत्वपूर्ण स्थिति)
32) 6.53.20 - 7.06.40(स्थायीत्व)
33) 7.06.40 - 7.20.00(दूसरे की भूमि पर अधिग्रहण)
34) 7.20.00 - 7.33.20(कई पत्नियाँ)
35) 7.33.20 - 7.46.40(पशुओं, विशेषकर हाथी से खतरा)
36) 7.46.40 - 8.00.00(युद्ध से खतरा अथवा इससे भयभीत)
37) 8.00.00 - 8.13.20(किसी वस्तु से भय)
38) 8.13.20 - 8.26.40(ईमानदारी के कारण प्रगति)
39) 8.26.40 - 8.40.00(गरीब लोगों का भरण-पोषण)
40) 8.40.00 - 8.53.20(अग्नि से खतरा)
41) 8.53.20 - 9.06.40(सबके द्वारा परेशान)
42) 9.06.40 - 9.20.00(व्यवसाय)
43) 9.20.00 - 9.33.20(बहुतायत में यात्राएं)
44) 9.33.20 - 9.46.40(मासांहारी)
45) 9.46.40 - 10.00.00 (शस्त्रों से घायल) 
46)10.00.00 - 10.13.20(विवाह के लिए योग)
47) 10.13.20 - 10.26.40(खिलाड़ी-फुटबाल)
48)10.26.40 - 10.40.00(जुआरी)
49)10.40.00 - 10.53.20(राजसी स्थिति)
50)10.53.20 - 11.06.40(दुखी व्यक्तित्व)
51) 11.06.40 - 11.20.00(काहिल और नशे का व्यसनी)
52) 11.20.00 - 11.33.20(द्रोह करने वाला / विश्वास घाती)
53)11.33.20 - 11.46.40(रिश्तेदारों का निजी सामान)
54)11.46.40 - 12.00.00(पूजा ध्यान मग्न)
55)12.00.00 - 12.13.20(कई पनियाँ)
56) 12.13.20 - 12.26.40(अच्छा और यथेष्ट भोजन)
57)12.26.40 - 12.40.00(शराबी / व्यसनी)
58)12.40.00 12.55.20(धार्मिक कृत्य)
59) 12.55.20 - 13.06.40(शान्त स्वस्थ तथा उच्च स्थिति)
60) 13.06.40 - 13.20.00(सभी आराम तथा उच्च स्थिति)

नक्षत्र मिलान

मूल, माध तथा अश्विनी नक्षत्रों के प्रथम भाग में उत्पन्न जातक के पिता की मृत्यु होने का योग है, लेकिन रेवती, ज्येष्ठ अथवा अश्लेष नक्षत्रों के अंतिम भाग में उत्पन्न होने पर माता-पिता और स्वयं जातक की मृत्यु का संकेत है।
यदि बालक का जन्म उसी नक्षत्र में हुआ है जिसमें उसके पिता का हुआ था, अथवा पिता के नक्षत्र से 10वें नक्षत्र में बालक का जन्म अपने पिता को खो देगा। बालक का जन्म उसी जन्म लग्न और नक्षत्र नवमासा में हुआ
हो जिनमें पिता का भी हुआ था तो बालक के जन्म लेने वाले दिन ही उसके पिता की मृत्यु हो जायेगी ।
जातक के जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में हो, वही स्थान प्रथम नक्षत्र है। इसे जन्मार्क्ष कहते है; 10वें स्थान पर हो तो कर्मार्क्ष; 16वें स्थान पर हो तो संघातिका; 18वें स्थान पर समुदय; 19वें पद अधन; 23वें पर विनाशिका; 25 वें, 26वें तथा 27वें नक्षत्र को क्रमशः जाति, देश तथा अभिषेक कहा जाता है।
यदि जन्मार्थ तथा उपरोक्त अन्य नक्षत्र जन्म के अनिष्टकारी ग्रहों से ओझल रहते हैं तो वे जन्म लेने वाले दिन ही उसकी मृत्यु का कारण बनते हैं।यदि ये हितकारी ग्रहों से ओझल रहते हैं तो शुभ प्रभाव डालते हैं। यदि ठीक 180 डिग्री स्थिति से चन्द्रमा पर बृहस्पति की दृष्टि हो तो‘गजकेसरी’ योग बनता है, जिसका परिणाम अच्छी बुद्धि, दीर्घायु, लोक-प्रियता तथा प्रसिद्धि प्राप्त करना है।
सारावली के अनुसार मूल, अश्लेष, विशाखा तथा ज्येष्ठ इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले लड़कों के लिए घातक नहीं है। अतः चारों नक्षत्रों में उत्पन्न लड़कों को अपनी पुत्री के लिए स्वीकार करने में डरना नहीं चाहिए।
जब लग्न स्वामी शक्तिशाली और सुव्यवस्थित न हो तथा जन्म नक्षत्र से तीसरे, पाँचवे तथा सातवें राशिचक्रों में स्थित हो तो अनिष्टकारी संकेत तीव्र हो जाते हैं। यदि लग्न स्वामी शक्तिशाली हो तथा उपरोक्त राशिचक्रों में स्थित हो तो अष्टिताओं की मात्रा कम हो जाती है। यदि भाई अथवा माता-पिता के नक्षत्रों में जन्म हो तो निसन्देह भाई, पिता अथवा माता की मृत्यु अथवा तड़पते हुए जीवन का संकेत है। जब चन्द्रमा, मंगल और केतू एक ही नक्षत्र में स्थित हो अथवा जन्म कुण्डली में चन्द्रमा और केतू एक ही नक्षत्र में हो और परोक्ष में मंगल स्थित हो तो आत्महत्या की प्रवृति का संकेत मिलता है। जब चन्द्रमा मृगशीर्ष,चित्रा, शताभिषज नक्षत्रों में से किसी एक में से गुजरता हो और उसी समय मंगल रोहिणी, हस्ता और श्रावण नक्षत्रों में स्थित हो अथवा ठीक इसकी विपरीत स्थित होने पर भी आत्महत्या की प्रवृति अधिक प्रबल पायी जाती है।
सोमवार तथा मंगलवार दो ऐसे प्रमुख दिन हैं जबकि मन पर इस प्रवृति का अत्याधिक दुष्प्रभाव होता है।
यदि जातक का जन्म उसी नक्षत्र मंडल या राशिचक्र में
हुआ हो जिसमें कि उसके बड़े भाई तथा माता-पिता का जन्म हुआ था तो यह एक ही नक्षत्र में होने के कारण प्रत्येक की मृत्यु का कारण होगा। ऋषि वशिष्ठ के अनुसार पिता या माता के नक्षत्र में जन्म होने पर दोनों में से किसी एक की जल्दी मृत्यु होगी। कुछ धारणाओं का मत है कि ये परिणाम तब होंगे जब इन
सभी का जन्म उसी नक्षत्र के एक ही भाग में हो ।
माता-पिता से भिन्न नक्षत्र में उत्पन्न बालक उनका अधिकतम स्नेह तथा प्यार प्राप्त करेंगे।
यदि चन्द्रमा और लग्न एक ही नक्षत्र में हो और बुध तथा शुक्र
अथवा शुक्र और बृहस्पति एक ही नक्षत्र में किसी भी पद को अधिपत्य किये हो लेकिन उसी नक्षत्र में जिसमें कि लग्न और चन्द्रमा इकट्ठे स्थित हों तो जातक का अत्युत्तम चरित्र, सुखी विद्धान, बुद्धिमान तथा आभूषणों, भवनों,अच्छे पति और सन्तान के साथ अपने जीवन के सुख प्राप्त करेगी ।
यदि चन्द्रमा और लग्न एक ही नक्षत्र में तथा एक ही भाग में हो
तथा शुक्र भी उसी नक्षत्र में स्थित हो तो जातक के पास काफी स्वर्ण आभूषण होंगे तथा सुखों का इच्छुक लेकिन उत्तेजित स्वभाव का होगा। यदि बुध और चन्द्रमा लग्न नक्षत्र में आधिपत्य किये हो तो वह सुखी तथा नेक सन्तान से सम्पन्न होगा। यदि बृहस्पति चन्द्रमा के साथ लग्न में हो तो वह प्रचुर धनी और पुत्र-पौत्रों वाला होगा ।

गण्डान्त तारा-

गण्डान्ता, जो 3.20 डिग्री के समय पर मूल और ज्येष्ठ; माघ और अश्लेष; रेवती और अश्विनी तीनो जोड़ी नक्षत्रों के मिलन (सन्धि) से तथा विषघाती (घातक भाग) अर्थात अश्लेष, ज्येष्ठ और रेवती के अंतिम भाग तथा अश्विनी, माघ तथा मूल नक्षत्रों के प्रथम भाग सजीव प्राणियों के लिए अनिष्टताओं को उत्पन्न करने वाला है। ज्येष्ठ और मूल नक्षत्रों का संयोजन जिस भाग पर होता है उसे “अभुक्त" कहा गया है। इस भाग में उत्पन्न कोई भी प्राणी (नर, मादा या पशु) अपने परिवार के विनाश का कारण बनता है।
'अभुक्तमूल' के बाद वाले अर्धाशं में उत्पन्न व्यक्ति जन्मते ही अपने पिता की मृत्यु का कारण बनते हैं। अभुक्त मूल में जन्मा व्यक्ति यदि जीवित रहता है तो वह अपने परिवार के उत्कर्ष का कारण होगा। उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती है तथा वह सम्पन्न होगा। जातक सेनानायक (जनरल) भी हो सकता है ।
गण्डा - ( खतरा / जोखिम) -
गण्डा समय में उत्पन्न व्यक्ति यदि दिन के समय पैदा होता है तो पिता की मृत्यु होती है और यदि रात के समय पैदा होता है तो माता की यदि उसका जन्म, दिन और रात के सन्ध्या समय में उत्पन्न होता है तो स्वयं जातक की मृत्यु होती है। गण्डान्त की समाप्ति पर गण्ड होता है जैसे रेवती, अश्लेष अथवा ज्येष्ठ रात के सयम तथा गण्डांतरा के आरम्भ में जैसे अश्विनी माध अथवा मूल दिन के समय तथा गण्डांतरा की जोड़ी के संयोजन (दिन और रात के मध्य) यह गण्ड समय की पहचान है । गण्डा समय-अर्थात यदि अश्विनी नक्षत्र के प्रथम भाग में जन्म हो तो खतरे का समय 16 वर्ष तक है; माध के प्रथम भाग में जन्म 8 वर्ष तक का खतरा, ज्येष्ठ में 1 वर्ष का; चित्रा और मूल में 4 वर्ष का, अश्लेष में 2 वर्ष का; रेवती में 1 वर्ष का; उत्तरफाल्गुनी में 3 मास का; पुष्य में 3 मास का; पूर्व आषाढ़ में 9 मास का विशेषकर जातक के पिता के लिए खतरे का समय; तथा हस्त नक्षत्र में 12 वर्ष का है 1 नक्षत्र गण्डान्त में जातक का जन्म अपने माता-पिता के लिए अनिष्टकारी होता है । तिथि गण्डान्त में जन्म बडे भाइयों तथा बहनों के लिए अनिष्टकारी होता है। लग्न गण्डान्त में जन्म जातक के स्वयं के लिए अनिष्टकारी है। यदि उपरोक्त तीन गण्डान्तों में जन्म होता है तो जातक अपने प्रियजनों के विनाश का कारण होगा।