नवग्रहों के मंत्र व स्तोत्र
नवग्रहों के मंत्र व स्तोत्र
मन्त्र – साधना पद्धति के लिए आवश्यक बातें
मन्त्र ऋषियों के द्वारा अनवरत तपस्या करके ईश्वर से प्राप्त शक्तिशाली शब्द या शब्दों के समूह हैं।
सामान्य व्यक्ति के लिए ये दुखों व कष्टों के निवारण तथा इच्छाओं की पूर्ति का गुप्त सूत्र है। सामान्य व्यक्ति चाहे इन मन्त्रों का अर्थ न समझता हो, मन्त्रोचारण द्वारा अपने उच्चत्तम लक्ष्यों की सिद्धि प्राप्त कर लेता है। मन्त्रों का सही अर्थ न जानने के कारण उसे अभिष्ट सिद्धि प्राप्त करने में देर लगती है।
मन्त्र ईश्वर का ‘नाद’ (वाणी) तथा ‘वेद’ (ज्ञान) है।
ये साधक को के भय से मुक्त करते हैं। भक्ति के बिना मन्त्रों का उच्चारण यांत्रिक हो जाता है और परिणाम अधूरा रहता है।
मन्त्र साधना का स्थान-यदि संभव हो तो मन्त्रों का जाप एक अलग कमरे में किया जायें। कमरा साफ और साधारण हो अगर अलग कमरा संभव न हो तो मन्त्र जाप के लिए कमरे का एक कोना चुन ले। इस स्थान को नित्य साफ करें तथा इसी स्थान पर बैठ कर मन्त्रों का जाप करें।
मन्त्र साधना का समय-शक्तिशाली मन्त्रों के उच्चारण तथा साधना के लिए ब्राह्म-मुहुरत (प्रातः 4 बजे) सबसे अच्छा माना जाता है।
रात को शयन पूर्व समय भी मन्त्रोच्चारण के लिए उचित है।
रात के संध्या काल में रहस्यमय आत्मिक शक्तियां अथवा अद्भुत चुम्बकीय शक्त्यिां प्रभावी होती हैं
आसन (मुद्रा)-सर्वमान्य सिद्धान्त के अनुसार मन्त्र साधना के लिए कमल-आसन (Lotus Posture) सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। इसके बाद
पद्मासन, वैरासन, सिद्धासन या वज्रासन आता है। यदि इन आसनों में किसी शारीरिक कष्ट के कारण कठिनाई उत्पन्न होती हो तो कोई भी आरामदायक मुद्रा भी अपनायी जा सकती है। लेकिन उसी मुद्रा में ही नित्य मन्त्र का जाप
करना आवश्यक हैं। यदि एक साथ कई मन्त्रों का जाप करना हो तो अलग मंत्र के लिए अलग मुद्रा होनी चाहिए।
बैठने का स्थान- मानव शरीर करंटयुक्त होता है। पृथ्वी में चुम्बकीय अथवा गुरुत्वाकर्षण शक्ति होती है। जब हम मन्त्र साधना के लिए बैंठे तो हमारा शरीर और मन दोनो बाहरी आर्कषणों से मुक्त होना चाहिए अतः मानव शरीर में प्रवाहित करन्ट को पृथ्वी आदि के सीधे सम्पर्क से बचाने के लिए
अवरोध होना चाहिए तभी उचित परिणाम प्राप्त होंगे। इस अवरोधक के रूप में शेर की खाल अथवा मृगचर्म से बना आसन शुभ व अतित्युत्तम होता है लकड़ी की चौकी भी उपयुक्त है, जिस पर कोई मोटी चादर तह करके अथवा
गद्दी बिछा ली जाये। कुरु आसन भी इस कार्य के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
जपमाला (Rosary) – पवित्र मन्त्रों की साधना के लिए तुलसी, रूद्राक्ष अथवा अन्य पवित्र मनकों (संख्या में 108) की जयमाला सहायक होती है।
विष्णु के मन्त्रों के लिए तुलसी माला,
गणेश के मन्त्रों के लिए हाथी दान्त के मनको की माला,
माता काली तथा शिव के मन्त्रों के लिए चन्दन की अथवा रूद्राक्ष की माला उपयोग की जाती है ।
कालिका पुराण के अनुसार पापों के नाश के लिए कुश के बीजों की माला,
बच्चों के प्रजनन के लिए पुत्रजीवा के बीजों की माला,
इच्छाओं की पूर्ति के लिए मणि-माला,
धन प्राप्त के लिए मूंगा-माला प्रयुक्त की जाती है।
एक ही माला में विभिन्न मनके अथवा अलग-अलग तरह के बीज जपमाला तैयार
की जाती हैं
सनतकुमार संहिता में माला के लिए प्रयुक्त धागों तथा उनके रंगों का विवरण दिया गया है।
सूत के धागे चार तरह के लक्ष्य-धर्म, अर्थ, काम (इच्छा) तथा मोक्ष-सिद्ध करते हैं।
शान्ति प्राप्ति के लिए श्वेत धागा प्रयुक्त किया जाता हैं
लाल धागा लोगों के वशीकरण के लिए;
पीला धागा स्वार्थपरायण कार्यों के लिए,
तथा काला धागा आत्मिक तथा सांसारिक संपदाओं के लिए प्रयुक्त होता है।
कई बार धागों के रंगों का चुनाव वर्ण के आधार पर
श्वेत धागा ब्राह्मणों (पूजा-पाठ) के लिए;
पीला क्षत्रियों(योद्धावर्ग)
तथा काला धागा वणिक वर्ग के लिए होता है।
लाल रंग का धागा समाज में चारों वर्णों के लोगों के द्वारा प्रयुक्त किया जा सकता है।
जपमाला को पांच पवित्र द्रव्यों दूध, शक्कर, शहद, दही तथा जल द्वारा शुद्ध किया जाता है।
यदि जपमाला गिर जाती है अथवा टूट जाती है तो वह अपवित्र हो जाती है। तब माला को शुद्ध करने के लिए हृीं (Hrim) का उच्चारण करे तथा 108 बार “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें। गले में धारण की हुई माला स्वयं को तथा दूसरों को नजर नहीं आनी चाहिए (इसे साफ कपड़े, तोलिए अथवा
रुमाल के द्वारा ढक कर रखने चाहिए) इस कपड़े को नित्य धोना चाहिए। जाप करते हुए माला के शीर्ष को पार नहीं करता है अर्थात एक बार मनकों की परिक्रमा पूर्ण होने पर उसको वापिस फेरना चाहिए न कि इसके सिरे को पार
करके शुरू करना चाहिए। माला को दाये हाथ में तीन अंगुलियों (दूसरी, तीसरी तथा सबसे छोटी) के सहारे पकड़ें तथा मध्य अंगुली तथा अंगूठे की सहायता से मनको को एक-एक करके आगे धकेलते रहे। लेकिन ध्यान रहे
प्रथम अंगुली का प्रयोग नहीं करना है, क्योंकि यह अंगुल व्यक्ति के अहंकार को प्रस्तुत करती है जो भेद उत्पन्न करती है।मन्त्रों के जाप से पूर्व स्नान करें। मौसम अथवा अन्य कारणों से स्नान करना संभव न हो तो हाथ और पांव भी धो सकते हैं। स्वच्छ वस्त्र धारण करें। उचित मुद्रा/आसन में बैठें, धूप-अगरबत्ती जलाएं तथा आँखे बन्द करके भ्रूमध्य अथवा हृतपदमा या सहस्त्रचक्र द्वारा मन्त्र जाप करें। ज्योति अथवा
नाद के द्वारा भी जाप कर सकते हैं। (मेरे अनुभव के आधार पर ज्योति पर एकाग्र होकर जाप करना सर्वश्रेष्ठ विधि है ।)
एक चरण में उच्चारण के लिए मन्त्रों की संख्या-प्रत्येक मन्त्र के लिए उच्चारण करने तथा उसे दोहराने की संख्या निर्धारित की गई। सामान्यता कोई एक मन्त्र ग्यारह बार, या 108 बार अथवा 1008 बार या 10008 बार अथवा 100,008 हजार बार दोहराया जा सकता है। जब आप किसी मन्त्र का जाप करने लगते हैं तो मन्त्रों के दोहराने की संख्या कम नहीं की जा सकती,केवल सुविधानुसार बढ़ायी जा सकती है। आरम्भ में आप 15 मिनट तक जाप
मन्त्र-साधना पद्धति के लिए आवश्यक बातें
के लिए बैठें धीरे-धीरे इस अवधि को 30 मिनट, एक घन्टा, दो घन्टे या अधिक तक अपनी इच्छानुसार बढ़ा सकते हैं।
उच्चारण की विधि – मन्त्र साधक अथवा इसके उच्चारण करने वाले को दिन के समय पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए तथा रात्रि को केवल उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए।
नक्षत्रों और ग्रहों के अशुभ प्रभाव को दूर करने के उपाय
निम्नलिखित उपचारों को करने से पूर्व कम से कम एक बार गणपति देवता की स्तुति इस मन्त्र द्वारा की जानी चाहिए :
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नां कुरू में देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।
भावार्थ-हे गजमुखाकारी, सर्वशक्तिमान गणपति, तुम्हारा तेज करोड़ों सूर्यों के समकक्ष है, मैं अपने मांगलिक कार्यों में सभी बाधाओं को हटाने की विनति करता हूँ।
निम्नलिखित मन्त्रों का जाप, यदि सम्बद्ध मन्त्र के लिए सूचित न किया गया हो, तो इच्छानुसार बार नित्य कर सकते हैं।
1. माता गायत्री के इस मन्त्र का जाप पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ करने पर मनुष्य की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है तथा उसे ज्ञानोदय की gप्राप्त होती है।
नमस्ते देवि गायत्री सावित्रि त्रिपदक्षरे।
अजरे अमरे मातस त्रहि माम भावसागरात ।।
भावार्थ-हे, तीन अक्षरों (अ, उम) से निर्मित देवी गायत्री, तू अजर और अमर है। हे माता मैं तुझे प्रणाम करता हूँ, मुझे इस भवसागर से पार लगा।
2. इस मन्त्र का नियमित रूप से नित्य जाप जीवन को प्रकाशवान करता है :
ॐ भद्रं कर्णभिः श्रुणुयाम देवाः
भद्रं पश्येमाक्षाभिर्जयत्रा
स्थिरैरंगैस्तष्टुवांसस्तनुभिः
व्यशेम देवहितं यदायुः ।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धयवाः
स्वस्ति न पूषा विश्ववेदाः|
स्वस्ति नस्ताक्ष्यो अरिष्टनेमिः ।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।
अथर्ववेद प्रश्नोपनिषद्:
भावार्थ-ॐ हे परमात्मा हमारे कान मंगल-वाणी सुनें, हम मंगल ही देखें,वाणी द्वारा आपका मंगल गुणगान करें, आपके द्वारा प्रदत हमारा जीवन स्वास्थ्य और शक्ति से भरपूर हो। वेदों में इन्द्र का गुणगान हो। विश्ववेदों के ज्ञाता पूषा का गुणगान हो । सब अनिष्टताओं से बचाने वाले तारक-गणो का
गुणगान हो। बृहस्पति (ब्रह्मा), जो हमारी आत्मिक आभा की रक्षा करते हैं,उन को गुणगान हो। हमें धर्मग्रन्थों के अध्ययन की सम्पन्नता तथा उनमें निहित सत्यता को प्रदान करने की कृपा करें। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।।
यह स्तुति ईश्वर प्रदत इस जीवन में भरपूर स्वास्थ्य, शान्तिपूर्ण अस्तित्व तथा सही मार्ग दर्शन करने की प्रार्थना है। मेरे विचार में यह मन्त्र हमें अपने 100 वर्ष के जीवन में जो कुछ हमें चाहिए उसी की कामना करता है। अन्यथा रोगों से आक्रान्त इस मृत प्रायः शरीर का क्या अस्तित्व हो सकता है।
3. इस महामृत्युंजय मंत्र का जाप सभी प्रकार की मृत्यु सर्प-दंश,दुर्घटनाओं आदि का भय दूर करता है। इस मन्त्र का निष्ठापूर्वक जाप करने पर असाध्य रोग दूर होते हैं। यह मोक्ष मन्त्र भी है, जो स्वास्थ्य दीर्घजीवन धन तथा हर प्रकार की सम्पन्नता प्रदान करता है।
शिव की प्रतिमा अथवा शिवलिंङ्ग किसी चौकी पर स्थापित करके पूर्व की ओर मुख करके बैठे। प्रणतबद्ध मुद्रा में दोनों हाथों में पुष्प लें तथा इस मन्त्र को कम से कम ग्यारह बार, यदि संभव हो तो 108 बार, नित्य जाप करें तथा हाथों में लिए पुष्पों को शिव-प्रतिमा अथवा शिव-लिंङ्ग पर अर्पित करें।
मन्त्रोच्चारण के दौरान पुष्पार्पण बार-बार करें।
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पतिवेदनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनादितो मुक्षीय मामुत ॥
भावार्थ- हे, त्रि नेत्रों वाले रुद्र भगवान, जो हमारे जीवन में सुगन्ध और समृद्धि फैलाने वाली हैं, आप मुझे अपनी पूजा करने की अनुमति दीजिए और मैं उस परमात्मा से विनती करता हूँ कि मेरा जीवन तब तक नहीं लिया जाए,
जब तक मैं अपने जीवन का पूरा सांसारिक सुख एवं विलास को भोग न लूँ। हे, त्रि नेत्रों वाले रुद्र भगवान, जो हमारे जीवन में सांसारिक सुख देनेवाला हैं, आप मुझे अपनी पूजा करने की अनुमति दीजिए और मैं उनसे अनुरोध करता हूँ कि मेरी आत्मा को मेरे शरीर से अलग तब तक नहीं करना
जब तक मैं अपने जीवन का पूरा सांसारिक सुख एवं विलास भोग न लू, जिस प्रकार खीरा फल (Cuccumber) (मलयालम् भाषा में ‘वेल्लरी’ कहता है)
अपनी लता से अपने आप अलग हो जाने से ज्यादा मीठा हो जाता है।
“उपरोक्त मन्त्र को अपने जन्म दिन जन्म वाले मास में जन्म-नक्षत्र से प्रभावित पर एक लाख बार जाप करें।
4. ॐ नमः शिवायः ॥ यह भगवान शिव का पंचाक्षर मन्त्र कहलाता है।
5. ॐ नमो नारायणायः॥ यह भगवान विष्णु के नारायण रूप के लिए अष्टाक्षर मन्त्र है।
6. हरि ॐ॥ भगवान हरि को याद करने के लिए
7. हरे रामः हरे रामः रामः रामः हरे हरे ।
हरे कृष्णाः हरे कृष्णाः कृष्णाः कृष्णाः हरे हरे ।।
मेरे विचार में यहाँ ‘हरे’ के स्थान पर ‘हरि’ होना चाहिए जिसका अर्थ है-भगवान विष्णु अर्थात हरि ही राम है, राम ही हरि है। हरि ही कृष्ण है कृष्ण ही हरि है ।
8. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥ (भगवान कृष्ण के लिए।)
9. ॐ श्री हनुमते नमः॥ (भगवान हनुमान के लिए ।)
10. ॐ श्री सरस्वत्यै नमः॥ (सरस्वति माता के लिए।)
11. ॐ श्री दुर्गायै नमः॥ (शिवपत्नी पार्वती के अन्य रूप माता दुर्गा की स्तुति के लिए।)
12. ॐ श्री महालक्ष्मयै नमः॥ (भगवान महाविष्णु की पत्नी माता लक्ष्मी के लिए।)
13. ॐ सोम॥ (वेदान्तिक मन्त्र ।)
14. ॐ अहं बृहमास्मि ॥ (वेदान्तिक मन्त्र ।)
15. ॐ तत्वमसि॥ (वेदान्तिक मन्त्र ।)
16. ॐ श्री त्रिपुरसुन्दर्यै नमः। (त्रिपुर सुन्दरी की स्तुति के लिए।)
17. इस मन्त्र का जाप गर्भपात की समस्याओं को हल करता है अथवा जिनके पुत्रियां ही होती हों तो पुत्र उत्पन्न करेगा अथवा इसका उलट भी इस मन्त्र के जाप द्वारा संभव होगा। दोनो पति-पत्नी को रविवार को व्रत रखना चाहिए। वे फलाहार, दूध अथवा फलों का रस ले सकते हैं और स्नान
करते समय अपनी मनोकामना को मन में स्मरण करना चाहिए अर्थात यदि पुत्र प्राप्त करने की इच्छा हो तो पुत्र की कामना करे और यदि पुत्री की इच्छा हो तो पुत्री की कामना करें। साथ ही दस बार नीचे दी गयी विधि द्वारा
प्राणायाम करें :
दोनों नासिकाओं द्वारा गहरा श्वास लें और श्वास को भीतर रख कर नीचे दिये अनुसार ॐ और तीन बार बीज अक्षर ‘यम’ के साथ गायत्री मन्त्र दोहरायें ।
ॐ यम यम यम भूर भुव स्वा । ॐ तत सवितृर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीयो यो नः प्रचोदयात्।।
‘यम’ तरूण का बीज अक्षर है । वह जननांग केन्द्र का अधिष्ठाता देवता है। अतः इस मन्त्र में दम्पति के शरीर में आवश्यक परिवर्तन होता है।
अपने हाथ में चन्दन के बीजों की जयमाला ग्रहण करके गायत्री देवी को श्वेत वस्त्रधारी, कमल लिए एक बालक के रूप में स्मरण करें।
इसके बाद माता गायत्री की पके चावल, दूध, शहद के द्वारा
पूजा-अर्चना करें तथा दम्पति प्रसाद रूप में पूजा के बाद इसे ग्रहण करें।
चावलों में गायत्री की शक्ति होती है। प्रसाद अथवा पवित्र आहार लेने पर मनोकामना पूर्ण होती है ।
18. महालक्ष्मी गायत्री मन्त्र – इस मन्त्र का जाप नित्य ग्यारह बार करें।
ॐ महालक्ष्मि चा विद्महे ।
विष्णु पल्यै चा धीमहि ।।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् । । ।
अर्थ-विष्णु पत्नी लक्ष्मी का मनन करे और देवी लक्ष्मी हमें प्रबुद्ध करें।
19. बृहस्पति ग्रह को शान्त करने के लिए नीचे दिये मन्त्र (ताबीज) को 1-1/4 इंच वर्गाकार सोने अथवा चांदी के पतरे पर बनायें। इसे निम्नलिखित दोनो मन्त्रों में से किसी एक का 45 दिन के भीतर 19 हजार बार जाप करके पवित्र करें। यह मन्त्र ‘मन्त्र – चिन्तामणी’ से लिया गया है :
10| 5 | 12
11 | 9 | 7
6 | 13 | 8
(क) गुरु मन्त्र पुराणों के आधार पर
हीं देवानंः च ऋषीनम च ।
गुरूम कांचन सन्निभम् ।
बुद्ध भूतंम् त्रिलोकेशम् तम नमामि बृहस्पतिम | ।।
(ख) गुरु मन्त्र तन्त्र की आधार पर
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौ स गुरवे नमः
इस मन्त्र का नित्य जाप करें।
20. ॐ आद्याय विद्महें ।
परमेश्वराय धीमही ।।
तन्नो कालि प्रचोदयात् । । ।
अर्थ-हम आदिकालीन शक्ति को अनुभव करें, शिव-पत्नी परमेश्वरी काअनन करते हैं। माता देवी काली हमें प्रबुद्ध करें ।
21. इस मन्त्र का नित्य ग्यारह बार जाप करें।
ॐ परमेश्वराय विद्महे ।
परतत्वायः धीमहि ।।
तन्नो ब्रहमा प्रचोदयात्।।।
अर्थ-हम सर्वोच्च ईश्वर को अनुभव करें। हम श्रेष्ठ सिद्धान्त का मनन करें। ईश्वर हमें प्रबुद्ध करें।
22. इस मन्त्र का इच्छानुसार बार जाप करें। जितनी अधिक बार इसका जाप करेंगे, परिणाम उतने ही अच्छे होंगे।
ॐ ततपुरुषाय विद्महे ।
महासेनाय धीमहि ।।
तन्नों षणमुखा प्रचोदयात् ।।
अर्थ-हम ब्रह्माण्ड पुरुष के अनुभव करें। इस देव सेनापति का मनन पुत्र तथा गणपति के भाई सब दुखों वाले देवता (षण्मुख) हमें करें। शिव प्रबुद्ध करें।
23. इस मन्त्र का इच्छानुसार बार नित्य जाप करें :
ॐ सूर्य-पुत्राय विद्महे ।
महाकालाय धीमहि ।।
तन्नो यमाः प्रचोदयात् ।।
अर्थ- हम सूर्य भगवान के पुत्र को अनुभव करें। हम प्रत्येक समय के संहारक महान काल का मनन करें। मृत्यु के देवता ‘यम’ हमें प्रबुद्ध करें।
24. इस मन्त्र का नित्य ग्यारह बार जाप करें :
(क) ॐ भास्कराय विद्महे ।
दिवाकराय धीमहि ।।
तन्नो सूर्याय प्रचोदयात। । ।
अर्थ- हे सूर्य, आप दिव्य हैं। हम दिवाकर (सूर्य) का मनन करे। सूर्य देवता हमें प्रबुद्ध करें।
और/अथवा
(ख) इस मन्त्र का नित्य ग्यारह बार जाप करें :
ॐ दिवाकराय विद्महे ।
प्रभाकराय धीमहि ।।
तन्नो आदित्य प्रचोदयात् । । ।
अर्थ- हे दिवाकर, आप ईश्वर का प्रकाश हैं। हम प्रभाकर का मनन करें। आदित्य हमें प्रबुद्ध करें।
और/अथवा
(ग) इस मन्त्र का नित्य ग्यारह बार जाप करे :
ॐ हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् ।
तत्वं पूषाणावृणु सत्य धर्माथ दृष्टये ।।
पूषन्नेकर्षयम सूर्य प्रजापत्य वयूह रस्मीन् समूह । । ।
तेजो यत्तो रूपं कल्याणतमं तत्ते पश्यामि ।
योसावसो पुरुष सोहमास्मि ।।
अर्थ-सत्यनिष्ठ चेहरा सुनहरे पात्र से आकृत है। हे सूर्य सत्य पर से-आवरण हटाओ । हे, आकाश के अकेले यात्री, सबके निमन्त्रकर्ता, प्रजापति के पुत्र, हे सूर्य अपने प्रकाश द्वारा सबका कल्याण करें।
और/अथवा
(घ) इस मन्त्र का जाप 30 दिन के भीतर 7 हजार बार करें। एक बार आरम्भ करने के बाद हम मन्त्र के जाप में व्यवधान नहीं आना चाहिए, जब तक कि पूरे 7 हजार बार यह जपा न जाये। नित्य प्रातः काल सूर्यनमस्कार करें। पूजास्थल पर सूर्य की प्रतिमा प्रतिस्थापित करें तथा लाल पुष्पों व लाल
चन्दन से सूर्य पूजा करें।
ॐ ह्रीँ ह्रीं ह्रों सः सूर्याय नमः ।
25. यदि किसी की जन्म-कुण्डली में सूर्य चित्रा नक्षत्र के चतुर्थ
अंश में तथा स्वाति नक्षत्र के प्रथम अंश (परिक्रमा कक्षा की 183.20 डिग्री से 190.00 डिग्री) के बीच स्थित हो तो निम्नलिखित उपचारों में से कोई एक
अपनाना चाहिए :
(क) वर्ष में कम से कम एक बार गरीबों में गेहूं, तांबा तथा गुड़
वितरण करें। इस दान के कारण पेट की पीड़ा तथा हृदय की समस्याएं कम हो जाती है।
(ख) अग्नि जलाने के बाद और कार्य हो जाने पर इसे दूध के द्वारा शान्त करें। प्रायः हम प्रज्जवलित अग्नि को पानी द्वारा शमन करते हैं। पानी के बजाए दूध से अग्नि शमन करें।
(ग) मुख में मीठा रखकर पानी पियें। ऐसा नित्य प्रातःकाल निराहार अवस्था में करें।
(घ) बहते हुए पानी में ताबें का टुकड़ा (पतरा) इस प्रकार डाले कि वह पानी के साथ बह जाये। ऐसा करने पर व्यक्ति के ऊपर सूर्य की दुर्बलता के कारण दुष्प्रभाव हट जाते हैं।
नक्षत्रों और ग्रहों के अशुभ प्रभाव को दूर करने के उपाय
26. (क) इस मन्त्र का 27 दिन के भीतर ग्यारह हजार बार जाप करें: दधि शन्ख नुषाभम् स्त्रोदर्णव संभवं ।
नमामि राशीनाम सोभम् संभूर मुकुट भूषणम्॥
अर्थ- मैं दही के समरूप, शंख और बर्फ के समान श्वेत देवता चन्द्रमा को प्रणाम करता हूँ। यह क्षीरसागर से उत्पन्न सोमरस का अधिपति तथा भगवान शिव के ललाट की शोभा है।
और/अथवा
(ख) इस मन्त्र का इच्छानुसार बार नित्य जाप करें।
ॐ क्षीर पुत्राय विद्महे ।
अमृत तत्वाय धीमही ॥
तन्नो चन्द्र प्रचोदयात् । । ।
अर्थ-हे क्षीरसागर से उत्पन्न चन्द्रमा, हम तुम्हारा मनन करते हैं।
चन्द्रमा हमें प्रबुद्ध करें।
27. मंगल के लिए मन्त्र – 11 हजार बार जाप किया जाये ।
धरणी गर्भ संभूटम् विद्युत कांन्ति समप्रभा ।
कुमार शक्ति हस्तम् च मंगल प्रणमाम्यहम् ॥
अर्थ- मैं पृथ्वी माता के गर्भ से उत्पन्न मंगल ग्रह के स्वामी श्री मंगल देवता को प्रणाम करता हूँ। उसकी विद्युत के समान चमकदार आभा, हाथ में चमकती कटार लिए युवक के समान प्रतीत होती है।
और/अथवा
ॐ क्रां क्रीं क्रौं सा भौमायः नमः
इस मन्त्र का 20 दिन के भीतर दस हजार बार जाप करें तथा लाल पुष्पों व लाल चन्दन द्वारा पूजा करें।
28. बुद्ध के लिए मन्त्र – 4 हजार बार जाप करें।
प्रियङ्गव गुलिकास्यं रूपेण प्रतिमाम्बुदम ।
सौम्यं सौम्य गुणोंपेनं तं बुद्धं प्रणमाम्यहम्॥
अर्थ-मैं बुद्ध ग्रह के स्वामी बुद्ध देवता को, जिनका मुख प्रियांग जड़ी के समान सुगंधित है और जिसकी सुन्दरता कमल के पुष्प के समान है, को प्रणाम करता हूँ। वह अति विनम्र तथा सभी गुणों का भंडार है ।
और/अथवा
>>> ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सा बुद्धाय नमः
इस मन्त्र का 21 दिन के भीतर 9 हजार बार जाप करें तथा विभिन्न पुष्पों द्वारा पूजा करें।
29. बृहस्पति के लिए मन्त्र – 19 हजार बार जाप करें।
देवानम् च ऋषीनां च गुरुं काञ्चन सन्निभं ।
बुद्धि भूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतम्॥
अर्थ-मैं बृहस्पति-ग्रह के स्वामी बृहस्पति देवता को प्रणाम करता हूँ।
वे सभी ऋषि-गण और देवों के आध्यात्मिक गुरु हैं। उनका सुनहरी रंग है तथा बुद्धिमता से परिपूर्ण हैं। वे तीनों लोकों के अधिपति देवता हैं ।
और/अथवा
>>> ॐ झां झींझौं सा गुरुवे नमः
इस मन्त्र का 19000 बार जाप करें तथा पीले पुष्पों से पूजा करें।
30. शुक्र के लिए मन्त्र – 16 हजार बार जाप करें।
हिमकुण्ड मृणालब्नहम् दैत्यानां परमम् गुरुम् ।
सर्व शास्त्र प्रवक्तरम् भार्गवम् प्रणमाम्यहम् ॥
शुक्र
अर्थ- मैं भृगु मुनि के वंशज, आच्छादित तालाब के समान श्वेत,देवता को प्रणाम करता हूँ। वह देवताओं के शत्रु दैत्यों के आध्यात्मिक गुरु हैं और इन्होंने दैत्यों (दानवों) को सभी वेदों का ज्ञान दिया है।
और/अथवा
>>>>> ॐ धां धीं धूं सा शुक्रायः नमः
इस मन्त्र का 16 हजार बार जाप करें तथा श्वेत चन्दन और श्वेत पुष्पों से पूजा करें।
31. शनि के लिए मन्त्र – 23 हजार बार जाप करें।
नीलाञ्चन समभासम् रवि-पुत्रम् यमग्रजम् ।
नक्षत्रों और ग्रहों के अशुभ प्रभाव को दूर करने के उपाय
च्छाया माण्ड संभुटम् तम् नमामि शनैश्चरम् ॥
अर्थ- मैं धीर-मन्थर गति शनि देव को, जिनका नीलांजन के समान गहरा नीला रंग है, प्रणाम करता हूँ। ये यमराज के बड़े भाई तथा सूर्य देवता और उनकी पत्नी छाया से उत्पन्न हैं ।
और/अथवा इस मन्त्र का 40 दिन के भीतर 24 हजार बार जाप करें तथा नीले पुष्पों व चन्दन से पूजा करें।
32. राहू के लिए मन्त्र – 18 हजार बार जाप करें।
अर्धकायम् महावीरयम् चन्द्रादित्य विमर्द्धनम्।
सिंहिक गर्भ संभुटम् तम् राहुं प्रणमाम्यहम् ॥
अर्थ-मैं सिंहिका के गर्भ से उत्पन्न राहू, जिसका केवल आधा-शरीर शक्तिशाली है और सूर्य और चन्द्रमा को अभिभूत करने में समर्थ है, को मैं प्रणाम करता हूँ
>>> ॐ भ्रं भ्रीं भ्रौं सा राहूवे नमः
और/अथवा इस मन्त्र का 40 दिन के भीतर 18 हजार बार रात्रि में जाप करें तथा नीले पुष्पों तथा चन्दन से राहू की पूजा करें।
33. केतू के लिए मन्त्र – 18 हजार बार जाप करें।
(क) पलष पुष्प सङ्कासम् तरक ग्रह मस्तकम् ।
रौद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम् तम् केतुं प्रणमाम्यहम् ॥
अर्थ- मैं प्रयन्ड तथा डरावने केतू, जो भगवान शिव की शक्ति से सम्पन्न है, को प्रणाम करता हूँ। रूप में पलाश के पौधे के पुण्य के समान है,वह केतू सितारों और ग्रहों का मुखिया है
और/अथवा
>>>> ॐ प्रां प्रीं प्रौं सा केतूबे नमः
इस मन्त्र का जाप 18 हजार बार करें तथा मिश्रित पुष्पों से पूजा करें।