
House - 1
प्रथम भाव – प्रथम भाव या लग्न में गुरु हो तो जातक सर्वगुण सम्पन्न,
सुन्दर, निरोग, दीर्घायु, कर्मठ, विद्वान, जनसेवक, वचनों को पूर्ण करने वाला,
प्रतिष्ठित, स्पष्टवक्ता, अपने आत्मसम्मान के प्रति जागरूक, आकर्षक, सुखी, विनम्र,
धनी, गुणी, धार्मिक, सरकार द्वारा सम्मानित तथा अधिक सन्तानवाला (यदि सिंह
लग्न न हो तो) होता है। ऐसा जातक या तो बिल्कुल फकीरी/अलमस्त स्वभाव का
होता है या पूरी तरह नवाब। विशेषकर तब जब गुरु अशुभ प्रभाव में हो तो जातक
निर्धन होते हुए भी श्रेष्ठ फकीर होता है। यदि बुध भी सबल स्थिति में हो तो जातक
कई प्रकार की विद्याओं का जानकार होता है।
लाल किताब के अनुसार ऐसे जातक का भाग्य उसके अपने दिमाग तथा
सरकारी पदों पर बैठे व्यक्तियों की मित्रता से बढ़ता है। मकान, जायदाद तथा
समर्थ दृष्टि का सुख उसको मिलता है। परन्तु यदि ऐसा जातक दूसरों से मांगे या
उनके आगे हाथ फैलाए तो उसके भाग्य की हानि होती है।
गुरु यदि स्वराशि में लग्नस्थ हो तो जातक व्याकरण शास्त्र का ज्ञाता, बहुत
से पुत्रों वाला, सुखी, सौभाग्यशाली, ज्ञानी, दीर्घायु व समस्त सुविधाएं भोगने वाला
होता है। जलराशि का गुरु घुड़दौड़ का शौकीन तथा उदार बनाता है। ऐसा जातक
धन को तुच्छ/तृणवत समझता है। उच्च का गुरु (कर्क राशि) लग्न में हो तो जातक
को सर्व शुभफलों को भोगते हुए भी संकटों का सामना बार-बार करना पड़ता है,
जिसके कारण उसके श्रेष्ठ भाग्य पर भी प्रश्नचिह्न लगता अनुभव होता है। (कुछ
विद्वानों के अनुसार उच्च का लग्नस्थ गुरु हर छठे तथा बारहवें वर्ष में विपत्तिदायक
होता है।) वैसे कर्क, वृश्चिक व मीन (जलराशि) का गुरु डॉक्टरों को बहुत शुभ
रहता है। मिथुन, तुला, वृश्चिक तथा कुम्भ राशियों में गुरु हो तो जातक निश्चित,
व सबसे मित्रता रखने वाला होता है।
शास्त्रकारों के अनुसार लग्नस्थ गुरु जातक को मरने के बाद उत्तम गति प्राप्त
करवाता है। जैसा कि कहा है-
गुरुत्वं गुणैलग्नगे देवपूज्ये सुवेषी सुखी दिव्य देहाल्प वीर्यः ।
गतिर्माविनी पारलौकी विचिन्त्य वसूनी व्ययं सबलेन व्रजन्ति ॥ अर्थात् लग्नस्थ गुरु जातक को अच्छे वस्त्रों तथा शोभायुक्त, स्वच्छ शारीरिक
कान्ति वाला, सुखी, अल्पबली, पण्डित, चतुर तथा समाज में प्रशंसा व मान पाने ।
वाला बनाता है। ऐसा जातक शरीर त्यागकर अन्त में उत्तम गति प्राप्त करता है तथा ।
धनादि सुखों का जीवन में भोग करता है।

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House -2
द्वितीय भाव- गुरु यदि जन्मकुंडली के दूसरे भाव में हो तो जातक को सुन्दर देह, ऊंची किन्तु गम्भीर मधुर आवाज, संतान, लोकप्रियता, दीर्घायु तथा
सौभाग्य प्रदान करता है। ऐसा जातक शुभकर्मा, शत्रुजित तथा अचल सम्पत्ति से
विशेषरूप से सम्पन्न होता है।
लाल किताब के अनुसार ऐसा जातक श्रेष्ठ विद्या का स्वामी, पूरी दुनिया का
धर्मगुरु, धर्मोपदेशक, गृहस्थ होते हुए भी ज्ञानी व गुरु तथा पिता के धन की वृद्धि
करनेवाला होता है। ऐसे जातक के पास खूब धन आता है और वह खूब धन
लुटाता भी है। ऐसे जातक को मिट्टी, कृषि तथा स्त्रियों के प्रयोग में आने वाली
वस्तुओं के व्यापार में लाभ होता है। परन्तु सोने का व्यापार नुकसानदायक होता है।
गुरु यदि शुभ प्रभाव में हो तो जातक बुद्धिमान, कुशलवक्ता होता है। राज्य
सेवा तथा धार्मिक स्थानों से सम्बन्धित कार्यों में अधिक सफल होता है। जातक गुरु
से प्रभावित हो तो यूं भी प्रायः शिक्षक, पुजारी, धर्मोपदेशक, प्रधानाध्यापक,
मठाधीश या ज्योतिषी होता है। स्वराशिया उच्च का गुरु जातक को वकालत के पेशे
में विशेष धन प्राप्त कराता है।
अग्नितत्त्व राशियों में हो तो परिवार में बड़ों से बैर कराता है। मंगल के साथ
अशुभ योग करता है तथा मिथुन, तुला या कुम्भ राशि में हो तो मुख के रोग देता है।
स्त्री राशियों में सन्तानाभाव देता है। (गुरु सिंह राशि का हो तो प्रायः सन्तान कष्ट से मिलती है।) गुरु अशुभ हो तो जातक को मानहानि, परेशानियां, धनहानि व
सरकार से कष्ट होता है। पाप प्रभाव अधिक हो तो शिक्षा पूर्ण नहीं होती। जातक
आचारहीन तथा पुत्रहीन होता है। वह परस्त्रीगामी तथा मदिरासेवी भी होता है।
गुरु यदि शुक्र की राशियों (वृष, तुला) में हो तो प्रायः पुरुष जातकों को
परस्त्रीगामी तथा स्त्री जातकों को परपुरुषगामी बनाता है (विशेषकर तब जब
चन्द्रमा भी पाप प्रभाव में हो) ।

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House -3
तृतीय भाव – गुरु यदि लग्नकुंडली के तीसरे भाव में हो तो जातक विचार
कर बोलने वाला, वाणी पर नियंत्रण व संयम रखने वाला, शास्त्रज्ञ, ज्ञानी, लेखक,
ज्योतिषी अथवा योगी होता है। वह प्रसिद्ध, लोकप्रिय, सम्मानित एवं यात्राओं का
विशेष शौकीन होता है। ऐसे जातक के भाई अधिक होते हैं अथवा केवल भाई ही ।
होते हैं। वह प्रबल कामुक तथा जन्मस्थान से दूर रहने वाला होता है। तीसरे गुरु
का जातक मितव्ययी होता है। वह अपने सुख आराम पर धन व्यय नहीं करता किन्तु परिवार/आश्रितों के लिए व्यय करता है। ऐसे जातक का जोड़ा गया धन बाद
में उसके पत्नी या बच्चे भोगते हैं। वह स्वयं अपने जीवन में उसे नहीं भोगता। यदि
बृहस्पति इस भाव में अशुभ हो तो जातक कायर, मनहूस या दुर्भाग्यशाली (मंदभागी)
हो सकता है। ऐसा जातक बीच के सम्बन्ध नहीं रखता। या तो बहुत घनिष्ठ होता
है या एकदम विरुद्ध। यदि अशुभ गुरु अशुभ भावों का स्वामी भी हो तो जातक
दुष्ट, कंजूस, अहसानफरामोश तथा खूब मेहनत करने पर भी धन संग्रह न कर पाने
वाला होता है। शुभ गुरु हो तो जातक ज्योतिषविद्, योगी, अध्यात्म विद्या का
जानकार, अतिज्ञानवान, विद्वान, तीव्र बुद्धिवाला, सुयोग्य, धनवान एवं अच्छे स्वास्थ्य
व समृद्धि वाला होता है। सरकार से लाभ/नौकरी उसे प्राप्त होती है तथा आदर व
यश भी मिलता है।
I
अग्निराशियों में भी गुरु लाभप्रद रहता है। खासकर मेष व सिंह राशि में तो
जातक कम शिक्षित/अशिक्षित होते हुए भी समाज में पूर्ण शिक्षित समझा जाता है।
जलराशियों में गुरु हो तो समुद्री यात्राओं से लाभ कराता है। वायुराशियों में
मानसिक स्तर अच्छा तथा ज्ञानोपार्जन की लालसा देता है। पृथ्वीरांशियों का गुरु जुआ, सट्टा, रेस या व्यापार से लाभ दिलाता है। स्त्री राशि में अशुभ फल प्राय: होते
हैं। नौकरी में अभ्युदय नहीं होता, स्वतंत्र व्यवसाय की इच्छा रहती है। ऐसा जातक
शिक्षित होता है, पर गुमनाम रहता है। भाइयों से बंटवारे पर कलह होती है। पुरुष
राशियों में बड़ी बहन नहीं होती (स्त्री राशियों में बड़ा भाई नहीं होता) । तीसरे घर
का गुरु क्योंकि भाग्य स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है। अतः भाग्य में आकस्मिक
परिवर्तन करता है। (शुभ प्रभाव से एकाएक धनी तथा अशुभ प्रभाव से एकाएक
निर्धन बना सकता है तथा सातवें भाव पर पूर्ण दृष्टि रहने के कारण कैसी भी स्थिति
हो, प्रायः पत्नी से जातक को अलग नहीं होने देता। ग्यारहवें भाव पर पूर्ण दृष्टि होने
से लाभ व आय में वृद्धि कारक होता है।) यह लाल किताब का मत है।
“

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House -4
चतुर्थ भाव – चौथे भाव में गुरु हो तो जातक शौकीनमिजाज, आरामतलब,
सुन्दर शरीरवाला, उच्च शिक्षा पाने वाला, कम संतान वाला, सरकार से सम्मान प्राप्त
करने वाला, माता से विशेष प्यार करने वाला, व्यवहारकुशल, ज्योतिष में रुचि लेने
वाला तथा परिश्रमी होता है। ऐसा व्यक्ति शाही स्वभाव का व अपने इलाके में
प्रसिद्ध होता है। लालच से दूर, चरित्र उत्तम तथा श्रेष्ठ पत्नी वाला होता है। यदि गुरु
अशुभ हो तो जातक इश्कबाजी में पड़ जाता है। परन्तु इससे न सिर्फ जातक का
बल्कि उसके परिवार का भी नुकसान होता है।
लाल किताब के अनुसार चौथा गुरु जातक को बुद्धिमान, मेधावी तथा साफ
दिल बनाता है। यदि अग्निराशि में हो तो इच्छा होते हुए भी जातक स्थायी सम्पत्ति
नहीं जुटा पाता। पृथ्वी राशि में गुरु संतान व स्थायी संपत्ति दोनों प्रदान करता है वायु राशि में जातक प्रपंची, ढोंगी व कपटी हो जाता है। जलराशि में जातक के
दत्तक पुत्र बन जाने की सम्भावना रहती है। ऐसा न हो तो स्थिति माता-पिता के
लिए अप्रियकर होती है।

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House -5
पंचम भाव – पंचमस्थ गुरु यदि लग्नकुंडली में हो तो जातक लोकप्रिय,
ज्योतिषी, अधिक संतान वाला, सद्मार्गी, शास्त्रज्ञ, कुटुम्ब/परिवार का मुखिया,
सम्मानित, मानवता के गुणों से युक्त होता है। ऐसे जातक को सट्टे में लाभ होता है।
गुरु अशुभ हो तो पूर्ण ज्ञानी होते हुए भी जातक महाक्रोधी होकर अपना नुकसान
करने वाला होता है। ऐसे जातक को धर्म के नाम पर कभी चंदा आदि न तो मांगना
चाहिए, न ही किसी से लेना चाहिए।
लाल किताब के अनुसार पांचवां गुरु जातक को सर्वहितैषी, शास्त्रज्ञ, श्रेष्ठ
पुत्र व उत्तम मित्रों से युक्त, वेदों में रुचि रखने वाला तथा पत्नी से प्रेम करने वाला
बनाता है। ऐसे जातक की पत्नी रूपवती होती है। ऐसा जातक न तो स्वयं गलत
काम करता है, न किसी को करने देता है । उसको तंत्रमंत्र की सिद्धि सम्भावित
होती है। गुरु के साथ यदि चन्द्र व सूर्य का शुभ योग हो या दोनों गुरु से नौवें,
पांचवें स्थान पर हों तो आकस्मिक धन लाभ/जुए, सट्टे, लॉटरी में लाभ का प्रबल
योग बन जाता है। पांचवें भाव का गुरु जातक को अपना कमिटमेंट पूरा करने वाला
तथा किसी को धोखे में न रखने वाला बनाता है।
वायु राशि में गुरु हो तो पूर्ण शिक्षा प्रदान कर जातक को शिक्षक बनाता व
शिक्षण में ख्याति दिलाता है, परन्तु सन्तान कम होती है। पृथ्वी राशि (तथा धनु
राशि में भी) में प्रायः जातक की शिक्षा अधूरी रह जाती है। ऐसा जातक व्यापार
करता है, कन्याएं अधिक व पुत्र कम होते हैं। सिंह राशि में गुरु पंचमस्थ हो तो
संतान होती नहीं या अत्यंत कठिनाई से विलम्ब में होती है। जलराशि या स्त्रीराशि
का गुरु धन व पुत्र दोनों के लिए शुभ नहीं होता, विशेषकर जलतत्त्व राशि में तो
संतान का अभाव ही रहता है। लेकिन यश प्राप्त हो जाता है।

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House -6
षष्ठ भाव – छठे भाव का गुरु जातक को मधुरभाषी, प्रसिद्ध, विद्वान,
अल्पसंतति वाला तथा अल्प शत्रुवाला बनाता है। ऐसा जातक प्राय: दुर्बल, क्षमाशील
होता है। यदि बीमार पड़े तो जल्दी ठीक हो जाता है। स्वभाव का अच्छा होता है।
गुरु इस भाव में शुभ हो तो जातक को बिना मांगे सब-कुछ मिलता है। अशुभ हो
तो धन दौलत की कमी रहती है तथा जातक मुफ्त का माल लेने की नियत वाला
हो जाता है। ऐसे जातक को बुजुर्गों के नाम पर दान करना शुभदायक होता है।
लाल किताब के अनुसार गुरु यहां अशुभ प्रभाव में मंदबुद्धि, यकृत रोगी,
(मधुमेह का रोग भी सम्भव) मीठे का शौकीन तथा प्रायः ऋणी बनाता है। अक्सर
मरते समय तक वह ऋणी बना रहता है। मामा पक्ष के लिए भी प्रभाव अशभ रहता। है। मेष या कर्क राशि में हो तो पैतृक सम्पत्ति जातक को नहीं मिलती। कन्या राशि
में हो तो उन्नति में बाधाएं आती हैं। पुरुष राशि में हो तो सदाचार हीनता उत्पन्न
होती है। जुए सट्टे, वैश्यागमन में धन का अपव्यय होता है तथा दाम्पत्य जीवन
नरक तुल्य हो जाता है। छठा गुरु प्रायः मुकदमेबाजी की नौबत नहीं आने देता।
मुकदमा चले भी तो जातक समझौते की ओर प्रवृत्त होता है।

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House -7
सप्तम भाव – गुरु सप्तमस्थ हो तो जातक भाग्यवान, सुखी, विवाहित जीवन
वाला, विनम्र, वक्ता, विद्वान, किन्तु सन्तोषी होता है। ऐसा जातक अल्प काम
शक्ति वाला होता है। (लाल किताब ऐसे जातक को ‘पूर्व जन्म का साधु’ मानती
है।) वह कई प्रकार के कार्यों का जानकार तथा ज्योतिष विद्या में रुचि रखने वाला
होता है, लेकिन अपने पुत्र से प्रायः दुखी रहता है। यदि ऐसे जातक का सूर्य लग्न
में हो तो जातक में धार्मिक वृत्ति बढ़ जाती है और वह SEX में अधिक रुचि नहीं
लेता। ऐसे जातक को घर में मंदिर, मूर्तियां, घंटे/घड़ियाल आदि नहीं रखने चाहिए।
ऐसा लाल किताब का मत है।
अग्नि राशियों या मिथुन राशि का गुरु सप्तमस्थ हो तो शिक्षा के लिए शुभ
होता है। जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता है। प्रायः न्यायाधीश, वकील या शिक्षा
विभाग में अच्छे पद पर होता है। जलराशियों व कन्या राशि में सांसारिक सुखों में
न्यूनता देता है। पति-पत्नी के सम्बन्ध मधुर नहीं रहते। गुरु अशुभ हो तो तलाक
की नौबत आ सकती है या पत्नी किसी अन्य के साथ भाग जाती है। शनि से
प्रभावित गुरु जातक में विवाहेच्छा उत्पन्न ही नहीं होने देता पर राहू साथ हो तो यह
‘विवाह प्रतिबन्धक योग’ समाप्त हो जाता है। ऐसे में विवाह तो होता है, तलाक भी
नहीं होता परन्तु पति-पत्नी शीघ्र ही अलग-अलग (एक ही छत के नीचे भी
सम्भव है) रहने लगते हैं। सातवें भाव में गुरु हो तो जातक अपने कमिटमेंट को
पूरा करने वाला तथा पत्नी आदि को धोखे में न रखने वाला होता है।
लाल किताब के अनुसार गुरु यदि तुला राशि में हो या नीच का (मकर राशि
में) हो तो ‘द्विभार्या योग’ बनाता है। पुरुष राशि में गुरु सप्तमस्थ हो तो जातक पत्नी
को मात्र भोग की वस्तु मानता है। स्त्री राशि में व्यापार के प्रति झुकाव रहता है।
बीवी-बच्चों से प्रेम रहता है। बीवी भी पतिपरायणा, सेवा करने वाली तथा मंत्री
की भांति परामर्श देने वाली होती है। किन्तु जातक मध्यायु में ही प्रायः विधुर हो
जाता है अथवा विधुर का जीवन जीने को विवश हो जाता है।

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House -8
अष्टम भाव – आठवें भाव में गुरु हो तो जातक को दीर्घायु, मधुरभाषी,
लेखक, किन्तु गुप्तांग रोगी बनाता है। जातक का धन नाश होता है अथवा अल्पधन
ही रहता है। प्रायः ससुराल पक्ष से अच्छे सम्बन्ध रहते हैं। यदि गुरु अशुभ प्रभाव
में हो तो आय ठीक होते हुए भी जातक कर्ज में डूबा रहता है। उसकी स्थिति लाल किताब के शब्दों में ‘श्मशान के साधु’ जैसी हो जाती है (विशेषकर तब जब
कुंडली में मंगल भी अशुभ हो) । किन्तु शुभ प्रभाव हो तो जातक का भाग्य देव की
शक्ति तथा स्वयं की आत्मिक शक्ति से बढ़ता है। धनवान न भी हो तो उसे दुनिया
के सब सुख-साधन भोगने को मिलते हैं। ऐसे जातक को ईश्वरीय सहायता प्राप्त
होती रहती है। ऐसा जातक शरीर पर सोना धारण करे तो शुभता बढ़ती है।
लाल किताब के अनुसार गुरु अष्टमस्थ हो तो पिता-पुत्र साथ नहीं रह पाते।
गुरु बलवान हो तो विवाह से लाभ तथा विवाहोपरांत भाग्योदय होता है। यदि गुरु
अष्टमेश भी हो या शनि से शुभयोग बनाता हो तो जातक को अचल सम्पत्ति
वसीयत में मिलती है। दीर्घायु प्राप्त होती है। ऐसा जातक शांत अवस्था में मृत्यु
पाता है (बेहोशी/कॉमा/नींद में) मिथुन राशि में गुरु हो तो जातक को विभिन्न रोग
(कर्णरोग विशेष) देता है। ऐसे जातक की मृत्यु वाहन से गिरकर सम्भावित होती
है, परन्तु किसी विधवा के मरने पर उसकी सम्पत्ति जातक को मिलती है। वृश्चिक
या कुम्भ राशि का गुरु ससुराल से लाभ नहीं होने देता। ऐसे जातक की स्थिति
विवाह के बाद और भी बिगड़ती है। पैतृक सम्पत्ति प्रायः नहीं मिलती। यदि
मिलती है तो शीघ्र नष्ट हो जाती है।
आठवां गुरु यदि पाप प्रभाव में हो तो जातक एकदम दरिद्र जीवन जीता है।
सम्भव है कि जातक का वंशक्षय (कोई नाम लेवा न बचना) भी हो जाए।

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House -9
नवम भाव – नौवें भाव में गुरु हो तो जातक प्रसिद्ध, योगी, संन्यास की
ओर जाने वाला, वेदान्ती, धर्मभीरू, शास्त्रज्ञ, प्रतिभावान, विद्वान, ज्ञानी, अध्यात्म
आदि गुप्त विद्याओं में रुचि रखने वाला, कुशाग्र बुद्धि, प्रखर मेधा, भाग्यवान तथा
प्रायः अधिक सन्तान वाला होता है। ऐसा जातक सरकार से सम्मानित होता है तथा
अपने कमिटमेंट को पूरा करने वाला एवं न्यायप्रिय होता है। वह पत्नी व अन्य
जनों को धोखे में नहीं रखता, प्रबल सिद्धांतवादी, कुलीन होता है। ऐसे जातक की
जैसे-जैसे आयु बढ़ती है, वैसे-वैसे उसका ज्ञान भी बढ़ता है। फिर भी ज्ञान प्राप्ति
के लिए वह सतत् प्रयासरत रहता है। धन-दौलत, आय तथा माता-पिता का सुख
पूर्ण होता है (यदि कोई अन्य अशुभ योग न बनता हो तो) । किन्तु गुरु इस भाव में
अशुभ स्थिति में हो तो जातक निर्धन, मंदभागी तथा नास्तिक/कर्मकांड विरोधी हो
सकता है। किन्तु शुभ स्थिति में नवम भाव का गुरु सर्वश्रेष्ठ होता है।
लाल किताब में नौवें गुरु को विशेष शुभ माना है। स्वराशि या उच्च राशि का
गुरु राज्य की ओर से विशेष लाभ दिलाता है। ऐसा जातक राज्याधिकारी या सत्ता
सम्पन्न मंत्रिपद प्राप्त करता है। ऐसा गुरु प्रकार से ‘राजयोग’ बनाता है। ऐसा
जातक धर्मात्मा, शांत, विनम्र, सदाचारी, उच्च विचार वाला होता है तथा प्रभु की कृपा उस पर सदा बनी रहती है। वह तंत्रमंत्र आदि विद्याओं में सिद्धि प्राप्त कर की हानि हो जाए। इस लोक व परलोक में कहीं काम न आए। यश, मति और
विधि तीनों ही उसके विरुद्ध रहते हैं 1
विशेष-गुरु क्योंकि बुद्धि व ज्ञान के साथ भाग्य व धर्म का भी कारक है।
जबकि बारहवां भाव व्यय/हानि का घर है। अतः गुरु का बारहवें घर में होना
उपयुक्त मामलों में कमी दर्शाता है। किन्तु कालपुरुष के हिसाब से बारहवें घर में
मीन राशि पड़ती है। मीन राशि का स्वामी गुरु होता है। स्वामी अपने भाव में हो तो
भाव का बल बढ़ाता है। दूसरे गुरु जहां बैठता है, वहां के प्रभाव को कम करता है
जहां देखता है, वहां के प्रभाव बढ़ाता है। बारहवां गुरु 4, 6, 8 भावों को पूर्ण दृष्टि
से देखता है। अतः सुख, शत्रु एवं आयु/गुप्त रहस्यों के सम्बन्ध में जातक को
लाभान्वित कराता है। इस विवेचन के आधार पर तथा विद्वानों के प्रैक्टिकल
अनुभव के आधार पर शास्त्रकार का उपरोक्त मत सत्य तो सिद्ध होता है। परन्तु गुरु
के अशुभ, दूषित या पाप प्रभाव में होने पर ही । अन्यथा फलों में विपरीतता आती
है। गुरु शुभ स्थिति में हो तो ऊपर कहे प्रभाव जातक में देखने में नहीं आते।
इसलिए पाठक शास्त्र के मत को पढ़कर भ्रमित न हों।
अतिविशेष-बारहवें भाव में गुरु हो तो जातक कामशीतल या SEX में कम रुचि लेने वाला हो सकता है। अन्यथा कम से कम उसके शयन कक्ष में देवालय अवश्य रहता है या शयनकक्ष में भगवान के चित्रादि अवश्य टंगे रहते हैं,-
क्योंकि गुरु महात्मा है। शुक्र विरोधी है (शुक्र काम/SEX का कारक है) तथा
बारहवां घर शयन सुख/प्राण सम्बन्धों का भी कारक है। ऐसा भी प्रायः प्रैक्टिकल
अनुभव में आया है। सकता है। यदि अग्नितत्त्व राशि में गुरु हो जातक को उच्च शिक्षा तथा शिक्षा
विभाग में उच्च पद प्राप्त होता है। पृथ्वी तत्त्व राशि में विज्ञान की उच्च शिक्षा प्राप्त
होती है पर जातक स्वार्थी हो जाता है। वायु तत्त्व राशि में गुरु हो तो लेखन, मुद्रण,
प्रकाशन से लाभ तथा जलतत्त्व में हो तो कानूनविद्, न्यायाधीश, वकील आदि
बनना सम्भव होता है। क्योंकि तब जातक अत्यधिक न्यायप्रिय एवं प्रबल तर्कक्षमता
वाला हो जाता है। छोटे भाई-बहनों के लिए नौवां गुरु अशुभ होता है। वे या तो
होते नहीं या उनसे मनोमालिन्य रहता है, साथ रहने पर प्रगति नहीं होती । सन्तान
की ओर से भी चिन्ता रहती है

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“The future belongs to those who believe in the beauty of their dreams. We are future Ready.
House -10
दशम भाव – दसवें भाव का गुरु जातक को शुभ कर्म करने वाला तथा
धर्मात्मा बनाता है। जातक प्रसिद्ध व सम्मानित होता है। धनाढ्य, सत्यवादी तथा
न्यायप्रिय भी होता है। ऐसा जातक सफल ज्योतिषी हो सकता है या अति उच्च पद
पर आसीन होता है (सर्वोच्च न्यायाधीश/मंत्री/प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति आदि)। ऐसे
जातक को प्रायः अपने पिता का सहयोग नहीं मिलता, यद्यपि यह भी एक प्रकार
का ‘राजयोग’ होता है । बृहस्पति यहां अशुभ स्थिति में हो तो जातक को चालाकी
भरे कार्य करने से लाभ होता है। धर्म-कर्म में विश्वास या नेकी के काम करने से
वह दरिद्र व दुखी बनता है-ऐसा लाल किताब का मत है। परन्तु शुभ हो या
अशुभ (अशुभ में धनाभाव होता है) – जातक बुद्धिमान अवश्य होता है।
लाल किताब के अनुसार दसवां गुरु जातक को धर्मात्मा, शुभकर्मा, पूजनीय
व अति सम्मानित बनाता है। शुभ प्रभाव का बली गुरु इस भाव में हो तो जातक के
भाग्य की काफी वृद्धि होती है। बड़ा अधिकार व बड़ा पद प्राप्त होता है, तीर्थ यात्रा
के अवसर बार-बार मिलते हैं। जातक माता-पिता (माता का विशेष) का भक्त
होता है। किन्तु पुत्रों से सुख प्राप्त नहीं होता। यदि दशमस्थ गुरु पंचमेश होकर बैठा.
हो तब पुत्र वृद्धि, दीर्घायु पुत्र तथा जातक को स्वयं भी दीर्घायु प्राप्त होती है और जातक की शिक्षा उसके कार्य क्षेत्र में परम सहयोगिनी सिद्ध होती है। पुरुष राशि
का गुरु अल्प संतति देता है। स्त्री राशि का गुरु संतानाधिक्य देता है।
यदि दशमस्थ ‘गुरु’ केन्द्राधिपति दोष से ग्रस्त हो (उसकी दोनों राशियां
केन्द्र में ही पड़ती हों। यानी वह दोनों केन्द्रों का अधिपति हो ऐसा केवल मिथुन या
कन्या लग्न होने पर ही होता है) तो गुरु की दशा/अन्तर्दशा में जातक को लम्बे
चलने वाले रोग होते हैं। गुरु यदि नीच राशि में हो तो भी धन का लाभ तो कराता
ही है। किन्तु शुक्र (वृष व तुला) या शनि (मकर व कुम्भ) का लग्न हो तो दसवां
गुरु उत्तम फल नहीं दे पाता।

Lucky Day
Design should not dominate things, and not dominate people. Should help people. That is important to us.

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We don’t want to push our ideas on to the customers, we simply want to make what they want.” We are always standing with our customers.

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House -11
एकादश भाव- यदि लग्न कुंडली में गुरु ग्यारहवें भाव में हो तो जातक
सुन्दर, स्वस्थ, धनी, सन्तुष्ट, सफल व्यापारी, विद्वान, दानी व सम्मानित होता है। किन्तु उसके सन्तान कम होती हैं। यदि गुरु इस भाव में सिंह राशि में हो तो पुत्र
सुख जातक को नहीं मिलता। या तो पुत्र होता नहीं, होता है तो जीवित नहीं रहता
(तुला लग्न हो तो गुरु वैसे ही पापी व अकारक हो जाता है)। जातक को संतान,
शिक्षा व सम्पत्ति तीनों एक साथ नहीं मिलते, कोई एक प्राप्त होता है तो दूसरे का
अभाव हो जाता है।
विशेष-वैसे ग्यारहवां घर क्योंकि लाभ का होता है, अतः इस भाव में
समस्त ग्रह लाभकारी ही माने जाते हैं। यह एक सामान्य नियम है।
लाल किताब के अनुसार ऐसा जातक स्वयं को अकेला भी महसूस करता है।
यदि संयुक्त परिवार में प्रेमपूर्वक रहा जाए तो गुरु का प्रभाव शुभ रहता है अन्यथा
अशुभ हो जाता है। इस भाव का गुरु अशुभ हो तो जातक की बहन, बुआ या बेटी
दुःखी ही रहती है (यह अशुभ गुरु का प्रधान लक्षण लाल किताब ने माना है)।
उसे कफन भी नसीब नहीं होता। यदि गुरु इस भाव में अत्यधिक अशुभ हो तब ।

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House -12
द्वादश भाव – गुरु यदि बारहवें भाव में हो तो जातक उदार व दूसरों की
सहायता करने वाला होते हुए भी लालची नहीं होता। वह सुखी किन्तु आलसी
होता है। प्राय: वह अपना बुरा करने वाले का भी भला सोचता है। क्षमा द्वारा
शत्रुओं को जीतता है। यदि बृहस्पति शुभ हो तो जातक धन को तिनके की तरह
समझने वाला, श्रेष्ठ ज्ञानी, संसार से वैराग्य रखने वाला या योगी होता है। साधुओं
की सेवा करने वाला होता है। गुरु पीड़ित या अशुभ हो तो जातक विवेकशून्य,
आलसी, परजीवी तथा लालची होता है। विशेषकर तब जब गुरु नीच का हो,
वृश्चिक या कन्या राशि का हो तो अशुभ फल बढ़ जाते हैं। केन्द्राधिपति दोष या
युतिदोष में हो. तो जातक को पीड़ा देता है।
लाल किताब के अनुसार बारहवें गुरु वाला जातक शत्रुओं से घिरा रहकर भी
अपराजित रहता है। जातक की अध्यात्म विद्या में विशेष रुचि होती है। बुद्धि, बल,
चतुराई तथा विनम्रता के बल पर शत्रु से भी लाभ प्राप्त करता है। धर्म गुरुओं,
वेदपाठियों तथा लोकोपकारों के लिए बारहवां गुरु शुभ रहता है।
शास्त्रकारों ने बारहवें गुरु को अच्छा नहीं माना है। उनके अनुसार ऐसे
जातक को अपयश तथा धन हानि होती है। प्रायः वह ठग बुद्धिवाला होता है और भाग्य उसका साथ नहीं देता। जैसा कि कहा है-
यशः कीदृशं सद्वयय साभिमाने मतिः कीदृशी वचं नायेत्परेषाम् ।
विधिः कीदृशोर्यस्यत्राशो हियेन त्रयस्तेनवे पुर्ण्यजेयस्य जीवः ॥
अर्थात् गुरु बारहवें भाव में हो तो धनादि अच्छी प्रकार व्यय करने पर यश
कैसे हो ? (अर्थात् अपयश प्राप्त होता है भली प्रकार धन व्यय करने पर भी)।
उसकी बुद्धि औरों को ठगने वाली तथा ऐसा काम करने वाली हो जिससे व्यर्थ धन

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