
1-अश्विनी

सूर्य - अश्विनी नक्षत्र
सूर्य अश्विनी नक्षत्र में स्थित सूर्य पर मंगल की दृष्टि हो तो जातक क्रूर और रक्तिम नेत्रों वाला होगा । यदि बुद्ध की दृष्टि हो तो उसका जीवन सुखमय होगा और वह अच्छे व्यक्तित्व का स्वामी होगा लेकिन आयु के चौथे दशक में धन से विहीन होगा । यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो वह सुहृदय होगा और राजसी शक्तियों का उपयोग करेगा । शुक्र की दृष्टि होने पर गहन गतिक्रिया में लिप्त होगा । यदि शनि की दृष्टि हो तो जातक निर्धन होगा तथा किसी कार्य में उसका मन नहीं होगा ।

चरण -1
प्रथम भाग (0.00 डिग्री से 3.20 डिग्री)- जातक हष्टपुष्ट शरीर वाला,वार्तालाप में वाकपटु, आत्मविश्वासी, दीर्घ जीवन, धनी, तथा सन्तानों से सुख और आनन्द प्राप्त करेगा। उसे पित्तदोष तथा रक्त की बिमारी हो सकती है।

चरण -2
द्वितीय भाग (3.20 डिग्री से 6.40 डिग्री)- बहुत अच्छी स्थिति नहीं है ।आयु की दीर्घता संदिग्ध है। अनेक जातकों में प्रायः 8 वर्ष की आयु से पहले बालरिष्ट पाया गया है। प्रायः सूर्य की अश्विनी नक्षत्र में उपस्थिति उत्कर्ष पर मानी जाती है जो अच्छे परिणाम देती है। लेकिन मेरा अनुभव सूर्य के अश्विनी नक्षत्र के दूसरे भाग में स्थित होने की दशा में उत्पन्न जातकों के बारे में दूसरा। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि इस समय में सूर्य अपने राशिचक्र में वार्षिक परिक्रमा पूर्ण करने से पूर्व विश्राम की स्थिति में होता है। इसलिए इसके अच्छे परिणाम उत्पन्न नहीं हो सकते। जब सूर्य इस सुप्त अवस्था में होता है तो दुष्ट शक्तियां प्रभावी हो जाती है। इससे जातक निर्धन अथवा भिखारी होता है। जब इस नक्षत्र में चन्द्रमा सूर्य से संयुक्त होता है तो दुष्परिणाम तब और गहन होते हैं। इसके एक अपवाद के रूप में यदि मंगल सूर्य पर प्रभाव डाले या साथ में हो तो अच्छे परिणाम हो सकते हैं।

चरण -3
तृतीय भाग (6.40 डिग्री से 10.00 डिग्री)- जातक धनवान हो सकता है किन्तु वह जीवन में नीचे स्थान ग्रहण करेगा। स्वास्थ्य खराब रहेगा । कभी-कभी तो यह गम्भीर बिमारी का रूप ले सकती है

चरण -4
चतुर्थ भाग (10.00 डिग्री से 13.20 डिग्री) - जातक प्रसिद्ध, चतुर, धनी और नेता अथवा देश की सम्पूर्ण सेनाओं का अध्यक्ष बनेगा। धार्मिक विचारों का तथा सहृदय होगा। वह अपना कार्य ठीक प्रकार से करेगा । निरन्तर यात्राओं का योग है। जीवन के बाद वर्षों में समृद्धशाली होगा। यदि सूर्य अश्विनी नक्षत्र के 10.00 व 11.00 डिग्री के बीच की कक्षा में स्थिर होगा तो और भी सुखद परिणाम होंगे।
2-भरणी

सूर्य - भरणी
सूर्य भरणी नक्षत्र में स्थित सूर्य पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक दयालु तथा परोपकार का भंडार होगा। उसके पास कई व्यक्तिगत सेवक होंगे। मंगल की दृष्टि हो तो जातक क्रूर प्रकृति का तथा युद्धप्रिय होगा। शरीर मजबूत और रक्तिम नेत्र होंगे। यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो जातक विपुल सम्पदा का मालिक, दान-दक्षिणा देने वाला प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ या शासन में उच्च पद पर होगा। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो जातक नीच स्त्रियों के प्रति आसक्त रहेगा। उसका धन उसके अवसरवादी मित्र खत्म करा देंगे तथा उसे विपत्ति में छोड़कर खिसक लेंगे। यदि शनि की दृष्टि हो तो वह आलसी और उसकास्वास्थ्य खराब रहेगा।

चरण -1
प्रथम भाग (13.20 से 16.40 डिग्री)-वह बहुत विद्वान तथा ज्योतिष विद्या का ज्ञाता होगा। वह धन तथा यश प्राप्ति में भाग्यशाली होगा । आकर्षक व अच्छा बर्ताव वाला होगा। आँख पर चोट या मोतियाबिन्द हो सकता है। वह चिकित्सा, कानून अथवा पशुपालन के क्षेत्र में विशेषज्ञ होगा । यदि सूर्य अपनी परिक्रमा कक्षा के 15 से 16 डिग्री के बीच होगा तो जातक सफल व्यवसायी बनेगा। वह खाद, होटल अथवा कृषि पदार्थों का व्यवसाय करेगा ।

चरण -2
द्वितीय भाग (16.40 से 20.00 डिग्री)-उसका पारिवारिक जीवन अत्यन्त सुखदायी होगा । सन्तान से पूर्ण प्रसन्नता तथा सुख मिलेगा। लाटरी से, पैतृक रूप से अथवा अन्य प्रकार से छिपी दौलत मिलने का योग है। प्रायःसभी के मामलों में प्रेम-विवाह का संकेत हैं। वह टान्सिल अथवा अण्डाशय के रोग से पीड़ित हो सकता है। शिपिंग, पैट्रोल रिफायनरी अथवा पानी से सम्बन्धित उद्योग से आय का योग है। सूर्य के परिक्रमा कक्षा के 18 से 20 डिग्री के बीच होने पर यौन रोग अथवा मोतियाबिन्द का संकेत है। कैमिकल इंजीनियर बन सकता है । प्रायः आरामदायक जीवन ।

चरण -3
तृतीय भाग (20.00 से 23.20 डिग्री) - इस स्थिति में सूर्य का होना अच्छा नहीं माना जाता। जातक के पास अतुल सम्पदा होगी लेकिन सब धन और सम्पत्ति गंवा देगा। सूर्य का अपना उपआवर्तकाल ही अच्छा समय होगा, अन्यथा शेष समय ठीक नहीं होगा। सिर की चोट का संकेत है। वह वकील, जज अथवा डॉक्टर बनेगा लेकिन सफलता मुशिकल से होगी। बुद्ध की अच्छी दृष्टि होने पर मकानों से आय का योग है । वह उत्तेजित, उग्र, जल्दबाज तथा झगडालू प्रकृति का होगा।

चरण -4
चतुर्थ भाग (23.20 से 26.40 डिग्री) - वह बचपन से ही कष्टमय जीवन जीयेगा। पिता का बचपन में ही निधन हो सकता है। यह भी देखा गया है कि यदि शुभ ग्रह अच्छे स्थान पर न हो या इस भाग पर स्थित सूर्य पर उनकी दृष्टि न हो तो जातक भिखारी भी हो सकता है। लेकिन किसी एक भी ग्रह की उपस्थिति उक्त स्थिति को प्रभावित कर सकती है कि वह भिखारी न होकर फिर भी वह दूसरों पर आश्रित जीवन जीयेगा ।
3-कृत्तिका

सूर्य - कृत्तिका
सूर्य कार्तिक नक्षत्र में स्थित सूर्य पर यदि मंगल की दृष्टि हो तो जातक युद्ध विद्या में प्रवीण होगा तथा अपने साहसिक कार्यों से धन और यश अर्जित करेगा। यदि बुद्ध की दृष्टि हो तो वह निपुण संगीतकार होगा और ललित कलाओं में रुचि लेने वाला, आकर्षक व्यक्तित्व व सुखी जीवन जीने वाला होगा । यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो वह अपने परिवार में सर्वश्रेष्ठ होगा । यदि राजनीति में होगा तो मन्त्रीपद पाने का योग है। वह विपुल धनी होगा। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो जातक सुन्दर आँख व शरीर वाला और अपने समुदाय में विख्यात व्यक्ति होगा। शनि की दृष्टि होने पर उसका स्वास्थ्य खराब तथा वह निर्धन होगा। परिवार में निरन्तर क्लेश से अनस्तित्व की स्थिति में रहेगा।

चरण -1
प्रथम भाग ( 26.40 डिग्री से 30.00 डिग्री ) - इस खण्ड में यदि सूर्य कोई शुभ ग्रह से संयुक्त हो तो जातक गरीब तथा अधिक सन्तान वाला होगा। वह ज्योतिष विद्या तथा उससे सम्बन्धित विषयों को सीखने का इच्छुक होगा । उसकी आँखे खराब होंगी। वह खाने में पेटू होगा। अग्नि दुघर्टना का संकेत । सेना या पुलिस विभाग में रोजगार ।

चरण -2
द्वितीय भाग (30.00 डिग्री से 33.20 डिग्री)- इस खण्ड में सूर्य की उपस्थिति से दीर्घ जीवन, सन्तान से सुख, मध्यावस्था के बाद धनी बनने का योग। मानसिक रूप से दृढ़। पुजारी बनने का योग्य। संगीत प्रेमी। सट्टे का विचारधारा। कम्पाउंडर, नर्स अथवा कुष्ट-रोग में निपुण डाक्टर। गरदन में दर्द या ग्रन्थी का असाधारण फैलाव जो कैन्सर बन सकता है

चरण -3
तृतीय भाग ( 33.20 डिग्री से 36.40 डिग्री) - जीवन पर्यन्त भिखारी । दर-दर भटकेगा। अप्राकृतिक बिमारियों से ग्रस्त । बालरिष्ट (बचपन में मृत्यु) का योग। वह नाई का कार्य करेगा। यदि इस खण्ड में सूर्य पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो मादा जातक अनैतिक कार्यों में लिप्त तथा यौन रोगों से ग्रस्त होगी। नरजातक जहाजरानी, मछलीपालन आदि व्यवसायों से अर्जित करेंगे।

चरण -4
चतुर्थ भाग ( 36.40 डिग्री से 40.00 डिग्री ) - खराब स्वास्थ्य | जीवन में निम्न स्तर पर । क्रूर विचारों वाला। अपने परिवार के प्रति उत्तरदायी । जलीय रोगों से पीड़ित होने का योग ।
4-रोहिणी

सूर्य - रोहिणी
रोहिणी नक्षत्र में स्थित सूर्य पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक स्त्री वर्ग को अच्छी सेवा देगा तथा जहाजरानी अथवा जलीय उद्योगों से कमायेगा । मंगल की दृष्टि होने पर युद्धकला में प्रवीण होगा तथा धनी और यशस्वी होगा । बुद्ध की दृष्टि हो तो वह ललितकलाओं में रूचि लेगा तथा इनसे आजीविका कमायेगा। यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो वह परिवार तथा समाज में शीर्ष स्थल होगा। वह जनता से यश और मान प्राप्त करेगा तथा शासक वर्ग से लाभान्वित होगा। शुक्र की दृष्टि होने पर सुन्दर नेत्र, आकर्षक शरीर, मधुर मुखाकृति होगी तथा उसके मित्र व शत्रु बराबर तादाद में होंगे। शनि की दृष्टि होने पर स्वास्थ्य खराब रहेगा, आर्थिक लाभ का अभाव होगा तथा जीवन पर्यन्त निर्धन रहेगा। सदैव पत्नी का विरोधी रहेगा ।

चरण -1
प्रथम भाग (40.00 डिग्री से 43.20 डिग्री) - उक्त युक्ति में निपुण तथा बुद्धिमान । पोशाकों पर विशेष ध्यान । मवेशियों तथा घोड़ों के व्यापार से लाभ। समाज के लिए अच्छे कार्य । मिरगी, मस्तिष्क- नाड़ी तन्त्र का बिगड़ना, अथवा सिरदर्द जैसे रोग हो सकते हैं।

चरण -2
द्वितीय भाग (43.20 डिग्री से 46.40 डिग्री) - प्रसन्नचित व प्रभावी व्यक्तित्व । तेल का व्यवसाय स्थापित करेगा। उसे गहरे पानी, नदी अथवा समुद्र में स्नान नहीं करना चाहिए। मैनिनजाइटस, बार-बार मूर्छित होना या सिरदर्द का संकेत । यदि यहाँ पर मंगल ग्रह भी स्थित है तो जातक पुलिस या सैनिक विभाग में अथवा इनसे सम्बन्धित सम्पर्क कार्य में रत होगा ।

चरण -3
तृतीय भाग (46.40 डिग्री से 50.00 डिग्री ) - जनसाधारण के लिए अच्छे कार्य करके नाम अर्जित करेगा। लेकिन ज्यादा धन नहीं कमायेगा । नासूर तथा कब्ज से पीड़ित । महिलाओं में अनियमित मासिक ऋतुचक्र । पानी से खतरा ।

चरण -4
चतुर्थ भाग (50.00 डिग्री से 53.20 डिग्री) - सरकारी नौकरी। अक्सर यात्राएं। कमजोर दृष्टि अथवा मुख के रोग । पत्नी की इच्छा पर चलने वाला (जोरू का गुलाम)
5-मृगशिरा

सूर्य - मृगशिरा
सूर्य इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक के आश्रित कई स्त्रियां होगी। वह जलीय उद्योगों या व्यवसाय द्वारा आमदनी करेगा। यदि मंगल की दृष्टि हो तो जातक वीर होगा तथा अपनी वीरता से सम्पति अर्जित करेगा। बुध की दृष्टि होने पर जातक अच्छे शारीरिक गठन का तथा लेखक होगा। बृहस्पति की दृष्टि हो तो जातक शासक वर्ग के सम्पर्क में होगा तथा उससे काफी धन प्राप्त करेगा। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो उच्चतम राजनीतिक दर्जा मिलेगा तथा पत्नी, सन्तान तथा धन-दौलत से सम्पन्न होगा। शनि की दृष्टि होने पर जातक नीच प्रवृति का होगा तथा उसके अपने से बड़ी आयु की स्त्रियों से यौन सम्बन्ध होंगे।

चरण -1
प्रथम भाग (53.20 डिग्री से 56.40 डिग्री)- उसे सुगन्धित पुष्पों का शौक होगा। वह बुद्धिमान, आर्कषक व्यक्तित्व का तथा भाग्यवान होगा उसके कुछ ही पुत्र होंगे। उसे मुख, चेहरे तथा आँखों की बिमारियों का संकेत है ।

चरण -2
द्वितीय भाग (56.40 डिग्री से 60.00 डिग्री)-अच्छे पहनावे, कन्नियुक्त चेहरे तथा तेजस्वी व्यक्तित्व का और गाने-बजाने का शौकीन । पानी से डरेगा। 27 वर्ष की आयु में विवाह का योग । आखों में खराबी ।

चरण -3
तृतीय भाग (60.00 डिग्री से 63.20 डिग्री)-आर्थिक तथा वित्तीय सलाहकार के रूप में योग्य अच्छी स्थिति प्राप्त करेगा । जनसम्पर्क कार्यों के लिए निपुण उसका एक पुत्र वैज्ञानिक शोध के क्षेत्र में अच्छी श्रेष्ठता प्राप्त करेगा। नाक की बिमारी से परेशानी ।

चरण -4
चतुर्थ भाग (63.20 डिग्री से 66.40 डिग्री) - बहुत जन सेवा करेगा। यदि इस खण्ड में बुध भी स्थित हो और चन्द्रमा प्रथम भाग में हो तो वह विद्वान, मृदुभाषी, सम्मानित तथा निपुण ज्योतिषी होगा । उसे टाँसिल्स अथवा गले की बिमारियां होंगी।
6-आर्द्रा

सूर्य - आर्द्रा
सूर्य आर्द्र नक्षत्र में स्थित सूर्य पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक रिश्तेदारों द्वारा परेशान किया जायेगा। वह अपनी आजीविका के लिए जन्म स्थान को छोड़ेगा। लेकिन इसमें उसे आरम्भ में सफलता नहीं मिलेगी। यदि मंगल की दृष्टि हो तो उसके शत्रु उसके लिए कठिनाइयां उत्पन्न करेंगे और वह काहिल हो जायेगा । बुध की दृष्टि होने पर उसे कोई लाभ नहीं होगा लेकिन उसके बच्चे सरकार से पूर्ण सहायता प्राप्त करेंगे। बच्चों की समृद्धि के कारण उसके रिश्तेदार उससे विद्वेष करेंगे। यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो वह तन्त्रमन्त्र विद्या में निपुण होगा। उसे अच्छा परिवारिक जीवन नसीब नहीं होगा, वह भटकता रहेगा। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो जातक विदेशों में जाकर अच्छा धन कमायेगा मगर बृहस्पति की दशा में सब कुछ गंवा देगा। यदि शनि की दृष्टि हो तो जातक धूर्त प्रवृति का होगा और स्त्रियों के हाथों अपमानित होगा ।

चरण -1
प्रथम भाग (66.40 डिग्री से 70.00 डिग्री) - उच्च शिक्षित तथा धनवान होगा। अच्छा ज्योतिषी बनेगा। गणित अथवा लेखा क्षेत्र में कार्यस्त होगा यदि इस खण्ड में सूर्य बृहस्पति तथा बुध के संसर्ग में हो तो उसे जुड़वां पुत्र होंगे। यदि इस भाग में सूर्य के साथ शुक्र भी स्थित हो तो जातक पुलिस या सुरक्षा विभाग में नियुक्त होगा । वृद्धावस्था में दृष्टि कमजोर होगी ।

चरण -2
द्वितीय भाग (70.00 डिग्री से 73.20 डिग्री ) - वह हाजिर जवाब, स्नेहमय तथा मधुर स्वभाव का होगा। वह विद्वान, मृदुभाषी तथा परिजनों का प्यारा होगा। यदि इस अंश में बृहस्पति भी स्थित हो तो जातक या तो मन्त्री बनेगा अथवा उच्चशासनाधिकारी होगा । यदि शनि संयुक्त हो तो वह धातुशोघन करने वाला होगा। उसकी पत्नी व सन्तान को खतरा होगा ।

चरण -3
तृतीय भाग (73.20 डिग्री से 76.40 डिग्री) - कई विद्याओं में विद्वान । 40 वर्ष की आयु के बाद मान्यता प्राप्त ज्योतिषी होगा। वह लेखाकार या वित्तीय सलाहकार अथवा किसी बैंकिंग संस्था में कार्यरत होगा। फेफड़ों अथवा सांस का रोग।

चरण -4
चतुर्व भाग (76.40 डिग्री से 80.00 डिग्री) - कुलीन और सचरित्र । शास्त्रों में अति विद्वान। सफल ज्योतिषी बनने के लिए अनुकूल स्थिति । 39 वर्ष की आयु के बाद प्रसिद्धि प्राप्त करेगा । धनवान तथा आकर्षक व्यक्तित्व होगा । पुरूष के विवाह का योग 25 वर्ष की अवस्था में तथा स्त्री का 23 वर्ष में |
7-पुनर्वसु

सूर्य - पुनर्वसु
सूर्य यदि पुर्नवसु नक्षत्र में स्थित सूर्य पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक अपने परिजनों से परेशान जन्मस्थान से दूर जाकर रहेगा तथा अर्थिक धन अर्जित नहीं कर पायेगा। यदि मंगल की दृष्टि हो तो शत्रुओं के द्वारा पीड़ित हो जायेगा। वह आलसी होगा। बुद्ध की दृष्टि होने पर वह स्वयं तो कोई लाभ उठा नहीं पायेगा मगर उसकी सन्तान सरकार से भरपूर लाभ लेगी। उसके रिश्तेदार उसकी सन्तान की समृद्धि के कारण उभरने द्वेष करेंगे। यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो वह गूढ़ विज्ञानों (विद्याओं) में निपुण बनेगा तथा अपनी पत्नी तथा बच्चों से अच्छे सम्बन्ध न हो पाने के कारण स्वतन्त्र रहना चाहेगा। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो जातक विदेशों में जाकर बहुत धन कमायेगा। वहां पर वह किसी अग्निदुर्घटना अथवा शस्त्र से घायल होगा। वह वहां की सरकार से भी सम्बन्ध बनायेगा। शनि की दृष्टि हो तो वह फिजूलखर्च करेगा। उसके दास-दासियों से काम-सम्बन्ध होंगे। लेकिन वह कर्त्तव्यनिष्टावान होगा।

चरण -1
प्रथम भाग (80.00 डिग्री से 83.20 डिग्री ) - जातक उच्च शिक्षा, धनी तथा अच्छा ज्योतिषी होगा। यदि इस भाग में बुद्ध का संयोग हो तो वह 28 वर्ष की आयु तक नास्तिक होगा बाद में उसमें बदलाव आयेगा और वह भगवान के अस्तित्व में विश्वास करेगा ।

चरण -2
द्वितीय भाग ( 83.20 डिग्री से 86.40 डिग्री ) - गणित में प्रवीण तथा अच्छा प्रशासक होगा। उसमें अर्न्तदर्शी शक्तियां होंगी। पीत वर्ण चेहरे का तथा उच्च राजनैतिक या शैक्षणिक स्थिति प्राप्त करेगा ।

चरण -3
तृतीय भाग (86.40 डिग्री से 90.00 डिग्री) - यदि इस खण्ड में बृहस्पति भी स्थित हो तो उच्चतम स्तर का राजनीतिज्ञ अथवा मंत्री होगा तथा मित्रों से लाभ उठायेगा । शिक्षक के कार्य करने का भी संकेत है ।

चरण -4
चतुर्थ भाग (90.00 डिग्री से 93.20 डिग्री) - यदि इस खण्ड में लग्न भी पड़ता हो तो जातक किसी असाध्य रोग से पीड़ित होगा । वह निर्धरता तथा कर्जों में जीयेगा। वह निम्नतर स्तर के पद पर होगा अथवा ऐसा धन्धा करेगा जिसमें बहुत कम लाभ होगा। कमजोर दृष्टि, कब्ज और नासूर से पीड़ित होगा ।
8-पुष्य

सूर्य - पुष्य
इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक उद्योगपति या किसी उद्योग अथवा सरकार में उच्चतम पद पर होगा। वह जहाजरानी उद्योग अथवा पानी से सम्बन्धित व्यवसाय भी कर सकता है। यदि मंगल की दृष्टि हो तो वह धनी बनेगा मगर अपने ही परिजनों की समस्याए सहता रहेगा। वह नासूर तथा क्षय रोग से पीड़ित होगा । यदि बुध की दृष्टि हो तो वह उच्च शिक्षा प्राप्त, सरकारी सेवा में होगा । बृहस्पति की दृष्टि होने पर वह राजनीति अथवा सुरक्षा विभाग से सम्बन्धित पदों पर होगा । शुक्र की दृष्टि होने पर वह दूसरों की आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा, स्त्रियों द्वारा आय होगी, धातु व्यापार में रूचि लेगा; यदि शनि की दृष्टि हो तो पत्नी की दीर्घायु संदिग्ध है, श्वास तथा गैस की बिमारी से पीड़ित धूर्त व्यक्ति होगा ।

चरण -1
प्रथम भाग ( 93.20 डिग्री से 96.40 डिग्री) - अच्छा व्यक्तित्व । उसका स्वास्थ्य पित्त तथा कफ के असंतुलन के कारण प्रभावित होगा । नशे का आदि । यदि माघ नक्षत्र में लग्न पड़ता हो तो जातक साधारण तथा गरीब परिवार में जन्म लेगा, लेकिन उसके पिता की स्थिति धीरे-धीरे सुधरेगी तथा जातक भी आरामदायक जीवन व्यतीत करेगा ।

चरण -2
द्वितीय भाग (96.40 डिग्री से 100.00 डिग्री) - जातक अपने उत्तरदायित्वों के मामलें में स्थिरचित नहीं होगा। फिर भी वह भावपूर्ण व ईमानदार होगा वह विमान इंजीनियर या अन्तरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में वैज्ञानिक होगा। '

चरण -3
तृतीय भाग (100.00 डिग्री से 103.20 डिग्री) - अपने शाही गुणों के कारण प्रसिद्ध होगा। लम्बा शरीर मगर दृष्टि कमजोर । यदि यह अंश लग्न में भी हो तो जातक शारीरिक बिमारी से ग्रस्त तथा काना होगा।

चरण -4
चतुर्थ भाग (103.20 डिग्री से 106.40 डिग्री) - पत्नी उसके लिए गम्भीर समस्या होगी। वह उसकी उन्नति में बाधक होगी। उपचार के लिए उसे सूर्य मन्त्र का जाप करना चाहिए ।
9- आश्लेषा

सूर्य - आश्लेषा
अश्लेष नक्षत्र में स्थित सूर्य पर यदि चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक दूसरों के काम करने वाला होगा। वह अपने परिजनों के कारण ताकत और हिम्मत हार बैठेगा तथा शारीरिक कष्ट पायेगा । यदि मंगल की दृष्टि हो तो वह अपने परिजनों से घृणा करेगा, दूसरों को कष्ट पहुंचायेगा तथा जलीय रोगों से ग्रस्त होगा। यदि बुध की दृष्टि हो तो वह विद्वान होगा तथा शिक्षा के क्षेत्र में प्रसिद्ध होगा और शासक वर्ग से लाभान्वित होगा । यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो वह अपने परिवार में सम्मानित होगा तथा धन के लिए शासन पर आश्रित होगा। शुक्र की दृष्टि होने पर स्त्रियों के संसगो द्वारा धन पैसा इत्यादि प्राप्त करेगा तथा शोकार्त स्थिति में होगा । यदि शनि की दृष्टि हो तो जातक पीलिया, लकवा से पीड़ित होगा और निर्धन होगा।

चरण -1
प्रथम भाग (106.40 डिग्री से 110.00 डिग्री) - यदि अनुराधा या ज्येष्ठ नक्षत्रों में लग्न पड़ता हो और इस खण्ड में सूर्य हो तो जातक देश के एक कोने से दूसरे कोने तक यात्राएं करेगा। यह साधू बन कर तीर्थों की यात्राएं करेगा, गरीबों की देखभाल करेगा मगर अपने परिवार की नहीं। पांव तथा घुटनों में बिमारी होगी ।

चरण -2
द्वितीय भाग (110.00 डिग्री से 113.20 डिग्री) - इस खण्ड में सूर्य की स्थिति तथा ज्येष्ट नक्षत्र में लग्न पड़ने से जातक के पिता की जल्द मृत्यु होगी। उसकी पत्नी उसकी उन्नति में रूकावट बनेगी।

चरण -3
तृतीय भाग (113.20 डिग्री से 116.40 डिग्री) - इस खण्ड में सूर्य की स्थिति तथा अभिजीत अथवा उत्तर-आषाढ़ नक्षत्र में लग्न पड़ता हो तो उसे प्यार देने वाली पत्नी होगी लेकिन वह (पत्नी) पित्तदोषयुक्त रोग से ग्रस्त होगी ।

चरण -4
चतुर्थ भाग (116.40 डिग्री से 120.00 डिग्री) - जातक को बच्चों से कोई सुख प्राप्त नहीं होगा। उसका एक भाई बहुत प्रसिद्ध होगा और जातक उससे काफी लाभ प्राप्त करेगा। यदि इस अंश में लग्न भी पड़ता हो तो जातक की आंखों में नीरसता, दोषपूर्ण दाग अथवा सितारे पाये जाते हैं।
10-मघा

सूर्य - मघा
माघ नक्षत्र में स्थित सूर्य पर यदि चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक फिजूलखर्च करेगा और शाही शक्तियों का उपभोग करेगा तथा प्रसिद्धि प्राप्त करेगा। यदि मंगल की दृष्टि हो तो वह स्त्री वर्ग के लिए अधिकतम सेवा कार्य करेगा, फिजूलखर्च करेगा तथा पीलिया रोग से ग्रस्त होगा । वह मेहनती मगर प्रवृत्ति का होगा। यदि बुध की दृष्टि हो तो फिजूलखर्च, समुदाय अथवा सरकार के नियम और व्यवस्था को न मानने वाला होगा । वह एक अच्छा लेखक और नेक व्यक्तित्व का स्वामी होगा । यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो जातक मन्दिरों, उद्यानों तथा झीलों के निर्माण क्षेत्र में शिल्पकार होगा तथा सदैव अपने कुटुम्बवालों में रहना चाहेगा। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो वह क्रोधी स्वभाव का होगा तथा अपने व्यवहार के कारण बदनाम होगा। यदि शनि की दृष्टि हो तो वह दूसरों के काम में रोड़ा अटकाने वाला तथा ईष्यालू प्रवृत्ति का व्यक्ति होगा ।

चरण -1
प्रथम भाग (120.00 डिग्री से 123.20 डिग्री ) - जातक निर्धन होगा और सेवक का कार्य करेगा। यदि इस अंश में लग्न भी पड़ता हो तो उसे रतौंधी का रोग होगा।

चरण -2
द्वितीय भाग (123.20 डिग्री से 126.40 डिग्री) - जातक यात्राओं से उत्पन्न थकान का मारा, गरीब और भूखा व्यक्ति होगा। उसकी आंखें प्रभावित खराबी होगी। यह भाग में यदि शनि की होंगी। उसके शरीर के अंगों में कुछ सूर्य पर दृष्टि हो तो उसकी अपने माता-पिता से नहीं बनेगी और वह उनसे अलग रहेगा।

चरण -3
तृतीय भाग (126.40 डिग्री से 130.00 डिग्री) - यदि इस भाग में शनि ग्रह मंगल और सूर्य के साथ स्थित हो तो बालक का जीवन केवल एक माह होगा। अन्यथा उसका जीवन मध्यमवय तक होगा। वह फेफड़ों में पानी अथवा हरन्या की बिमारी से पीड़ित होगा ।

चरण -4
चतुर्थ भाग (130.00 डिग्री से 133.20 डिग्री) - यदि इस भाग में शनि भी सूर्य के साथ स्थित हो और इन पर मंगल की दृष्टि हो तो बालक का जीवन केवल एक माह होगा। यदि किसी अन्य ग्रह की दृष्टि से रहित सूर्य अकेला स्थित हो तो वह मध्यावस्था के बाद भी सुखी जीवन व्यतीत करेगा । मध्यावस्था तक वह गरीबी तथा बेरोजगारी का सामना करेगा।
11- पूर्व फाल्गुनी

सूर्य - पूर्व फाल्गुनी
इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पर यदि चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक शत्रु तथा परिजनों दोनों के द्वारा व्याकुल होगा। वह परदेश में भटकेगा और धन विहीन होगा। यदि मंगल की दृष्टि हो तो वह मैनिनजाटिस या दिमागी बुखार से ग्रस्त होगा। वह शत्रुओं से भयभीत होगा। यदि बुद्ध की दृष्टि हो तो उसके नेक सन्तान होगी जो उसके परिवार के लिए गहने के समान होगी। शासकों से कृपादृष्टि प्राप्त होगी। यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो जातक मन्त्रों में कुशल होगा तथा वह स्वतन्त्र विचारों का होगा तथा पत्नी और बच्चों से उसकी नहीं निभेगी। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो जातक परदेश में जा बसेगा । वह शस्त्र, अग्नि अथवा विष द्वारा आक्रान्त होगा। यदि शनि की दृष्टि हो तो वह फिजूलखर्च करेगा तथा उसके कई सेवक होंगे और वह अवैध कार्य करेगा।

चरण -1
प्रथम भाग (133.20 डिग्री से 136.40 डिग्री) - इस भाग में यदि सूर्य पर शनि या मंगल की दृष्टि हो तो जातक मैनिनजाइटिस या दिमागी बुखार से ग्रस्त होगा। सरकारी नौकरी अथवा चिकित्सा के क्षेत्र में होगा कभी-कभी उग्र स्वभाव भी पाया गया है।

चरण -2
द्वितीय भाग (136.40 डिग्री से 140.00 डिग्री) - इस भाग में यदि चन्द्रमा शनि के साथ स्थित हो और अश्लेष नक्षत्र में मंगल हो तो जातक उच्च पदाधिकारी होगा। फिर भी उसकी पत्नी तथा सबसे छोटे पुत्र की दीर्घायु संदिग्ध है। उसका दुसरे विवाह का कोई संकेत नहीं है।

चरण -3
तृतीय भाग (140.00 डिग्री से 143.20 डिग्री) - सरकारी नौकरी अथवा चिकित्सा क्षेत्र में होगा। उसे दिल की खराबी, चक्कर आना रोग हो सकते हैं। वह अपने बचपन में विकट आर्थिक परेशानियां सहेगा। आमदनी में स्थिरता 33 वर्ष की आयु के बाद आयेगी।

चरण -4
चतुर्थ भाग (143.20 डिग्री से 146.40 डिग्री) - जातक किसी जल उद्योग अथवा हस्पताल सेवा द्वारा आय अर्जित करेगा। उसे आँखों की परेशानी, लू लगना, सूजन आदि रोग होंगे। यदि यहां केतू भी स्थित हो तो वह वाहन इंजीनियर या मैकेनिक होगा।
12- उत्तर फाल्गुनी

सूर्य - उत्तर फाल्गुनी
इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक रिश्तेदारों द्वारा परेशान किया जायेगा। वह अपनी आजीविका के लिए जन्म स्थान को छोड़ेगा। लेकिन इसमें उसे आरम्भ में सफलता नहीं मिलेगी। यदि मंगल की दृष्टि हो तो उसके शत्रु उसके लिए कठिनाइयां उत्पन्न करेंगे और वह काहिल हो जायेगा। बुध की दृष्टि होने पर उसे कोई लाभ नहीं होगा लेकिन उसकेbबच्चे सरकार से पूर्ण सहायता प्राप्त करेंगे। बच्चों की समृद्धि के कारण उसके रिश्तेदार उससे विद्वेष करेंगे। यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो वह तन्त्रमन्त्र विद्या में निपुण होगा। उसे अच्छा परिवारिक जीवन नसीब नहीं होगा, वह भटकता रहेगा। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो जातक विदेशों में जाकर अच्छा धन कमायेगा मगर बृहस्पति की दशा में सब कुछ गंवा देगा। यदि शनि की दृष्टि हो तो जातक धूर्त प्रवृति का होगा और स्त्रियों के हाथों अपमानित होगा।

चरण -1
प्रथम भाग (146.40 डिग्री से 150.00 डिग्री) - इस भाग में सूर्य के साथ यदि पूर्वभाद्रपद नक्षत्र में लग्न भी पडता हो तो जातक के भाई की मृत्यु होने का संकेत है। जातक अतिरिक्त रूप से उत्साही, बातूनी तथा उग्र प्रकृति का होगा। उसके उच्च महत्वाकांक्षी होने के कारण वह किसी के अधीन रहकर कार्य नहीं कर सकता, अर्थात जातक उचित स्थिति में होगा ।

चरण -2
द्वितीय भाग (150.00 डिग्री से 153.20 डिग्री) - वह अच्छा लेखक और दार्शनिक होगा। इस भाग में सूर्य के साथ यदि उत्तरभाद्रपद में लग्न पड़ता हो तो मादाजातक अच्छी विशेषताओं के बावजूद हठी स्वभाव की, पति को प्यार न करने वाली होगी। कुछ मामलों में उनमें अलगाव या तलाक भी होते देखा गया है।

चरण -3
तृतीय भाग (153.20 डिग्री से 156.40 डिग्री) - जातक का स्त्रियोचित शरीर होगा। वह कवि या चित्रकार होगा। अपने शर्मिले स्वभाव के कारण उसे लोगों से सम्बन्ध बनाने में कठिनाई होती है। वह पिता के प्रति समर्पित तथा सबसे अच्छा व्यवहार करेगा।

चरण -4
चतुर्थ भाग (156.40 डिग्री से 160.00 डिग्री) - यदि इस भाग में चन्द्रमा सूर्य के साथ स्थित हो और दुष्ट ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक परिजनों द्वारा उत्पन्न दुष्कर समस्याओं में पड़ेगा अथवा वह मृत्यु को प्राप्त होगा ।
13- हस्त

सूर्य - हस्त
इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक अपने जन्म स्थान से दूर रहेगा, वह अधिक धन संचय नहीं कर पायेगा तथा अपने परिजनों द्वारा पीड़ित होगा। यदि मंगल की दृष्टि हो तो वह काहिल आदतों का होगा और उसके शत्रु उसके लिए समस्याएं उत्पन्न करेंगे। यदि दृष्टि हो तो वह अधिक लाभ प्राप्त नहीं कर सकेगा मगर उसके बच्चे सरकार से लाभान्वित होंगे। बृहस्पति की दृष्टि होने पर वह गुप्त विद्याओं में प्रवीण होगा। पत्नी तथा बच्चों से अच्छे सम्बन्ध न होने के कारण स्वतन्त्र रहना चाहेगा। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो वह प्रायः परदेश में रहकर धन अर्जित करेगा। यदि शनि की दृष्टि हो तो वह कई स्त्रियों से काम सम्बन्धों में लिप्त होगा ।

चरण -1
प्रथम भाग (160.00 डिग्री से 163.20 डिग्री)- यदि शुक्र भी यहां पर स्थित हो तो मादा जातक का विवाह 35 वर्ष की आयु तक नहीं होगा। नर जातक इंजीनियर, सलाहकार अथवा ठेकेदार के रूप में कार्य करेंगे। वह पेट की बिमारियों तथा आंतों की खराबी से पीड़ित होगा ।

चरण -2
द्वितीय भाग (163.20 डिग्री से 166.40 डिग्री)-जातक कर्लक या लेखाकार के रूप में नौकरी करेगा। वह टाईफाइड, खांसी-जुकाम से पीड़ित रहेगा। यह देखा गया है कि यदि इस भाग में सूर्य के साथ शुक्र भी हो तो जातक नाड़ी-तन्त्र की खराबी से पीड़ित होगा और यह उसकी पत्नी के कारण होगा ।

चरण -3
तृतीय भाग (166.40 डिग्री से 170.00 डिग्री)- यदि शुक्र भी यहां पर स्थित हो तो मादा जातक का विवाह 35 वर्ष की आयु तक नहीं होगा। जातक अति विद्वान होगा और शिक्षक अथवा धर्मगुरु का कार्य करेगा। वह पेट की बिमारियों से भी ग्रस्त होगा ।

चरण -4
चतुर्थ भाग (170.00 डिग्री से 173.20 डिग्री) - वह लेखक अथवा दुभाषियें का कार्य करके कमायेगा। यदि किसी भी ग्रह की दृष्टि न हो तो वह डाकिया बनेगा। वह पेट अथवा मुख के अल्सर से पीड़ित होगा ।
14- चित्रा

सूर्य - चित्रा
इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक के आश्रित कई स्त्रियां होगी। वह जलीय उद्योगों या व्यवसाय द्वारा आमदनी करेगा। यदि मंगल की दृष्टि हो तो जातक वीर होगा तथा अपनी वीरता से सम्पति अर्जित करेगा। बुध की दृष्टि होने पर जातक अच्छे शारीरिक गठन का तथा लेखक होगा। बृहस्पति की दृष्टि हो तो जातक शासक वर्ग के सम्पर्क में होगा तथा उससे काफी धन प्राप्त करेगा। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो उच्चतम राजनीतिक दर्जा मिलेगा तथा पत्नी, सन्तान तथा धन-दौलत से सम्पन्न होगा। शनि की दृष्टि होने पर जातक नीच प्रवृति का होगा तथा उसके अपने से बड़ी आयु की स्त्रियों से यौन सम्बन्ध होंगे।

चरण -1
प्रथम भाग (173.20 डिग्री से 176.40 डिग्री ) - जातक कुशल मैकेनिक होगा। पत्नी के नियन्त्रण में रहेगा। धनवान होगा। यदि स्वाति या विशाखा अथवा अश्लेष नक्षत्रों में लग्न पड़ता हो और बृहस्पति की दृष्टि न हो तो बालरिष्ठ (बचपन में मृत्यु) का योग है। ऐसे जातक अपने पिता की सम्पत्ति नष्ट करेंगे।

चरण -2
द्वितीय भाग (176.40 से 180.00 डिग्री) - जातक औषध, रसायन अथवा नशीली दवाओं के व्यवसाय करेगा। इस खण्ड में यदि लग्न भी पड़ता हो तो उसकी दीर्घायु संदिग्ध हैं। वह कैंसर से पीड़ित हो सकता है।

चरण -3
तृतीय भाग (180.00 डिग्री से 183.20 डिग्री) - उसका शारीरिक आभास स्त्रियोचित सा प्रतीत होता है। वह अति विद्वान, पुजारी अर्थात मन्दिर में देव पूजा करने वाला होगा।

चरण -4
चतुर्थ भाग (183.20 डिग्री से 186.40 डिग्री) जातक कुशल मैकेनिक होगा। यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो वह वैज्ञानिक शोध अथवा वाहन इंजीनियरी में ख्याति प्राप्त करेगा। वह धन प्राप्त करने की लालसावाला होगा।
15- स्वाति

सूर्य - स्वाति
इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक स्त्री वर्ग को अच्छी सेवा देगा तथा जहाजरानी अथवा जलीय उद्योगों से कमायेगा। मंगल की दृष्टि होने पर युद्धकला में प्रवीण होगा तथा धनी और यशस्वी होगा। बुद्ध की दृष्टि हो तो वह ललितकलाओं में रूचि लेगा तथा इनसे आजीविका कमायेगा। यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो वह परिवार तथा समाज में शीर्ष स्थल होगा। वह जनता से यश और मान प्राप्त करेगा तथा शासक वर्ग से लाभान्वित होगा। शुक्र की दृष्टि होने पर सुन्दर नेत्र, आकर्षक शरीर, मधुर मुखाकृति होगी तथा उसके मित्र व शत्रु बराबर तादाद में होंगे। शनि की दृष्टि होने पर स्वास्थ्य खराब रहेगा, आर्थिक लाभ का अभाव होगा तथा जीवन पर्यन्त निर्धन रहेगा। सदैव पत्नी का विरोधी रहेगा।

चरण -1
प्रथम भाग (186.40 डिग्री से 190.00 डिग्री) - जातक गठिया रोग से पीड़ित होगा। यदि किसी अन्य ग्रह की दृष्टि अथवा संयोजन न हो तो वह ताड़ी बेचने वाला या शराबी होगा। यदि हितकारी दृष्टि अथवा संयोजन हो तो जातक उच्चशिक्षा प्राप्त, बुद्धिमान और धनवान होगा। प्रथम भाग (186.40 डिग्री से 190.00 डिग्री) - जातक गठिया रोग से पीड़ित होगा। यदि किसी अन्य ग्रह की दृष्टि अथवा संयोजन न हो तो वह ताड़ी बेचने वाला या शराबी होगा। यदि हितकारी दृष्टि अथवा संयोजन हो तो जातक उच्चशिक्षा प्राप्त, बुद्धिमान और धनवान होगा।

चरण -2
द्वितीय भाग (190.00 से 193.20 डिग्री) - इस खण्ड में अकेले सूर्य की स्थिति से जातक सुनार, कैमिस्ट अथवा यात्राओं से सम्बन्धित व्यवसाय करेगा। जब शताभिषज नक्षत्र में लग्न पड़ता हो तो उसकी दांयी आंख प्रभावित होगी ।

चरण -3
तृतीय भाग (193.20 डिग्री से 196.40 डिग्री) - यदि रेवती नक्षत्र में लग्न पड़ता हो और यह भाग में सूर्य तथा शनि भी स्थित हो तो बालक केवल दो मास तक जीवित रहेगा। इस भाग में सूर्य पर शनि की दृष्टि से आँखों का रोग होना ।

चरण -4
चतुर्थ भाग (196.40 डिग्री से 200.00 डिग्री)- यदि अश्विनी नक्षत्र में लग्न पड़ता हो तो मादा जातक अपने पति को छोड़ देगी। वह क्रोधी स्वभाव की होगी। नर जातक का प्रभावी अथवा निर्भीक व्यक्तित्व होगा ।
16- विशाखा

सूर्य - विशाखा
विशाखा नक्षत्र में स्थित सूर्य पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक जहाजरानी अथवा जलीय उद्योगों से कमायेगा, उस पर कई स्त्रियां निर्भर होंगी।। यदि मंगल की दृष्टि हो तो वह वीर तथा युद्ध विद्या में कुशल होगा। बुध की दृष्टि होने पर ललित कलाओं में रुचि लेगा तथा यही उसका रोजगार होगा। यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो वह राजनीतिज्ञों के निकट सम्पर्क में होगा तथा अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए उनसे अनुचित लाभ उठायेगा। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो वह उच्च राजनीतिक दर्जा प्राप्त करेगा तथा सुखी विवाहित जीवन होगा। यदि शनि की दृष्टि हो तो जातक धोखेबाज, पापी तथा बाद में शासन से दण्ड प्राप्त करेगा।

चरण -1
प्रथम भाग (200.00 डिग्री से 203.20 डिग्री)-यदि हस्त नक्षत्र में शुक्र के साथ इस भाग में सूर्य स्थित हो तो मादा जातक का किसी हालत में विवाह नहीं होगा। उसके अवैध सम्बन्ध हो सकते है। नर जातकों का विवाह देर से होगा और इस विवाह के बाद भी पत्नी की मृत्यु अथवा तलाक का योग है।

चरण -2
द्वितीय भाग (203.20 डिग्री से 206.40 डिग्री) - जातक के कम पुत्र होंगे। आरामदायक जीवन होगा। वह क्रूर प्रवृति का तथा कम खाने वाला, कंजूस व मितव्ययी होगा। दृष्टि खराब होगी। दूसरों के लिए परेशानी उत्पन्न करेगा तथा लड़ाका स्वभाव का होगा। अवैध कार्य करेगा और कभी भी पकड़े जाने पर दण्ड भोगेगा। यदि हितकारी ग्रहों की दृष्टि अथवा संयोजन न हो तो वह घरेलू नौकर होगा।

चरण -3
तृतीय भाग (206.40 डिग्री से 210.00 डिग्री)-जातक विभिन्न कलाओं से परिचित होगा। रोगों के कारण आंखें खराब होगी। कुछ मामलों में पूर्ण अन्धापन भी पाया गया है। वह विनोदप्रिय होगा।

चरण -4
चतुर्य भाग (210.00 डिग्री से 213.20 डिग्री)-यदि यहां लग्न भी पड़ता हो और मंगल की दृष्टि हो तो उसे छाती, फेफड़ों अथवा दिल की समस्याएं होगी। इस भाग में अकेले सूर्य के स्थित होने पर वह दूसरों के लिए परेशानी का कारण बनेगा और सरकार से सजा प्राप्त भी हो सकता है।
17- अनुराधा

सूर्य - अनुराधा
इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पर यदि चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक के ऊपर बहुत सी स्त्रियां निर्भर होंगी। वह जहाजरानी तथा जल से सम्बन्धित उद्योगों द्वारा कमायेगा। यदि मंगल की दृष्टि हो तो वह वीर तथा युद्ध विद्या में निपुण होगा। बुध की दृष्टि हो तो वह ललित कलाओं में रूचि लेगा यही उसकी आजीविका होगी। यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो वह राजनीतिज्ञों के निकट सम्पर्क में होगा तथा निजी स्वार्थों के लिए उनसे अनुचित लाभ उठायेगा। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो वह स्वयं अच्छे राजनीतिक पद पर होगा और सुखी विवाहित जीवन पायेगा । यदि शनि की दृष्टि हो तो जातक धोखेबाज पाप करने वाला तथा शासन से सजा प्राप्त होगा ।

चरण -1
प्रथम भाग (213.20 डिग्री से 216.40 डिग्री) - जातक वीर व सम्मानित होगा। शत्रुओं का विनाश करने की शक्ति होगी। सदैव स्त्री संसर्ग को लालायित। प्रायः वह विदेश में या अपने जन्म स्थान से दूर बसेगा ।

चरण -2
द्वितीय भाग (216.40 डिग्री से 220.00 डिग्री) - जातक देखने में क्रूर,बेवकूफ, अति चंचल मन का धनवान और विद्वान होगा। उसका घमण्ड शत्रु बनायेगा ।

चरण -3
तृतीय भाग (220.00 डिग्री से 223.20 डिग्री) - वह समाज में दीन-हीन व्यक्तियों के पास भी नहीं फटकेगा जबकि वह स्वयं भी मध्यम या निम्नवर्ग से सम्बन्धित होगा। बेकार की शान-शौकत दिखायेगा।

चरण -4
चतुर्थ भाग (223.20 डिग्री से 226.40 डिग्री) - वह विभिन्न कलाओं में प्रवीण होगा। उसमें सही निर्णय करने की प्रतिभा। सुन्दर स्त्रियों की संगति में वह खुशियाँ प्राप्त करेगा। प्रत्येक कार्य जो वह करेगा ईमानदारी से पूरा करेगा ।
18- ज्येष्ठा

सूर्य - ज्येष्ठा
इस नक्षत्र में सूर्य पर यदि मंगल की दृष्टि हो तो जातक क्रूर तथा लाल नेत्रों वाला होगा। यदि बुध की दृष्टि हो तो अच्छे व्यक्तित्व का तथा सुखी होगा मगर अपनी आयु के चौथे दशक में धन विहीन होगा। यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो जातक राजनीति में प्रसिद्ध होगा अथवा सरकार या किसी शिक्षण संस्थान में ऊंचे पद पर आसीन होगा। वह अति धनी होगा तथा गरीबो को भीख अथवा दान देगा। शुक्र की दृष्टि होने पर वह अन्य स्त्रियों के साथ काम-वासनाओं में लिप्त होगा तथा धन विहीन होगा। यदि शनि की दृष्टि हो तो जातक गरीब, काहिल तथा रोगी होगा, लेकिन शनि की यह दृष्टि अगर नवमस स्थिति में हो तो जातक बुद्धिमान, अमीर तथा सरकार में शक्तिशाली स्थिति में होगा और अपने पिता का बैरी होगा ।

चरण -1
प्रथम भाग (226.40 डिग्री से 230.00 डिग्री) - विष, अग्नि या शास्त्र से खतरा । यदि शनि और चन्द्रमा भी यहां पर स्थित हो तो जातक 9 वर्ष की आयु तक जीवित रहेगा।

चरण -2
द्वितीय भाग (230.00 डिग्री से 233.20 डिग्री)- जब यह भाग सूर्य के स्थित होने के साथ लग्न युक्त भी हो तो जातक कम बालों वाला या गंजा, लम्बे कद का होगा। वह खुजली से परेशान, आंखों का रोगी होगा। वह किसी भी मामले में धैर्य तथा किसी के भी प्रति सहानुभूति नही रखेगा।

चरण -3
तृतीय भाग (233.20 डिग्री से 236.40 डिग्री) - यदि नर जातक का जन्मदिन के समय हो और इस भाग में सूर्य पर शनि और मंगल की दृष्टि हो तो जातक के जन्मते ही उसके पिता की मृत्यु हो जायेगी। (मादा जातकों के जन्म के कारण पिता को कोई खतरा नहीं है) ।

चरण -4
चतुर्थ भाग (236.40 डिग्री से 240.00 डिग्री) - इस भाग में यदि सूर्य अशुभ ग्रहों से घिरा हो तो, प्राचीन मान्यताओं के अनुसार जातक के जन्मते ही पिता की मृत्यु होगी। मगर मेरी खोज के अनुसार यह देखा गया है कि इस संयोजन से जातक को पिता दीर्घायु होता है। फिर भी यह पाया गया है कि इस भाग में सूर्य का अशुभ ग्रहों से घिरा होना और मृगशीर्ष नक्षत्र के चौथे भाग में अथवा आर्द्रा नक्षत्र में मंगल और शनि के स्थित होने से जातक के जन्मते ही उसके पिता की मृत्यु दुर्घटनाओं के कारण होगी।
19- मूल

सूर्य - मूल
इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक के सुन्दर पुत्र होगा। उसमें आर्कषण भाषण कला होगी। यदि मंगल की दृष्टि हो तो वह पुलिस या सुरक्षा विभाग में होगा तथा नाम और यश अर्जित करेगा। मगर वह अपने परिवार के लोगों द्वारा उपेक्षित होगा। यदि बुध की दृष्टि हो तो वह धनी होगा तथा सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात आदि के संगह में रूचि लेगा । वह शास्त्रों, मन्त्रों आदि में विद्वान होगा। बृहस्पति की दृष्टि होने पर वह मन्त्री या समकक्ष पद पर होगा। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो वह बहुत धनी होगा मगर अपनी काम-वासना की पूर्ति के लिए बहुत सा धन खर्च कर देगा। यदि शनि की दृष्टि हो तो वह बुरे लोगों की संगति में रहेगा तथा मवेशियों द्वारा कमायेगा ।

चरण -1
प्रथम भाग (240.00 डिग्री से 243.20 डिग्री) - बुध के साथ होने पर जातक का ईश्वर समान विद्वान पिता होगा। उसके माता पिता बड़ी संख्या में दरिद्रों को भोजन देंगे तथा दान पुण्य करेंगे।

चरण -2
द्वितीय भाग (243.20 डिग्री से 246.40 डिग्री) - यदि अन्य हितकारी दृष्टि न हो तो वह छोटा-मोटा व्यवसाय करेगा। यदि शुक्र सयुंक्त हो तो वह रेशम व्यापार से कमायेगा ।

चरण -3
तृतीय भाग (246.40 डिग्री से 250.00 डिग्री ) - जातक का गला खराब रहेगा। मजाकिया तथा कल्पनाशील स्वभाव । मादा जातक छाती के दर्द से पीड़ित होगी। वह तेल अथवा पेट्रोल का व्यवसाय करेगा।

चरण -4
चतुर्थ भाग (250.00 डिग्री से 253.20 डिग्री ) - स्वास्थ्य की दृष्टि से यह स्थिति शुभ नहीं है। वह बेहोशी, अनुमस्तिष्कीय रक्तक्षीणता, तेज सिरदर्द से पीड़ित होगा। यदि मंगल और शुक्र भी साथ हों तो जातक बिमार जैसा दिखने वाला डाक्टर होगा ।
20- पूर्व आषाढा

सूर्य - पूर्व आषाढा
II पूर्व- आषाढ़ नक्षत्र में ग्रहों की स्थिति से उत्पन्न परिणाम सूर्य इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक के सुन्दर पुत्र होगा। उसमें आर्कषण भाषण-कला होगी। यदि मंगल की दृष्टि हो तो वह पुलिस या सुरक्षा विभाग में होगा तथा नाम और यश अर्जित करेगा। मगर वह अपने परिवार के लोगों द्वारा उपेक्षित होगा। यदि बुध की दृष्टि हो तो वह धनी होगा तथा सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात आदि के संगह में रूचि लेगा । वह शास्त्रों, मन्त्रों आदि में विद्वान होगा। बृहस्पति की दृष्टि होने पर वह मन्त्री या समकक्ष पद पर होगा। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो वह बहुत धनी होगा मगर अपनी काम-वासना की पूर्ति के लिए बहुत सा धन खर्च कर देगा। यदि शनि की दृष्टि हो तो वह बुरे लोगों की संगति में रहेगा तथा मवेशियों द्वारा कमायेगा ।

चरण -1
प्रथम भाग (253.20 डिग्री से 256.40 डिग्री) - जातक का उद्देश्य शक्ति, अधिकार तथा सुख वैभव प्राप्त करना होगा । दोहरा चरित्र-आधा भौतिकवादी तथा आधा आध्यात्मवादी होगा। 21 वर्ष की आयु में नौकरी करेगा। यदि व्यवसाय करेगा तो अपने पिता वाला ही व्यवसाय अपनायेगा ।

चरण -2
द्वितीय भाग (256.40 डिग्री से 260.00 डिग्री) - जातक सम्मानित और धनी होगा। उसका घमण्डपूर्ण व्यवहार कईयों से शत्रुता का कारण बनेगा। उसे किसी बाहरी व्यक्ति से घायल होने का खतरा है अतः उसे ऐसे लोगों से सावधानीपूर्वक व्यवहार करना चाहिए।

चरण -3
तृतीय भाग (260.00 डिग्री से 263.20 डिग्री) - जातक साहसी होगा । बृहस्पति की दृष्टि होने पर वह औद्योगिक क्षेत्र में अच्छी स्थिति प्राप्त करेगा ।वह नौकरी के साथ व्यापार भी करेगा। 35 से 44 वर्ष की आयु का समय उसक लिए सर्वश्रेष्ट होगा ।

चरण -4
चतुर्थ भाग (263.20 डिग्री से 266.40 डिग्री)- इस भाग में सूर्य की उपस्थिति से जातक व्यवसायिक विचारधारा का होगा। बृहस्पति के साथ होने पर उसका व्यवसायिक संस्थाओं का विशाल साम्राज्य होगा। कई भवनों का मालिक होगा।
21- उत्तर आषाढा

सूर्य - उत्तर आषाढा
इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक के सुन्दर पुत्र होगा। उसमें आर्कषण भाषण कला होगी। यदि मंगल की दृष्टि हो तो वह पुलिस या सुरक्षा विभाग में होगा तथा नाम और यश अर्जित करेगा। मगर वह अपने परिवार के लोगों द्वारा उपेक्षित होगा। यदि बुध की दृष्टि हो तो वह धनी होगा तथा सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात आदि के संगह में रूचि लेगा। वह शास्त्रों, मन्त्रों आदि में विद्वान होगा। बृहस्पति की दृष्टि होने पर वह मन्त्री या समकक्ष पद पर होगा। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो वह बहुत धनी होगा मगर अपनी काम-वासना की पूर्ति के लिए बहुत सा धन खर्च कर देगा। यदि शनि की दृष्टि हो तो वह बुरे लोगों की संगति में रहेगा तथा मवेशियों द्वारा कमायेगा ।

चरण -1
प्रथम भाग (266.40 डिग्री से 270.00 डिग्री) - जातक कमर दर्द से पीड़ित होगा। वह क्रोधी स्वभाव का तथा जिद्दी होगा। फिर भी वह धार्मिक, जनप्रिय तथा धनी होगा ।

चरण -2
द्वितीय भाग (270.00 से 273.20 डिग्री) - जातक चुप्पा लेकिन विषादग्रस्त, समदर्शी और मेहनती लेकिन संदिग्ध चरित्र का होगा। वह संगीत में निपुण होगा तथा संगीत और ललित कलाओं के द्वारा अर्जित करेगा ।

चरण -3
तृतीय भाग (273.20 डिग्री से 276.40 डिग्री) - वह प्रत्येक कार्य में चतुर होगा। इस भाग में मंगल की दृष्टि के साथ लग्न भी पड़ता हो तो जातक अस्थमा तथा क्षय रोग से ग्रस्त होगा ।

चरण -4
चतुर्य भाग (275.00 डिग्री से 278.20 डिग्री) - स्वास्थ्य की दृष्टि से यह स्थिति शुभ नहीं है। वह बेहोशी, अनुमस्तिष्कीय रक्तक्षीणता, तेज सिरदर्द से पीड़ित होगा। यदि मंगल और शुक्र भी साथ हों तो जातक बिमार जैसा दिखने वाला डाक्टर होगा ।
22- श्रवण

सूर्य - श्रवण
इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पर यदि चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक स्त्रियों के सानिध्य के द्वारा धन गंवायेगा और अन्त में खुशियों से वंचित होगा। यदि मंगल की दृष्टि हो तो वह दूसरों के झगड़ों द्वारा धन कमायेगा अर्थात वकील का कार्य करेगा। कुछ मामलों में स्वयं भी ऐसे झगड़ों में पड़ कर धन गवाएंगा। उसका बिमार शरीर होगा तथा पागलपन की अवस्था में रहेगा। बुद्ध की दृष्टि होने पर पागलों की भांति व्यवहार करेगा, सदैव दूसरों को सताने में रूचि लेगा। भले लोग उससे दूर रहेंगे। यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो समाज के लिए अच्छे कार्य करेगा और बुद्धिमान तथा दयालू होगा। उसे समय पर हर तरफ से सहायता मिलेगी। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो धन सम्पत्ति के साथ प्राप्ति होगी। शनि की दृष्टि होने पर वह जिद्दी स्वभाव का शत्रुओं पर विजय पाने वाला शासक का निकटवर्ती रहकर उनसे लाभ प्राप्त करेगा ।

चरण -1
प्रथम भाग (280.54.13 डिग्री से 283.20 डिग्री)-इस भाग में सूर्य और चन्द्रमा पर शनि की दृष्टि हो तो जातक के माता और पिता दोनों को खतरा होगा। इस भाग में लग्न पड़ने के साथ सूर्य, शनि और मंगल भी बुद्ध, बृहस्पति या शुक्र के सहयोग के बिना स्थित हो तो जातक के जन्मते ही उसके पिता और पितामह की मृत्यु का योग ।

चरण -2
द्वितीय भाग (283.20 डिग्री से 286.40 डिग्री)- इस भाग में सूर्य और चन्द्रमा के संयुक्त होने के साथ मूलनक्षत्र में लगन पड़ता हो तो जातक की एक पत्नी और एक ही पुत्र होगा। यदि सूर्य दुष्ट ग्रहों से घिरा हो और जन्म,दिन के समय में हो तो जातक के पिता की जल्दी मृत्यु ।

चरण -3
तृतीय भाग (286.40 डिग्री से 290.00 डिग्री) - इस भाग में सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की अनिष्टकारी दृष्टि के साथ रेवती नक्षत्र में लग्न पड़ता हो तो जन्मते ही बालक की मृत्यु हो जायेगी। यह एक ही ग्रह की अनिष्टकारी दृष्टि हो तो बालक की मृत्यु एक मास के भीतर हो जायेगी।

चरण -4
चतुर्थ भाग (290.00 डिग्री से 293.20 डिग्री) - जातक लालची और चंचल मन होगा। भटकने का शौकीन, वेश्यागमन करेगा। माता-पिता तथा परिजनों से मनमुटाव के कारण भारी हानि । कई छिपे शत्रु होंगे। बहुत कष्ट पायेगा। यदि हितकारी ग्रहों की दृष्टि हो तो परिणाम कुछ सकारात्मक हो सकते हैं।
23- धनिष्ठा

सूर्य - धनिष्ठा
इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पर यदि चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक स्त्रियों के सानिध्य के द्वारा धन गंवायेगा और अन्त में खुशियों से वंचित होगा। यदि मंगल की दृष्टि हो तो वह दूसरों के झगड़ों द्वारा धन कमायेगा अर्थात वकील का कार्य करेगा। कुछ मामलों में स्वयं भी ऐसे झगड़ों में पड़ कर धन गवाएंगा। उसका बिमार शरीर होगा तथा पागलपन की अवस्था में रहेगा। बुद्ध की दृष्टि होने पर पागलों की भांति व्यवहार करेगा, सदैव दूसरों को सताने में रूचि लेगा। भले लोग उससे दूर रहेंगे। यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो समाज के लिए अच्छे कार्य करेगा और बुद्धिमान तथा दयालू होगा। उसे समय पर हर तरफ से सहायता मिलेगी। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो धन सम्पत्ति के साथ प्राप्ति होगी। शनि की दृष्टि होने पर वह जिद्दी स्वभाव का शत्रुओं पर विजय पाने वाला शासक का निकटवर्ती रहकर उनसे लाभ प्राप्त करेगा ।

चरण -1
प्रथम भाग (293.20 डिग्री से 296.40 डिग्री) - जातक में चतुराई होती है। मगर साथ ही वह स्वार्थी व बड़बोला होता है। साफ रंग, छोटा कद/विधवाओं तथा तलाकशुदा स्त्रियों की ओर अधिक रूचि होगी।

चरण -2
द्वितीय भाग (296.40 डिग्री से 300.00 डिग्री ) - इस भाग मंगल और शनि का संयोजन 5 वर्ष के भीतर बालक की मृत्यु का कारण होगा। वह अच्छे व्यक्तित्व का लेकिन नीच स्वभाव का, कंजूस तथा मित्रों से हीन होगा।

चरण -3
तृतीय भाग (300.00 डिग्री से 303.20 डिग्री) - बुद्धिमान, दीप्तिमान शरीर, छोटे खूबसूरत दांत, सुविकसित चेहरा तथा 76 वर्ष की आयु होगी। देखा गया है कि शुभ दृष्टि के साथ सूर्य के होने पर वह प्रायः बिमार रहेगा मगर यह बिमारी उसकी मृत्यु का कारण नहीं बनेगी ।

चरण -4
चतुर्थ भाग (303.20 डिग्री से 306.40 डिग्री ) - जातक खुशियों से हीन होगा। साफ रंग, मनोहर रूप, स्वस्थ तथा सुखी होगा। संगीत व मनोरंजन में अधिक रूचि होगी। शुरू में 35 वर्ष की आयु तक परिवार की उपेक्षा करेगा, बाद में अपनी गल्ती को सुधारेगा तथा घर-परिवार को खुशहाल बनायेगा । फिर भी उसका अपने पिता से बैर होगा ।
24- शतभिषा

सूर्य - शतभिषा
इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पर यदि चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक स्त्रियों के सानिध्य के द्वारा धन गंवायेगा और अन्त में खुशियों से वंचित होगा। यदि मंगल की दृष्टि हो तो वह दूसरों के झगड़ों द्वारा धन कमायेगा अर्थात वकील का कार्य करेगा। कुछ मामलों में स्वयं भी ऐसे झगड़ों में पड़ कर धन गवाएंगा। उसका बिमार शरीर होगा तथा पागलपन की अवस्था में रहेगा। बुद्ध की दृष्टि होने पर पागलों की भांति व्यवहार करेगा, सदैव दूसरों को सताने में रूचि लेगा। भले लोग उससे दूर रहेंगे। यदि बृहस्पति की दृष्टि हो तो समाज के लिए अच्छे कार्य करेगा और बुद्धिमान तथा दयालू होगा। उसे समय पर हर तरफ से सहायता मिलेगी। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो न सम्पत्ति के साथ प्राप्ति होगी। शनि की दृष्टि होने पर वह जिद्दी स्वभाव का शत्रुओं पर विजय पाने वाला शासक का निकटवर्ती रहकर उनसे लाभ प्राप्त करेगा ।

चरण -1
प्रथम भाग (306.40 डिग्री से 310.00 डिग्री)- इस भाग में सूर्य के साथ पूर्व-फाल्गुनी नक्षत्र में शनि के स्थित होने पर जातक अपने परिवार पर किसी श्राप के कारण अपने बच्चों के विनाश का कारण बनेगा।

चरण -2
द्वितीय भाग (310.00 डिग्री से 313.20 डिग्री)-इस भाग में सूर्य और चन्द्रमा के साथ उत्तरभाद्रपद नक्षत्र में लग्न पड़ने पर जातक अंधा होगा। यदि इस संयोजन पर मंगल की दृष्टि हो तो पूर्ण अंधता होगी।

चरण -3
तृतीय भाग ( 313.20 डिग्री से 316.40 डिग्री) - मृगशीर्ष नक्षत्र में लग्न होने के साथ इस भाग में सूर्य, मंगल तथा शनि के स्थित होने पर जातक विदेश या परदेश में किसी अग्निकांड या अन्य दुर्घटना के कारण मृत्यु को प्राप्त होगा ।

चरण -4
चतुर्थ भाग ( 316.20 डिग्री से 320.00 डिग्री ) - जातक धूर्त, क्रूर, नीच तथा अशिक्षित होगा। वह छोटा-मोटा दुकानदार अथवा निम्नस्तर की नौकरी में होगा तथा गरीब होगा। वह दूसरों के धन पर ऐश करने वाला होगा, फिर भी बृहस्पति की दृष्टि होने पर जातक धन-ऐश्वर्य के साथ उच्च स्थिति में होगा ।
25- पूर्व भाद्रपद

सूर्य - पूर्व भाद्रपदा
इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पर यदि चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक स्त्रियों के सानिध्य के द्वारा धन गंवायेगा और अन्त में खुशियों से वंचित होगा । यदि मंगल की दृष्टि हो तो वह दूसरों के झगड़ों द्वारा धन कमायेगा अर्थात वकील का कार्य करेगा। कुछ मामलों में स्वयं भी ऐसे झगड़ों में पड़ कर धन गवाएंगा। उसका बिमार शरीर होगा तथा पागलपन की अवस्था में रहेगा। बुद्ध की दृष्टि होने पर पागलों की भांति व्यवहार करेगा, सदैव दूसरों को सताने में रूचि लेगा। भले लोग उससे दूर रहेंगे। यदि बृहस्पति की दृष्टि हो समाज के लिए अच्छे कार्य करेगा और बुद्धिमान तथा दयालू होगा। उसे समय पर हर तरफ से सहायता मिलेगी। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो धन सम्पत्ति के साथ प्राप्ति होगी। शनि की दृष्टि होने पर वह जिद्दी स्वभाव का शत्रुओं पर विजय पाने वाला शासक का निकटवर्ती रहकर उनसे लाभ प्राप्त करेगा ।

चरण -1
प्रथम भाग (320.00 डिग्री से 323.20 डिग्री)- यहां पर अकेला सूर्य, जातक को अपने बच्चों से दूर रहकर जीवन व्यतीत करने को बाध्य करता है। वह निम्नवृति का गरीब व्यक्ति होगा। शुभ दृष्टियों के होने पर उसे यथेष्ट धन, पत्नी तथा संतान के सुख की प्राप्ति होगी। इस मामले में बच्चे उसके अलग रहेंगे।

चरण -2
द्वितीय भाग (323.20 डिग्री से 326.40 डिग्री) - जातक ससुराल से धन प्राप्त करेगा। वह जल के द्वारा उत्पादित वस्तुओं का (पेय पदार्थों) व्यवसाय करेगा ।

चरण -3
तृतीय भाग (326.40 डिग्री से 330.00 डिग्री) - इस भाग में शनि, मंगल और चन्द्रमा के संयोजन से बालक की आयु केवल तीन वर्ष होगी। श्रावण नक्षत्र में लग्न के साथ इस भाग में सूर्य और चन्द्रमा की स्थिति से बालक की मृत्यु 3 दिन में हो जायेगी।

चरण -4
चतुर्थ भाग (330.00 डिग्री से 333.20 डिग्री) - जातक व्यग्र स्वभाव वाला का होगा। उसमें प्यार, संवेदना तथा अत्मिक शक्तियां अर्न्तनिहित होगी। वह गुप्त शक्तियों में विश्वास रखने वाला तथा पानी से सम्बन्धित वस्तुओं में रूचि लेगा ।
26- उत्तर भाद्रपद

सूर्य - उत्तर भाद्रपद
इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक के सुन्दर पुत्र होगा। उसमें आर्कषण भाषण-कला होगी। यदि मंगल की दृष्टि हो तो वह पुलिस या सुरक्षा विभाग में होगा तथा नाम और यश अर्जित करेगा। मगर वह अपने परिवार के लोगों द्वारा उपेक्षित होगा। यदि बुध की दृष्टि हो तो वह धनी होगा तथा सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात आदि के संगह में रूचि लेगा । वह शास्त्रों, मन्त्रों आदि में विद्वान होगा। बृहस्पति की दृष्टि होने पर वह मन्त्री या समकक्ष पद पर होगा। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो वह बहुत धनी होगा मगर अपनी काम-वासना की पूर्ति के लिए बहुत सा धन खर्च कर देगा। यदि शनि की दृष्टि हो तो वह बुरे लोगों की संगति में रहेगा तथा मवेशियों द्वारा कमायेगा ।

चरण -1
प्रथम भाग (333.20 डिग्री से 336.40 डिग्री)- दुष्टग्रहों से आक्रान्त होने पर जातक गर्भाशय के कैंसर से पीड़ित होगा। इस भाग में अकेले सूर्य के स्थित होने पर जातक समाज में अच्छी स्थिति तथा सुखों व अच्छे परिवार से सम्पन्न होगा।

चरण -2
द्वितीय भाग (336.40 डिग्री से 340.00 डिग्री) - जातक कृषि योजना सिचांई से सम्बन्धित उद्योगों द्वारा सम्पन्न होगा। इस भाग में सूर्य के साथ लग्न पड़ने और हस्त नक्षत्र में चन्द्रमा के स्थित होने पर नर जातक की मृत्यु का कारण एक स्त्री होगी।

चरण -3
तृतीय भाग (340.00 डिग्री से 343.20 डिग्री)-बुध के साथ होने पर जातक अति बुद्धिमान और विद्वान होगा। यहां पर शुक्र के साथ स्वाति नक्षत्र में शनि के होने पर वह सरकारी नौकरी में होगा लेकिन उसके कार्यों तथा पेशे में बदलाव होता रहेगा ।

चरण -4
चतुर्थ भाग (343.20 डिग्री से 346.40 डिग्री)-इस भाग में सूर्य और मंगल के साथ हस्त नक्षत्र में लग्न जातक की संतान के लिए खतरा उत्पन्न करेगा ।
27- रेवती

सूर्य - रेवती
सूर्य इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो जातक के पुत्र होगा। उसमें आर्कषण भाषण कला होगी। यदि मंगल की दृष्टि हो तो वह पुलिस या सुरक्षा विभाग में होगा तथा नाम और यश अर्जित करेगा। मगर वह अपने परिवार के लोगों द्वारा उपेक्षित होगा । यदि बुध की दृष्टि हो तो वह धनी होगा तथा सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात आदि के संगह में रूचि लेगा । वह शास्त्रों, मन्त्रों आदि में विद्वान होगा। बृहस्पति की दृष्टि होने पर वह मन्त्री या समकक्ष पद पर होगा। यदि शुक्र की दृष्टि हो तो वह बहुत धनी होगा मगर अपनी काम-वासना की पूर्ति के लिए बहुत सा धन खर्च कर देगा। यदि शनि की दृष्टि हो तो वह बुरे लोगों की संगति में रहेगा तथा मवेशियों द्वारा कमायेगा ।

चरण -1
प्रथम भाग (346.40 डिग्री से 350.00 डिग्री) - वह लोकप्रिय, धनी, भेदक समझ का स्वामी, सुखदर्शी, जानकार तथा जन्मजात बुद्धिमान होगा। वीर होगा तथा अपने शत्रुओं के विरूद्ध युद्धों में अच्छे परिणाम देने में सक्षम होगा। वह सही मायनों में जीवन सुख भोगेगा मगर वह दूसरों के धन तथा स्त्रियों का लोलुप नहीं होगा ।

चरण -2
द्वितीय भाग (350.00 डिग्री से 353.20 डिग्री) - श्रविष्ठा नक्षत्र के दूसरे भाग में लग्न के साथ इस भाग में सूर्य चन्द्रमा के साथ स्थित हो तो बालक जन्म से ही रोगी होगा और केवल 3 दिन जीवित रहेगा।

चरण -3
तृतीय भाग (353.20 डिग्री से 356.40 डिग्री ) - जब यह भाग लग्न युक्त हो और चित्रा नक्षत्र में चन्द्रमा तथा रोहिणी में शुक्र स्थित हो तो जातक अपने घर में अपनी ही पत्नी द्वारा मारा जायेगा

चरण -4
चतुर्थ भाग (356.40 डिग्री से 360.00 डिग्री) - सूर्य के अधिग्रहण के लिए सबसे अच्छी स्थिति। बृहस्पति की दृष्टि होने पर जातक उच्च स्थिति, यथा मंत्री के समकक्ष पर, प्राप्त करेगा। उसकी आयु का 44वां वर्ष सुनहरी समय होगा।
28- अभिजित

सूर्य - अभिजित
इस नक्षत्र में सूर्य अपनी स्थिति अथवा उत्कर्ष से अधिक शक्तिशाली होता है। इस नक्षत्र से गुजरते हुए सूर्य कुछ समय के लिए स्थिर हो जाता है, जिससे अभिजीत नक्षत्र अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए सूर्य की कुछ किरणें समाविष्ट कर लेता है। इस नक्षत्र में सूर्य की स्थिति से जातक दीर्घायु होता है क्योंकि उसके एक कवच या आवरण में होने के कारण किसी भी ग्रह से उसका कोई अनिष्ट नहीं हो सकता। जातक अपने जन्म स्थान में अधिकतम शक्तियों तथा अधिकारों का उपभोग करेगा।